नई दिल्ली : दिल्ली के स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक में राजदीप सरदेसाई भीड़ में उस बाइट का इंतज़ार कर रहे थे जिसमे कोई कैमरे पर बोले कि मोदी के कालेधन पर वार से वो परेशान हैं. राजदीप ने कोशिश तो कि लेकिन भीड़ में कोई भी स्वर मोदी के विरोध में नही गूंजा.
कोशिश तो अरविन्द केजरीवाल और ममता ने भी की थी कि नोट बदलने की लम्बी कतार में लगी भीड़ उनकी आज की रैली में शामिल होकर क्रांति मचा देगी. लेकिन संभावनाओं के उलट, पहली बार केजरीवाल की रैली में मोदी के समर्थन में नारे लगे.
कुछ ऐसा ही अनुभव , राहुल गाँधी को चार दिन पहले संसद मार्ग स्थित स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की शाखा में हुआ जहां भीड़ उनके साथ खड़ी ना हो सकी. राहुल गाँधी ने फिर मुद्दा ही बदल दिया और कहा कि लम्बी लम्बी लाइन में लगे बुजुर्ग लोगों को सरकार कम से कम बैठने को कुर्सी और पीने को पानी तो दे.
मुझे लगता है केजरीवाल हों या राहुल, या फिर मायावती ...ये नेता मोदी विरोध के भ्रम में जनता की नब्ज़ नही टटोल पा रहे हैं .
मोदी के लिए बेइंतिहा नफरत की वजह से राहुल जैसे नेता भूल गए कि देश पहली बार लाइन में नही खड़ा है.
इस देश के 95 फीसदी लोग तो होश सँभालते ही लाइन में खड़े होने के अभ्यस्त हो जाते हैं.
वो चाहे राशन की लाइन हो. रेल की टिकट खिड़की की लाइन हो. मेट्रो या बस की लाइन हो. अस्पताल या बिल जमा करने की लाइन हो या फिर घंटो घण्टो की ट्रैफिक जाम की लाइन हो.
नौकरी से लेकर स्कूल एडमिशन तक, कहाँ नही है लाइन ? दिल पर हाथ रखकर बताईये ...व्यवस्था के किस काउंटर पर नही है लाइन ? और कौन है दशकों से चली आ रही इन लाइनों का जिम्मेदार ?
मित्रों, मेरा मानना है कि देश की आज़ादी के 70 साल में पहली बार ऐसी लाइन लगी है जो इसे देश से 'नंबर दो' की लाइन खत्म करने की शुरुआत करने जा रही है.
वो 'नंबर दो' की लाइन जिसने हमारी आपकी हर लाइन को बड़ा कर दिया है.
अब सिर्फ एक आग्रह है मोदी जी से....कि वे अब बैकफुट पर कोई स्ट्रोक ना खेल ें.
मोदी जी, राजनीती के जिस विकेट पर आप खड़ें है उस पर आगे ही बढ़कर मुकाबला करना है.
आप अब बैकफुट पर गए तो
काली कमाई के दंश से डसा ये देश , फिर कई बरसों तक आगे नही बढ़ पायेगा.
इसलिए चूकिए मत,
बस आपका बल्ला सामने से आ रही हर बाउंसर पर प्रहार करता जाए.