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मुद्राराक्षस

भारतेन्दु हरिश्चंद्र

3 अध्याय
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2 पाठक
7 मई 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

इसकी रचना चौथी शताब्दी में हुई थी। इसमें चाणक्य और चन्द्रगुप्त मौर्य संबंधी ख्यात वृत्त के आधार पर चाणक्य की राजनीतिक सफलताओं का अपूर्व विश्लेषण मिलता है। इस कृति की रचना पूर्ववर्ती संस्कृत-नाट्य परंपरा से सर्वथा भिन्न रूप में हुई है- लेखक ने भावुकता, कल्पना आदि के स्थान पर जीवन-संघर्ष के यथार्थ अंकन पर बल दिया है। 

mudrarakshas

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पुस्तक के भाग

1

मुद्राराक्षस

26 जनवरी 2022
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संवत् 1932 महाकवि विशाखदत्त का बनाया मुद्राराक्षस स्थान-रंगभूमि रंगशाला में नान्दीमंगलपाठ भरित नेह नव नीर नित, बरसत सुरस अथोर। जयति अपूरब धन कोऊ, लखि नाचत मन मोर । 'कौन है सीस पै'? '

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प्रस्तावना (प्रथम अंक)

26 जनवरी 2022
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(स्थान-चाणक्य का घर) (अपनी खुली शिखा को हाथ से फटकारता हुआ चाणक्य आता है) चाणक्य : बता! कौन है जो मेरे जीते चन्द्रगुप्त को बल से ग्रसना चाहता है? सदा दन्ति के कुम्भ को जो बिदारै। ललाई नए चन्द सी ज

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द्वितीय अंक

26 जनवरी 2022
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स्थान-राजपथ (मदारी आता है) मदारी : अललललललल, नाग लाए साँप लाए! तंत्र युक्ति सब जानहीं, मण्डल रचहिं बिचार। मंत्र रक्षही ते करहिं, अहि नृपको उपकार । (आकाश में देखकर) महाराज! क्या कहा? 'तू कौन है?'

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