दिल हमेशा शांत नहीं होता! धड़कने लय बन आते - जाते सांसों की सुरमई संगीत से जो सतरंगी धूप खिलाता है उन्हीं धूप के तपतपाते मन से कुछ प्रेम के छांव चुरा लाएं हैं ! ज़िंदगी तुझे सुकूं पहुंचाने को।
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"कन्फ्यूजन में सब अच्छा लगता हैदिल, दिमाग़ सब बच्चा लगता हैदेखता हूं उसको तो बस अच्छा हैनए शौक़,पुराने दिल में रखने वालाआशिकी मैं उसका पहला पन्ना पन्ना सब कोरा कागज़ लगता हैकन्फ्यूजन में सब अच्छा
तेरी याद मेंज़िंदगी रोज़ जीते रहे तेरी यादों में मरने के लिएख्वाहिशें बर्बाद लिएइक दिन तुझसे मिलने के लिएसोचा न थाकुछ यूं गुजरेंगेज़िंदा तेरी यादों मेंतिल तिल कर मरेंगेकौन खुशनसीब हैजिनके नसीब मे
प्रेम उपवनमेरी धड़कनों की संवेगों कोक्यों बेइंतिहा बढ़ाते होदेखा तुम्हें आज़ भी,अपनी राहों मेंतुम किसी बुत से खड़े रहते होऔर मैं मंद पवन बन गुजर जाती हूं!कुछ नया नहींकोई अद्भुत अनुभव नहींतुम मुश्किलों
ज़िंदगी प्यास है तोपानी की आस हो तुममन की दहलीज परपुष्पों की सेज़ हो तुमदिल गर देवता हैं तोमन की काशी सी तुमगीत जो सुरीले निकलेवो वीणा की मधुर तान सी तुमनैनों में जो ख़्वाब चमकेवो मधुर सपनों की संसार
बादल बदल गए फिरबादल बदल गए फिर.....सावन की बौछारों पर अब क्या लिखूं,घटाएं गरजी और बरस ना पाईआंखों में जो रुक गए पानीउनकी क्या विसात लिखूं!बादल बदल गए फिर....सावन के गीतों में क्या लिखूं,जीवन में फ़ैला
तेरी याद में गालिब होने चला,लिखके तुझे मैं मशहूर होने चला,वफाओं के क़िस्से न याद ज्यादा दिला,पीके कुछ ख्वाईशें आज़ फिर कम करने चला...तेरी यादों से बिछड़ मैं...तुझसे ही फिर मिलने चला!!प्राची सिंह "मुंग
कुछ दर्द मरहम भी होता हैदर्द में भी आराम पहुंचाते हैंदेखो गुलाब कोकैसे काटों के बीच रहकरहमेशा मुस्कुराते हैं।।प्राची सिंह "मुंगेरी"
"दिल की काशी में घिरी बहुत उदासी हैखोए रहे जो मन के नगर मेंक्यों ढूंढ़ रहा दिल उसे नगर नगररहनुमा बन जो दिल में रहता थाक्यों ढूंढें अब मन उसे इधर उधर।"प्राची सिंह "मुंगेरी"
वफाएं अक्सर....हाथ में रची मेंहदी के रंग में भीमेहबूब की चाहत देखते हैंये देखने वाले भीजाने क्या क्या देखते हैं!कौन है ये,क्यों है!क्यों ज़ख्मों पे नमक छिड़कदर्दों को ज़िंदा रखने का काम करते हैं!छोड़
रिश्ता तो खुदा बनाते हैंरिश्ता तो खुदा बनाते हैं जिस्म से अलग हो तुममेरी जां कहलाते हो,हाथों में खिंची लकीरेंमेरा नसीब कहलाते हो,समझा गई ये तन्हाईतुमसे दूर न रह सकूं मैंकिसे बताऊं कि...तुम्हारे ब
मेरी ग़ज़लतुम मेरी ग़ज़ल हो...तुम मेरी धड़कन हो.....इक बार संवार भी लूं ख़ुद को लेकिन बिखरना मेरा मुकद्दर थातुम आए और चले गएछोड़ गए यादों के लम्हें अनगिनतसुना है प्रेमी बिछड़ते नहीं कभीआ मिलते हैं लेक
किस गैर से जा मिलीनींद मेरी आंखों की,सुबह का इल्म नहींस्वप्न लूट गए खैरातों में,जज्बातों को बहुत संभाला और भींग गए तकिए सिरहाने में,प्यार, मुहब्बत, इश्क़ युक्तियां लगतीमन लूट ले गए,शहर से बाहरदूर
हम किसी के भी हो न पायें खिला के फ़ूल उल्फतों कारस्मों के चिराग़ जला ना पाएंतुम हो लिए किसी गैर केहम आज़ भी किसी के हो ना पाएं!हमने जो पी कभी उन आंखों सेअब वो जाम कहां मिलता है!सजाई हुई दुकानों म
प्रिय प्रेम (शर्माजी) मधुर प्रेम स्मरण!बीती बहुत बात बीत रही सीने में!स्मृतियों के बहाने ही आ जाते इक बार किकई कई बार सीने में जा लगी विरह
"किनारे भी कातिल हो जाते हैंलिखने वाले जब तकदीर बुरी लिखते हैंआंसूओं को कब तलक़ संभालोगें ऐ टूटे जिगरमरहूम बनकर जाने वाले किन्हीं कांधों का सहारा कब देखते है!!प्राची सिंह "मुंगेरी"
"जिन गलियों में ख़ाक ऐ मुहब्बत ढूंढ़ रहे तुमउन गलियों में अब गुजरना छोड़ दिया मैंनेसपने बुने थे मिलकर ज़िंदगी के सफ़र मेंतुम किसी और के साथ आगे बढ़ गएतन्हा रह गए मुकद्दर के रकीब हमसोचकर तुम्हें अब मुस
जो मैं पानी बन जाऊं....गले से नीचे उतरूं तो प्यास बुझा दूं मैं!आग में गिरूं तोजलते को राख बना दूं मैं!पौधों में मिल जाऊं तोनवजीवन का प्राण डाल दूं मैं!जो मैं पानी बन जाऊं.....बादलों से मिलूं औरबू
दिल जो चाहता हैवो साल कहां, कब और कैसे आता है!आंखें बड़ी बतियाती है सावनआंखों में ठहर जाएवो बरसात कब और कैसे आती है!दिल खा रहा तेरी यादों की लहरों से ठोकरेंबता दे कोई किइन सैलावों में इम्तिनान कब और क
"आ मिलेंगे कभी नैनों के घाट परमन का दीप जलाए रखना सुलभ , सरल, शुभ इंतज़ार करनाख़ामोशी की ज़ुबां से प्रेम की सारी रस्में पूरी करना।"प्राची सिंह "मुंगेरी"
"ऐ मन तू काशी बन जादेवता जहां पे वास करेआंखें तू अस्सी घाट सी हो जाय जहां आरती में सब शामें प्रकाशमय हो जाए।"प्राची सिंह "मुंगेरी "
"तू पाषाण शिला की आलेख सामैं बहती शीतल नीर की धारछुके तुझे शीतल कर दूंमैं ऐसी मग्न मझधार!तू स्थिर,मैं चंचलतू मौन समेटे मन में मैं बहती गंगा की निर्मल धारछू लूं तुझे औरआगे बढ़ जाऊं नहीं है मु
"बिछड़ के ख़्वाब आंखों से, रात का ये सिलसिला कैसा होगा तू मेरी आंखों में जागता रहेगारात सदियों में पल - पल गुजरता रहेगा।"प्राची सिंह "मुंगेरी"
"मरम्मत इश्क़ का करता हूं और दिल पर पैबंद लगाता हूं नुक्सा लिखा करता हूं आंखों पर और ज़माने को इज़हार ऐ इश्क बताता हूंसुनो तुम डूबना नहीं इश्क़ काम है निक्कमों काकामगारों को, मैं इससे ब
ज़ख्म,दिल से लगाना नहीं भूलतेसूखे गुलाब मिले किताबों से उसे चूमना नहीं भूलतेज़ख्म ये ज़ख़्म सिलसिला है ये मुहब्बत कालगाके इसे दिल से फिर इसे दिल से अलग किया नहीं जाता सूखे गुलाब मि
संघर्षरत स्त्रियां संघर्षरत स्त्रियां,नहीं डरती है धूप सेनिकल जाती है घरों से, खड़ी दोपहरी में ऐसा लगता है कि संघर्ष को डरा देना चाहती हो अपने अस्तित्व लड़ाई में और बना लेना चाहती है वो मुक
"प्रेम,प्रतीक्षारत होता है प्रेमी नहीं प्रेमी ज़िंदगी जैसे लोग हैं जो देह,देह भटकते हैं सम्पूर्ण होने की चाह में!प्रेम,अनंत हो सकता है सम्पूर्ण नहीं!प्रेम,गीत हो सकता है गुनगुनाया जा सकता है लेकि
गज़ल नफ़ा और वफ़ा सब संभाल लेते हम,इक बार इश्क़ में पड़ते हम भी और गुलज़ार हो जाते!कमियां बहुत थी मुझमें, नुक्स उसमें तरासता रहा,वो मिजाज़ से रहा हमेशा इश्कियां और अब ये बाज़ार उसके नाम से सरेआम
पानीमैं पानी तुम प्यास होमेरे ज़िंदगी की आस होबनके किनारा,मैं तेरे संग संग चलताजो तुम बन जाती सरितामैं किनारा, सप्रेम तेरा आलिंगन करता।मैं पानी तुम प्यास हो नहीं बुझती मन से,क्या तुम आग हो ज
बारिश की बूंदेंलो लिया लपेट अस्ता -बस्ता हुई बारिश और लो भागे हम,घर की ओर खस्ता - खस्ता हंसते - गाते,गीत- गुनगुनातेबचते -बचाते,गिरते परतेबारिश ने भिंगो कर दिया सराबोरबूंदों की कुछ ऐसी
शॉर्ट स्टोरीशीर्षक -बारिश की बूंदें प्रवीण कुमार मेरे प्यारे पतिप्रकृति के परम् पुजारी है।इस साल हुआ यूं कि हमारे मुंगेर में बारिश न के बराबर हुई!लेकिन पेशेवर किसान और प्रकृति प्रेमी अपनी आदत से
कुछ आंखों से गा लें हम कुछ आंखों से गा लें हम कुछ आंखों से पी लें हमकुछ आंखों में भर लें हम छलक ना जाए आखों से सावनविरह के गीत मन में, आज़ दवा के रख ले हम!गाते होगें सावन तुम्हारे शहर क
गज़ल ऐसे पूछोगे तो सब खैरियत बता देंगे,जो देख लेते तो तबियत बिगड़ी हुई न होती।वफ़ादारों में है नाम उनका सांसे हमारी उनके नाम से चलती है,फरेबी ऐसा है कि - दिल हेर - फेर करने का धंधा उनका बड़ा शानद
"जो मुफ़्त होता तो कतरा कतरा पी जाते लोगये इश्क़ है महंगा,मिलता है बस नसीब वालों को जहां मेंजरा सी तरहीज क्या दे दी उसेकलेजे में आ बैठे हैं ना उठते हैं न कहीं अब जाते हैं कहते हैं इश्क़ है आ
बरखा रानी बरखा रानी करती मनमानीअपने मन से आती है भींग रहे रोज़ बारिशों में मुंगेर में बादल बौराया हैदेख रही हूं मौसम की अंगराईचहुँ दिशा में गीत गा रही बरखा रानी।काले बादलों के झुंड आते
"तेरी याद भी आए तो होश रहती हूं सलामत है इश्क़,सीने में आज़ भी तेरागमों का दौर भी आ जाए तो अब मुस्कुरा के जीती हूंरोती नहीं आंखे अब आंसूएं खिलखिलाती है कड़ी धूप देखी मैंने,कहां अब साए पे ऐतब
सुर संगम अमर हो जाने दो निरंतर,निरंतर,हौले, हौले यादों को अंदर ताज़ा हो जाने देनिर्मोही मन न पाल ले कोई बखेड़ायादों में याद और यादों में प्रियमन के सुराख भर जाने दे प्रिय की याद का गहरा
भूखभूख में लपेट प्यास भी खा जाते हैं सड़को पे घूमते असहाय मासूम बच्चे बिना चप्पलों के, नंगे पैर वाले काले दिखनेवाले बच्चेसमय से पहले समय के भेंट चढ़ जाते हैं।फिर लिख दी जाती है कविताएंभूख पे
भाग - २निरंतर,निरंतर हौले, हौले नयनों में श्रृंगार सजा लेने दोमन रम जाए तोहे रंग में सांवले रंग पे मोहे केसरिया बालम तेरी नाम की लाल चुनरियां सज जाने दो।निरंतर, निरंतर हौले, हौले प
पंक्तियांमेरी पीड़ामेरा हृदयटूट रहा मोहसम्मोहन का आकारपूछता हृदयक्या क्या रखोगे याददिल ने कहा -पीड़ाओं से खेल खेलजो मन हो जाए अचेततो सहेज लूंगी अंतर्मन में नीला आकाशथोड़ा भारहीन हो लूंगीफिर लिखूं
पंक्तियांएक दिन जब मैं खुद को ढूंढूंगी तो अपनी लिखी सारी कविताओं कोपानी में डाल दूंगीफिर छानूंगी उससे अपना खोया अस्तित्वउनमें कतरा कतरा ज़िंदगी बिनूंगी कैसे कैसे और कहांकितना खोयात
निरंतर, निरंतर हौले, हौले (भाग -३)निरंतर, निरंतर हौले, हौले सांसों को सांसों में सिल जाने दो थोड़ा दर्द विरह का हैप्रिय की बाहों में, आज़ उबलकर बाहर आ जाने दो नाज़ुक मन पे छाप अमिट 
निरंतर, निरंतर हौले, हौले (भाग -४)निरंतर, निरंतर हौले, हौले माधव तोहे प्रीत में मंत्र -मुग्धबैठे कहीं एकान्त,निर्जन वन में हरि ॐ नाम सागर भर जाने दो दुआ में मांगू, हे मुरारीजर्रा - जर्र
मैं भी लिखना चाहती हूं इक कविताआज़ादी पे गहन, गूढ़, रहस्य,विषयज्ञान,समानता,संतुलन और निराशा प्रकृति ने बांटा नर, और मादा बनाया पूरक एकदूजे को आसान नहीं बिन नर,सृष्टि का श्रृंग
सूख गया आंखों से पानीसूख गया आंखों से पानीफैल रहा समस्त ब्रह्मांड में निर्लज्जता अब चरम पे है क्योंकि इंसानों ने लाज खो दीक्या खाएं ,क्या दिखाएं मन को कितना बहकावे में दिखाएंस्वाभिमान स
"धूप में नहाएं तन अक्सर आंखों में आत्मविश्वास जगा देते हैं जरा क्या उलझे अंधेरों से गुजरकर रात कलेजे में समा जाती है गुरबत से मिले आंखों के राजदां खुशियों का मंज़र मन को आकाश बना द
"जैसे गणित मान लेता है साहित्य समर्पण चाहता है हिंदी हरश्रृंगार में इक बिंदियां सजन के नाम सजाना चाहती है गाथाओं में दुहरा दिया गया इतिहासचुन दी गई कई अनारकलीसंगमरमर की दीवारों में
बंधन की मधुरताबंधन की मधुरता में डूबा आकंठजैसे धरा और नभ का प्यारभरी सभा में लाज बचाई आके स्वयं जगदीशपवित्र नेह का बंधन है जग कहते हैं इसे हीरक्षाबंधन है।जशोदा के आंखों के तारेसुभद्रा को प्र
सम्मोहन सुख प्रीत में डूब थोड़ा सम्मोहन सुख पाने दोफिर रहूंगा सारी उम्र, तेरी प्रीत में पागलघायल नयनों में श्रृंगार, सुलभ्य प्रीत कामेंहदी रंग सरीखा केशरिया,कत्थई हो जाने दो।थोड़ा सावन चढ़ जाने द
कर्मों का ज्ञानउम्र बढ़नी थी बढ़ती रहीजो छूटना था वो छूट ही गयाभला हो मेरे कर्मों काउम्र ने बालों में सफेदी दीदो,चार सफ़ेद बालों को देखहमने सफेदी नहीं छुपाईदिल साफ़ कर लिया पूरा अपनाअब वक्त जिस रंग मे
तुम नीला आकाश हो प्रेम पत्र का प्रथम पृष्ठ तुमसे शोभितनाम नहीं सिर्फ़ तुम जीवन का अमरत्व हो,प्रेमगाथाओं के अंतिम पृष्ठ पर अंकितसारे परीक्षाओं का अंतिम,परिणाम हो तुम,बीच के कुछ हिस्सों पर अंक
कुछ मरम्मत चाहता हूं इधर से बना ठना लगता हूं,पर भीतर ही भीतर कुछ मरम्मत चाहता हूं, जितना रखना था उतना खुला ही रक्खा दिल को,दिल तोड़ने वाले, नजरों के रास्ते दिल में आते हैं,जाते,जाते दिल को त