... वैसे, यह मामला अकेले कनु भाई का ही नहीं, बल्कि बदलते समय में भारत के अधिकांश वृद्धजन अपने जीवन के अंतिम पड़ाव यानी कि बुढ़ापे को लेकर चिंतित हैं. वहीं दूसरी ओर भारत में बढ़ते ओल्ड ऐज होम (वृद्धाश्रम) के चलन ने इस चिंता को और बढ़ा दिया है. भारत जैसे देश में जहाँ माता-पिता को देवता सामान समझा जाता था, आज वहां बढ़ते वृद्धआश्रम हकीकत बयां करने के लिए काफी हैं कि हमारे समाज में किस नकारात्मक तरीके से बदलाव आ रहा है. महानगरों और नगरों में आधुनिकता से जीने की ललक में हम साल भर में एक बार कोई न कोई दिवस हम जरूर मनाते हैं, जैसे मदर्स डे, फादर्स डे और अपने कर्तब्य की इतिश्री कर लेते हैं. लेकिन इन दिवसों का उन बुजुर्गों के लिए क्या मायने हैं जिनके बच्चे ठीक से बात भी नहीं करते. यह कहना गलत न होगा कि ओल्ड एज होम होना हमारे समाज के लिए कलंक हैं, किन्तु धीरे-धीरे यह समाज की सच्चाई बनता जा रहा हैं. जिन बच्चों को पालने के लिए माँ-बाप अपनी ज़िन्दगी लगा देते हैं, उनकी शिक्षा और सुविधा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं, उनको जीवन के ...
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