जिस मंदिर का द्वार सदा उन्मुक्त रहा है
जिस मंदिर में रंक-नरेश समान रहा है
जिसके हैं आराम प्रकृति-कानन ही सारे
जिस मंदिर के दीप इन्दु, दिनकर औ’ तारे
उस मंदिर के नाथ को, निरूपम निरमय स्वस्थ को
नमस्कार मेरा सदा पूरे विश्व-गृहस्थ को
20 अप्रैल 2022
जिस मंदिर का द्वार सदा उन्मुक्त रहा है
जिस मंदिर में रंक-नरेश समान रहा है
जिसके हैं आराम प्रकृति-कानन ही सारे
जिस मंदिर के दीप इन्दु, दिनकर औ’ तारे
उस मंदिर के नाथ को, निरूपम निरमय स्वस्थ को
नमस्कार मेरा सदा पूरे विश्व-गृहस्थ को
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जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1889 को बनारस, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्हें प्रसाद के नाम से भी जाना जाता है जो कि उनका पेन नेम भी था। जयशंकर प्रसाद ने अपना कैरियर कविता लेखन से शुरु किया। उन्होंने कविता रचना में अपना नाम “कलाधर” बताया। उन्होंने शुरुआती कविताएं ब्रजभाषा में लिखी। बाद में उन्होंने खड़ी बोली हिंदी में कविताएं और कहानियां लिखनी शुरू की। जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के स्वच्छंदता के चार प्रमुख सदस्यों में से एक थे। सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ स्वच्छंदतावादी रचनाकार थे।जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय और रचनाएं ना केवल पढ़ने में सरल और सुलभ होती हैं बल्कि हमें यथार्थ ज्ञान और प्रेरणा भी देती है। छायावाद के कवि जयशंकर प्रसाद रचना को अपनी साधना समझते थे। वह उपन्यास को ऐसे लिखते थे मानो जैसे वह उसे पूजते हो। जयशंकर प्रसाद जी की कई सारी कविताएं कहानियां है | जयशंकर प्रसाद की मृत्यु 15 नवंबर 1937 को बनारस, उत्तर प्रदेश (भारत) में हुई थी। मात्र 47 वर्ष की आयु में ही उनका देहांत हो गया था। D