नीम हकीम खतरे जान ( अंतिम क़िश्त )
( दशरथ जी के बचेड़ी चले जाने के बाद) इससे आगे
आधा घंटा बीता होगा तो लक्षमण का पुत्र गणेश जो लक्षमी से 2 साल बड़ा था ,लघु शंका के लिए बाथरूम गया और दो मिन्टों में ही चीखते हुए बाथरूम से बाहर आया कि मुझे सांप ने डस दिया है । इसके बाद तो घर में कोहराम मच गया । चूंकि दशरथ जी तो दूसरे गांव गए थे और उनसे संपर्क भी नहीं हो सकता था। अत: डा विश्वनाथ जी से सम्पर्क साधा गया तो पता चला वे तो दुर्ग गए हैं। यह सुनते ही लक्षमण बेचैन हो गया । तभी उसे खयाल आया कि 2 घंटे पूर्व डा विश्वनाथ जी ने उन्हें सांप के काटे में उपयोग होने वाली दवाओं के रूप में एक इंजेक्शन और एक प्रकार का काढा दिया था । लक्षमण ने तुरंत ही गणेश को काढा पिलाया और एन्टी स्नेक इंजेक्शन भी लगवा दिया । दस मिन्टों में ही गणेश का दर्द छू-मंतर हो गया और वह हंसने लगा । रात के दस बजे दशरथ घर आए तो उसे गणेश के साथ हुए हादसे का पता चला । उन्हें यह भी पता चला कि उसे डा विश्वनाथ के द्वारा बनाए गए काढा पिलाया गया है और साथ ही एन्टी स्नेक वेनम इंजेक्शन भी लगाया गया है । दशरथ ने डा विश्वनाथ का नाम सुनकर अजीब सा मुंह बनाया । इसके बाद उन्होंने दोनों बच्चों की नाड़ी पर हाथ रख उनका विश्लेषण किया तो उन्हें सब कुछ ठीक ठाक लगा । फिर वे अपने कमरे में जाकर सो गए।
भोर होते ही घर में कोहराम मच गया। लक्षमी का मुंह झाग से भरा था और उसकी आंखे चढी हुई थीं । दशरथ जी को जब पता चला तो वे दौड़ते हुए आए और नाड़ी छूकर देखे तो उन्हें नाड़ी का स्पन्दन का एहसास नहीं हुआ । उन्होंने तुरंत लक्ष्मी को तीन अलग अलग इंजेक्शन दिए पर कुछ नहीं हुआ। लक्षमी की सांसें थम चुकी थी और उसकी पुतलियां फ़ैल चुकी थीं । दशरथ जी वहीं सिर झुकाकर दहाड़ मार कर रोने लगे । उनकी सबसे प्यारी बच्ची अब इस दुनिया से बिदा हो चुकी थी ।
घंटे भर के अंदर देवकर भर में यह खबर फ़ैल गई कि दशरथ जी की नातिन की सांप दंश से मौत हो गई है । कोई कहता कि दशरथ जी के द्वारा गलत इलाज करने से उसकी मृत्यू हुई है । जबकि उनके नाती की जान बच गई है , जिसे सर्प दंश के बाद डा विश्वनाथ के द्वारा बताए गए दवाएं दी गई थी ।
अगले दस दिनों तक लक्षमी के नाम से घर में पूजा पाठ होते रहे । दशरथ जी चौबीसों घंटे घर के एक कोने में उदास बैठे बरबड़ाते रहते थे । आज उन्हें पहली बार अपने चिकित्सकीय ग्यान पर अफ़सोस हो रहा था और भगवान की याद आ रही थी । कुछ दिन और गुज़रे पर दशरथ जी का मन वैसे ही उदिग्न रहा तो उनकी पत्नी ने अपने पुत्र लक्षमण से कहने लगी कि मैं इन्हें लेकर हरिद्वार स्थित अपने गुरू आत्मानंद जी के आश्रम जा रही हूं । वहां जाने से शायद उनका दुख कुछ कम हो ।
अगले दिन सावित्री और दशरथ जी हरिद्वार चले गए ।
आज दो बरस हो गए हैं , सावित्री और दशरथ वापस देवकर नहीं लौटे हैं । उन्होंने शेष जीवन हरिद्वार में ही बिताने का मन बना लिया है । बीच बीच में उनकी चिट्ठियां लक्षमण के नाम से आती रहती हैं । चिट्ठियों में अक्सर लिखा रहता है कि हम दोनों यहां मज़े में हैं और अपने वृद्ध जीवन का आनंद उठा रहे हैं । आध्यात्म की बातें सुनकर दिल को बहुत अच्छा लगता है । अब तो यही लगता है कि अपना शेष जीवन यहीं हरिद्वार में गुरू जी के चरणों में ही गुज़ारें । तुम लोग कैसे हो ? गणेश तो अब चौथी कक्षा की पढाई कर रहा होगा । उसे किसी बात पर ज्यादा डांटना नहीं । उसे हम दोनों की तरफ़ से आशीर्वाद देना। मुझे लक्ष्मी बेटी का एक फोटो ज़रूर भेज देना । मेरे पास उसकी एक भी फोटो नहीं है ।
एक और महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूं कि मेरे अस्पताल को डा विश्वनाथ जी के हवाले कर देना । वे बड़े गुणी चिकित्सक हैं । डा विश्वनाथ जी ना नुकुर करें तो मुझसे बात कराना , मैं एक फोन नंबर दे रहा हूं । डा विश्वनाथ जी को मेरा सलाम कहना ।
डा विश्वनाथ जी ने अब देवकर में अपने चिकित्सकीय ज्ञान न का लोहा मनवा चुके हैं । अब उनकी क्लिनिक में मरीज़ों का तांता लगा रहता है । उन्हें सुबह से रात तक मरीज़ों के इलाज के अलावा और किसी काम के लिए फ़ुरसत नहीं मिलती ।
देवकर वालों की आजकल एक ही विकट समस्या पैदा हो गई है, अब उन्हें पूजा पाठ के लिए देवकर में कोई अच्छा पंडित नहीं मिलता । उन्हें दुर्ग या बेमेतरा का चक्कर लगाना पड़ता है । जिसके कारण अब धार्मिक कार्यों को संपन्न कराने में उन्हें पहले से ज्यादा खर्च करना पड़ता है, इस बात का उन्हें बेहद दुख होता है ।
( समाप्त )