( नीम हकीम खतरे जान--कहानी दूसरी क़िश्त)
उनका एक पुत्र “ लक्षमण साव “ की उम्र लगभग 30 वर्ष की हो चुकी थी । दशरथ ने अपने पुत्र को अपनी क्लिनिक में बैठाने का बहुत प्रयास किया पर उनके पुत्र का मन खेती बाड़ी में ज्यादा लगता था ।
दशरथ और डाक्टर विश्वनाथ त्रिपाठी के बीच एक औपचारिक रिश्ता ही था । वे जब रास्ते में टकरा जाते तो एक दूजे को दुआ सलाम ज़रूर करते थे ।
धीरे धीरे समय गुज़रता गया। डाक्टर विश्वनाथ त्रिपाठी अब सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए, पर उनकी पंडिताई का काम बहुत बढ चुका था । भले ही अब वे क्लिनिक भी बंद कर चुके थे पर आपात स्थिति में उपयोग में आने वाली बहुत सारी आयुर्वेदिक और एलोपेथिक दवाइयां वे घर में रखते थे ।
उधर दशरथ अपने क्लिनिक में ही बहुत व्यस्त रहते थे ।
दशरथ जी अपनी नातिन लक्षमी जो अभी 6 साल की थी , को बेहद प्यार करते थे । वे अक्सर लक्षमी को घूमाने ले जाते थे । उसे तरह तरह के खिलौने दिलाते थे । उसकी हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करते थे ।
अब के बरस देवकर में बारिश का मौसम कुछ जल्द ही दस्तक देने लगा था । एक दिन दशरथ की नातिन लक्षमी और नाती गणेश अपने पिता के साथ खेत चले गए थे और वहीं बने घर के कमरे में लुका छिपी का खेल खेल रहे थे कि अचानक लक्षमी चीख चीख कर रोने लगी। उसके पिता तुरंत दौड़ते हुए लक्षमी के पास पहुंचे तो लक्षमी ने बताया कि उसके पैर में सुई की चुभन जैसे बहुत दर्द हो रहा है । लक्षमी के पिता लक्षमण को ऐसा लगा कि उसे सर्प या बिच्छु या किसी कीड़े ने काट लिया है । इधर उधर देखने से उसे आंगन में एक सर्प दिखा । वह उस सर्प को मारने के लिए दौड़ा पर सर्प पास स्थित नाली में घुस गया । लक्षमण तुरंत ही दोनों बच्चों को लेकर वापस देवकर अपने घर आ गया। लक्षमण ने अपने पिता को बताया कि लक्षमी को एक सांप ने आधे घंटे पूर्व डस दिया है । तब दशरथ जी ने लक्षमी को टिटेनस का इंजेक्शन लगाया , एमाक्सिलिन का इंजेक्शन लगाया और काटे गए भाग को स्प्रिट से अच्छी तरह धोने के बाद उस हिस्से को सोफ़्रामाइसिन मलहम से ड्रेसिंग कर दिये । । उसके बाद वे निश्चिंत थे । दशरथ जी ने एन्टीस्नेक वेनम के बारे में सुना था पर उसे वे गैर वाजिब चीज़ मानते थे । और उन्होंने अपनी नातिन को भी कहीं से एन्टी स्नेक वेनम लाकर लगाने के बारे में सोचा भी नहीं । इलाज़ प्रारंभ करने के आधे घंटे के बाद लक्षमी का दर्द कम हो गया और उसे बेहतर लगने लगा तो वह खेलने लगी । यह देखकर लक्षमण की सांस में सांस आई ।
इसके बाद लक्षमण कुछ काम से बाज़ार गया तो रस्ते में उसे डा विश्वनाथ जी मिल गए। लक्षमण ने उन्हें भी बताया कि उसकी बेटी को सांप ने डस दिया है, तो मेरे पिता ने उसे टिटेनस का इंजेक्शन , एमाक्सिसीलिन का इंजेक्शन , काम्बीफ़्लेम की गोली और काटे हुई जगह का सोफ़्रामाइसिन से ड्रेसिंग किया है । अब आधे घंटे हो गए हैं और वह अच्छा महसूस कर रही है। क्या उसे कोई और दवा देना चाहिए ? जवाब में डा विश्वनाथ ने कहा कि मेरे अनुसार उसे एन्टीस्नेक वेनम भी लगाना चाहिए । कभी कभी 8 से 10 घंटे बाद सांप के काटे का नकारात्मक असर होता है । चलो मेरे घर मेरे पास एन्टी स्नेक वेनम है। मैं हमेशा 1-2 वायल एन्टीस्नेक वेनम का घर में रखता हूं और मरीज़ों को कुछ सावधनियां बरतते हुए लगाता भी हूं । सांप काटे मरीज़ को एन्टीस्नेक वेनम देना कई बार निहायत ज़रूरी होता है और सुरक्षित भी । अपनी बच्ची को भी इस इंजेक्शन को लगवा देना । । ऐसा कहते हुए डा विश्वनाथ लक्षमण को अपने घर ले गए और उसे एंटी स्नेक वेनम सौंप दिए।
घर ले जाकर अपने पिता को बिना बताए , एक जगह छिपा कर रख दिया । लक्षमण ने अपने पिता दशरथ से डा विश्वनाथ के द्वारा बताये गए एन्टीस्नेक वेनम के बारे में बताया तो उसके पिता भड़क गए और कहने लगे कि तुम किस पंडित के चक्कर में पड़ रहे हो । वह तो साधारण सर्दी खांसी के लिए भी 7 दिनों की दवाएं देता है । जबकि मैं सिर्फ़ दो इंजेक्शन लगाकर अपने मरीज़ों को ठीक कर देता हूं । जहां तक एन्टीस्नेक वेनम की बात है, उससे बहुत से लोगों को ऐसा रियेक्शन होता है। फिर लक्षमी को सांप के द्वारा काटे हुए लगभग एक घंटा बीत चुका है और वह स्वस्थ्य है व खेल कूद रही है । उसे और कुछ देने की ज़रूरत नहीं है ।
लक्षमी के हित के बारे में मुझसे बेहतर कौन सोच सकता है । वह तो मेरी सबसे लाडली है । जाओ चिन्ता न करो। और हां मैं अभी एक सांप के द्वारा काटे मरीज़ का इलाज करने पास के गांव बचेड़ी जा रहा हूं । 2 से 3 घंटे लग ही जाएंगे । इतना कहकर दशरथ जी घर से ग्राम बचेड़ी की ओर रवाना हो गए ।
( क्रमशः )