*#अल्प रक्तदाब 🙏🙏🙏 (Hypotension):-*
जब किसी व्यक्ति का सिस्टोलिक ब्लड प्रेशर 100 मि० मी० और डायस्टोलिक प्रेशर 60 मि० मी० पारा दाब से कम हो, तो इसको अल्प रक्तदाब/निम्न रक्तचाप कहते हैं। इसको “लो ब्लड प्रेशर" (Low blood pressure) के नाम से भी जाना जाता है। यह स्तब्धता (शांक) की प्रथमावस्था हो सकती है।
इस रोग के *#प्रमुख_कारण
🙏*#औषधियाँ--*🙏
कई प्रकार की एलोपैथिक औषधियों के सेवन से भी रक्तचाप कम हो जाता है, जैसे-फिनोथाइजीन, बीटा ब्लोकर्स तथा कैल्शियम ब्लोकर्स आदि।
🙏*संक्रमण ( इन्फेक्शन)-*🙏
रक्तचाप , लम्बे समय से रोग रहने कौ स्थिति में भी, कम हो जाया करता है, जैसे-क्षयरोग (T.B.), टायफाइड फीवर आदि।
🙏*#हृदय_रोग-* 🙏
हार्ट अटैक, मायो कार्डाइटिस, बाल्व में रूकावट, कार्डियक टेम्पोनेड आदि हृदय रोगों में भी रक्तचाप कम हो जाया करता है।
🙏*#रक्तस्राव-* 🙏
रक्त के अधिक बह जाने के कारण भी रक्तचाप में गिरावट आ जाती है, जैसे-अत्यार्तव/रक्तप्रदर, रक्तार्श/खूनी बवासीर, पेप्टिक अल्सर, मूत्र द्वार से रक्त निकलना आदि।
🙏*#कुपोषण-* 🙏
शारीरिक दुर्बलता, रक्ताल्पता, पानी की कमी/निर्जलीकरण, भोजन में प्रोटीन की कमी, भूख व उपवास आदि के कारण भी अल्प रक्तदाब की स्थिति उत्पन हो जाती है।
🙏*#कुछ_अन्य_कारण-*🙏
बहुत अधिक समय तक खडे रहना, रक्त नलिकाओं का फूल जाना, लू (यानी ग्रीष्म ऋतु में चलने वाली गर्म हवा) लग जाना, वृक्क (किडनी) के रोग, बहुत अधिक परिश्रम एवं चिन्ता, एलर्जी, आन्त्रशोध व गर्भकाल आदि दशाओं में भी रक्तचाप कम हो जाया करता हे।
🙏*#लक्षण-*🙏
रोगी के सिर में शूल और चक्कर आना आरम्भ हो जाते हैं। हाथ-पैर ठण्डे हो जाते हैं, रोगी का किसी भी कार्य में मन नहीं लगता, भूख कम हो जाती है, खड़े होने पर आँखों के समाने अन्धेरा छा जाता है। नाडी गति तीव्र चलती है एवं रक्त का आयतन (वोल्यूम) कम हो जाता है। रोगी को मूत्र कम आता है तथा थोड़ा-सा परिश्रम करने पर साँस फूलने लगता है। प्रायः तापक्रम सामान्य (प्राकृत) से कम हो जाता है। रोगी को थकावट व आलस्य रहता है। रोगी चुपचाप पड़ा रहता है, किन्तु वह सक्रियता में रहता है। नेत्र गड्ढे में धंसे प्रतीत होते हैं और उनकी स्वाभाविक चमक नष्ट हो जाती है| मांसपेशियों में ऐंठन एवं शरीर में (विशेषकर) हाथों में कम्प पाया जाता है। इसमें अधिकांशतया श्यावता की स्थिति (Cynosis) पायी जाती है। रक्तदाब में अधिक कमी होने पर रोगी संज्ञा शून्य हो जाता है तथा उसकी मृत्यु भी हो सकती है।
🙏*#अल्प_रक्तदाब में उपयोगी कुछ #सरल व लाभकारी *#घरेलू_आयुर्वेदिक, यौगिक_ और प्राकृतिक प्रयोग-*
🙏* बोलना-चालना बन्द करके चुपचाप बायीं करवट लेकर लेट जाने या सो जाने से निम्न रक्तचाप में तुरन्त लाभ होता है।
🙏* निम्न रक्तचाप या हृदय दुर्बलता के कारण रोगी के मूरच्छित हो जाने पर हरे आंवले का रस और शहद समान मात्रा में 2-2 चम्मच मिलाकर रोगी को चटाने से रोगी को सक्रियता आ जाती है और हृदय की दुर्बलता भी दूर हो जाती है।
🙏* प्रतिदिन 7 नग बादाम की गिरियों को रात के समय पानी में भिगोकर प्रात:काल अति सूक्ष्म पीस कर दूध के साथ सेवन करने से कुछ ही दिनों में लो ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है और रोगी के हृदय को भी शक्ति मिलती है।
🙏2 ग्रेन उत्तम क्वालिटी की हींग छाछ में मिलाकर सेवन करें।
🙏« भोजनोपरान्त 1 गिलास छाछ पियें।
🙏* सूखे आँवलो के चूर्ण में समान भाग मिश्री मिला कर 1-1 चम्मच कौ मात्रा में दिन में 2 बार ताजा जल के साथ सेवन करना लाभकारी है।
🙏* गोदन्ती हरताल भस्म 4 ग्राम, स्वणमाक्षिक भस्म ओर मृगश्रृंग भस्म 2-2 ग्राम, सूत शेखर रस 1 ग्राम-इन सभी औषधियों को खरल में घोटकर 125-250 मि०ग्रा० मात्रा में दिन में 3 बार गाय के दूध के साथ सेवन कराना अत्यन्त हितकर है।
🙏* अल्प रक्तचाप में लक्ष्मी विलास रस या बसन्त कुसुमाकर रस 1-1 गोली सुबह-शाम तथा दिन में 2 बार भोजनोपरान्त द्राक्षासव, लोहासव और कुमार्यासव का मिश्रण 3-5 चम्मच की मात्रा में समान भाग जल मिलाकर सेवन कराना हितकर है।
*🙏#पथ्यापथ्य:-*🙏
🙏स्मरण रहे कि यह रोग रक्त की कमी एवं दुर्बलता से हुआ करता है, अत: जहाँ तक हो सके रोगी, को प्रोटीन युक्त भोजन भरपूर (उचित) मात्रा में देना चाहिए। प्रोटीन वाले भोजन, जैसे-दूध, पनीर, मक्खन, तिल तेल, सूरजमुखी के फलों की गिरी, बादाम,अधिक मात्रा में दें।
🙏यदि रोगी को अतिसार, वमन अधिक आयें, रक्त निकल जाने से उसके शरीर क़ा तरल कम हो चुका हो, तो उसको बार-बार पानी, दूध, फलों का रस पीने को आदेशित करें, जिससे रक्त में तरल की कमी दूर हो जाये।
🙏योगासन, प्राणायाम( उज्जाईं, भस्त्रिका, सूर्यभेदी ), षटकर्म में कपालभाति के साथ और शीघ्रता से लाभ मिलता है।
प्राकृतिक चिकित्सा में, सम्पूर्ण शरीर का गर्म पानी से भीगी तौलिया से घर्षण करें।
नमक, चीनी का घोल पिलाये।
🙏 दोनों पैरों को सोते समय सिर भाग से अधिक ऊंचाई पर रखकर सोएं। जिससे रक्त सिर, ह्रदय की ओर प्रवाहित हो।
ऐसा करने से निश्चित रूप से लाभ मिलता है और अधिक लाभ के लिए चिकित्स्क से मिले।
डॉ त्रिभुवन नाथ श्रीवास्तव, प्राचार्य विवेकानंद योग प्राकृतिक चिकित्सा महाविद्यालय एवम् चिकित्सालय बाजोर, सीकर, राजस्थान