नई दिल्ली : जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना पर हमले की संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान कि मून ने कड़ी निंदा की है, साथ ही उन्होंने मारे गए सैनिकों के परिवारों के प्रति सहानुभूति भी जाहिर की है। इस हमले पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘‘पाकिस्तान एक आंतकवादी देश है और इसे पहचाना जाना चाहिए एवं अलग-थलग किया जाना चाहिए।’’ तो अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या भारत अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तहत पाकिस्तान को अलग थलग कर पायेगा। जानकारों की माने तो पाकिस्तान को अलग थलग करने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिस तरह की कूटनीति की जरूरत है वह फ़िलहाल वह दिख नहीं रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने मुश्किल दोहरी है क्योंकि एक तरफ देश के अंदर से पाकिस्तान को कड़ा जवाब देने की आवाज़ें आ रही हैं वहीँ दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ तमाम देशों को एकजुट करना भी पीएम मोदी के लिए इतना आसान नहीं है।
विदेश मामलों के जानकार कहते हैं कि पहली बार भारत अमेरिका पर इतना फ़िदा है कि उसके लिए वह छोटे देशों को दरकिनार करने में हिचक नहीं रहा है। उदाहरण के लिये ऐसा पहली बार हुआ जब गुट निरपेक्ष देशों के सम्मलेन में प्रधाननंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं गए। वेनेजुएला में हुए गट निरपेक्ष देशों के सम्मलेन में भारत की ओर से उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने हिस्सा लिया। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के दौर से ही भारत गुट निरपेक्ष देशों के सम्मलेन में अहम भूमिका निभाता आया है लेकिन इस बार पीएम मोदी ने इस सम्मलेन में भाग न लेकर यह संकेत दिया कि वह अमेरिका के लिए इन देशों से दूर रहने को तैयार हैं। क्योंकि गुट निरपेक्ष देश हमेशा अमेरिका के विरोधी माने जाते रहे हैं।
यह बात सही है कि भारत पहली बार अमेरिका को अपना दोस्त बनाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना कद बढ़ाना चाहता है लेकिन भारत अमेरिका पर जितना भरोसा कर रहा है क्या वह सही साबित होगा। वैसे अमेरिका के रुख का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधाननंत्री नरेन्द्रमोदी ने जब बलूचिस्तान की आज़ादी की बात उठाई तो अमेरिका ने साफ़ कहा दिया है वह पाकिस्तान की अखंडता का सम्मान करता है और वह बलूचिस्तान की आज़ादी का समर्थन नहीं कर सकता।
वहीँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए इसी साल नवम्बर में पाकिस्तान को होने वाले सार्क सम्मलेन में हिस्सा लेना बड़ी मुश्किल हो गई है। भारत अब पाकिस्तान नहीं जायेगा इसका संकेत गृह मंत्री राजनाथ सिंह और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर पहले दे चुके हैं। लेकिन मुश्किल तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगर पाकिस्तान नहीं जायेंगे तो सार्क देशों में सही मैसेज नहीं जायेगा। वो भी तब जब खुद पीएम नरेन्द्र मोदी ने अपने सपथ ग्रहण में सार्क देशों को नेताओं को न्यौता दिया था और अब सार्क सम्मलेन में पाकिस्तान नहीं गए तो सम्मलेन स्थगित हो जायेगा।