लखनऊ : विधान सभा चुनावों के परिणाम आने के बाद मायावती और उनकी पार्टी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाने से व्याकुल बसपा सुप्रीमो मायावती ने चुनाव आयोग की ही कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगाकर मतदाताओं के निर्णय को ही चुनौती दे डाली ।
बहुजन समाज वादी पार्टी को किसी भी दशा में विजयी बनाने का सपना दिन में भी देखने वाली मायावती ने इस बार अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने के लिए समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेध लगाकर मुसलमानो को आकर्षित करने का प्रयास किया ।देश के सम्मानित और समझदार मुसलमान उनके इस धोखे में नहीं फसे और इन्होंने मायावती को सिरे से नकार दिया। दयाशंकर सिंह के साथ हो या उनकी पत्नी स्वाति सिंह व उनकी पुत्री के साथ मायावती के विश्वास पात्र नसीमुद्दीन की अभद्र टिप्पणियां मायावती को चुनाव से बाहर करने हेतु पर्याप्त थी। सभी मतदाताओं ने स्वाति सिंह का साथ दिया और पूरी बहुजन पार्टी को इसका सही जवाब अपने मताधिकार द्वारा दिया गया।
मुसलमानो को 100 टिकट देने की नीति भी मायावती के विपरीत दिखी।बीएसपी का वोट बैंक जो अबतक मायावती को अपना हितैषी मानती थी,मायावती से खासा नाराज़ दिखाई देती थी क्यों कि मायावती दलितों को छोड़कर अब केवल मुसलमानो के हित की ही बात करती है। इस कार्यवाही से असंतुष्ट होकर मायावती का वोट बैंक बीएसपी से खिसक कर भाजपा के पक्ष में चला गया और पूरे मन से भाजपा को वोट दिया।मायावती को अनुमान था कि लगभग 15% दलित और 17% मुसलमानो के साथ 32% वोतो से उनके सभी उम्मीदवार जीतेंगे और इस बार उनकी ही सरकार बनेगी।मायावती के आंकड़ों का यह संतुलन उन्ही की सोच और कारनामो से उनके मतदाताओं ने बिगाड़ दिया।अपनी जीत का अहम ही मायावती को बर्बाद करने के लिए काफी था. पार्टी के आंकड़ों का संतुलन खोने के बाद मतदान के रुझान देखते देखते अपनी पार्टी का अस्तित्व समाप्त होते देख मानसिक संतुलन खो जाना स्वाभाविक है पर उसका असर चुनाव की कार्यप्रणाली पर निकाला जायेगा कोई नहीं सोच सकता।बहुजन समाजवादी पार्टी के पास अब इतनी सीटे भी नहीं है कि मायावती को पुनः राज्य सभा पहुँचा सके। विधानसभा सदस्यों की संख्या इतनी भी नहीं है कि किसी एक को राज्य सभा के लिये होने वाले चुनाव में वोट देकर पहुँचा सके।
आनन् फानन में प्रेस कांफ्रेंस कर मायावती ने चुनाव आयोग की ईवीएम मशीनों को ही चुनौती दे डाली और आयोग से अपेक्षा की है कि मत पत्रों के द्वारा पुनः मतदान कराया जाये। बसपा सुप्रीमो मायावती का आरोप है कि ईवीएम मशीनों को इस प्रकार सेट किया गया था कि किसी को भी वोट दो तो वोट भाजपा को ही मिलता है।कुछ पत्रकारों द्वारा इसकी शिकायत की बात भी कही और इस आधार पर पुनः चुनाव की मांग कर दी। तकनीकि दृष्टि से मायावती का यह आरोप बड़ा हास्यास्पद लगता है।कुछ मसखरे पत्रकारों ने भी उनके साथ ऐसा मज़ाक कर उनकी मानसिकता पर भी प्रश्न चिन्ह लगवा दिया।यदि यह मान लिया जाए की ईवीएम मशीनों में ऐसी कोई तकनीकि व्यवस्था की गई थी तो स्वंम मायावतीजी की पार्टी को 18-20 सीटे क्यों मिल गई इसके अतिरिक्त भाजपा द्वारा जीती गई सीटो पर हारे हुऐ उम्मीदवारों को वोट कैसे मिले।यदि ऐसी कोई गड़बड़ी होती तो कांग्रेस्और सपा में बैठे विद्धवांन नेता भी इसका आरोप पहले ही लगा सकते थे।ईवीएम मशीनों ने उत्तराखंड,गोवा और मणिपुर में क्यों नहीं लिया गया।अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने हार को स्वीकार करते हुए बीएसपी के इस आरोप को स्वीकारा तो नहीं पर यह अवश्य कहा कि मैं भी इसका आकलन करूँगा और यदि ऐसा कुछ मिलता है तो सरकार को इसकी जांच करा लेनी चाहिए।अखिलेश ने भजपा पर यह आरोप जरूर लगाया कि मतदाताओं को बहकाया गया।चुनाव हारने के बाद किसी भो नेता का चुनाव प्रक्रिया को चुनौती देंना नेता की मानसिक स्थिति पर ही प्रश्न लगाता है।