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पश्चिमी संस्कृति:वरदान या अभिशाप

3 दिसम्बर 2022

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हम पृथ्वी पर निवास करते हैं ब्रम्हाण्ड में कई ग्रह है लेकिन अब तक की खोज में केवल पृथ्वी पर ही जीवन पाया जाता है और पृथ्वी एक है लेकिन यहाँ के निवासरत लोगो ने जमीन के टुकड़ो में उसे खंडित कर दिया। एक पृथ्वी कई राष्ट्रो में बट गया कोई पूर्वी देश तो कोई पश्चिमी देश कहलाया । पूर्वी देश की अपेक्षा पश्चिमी देश विकसित हुए टेक्नालॉजी का विकास हुआ ।पूर्वी देश भारत धर्म की गुत्थियों में उलझा सा रह गया । हमारे पास टेक्नालॉजी की कमी है हम पश्चिमी देशों से समान उपकरण मशीन मंगाते है और अच्छा भी है मशीन ने मनुष्य का काम आसान कर दिया है जिसमे हजारो लोगो की आवश्यकता होती थी अब सौ लोग मशीन की सहायता से कर सकते है । जिस काम में 10 लोगो की आवश्यकता होती है अब 2 व्यक्ति मशीन की सहायता से आसानी से कर लेते है । श्रमिक  खून पसीना बहाकर किसी चीज का उत्पादन करता था कई लोग काम की अधिकता से मर भी जाते थे ।एक तरह से वरदान साबित हुआ टेक्नालॉजी ।

केवल कारख़ानों तक ही सीमित नहीं रहा मनुष्य के बिस्तर से लेकर पैखाना तक पश्चिमी सभ्यता ने पाँव पसार लिया । गम्भीर बीमारियों का इलाज करने हमारे पास डॉक्टर व उपकरण की कमी है लोग उच्च अध्ययन करने विलायत जाते है। फैशन से भी अछुता नही है जीन्स कम कपड़े पश्चिमी देशों से आये है। यातायात वाहन आदि में पश्चिमी सभ्यता का बोल बाला है । इंटरनेट कंप्यूटर ने तो संचार के साधनों में क्रान्ति ला दी ।आज मोबाइल के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ।

वरदान के साथ साथ पश्चिमी सभ्यता ने पूर्वी संस्कृति को नष्ट कर दिया है । भारत की परिधान सभ्य व सुन्दर है  लेकिन पश्चिमीकरण की होड़ में महिलाओं को चपेट में ले लिया है कम व तंग कपड़े पहनना  आज का फैशन हो गया है । व्यंजन भी हम रसोई में उनका बना रहे है बर्गर पिज्जा पैकेज बन्द खाद्य पदार्थों में वृद्धि हुई है । हम अपना नमस्कार भूल गये हैं । कई जगह तो धर्म के नाम पर लोग अपना मूल धर्म को बदल रहे हैं । अधिकाश लोग बेरोजगार भी हुए है और आदी भी। यकीनन हमे विकसित होना है गरीबी ,बेरोजगारी भुखमरी दूर भगानी है हम हमारी वेशभूषा रहन सहन को क्यो भूल जाए ।

कोई भी संस्कृति बुरी नही होती इस पृथ्वी पर रहते है सभी जीव है अभी एक ग्रह टकरायेगा और हम जो अहंकार पाले बैठे है चकनाचूर हो जाएगा । जलवायु से देश के लोगो का रहन सहन तय होता है कही श्वेत है तो कही अश्वेत वो उनकी संस्कृति ये हमारी ।हम एक दुसरे की सहायता अवश्य आयात निर्यात करके कर सकते है ।जीवन को सुखमय बना सकते है हम ना अपनी भाषा को अच्छा मानते है न दुसरे देशो की भाषा को ।कोई सिद्धान्त किसी के लिए अच्छा होता है तो किसी के लिए सहायक नही ,हमारी विवेक पर निर्भर करता है की हम उसका अनुसरण करें या नही । अन्धानुकरन करने में कोई समझदारी नही दिखती है । दौलत पाने के लिए क्या हम नंगे हो जाए । होश पूर्वक समझे और होशपूर्वक जीवन जिए । इस पृथ्वी के निवासरत लोगों को समझना होगा जो लकीर धरा पर हमने खिची वो था ही नही । निश्चित ही भारत की संस्कृति संसार में अनुपम है तभी तो राम- कृष्ण, बुद्ध, महावीर ,गुरुनानक व ओशो जैसे लोगो की पुण्य भूमि है।यहाँ आत्मा बसती है देवताओं का वास है । लोग मोक्ष पाने विदेशो से यहां आते हैं ।

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