युवाओं में आजकल तनाव बढ़ता जा रहा है । हम १८ वर्ष से लेकर ३० वर्ष तक के पर्सन को युवा कहते है ।
शैले ने दो प्रकार के तनावों की संकल्पना की-
(क) यूस्ट्रेस (eustress) अर्थात मध्यम और इच्छित तनाव जैसे कि प्रतियोगी खेल खेलते समय
(ख) विपत्ति (distress/डिस्ट्रेस) जो बुरा, असंयमित, अतार्किक या अवांछित तनाव है।
आप लोग जानते हैं कि युवा बिना मोबाइल के रह नहीं सकते है और हर दिन बिना देखे मोबाइल को बंद नहीं कर सकते है। युवा वर्ग में एक और के पीछे चिंतित रहते है वो हैं अपने जॉब के प्रति । अपने वेशभूषा फैशन कि विशेष ध्यान रखते है। ये लाभप्रद है कि युवा अपने भविष्य कि चिंता करते है और ये भी सच हैं कि वे अपने मानसिक संतुलन खो रहे है। ऐसो आराम उसके दिमाग में सवार जो हो गया है । ऐसो आराम के चक्कर में महंगे फोन ,महंगे बाइक या कार पार्टी में पैसा बहा रहे है जिससे आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई हैं और शारीरिक स्वास्थ्य का भी सुख चैन खो गया है । तनाव ने उसे चारो तरफ से घेर लिया है। समय पर पहुँचने का टेंशन ,बोस के डॉट का टेंशन ,नौकरी के निकाले जाने का टेंशन, बॉय फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड को प्रपोज ना कर सकने का टेशन ,टेस्ट परीक्षा में चयन न होने का टेंशन, लोगो से अलग दिखने का टेंशन तो घर पर देर से पहुंचने का टेंशन कई प्रकार के तनाव हैं जीवन में सफलता पाने के लिए। सयुक्त राष्ट्र के अनुसार भारत मे सबसे ज्यादा युवा है जो 27 प्रतिशत है ।
आज से ६० साल पहले युवाओं को कैरियर कि उतनी चिंता नहीं रहती थी जो धीरे धीरे बढ़ते वर्षो में कैरियर के प्रति जागरूक बढ़ता गया।२१सदी में तो युवा मधुमेह और हार्ट अटैक जैसे गंभीर बीमारी का शिकार हो रहे हैं ।नशा ने तो उनकी बुद्धि का नाश कर दिया हैं कहते हैं न" नशा ,नाश कि जड़ है भाई इसका फल अति दुखदायी ।" गांव में युवा तम्बाकू गुदाखु व शराब से झूम रहे है। शहर में मास मदिरा व चरस के आदि हुए जा रहे है । इस सदी में हमे अधिक सूचनाएं भी प्राप्त हो रही है एक साथ अधिक सूचनाए मिलने से मन उसे करने के लिए एक्टिव हो जाता हैं लेकिन शरीर तो एक साथ काम नहीं कर सकता ऐसे में में मन में तनाव पैदा होता हैं । और तनाव से हम धासते जाते हैं नतीजा कुछ नहीं निकलता हैं सब काम में अपूर्णता का अनुभव होता हैं ।तृप्त हम नहीं हो पाते ।
विज्ञापन ,दृश्य सामग्री ने युवकों को लुभावने तथ्य बताकर उसे गुमराह किया हैं नकारात्मक तथ्य से मांग उठने पर युवा वर्ग उसे पुरा करने में लग जाते हैं चाहे वा सही रास्ता अपनाये या गलत रास्ता । नवयुवक साथी अपने माता पिता कि देखभाल करते हैं उसके स्वास्थय कि फ़िक्र करते हैं ।घर का एकमात्र सहारा होने के कारण वह तनाव में आ जाता हैं । ऐसे नहीं है कि युवा वर्ग सिर्फ घूमते फिरते हैं दोस्तों के साथ पार्टी करते हैं आज के कई ईमानदार कर्तव्यनिष्ट युवा अपने परिवार मित्रो कि दुख में सहायता भी करते हैं ।ऐसे में तनाव होना लाजिमी हैं ।
तनाव के कारण अल्जामायर रोग बढ़ रहे हैं ।मनोवैज्ञानिक का कहना हैं आने वाले सदी में मनोरोगी बढ़ जाएंगे ।अमेरिका में अभी सबसे ज्यादा मनोरोगी पाए जाते हैं ।जब हम मोबाइल को घंटो देखते रहते हैं तो आँखों में तनाव पैदा होता हैं । जिसका असर मन मस्तिक पर भी पढता है । युवा साथियो से आग्रह है कि मैडिटेशन को अपनाए ।पंद्रह मिनट रोजाना dhayn करने से तनाव में राहत मिलती है ।मन तरोताज़ा हो जाता है।