शासकीय विद्यालय में पढ़ाई की स्थिति कैसी है? क्या वहाँ पढने वाले बच्चे सही शिक्षा प्राप्त कर रहे है ? शिक्षक व पालक बच्चो पर ध्यान दे रहे है । पहले की अपेक्षा शासकीय स्कूलो में टीचर की संख्या बढ़ी है । विगत 10 वर्षो में देश के प्राय: सभी राज्यो में शिक्षक की भर्ती हुई है । जबकि विद्यार्थियो की संख्या में कमी आई है । कुछ दुर दराज इलाको में शिक्षक की कमी है । इडुकेटेड शिक्षक तो सरकारी स्कूलों में उपलब्ध है । सभी शिक्षक मेहनती है ।अधिकतर शाला समय 10 बजे से 4 बजे तक लगता है । जो सुटेबल भी है । दो पाली में लगने वाले स्कूलों में अलग समय है । नवजवान शिक्षक साथी बच्चो को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा दे रहे है।
ग्रामीण क्षेत्रों मे बच्चे प्रतिभावान होते है । यदि सही शिक्षा मिल जाता है तो वहाँ के बच्चे हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल कर सकते है । उस स्कूल के टीचर पर निर्भर करता है कि अध्ययन-अध्यापन का कार्य समयानुसार हो रहा है कि नहीं । यदि शिक्षक सही तरीक़े से बच्चो को पढा लिखा रहा है और बच्चे का स्तर कमजोर है तो जिम्मेदारी पालक की आती है कि वो अपने बच्चों पर ध्यान दे रहा है कि नहीं ।अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में पालक बच्चो पर ध्यान नहीं दे पाते है । छुट्टी के बाद बच्चा अपने बस्ते को दीवाल पर टांग देते है और अगले दिन स्कूल आते वक्त उसी बस्ते को लाता है पालक ने क्या पढाया क्या होमवर्क दिया है नही पूछा ना ही उसके कापी की जाँच की ।पालक भी नही जान पाता कि क्या बच्चा ग्रोथ कर रहा है कि नहीं । क्या यही वजह है बच्चो के कमजोर होने का। आज निशुल्क पुस्तक व ड्रेस उपलब्ध है । पालको पर कोई भार नही है ।
आज स्कूलो की भौतिक सुविधाओं में सुधार हुआ है ।बच्चो के लिए भवन उपलब्ध है रंग रोगन भी हुआ है । रोशनी व पंखे भी अब अप टू डेट मिलते है। फर्नीचर भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है । टॉयलेट व युरिनल भी है । बच्चे को खेल का समान प्रदान किया जाता है । न पढ़ पाने वाले बच्चे की संख्या हर क्लास में दिखाई देती है । यदि बच्चा प्रायमरी स्तर में कमजोर है तो मिडिल स्तर मे उसका स्तर सुधर नहीं सकता जब उसे पढ़ना ही नही आता है । ये बच्चा खिसकता बस जाता है और जहाँ परीक्षा फैल पास होता है वहा वह रुक जाता है । कई लोग पढ़ाई भी छोड़ देते है । क्लास वन से होकर ऐट तक पहुँचते पहुँचते वह ठीक तरह से पढ़ नही पाता आखिर माजरा क्या है कहां चूक हो रही है । शिक्षक बच्चे या पालक की कमजोरी है । बच्चे के मनोविज्ञान को समझना जरूरी है । बच्चे डर से बोल नही पाता झिझक महसूस करता है । वह अपने शारीरिक कष्ट को माता पिता या शिक्षक को बता नहीं पाता । सतत निरीक्षण से जाना जा सकता है ।