जिस धरा पर जन्म लिया वो मिट्टी हैं निराली।
पले बड़े पिलाया जिसने अपने हाथो से प्याली ।
तुम्हारे संगी साथी वो बचपन की सहेली
साथ चलते थे कभी बुझते नई नई पहेली।
माता पिता की गोद नही की खाली।
वो नन्ही फूल जैसे हो सूरज की लाली ।
अपने क्षेत्र की रहन सहन सीखाती भाषा पाली।
लोक कला लोक गीत सहेजे अपनी प्यारी बोली।
रंग रूप वेश भूषा लिये संस्कृति का प्याली।
स्वाद जिव्हा गीत कंठ मस्तक तिलक भाली।
ऋणी है हर एक व्यक्ति जीवन जो मिली।
धुतकारोगे संस्कृति तो अपनी होगी बदहाली ।
अपनी ही नही दुनिया की संस्कृति भी निराली।
सीख ले अपनी असली या उनकी नकली।
लुप्त होते संस्कृति को जिसने बचा ली ।
धन्य है वो सभ्यता उसने बाजी मार ली।
जिस डाल-शाख पर कली है खिली।
उस संस्कृति की एकमात्र रक्षक है माली।