shabd-logo

पात्र

27 अप्रैल 2022

89 बार देखा गया 89

बिम्बिसार: मगध का सम्राट्

अजातशत्रु (कुणीक): मगध का राजकुमार

उदयन: कौशाम्बी का राजा, मगध सम्राट् का जामाता

प्रसेनजित्: कोसल का राजा

विरुद्धक (शैलेन्द्र): कोसल का राजकुमार

गौतम: बुद्धदेव

सारिपुत्र: सद्धर्म के आचार्य

आनन्द: गौतम के शिष्य

देवदत्त (भिक्षु): गौतम बुद्ध का प्रतिद्वन्द्वी

समुद्रदत्त: देवदत्त का शिष्य

जीवक: मगध का राजवैद्य

वसन्तक: उदयन का विदूषक

बन्धुल: कोसल का सेनापति

सुदत्त: कोसल का कोषाध्यक्ष

दीर्घकारायण: सेनापति बन्धुल का भांजा, सहकारी सेनापति

लुब्धक: शिकारी

(काशी का दण्डनायक, अमात्य, दूत, दौवारिक और अनुचरगण)

वासवी: मगध-सम्राट् की बड़ी रानी

छलना: मगध-सम्राट् की छोटी रानी और राजमाता

पद्मावती: मगध की राजकुमारी

मागन्धी (श्यामा): आम्रपाली

वासवदत्ता: उज्जयिनी की राजकुमारी

शक्तिमती (महामाया): शाक्यकुमारी, कोसल की रानी

मल्लिका: सेनापति बन्धुल की पत्नी

बाजिरा: कोसल की राजकुमारी

नवीना: सेविका

(विजया, सरला, कंचुकी, दासी, नर्त्तकी इत्यादि)

4
रचनाएँ
अजातशत्रु (नाटक)
0.0
अजातशत्रु का मूलाधार भी अंतर्द्वन्द्व ही है। मगध,कोशल और कौशांबी में प्रज्वलित विरोध की अग्नि इस पूरे नाटक में फैली हुई है। उत्साह और शौर्य से परिपूर्ण इस नाटक में चरित्रों का सजीव चित्रण किया गया है। इसके प्रमुख पात्र मानवीय गुणों से ओतप्रोत है।
1

पात्र

27 अप्रैल 2022
1
0
0

बिम्बिसार: मगध का सम्राट् अजातशत्रु (कुणीक): मगध का राजकुमार उदयन: कौशाम्बी का राजा, मगध सम्राट् का जामाता प्रसेनजित्: कोसल का राजा विरुद्धक (शैलेन्द्र): कोसल का राजकुमार गौतम: बुद्धदेव सारिपुत्

2

प्रथम अंक

27 अप्रैल 2022
1
0
0

स्थान - प्रकोष्ठ राजकुमार अजातशत्रु , पद्मावती , समुद्रदत्त और शिकारी लुब्धक। अजातशत्रु : क्यों रे लुब्धक! आज तू मृग-शावक नहीं लाया। मेरा चित्रक अब किससे खेलेगा समुद्रदत्त : कुमार! यह बड़ा दुष्ट हो

3

द्वितीय अंक

27 अप्रैल 2022
1
1
0

स्थान - मगध अजातशत्रु की राजसभा। अजातशत्रु : यह क्या सच है, समुद्र! मैं यह क्या सुन रहा हूँ! प्रजा भी ऐसा कहने का साहस कर सकती है? चींटी भी पंख लगाकर बाज के साथ उड़ना चाहती है! 'राज-कर मैं न दूँगा'-

4

तृतीय अंक

27 अप्रैल 2022
0
0
0

स्थान - मगध में राजकीय भवन छलना और देवदत्त। छलना : धूर्त्त! तेरी प्रवंचना से मैं इस दशा को प्राप्त हुई। पुत्र बन्दी होकर विदेश चला गया और पति को मैंने स्वयं बन्दी बनाया। पाखण्डी, तूने ही यह चक्र रचा

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए