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प्रजावादी समाजवादी

31 जुलाई 2022

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साथी तेजराम 'आग' प्रजा समाजवादी दल के पुराने और प्रतिष्ठित नेता हैं। वे पहले प्राय: टोपी भी लगाते थे, पर एक दिन डॉ। लोहिया ने कह मारा कि यह बड़ी बेवकूफी की बात है। 'आग' ने उसी दिन से प्राय: टोपी उतार दी। अब वह नंगे सिर ही रह रहे हैं।

मैं उनके कमरे में चुपके से चला गया। वे बाबू जयप्रकाश नारायण के एक बड़े चित्र के सामने खड़े-खड़े रो रहे थे और कहते जाते थे- ''साथी, अब लौट आओ। बहुत साल हो गए। संन्यास तो तुमने लिया, पर बनवास हमें हो गया। साथी, पन्द्रह साल हो गए, जब तुमने हमसे कहा था कि 1952 में अपनी सरकार बनेगी। मगर यह ‘63 पूरा होने को आया। इन सालों में मैंने संसद से लेकर नगरपालिका तक का हर चुनाव और उपचुनाव लड़ा, पर आज तक कहीं का मेम्बर नहीं हुआ। हम तो सन् ‘47 में तुम्हारे ही भरोसे कांग्रेस से निकल आए थे। साथी! हम हजारों युवक पूरे देश में निकल-निकलकर तुम्हारे पीछे हो गए थे। आज उनमें से अधिकांश की राजनीतिक मृत्यु हो चुकी है। तुमने ऐसा क्यों किया? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था? हम तो तुम्हारे भरोसे नाव में बैठ गए और तुम मँझदार में हमें छोड़ पतवार लेकर डुबकी लगा गए। साथी, अब हम बूढ़े हो गए हैं, मगर बुढ़ापा भी हमारे किसी काम नहीं आया। कांग्रेस में ही रहते तो हम आज भी 'वयोवृद्ध कांग्रेसी’ कहलाते और कहीं सरकार में होते। मगर इस पार्टी में होने के कारण हमारी कोई इज्जत नहीं है। एक मामूली पुलिस इन्स्पेक्टर तक हमारे कहने से किसी को नहीं छोड़ता।

''साथी, अभी भी आ जाओ, अब तो 'नेहरू के बाद कौन?’ प्रश्न पर दो-तीन कांग्रेसी नेताओं की ही चर्चा होती है, तुम्हारे बार-बार कहने पर भी जब नेहरू पद नहीं छोड़ता तो कोई और उपाय करो, साथी। अब तो लौट ही आओ। तुम तो हजारीबाग जेल की दीवार फाँदकर भाग आए थे। क्या तुमसे सर्वोदय आश्रम से भागते नहीं बनता। जरा हमारी तरफ भी तो देखो। तुमने हमारा क्या हाल कर दिया है, साथी!’’

वे फूट-फूटकर रोने लगे। मुझसे भी वह दुख देखा नहीं गया। मेरी भी आँखें गीली हो गईं।

मैंने धीरे से पुकारा, ''आगजी!’’

वे डूबे थे। बिना मुड़े ही बोले, ''यहाँ कोई आगजी नहीं है। कई साल पहले थे। अब तो यहाँ राखजी रहते हैं।’’

उन्हें मेरी उपस्थिति का अभी तक कोई आभास नहीं था। मैं जोर से खाँसा। वे अचकचाकर मुड़े। झट आँसू पोंछ डाले। बोले, ''आप यहाँ कब से खड़े हैं?’’

मुझसे झूठ नहीं बोला गया, ''काफी देर हो गई।’’

वे परेशान हो गए। पूछा, ''तो क्या आपने रोना देख लिया?’’

''रोना नहीं, विलाप!’’ मैंने कहा।

''हाँ, विलाप ही सही। पर क्या आपने देख लिया?’’

''जी हाँ, और सुन भी लिया।’’

वे चिन्ता में पड़ गए। कहा, ''देखिए, आप किसी से कहिए नहीं।’’

मैंने कहा, ''मगर आगजी, कल शाम को तो आप सभा में सरकार से इस्तीफा माँग रहे थे, संघर्ष की धमकी दे रहे थे। और इधर आप।।।’’

आगजी ने कहा, ''वह सार्वजनिक मामला था, यह प्राइवेट है। बाहर वीर-रस होता है, भीतर करुण-रस!’’

मैंने पूछा, ''यह कार्यक्रम क्या रोज चलता है?’’

उन्होंने कहा, ''हाँ, लेकिन आधार बदलता रहता है।’’

''क्या मतलब?’’ मैंने कहा।

उन्होंने समझाया, ''यही कि कभी-कभी मैं राजाजी के सामने और गुरु गोलवलकर के सामने भी रो लेता हूँ कि तुम्हीं कुछ करो हमारे लिए।’’

उनके कमरे में लगभग सब देशों के नेताओं की तस्वीरें टँगी थीं। पंडित नेहरू की भी एक बड़ी तस्वीर थी।

मैंने पूछा, ''आगजी, कभी नेहरू भी आपके विलाप के आधार होते हैं?’’

वे बोले, ''हाँ, उन्होंने और जयप्रकाश ने मिलकर ही हमारा यह हाल किया है। दोनों ने हमारे साथ धोखा किया। जयप्रकाश ने जो किया, सो तो आपने अभी सुन ही लिया। नेहरू ने 1956 में अवाड़ी कांग्रेस में हमारे साथ महान धोखा किया। उन्होंने हमारा 'समाजवाद’ का नारा ही छीन लिया। अरे, ऐसा 1947 में ही कह देते, तो हम क्यों और समाजवाद के चक्कर में पड़ते? हम कोई और पार्टी देखते। जनसंघ में ही चले जाते।’’

उनके अन्तिम वाक्य से मैं चौंका। मैंने कहा, ''आगजी, जनसंघ और समाजवादी पार्टियों में कोई अन्तर आप नहीं मानते? इसमें नहीं तो उसमें आना-जाना सहज ही हो जाता है?’’

आगजी के चेहरे पर अब राजनीतिक ज्ञान की चमक आ गई, बोले, ''कोई अन्तर नहीं है। वे भी विरोधी हैं, हम भी विरोधी हैं। विरोधी-विरोधी सब एक होते हैं।’’ उनका आत्मविश्वास लौट आया था। वे सपने में डूबते हुए कहने लगे, ''सब विरोधी मिलकर इस सरकार को निकाल देंगे। तब हमारी सरकार बनेगी। यही हमारी योजना है।’’

मैंने कहा, ''मगर आगजी, आप समाजवादी हैं, स्वतंत्रपार्टी, पूँजीवादी, जनसंघ सम्प्रदायवादी, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पृथकतावादी। यदि सबके मेल से यह सरकार निकल भी गई, तो आप लोग, जिनके परस्पर-विरोधी सिद्धान्त हैं, काम कैसे करेंगे? समाजवादी का स्वतंत्री कट्टर दुश्मन होगा। अखंड भारत वाले जनसंघ की दुश्मनी डी।एम।के। से होगी। तो जब भारत आपके कब्जे में आ जाएगा, तब आपस में कशमकश नहीं मचेगी?’’

मेरी शंकाओं पर उन्हें हँसी आई। जैसे शिक्षक बच्चे को समझाता है, वैसे मुझे समझाने लगे, ''देखो, साथ काम करने के लिए हर एक को कुछ छोड़ना पड़ता है। हमने हिसाब लगा लिया है। हम दक्षिण भारत तो डी।एम।के। को दे देंगे कि लो भाई, तुम अपना हिस्सा सँभालो। स्वतंत्र पार्टी के सन्तोष के लिए हम राजा-रानियों को उनके रजवाड़े वापस कर देंगे और भिलाई जैसे सार्वजनिक उद्योग प्राइवेट कम्पनियों को दे देंगे। जनसंघ के सन्तोष के लिए हम कहेंगे कि भाई तुम दक्षिण अफ्रीका जैसे कानून बना लो और हिन्दू को वही दर्जा दे दो, जो दक्षिण अफ्रीका में गोरे को दिया है। पंजाब हम मास्टर तारासिंह को सौंप देंगे। अब जितना हिस्सा देश का बचेगा, उसमें सब ठीक चलेगा।’’

मैंने पूछा, ''आगजी, योजना तो अच्छी है। मगर इसमें आपका समाजवाद कहाँ रहेगा?’’

आगजी ने जवाब दिया, ''समाजवाद को गोली मारो। वे शब्द पुराने पड़ गए। पार्टी का कोई नाम तो होना चाहिए, इसलिए हमने 'समाजवादी’ नाम रख लिया। मूल मन्तव्य है, सत्ता हासिल करना।’’

मैंने कहा, ''विरोधी दलों के इस अभियान में कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल होगी?’’

सुनकर आगजी उठ खड़े हुए और ऊदबत्ती जला दी। कहने लगे, ''कमरा गन्दा हो गया। उसे शुद्ध हो जाने दो। क्या नाम ले दिया आपने? कम्युनिस्ट! कम्युनिस्ट हमारे साथ क्यों होंगे?’’

''वह भी विरोधी दल है न!’’ मैंने कहा।

वे बोले, ''कम्युनिस्ट विरोधी दल नहीं है। वह विरोधी नहीं होता। वह कम्युनिस्ट होता है। हर हालत में वह कम्युनिस्ट होता है। वह भिलाई किसी प्राइवेट कम्पनी को देने देगा?’’

आगजी ने भारत के राजनीतिक भविष्य का नक्शा मेरे सामने खोलकर रख दिया था। मुझे उनके और उनकी पार्टी के बारे में थोड़ी जानकारी और चाहिए थी। मैंने पूछा, ''आगजी, आपने कांग्रेस क्यों छोड़ी?’’

वे बोले, ''सैद्धान्तिक मतभेद के कारण। मैं सिद्धान्त का पक्का आदमी हूँ। सिद्धान्त को त्यागकर मैं किसी दल में नहीं रह सकता।’’

मैंने कहा, ''सैद्धान्तिक मतभेद को जरा और स्पष्ट करके समझाइए।’’

उन्होंने बताया, ''सन् 1952 की बात है। पहला आम चुनाव होनेवाला था। उस समय कांग्रेस का टिकट मुझे न देकर मेरे प्रतिस्पर्धी मोहनलाल को दे दिया गया। बस, मेरा सैद्धान्तिक मतभेद हो गया और मैंने कांग्रेस छोड़ दी। सिद्धान्त का पक्का हूँ मैं। तभी समाजवाद के नेताओं ने कहा कि हम 1952 में सरकार बनाएँगे, जिसे आना हो आ जाओ। मैं उनकी पार्टी में चला गया। भई, जो सरकार बनानेवाला हो, उसके साथ रहना चाहिए। इसके बाद का दुर्भाग्य आपको मालूम ही है।’’ मैंने अब कार्य और नीति पर चर्चा शुरू की। कहा, ''आगजी, आपका कोई कार्यक्रम है? किन नीतियों पर आप चलते हैं?’’

आगजी ने फरमाया, ''हम विरोधी दल हैं। हमारी नीति है- स्वस्थ विरोध करना। आप जानते ही हैं कि प्रजातंत्र में स्वस्थ विरोध की बड़ी आवश्यकता है।’’ मैंने पूछा, ''स्वस्थ विरोध का क्या अर्थ है? और अस्वस्थ विरोध कैसा होता है?’’

आगजी ने समझाया, ''इसका भी नियम है। जिस पार्टी के नेता कमजोर और बीमार रहते हैं, उस पार्टी का विरोध स्वस्थ विरोध कहलाता है। हमारे नेता थे दादा कृपलानी, जो कमजोर हैं। अशोक भाई का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं रहता इसलिए हमारी पार्टी का विरोध स्वस्थ है। उधर देखिए।।।जनसंघ में सब संडे-मुस्टंडे भरे हैं, लोहिया भी गबरू जवान है, इसलिए इन पार्टियों का विरोध अस्वस्थ विरोध है। स्वस्थ विरोध का एक और लक्षण यह है कि वह हर मुद्दे पर और हर स्थिति में होता है।’’

''जैसे?’’ मैंने उकसाया।

वे बोलते गए, ''जैसे यही कि कांग्रेस ने समाजवाद अपना लिया, तब भी हम खुद समाजवादी होकर उसके समाजवाद का विरोध करेंगे। हम स्वस्थ विरोधी दल हैं न? चीनी हमले के पहले हमने बजट में सैनिक खर्च का विरोध किया। फिर इस बात पर विरोध किया कि तैयारी क्यों नहीं की। और अब सरकार तैयारी के लिए पैसा वसूल करती है, तो हम उसका भी विरोध करते हैं। सरकार मैकमोहन रेखा को भारत की सीमा मानती है, तो हम आगे बढ़कर तिब्बत तक मानते हैं। कल अगर सरकार तिब्बत तक सीमा मानने लगे, तो हम मैकमोहन रेखा तक आ जाएँगे।’’ मैंने कहा, ''यह स्वस्थ विरोध कब तक होगा?’’

वे तपाक से बोले, ''आज ही खत्म हो सकता है। कांग्रेस सन् ‘67 के चुनाव के लिए मोहनलाल के बदले हमें टिकट दे दे। हम विरोध समाप्त कर देंगे। हमें पागल कुत्ते ने थोड़े काटा है! आप जरा उन लोगों से हमारे बारे में बात कीजिए न।’’

मैंने आखिरी प्रश्न किया, ''लोहिया समाजवादी पार्टी और आपकी पार्टी में किस बात पर मतभेद है? दोनों पाटियाँ एक क्यों नहीं हो रही हैं?’’

आगजी ने कहा, ''भैया, सो तो लोहिया और अशोक भाई जानें! हमने तो यही सुना है कि डॉक्टर साहब को दाढ़ी पसन्द नहीं है और अशोक भाई को नाटापन पसन्द नहीं है, सो एक ने कहा- दाढ़ी मुड़ाओ, तो दूसरे ने कहा- कद बढ़ाओ। न ये दाढ़ी मुड़ाने को तैयार, न वे ऊँचे होने को। बस, मतभेद हो गया। हमारा कहना यह है कि कद बढ़ाना तो बहुत मुश्किल है, मगर दाढ़ी तो मुड़ाई जा सकती है। अशोक भाई को बात मान लेनी थी।’’

मैं अब उठने को हुआ। मैंने कहा, ''आगजी, आपके विचार जानकर बहुत खुशी हुई। मुझे विश्वास है कि संयुक्त विरोध को लेकर आप जल्दी ही भारत पर कब्जा कर लेंगे।’’

आगजी ने कहा, ''यार, कर तो लें हम कब्जा आज। पर हमारे पास नेता नहीं है। कोई अच्छा-सा तुम्हारी नजर में हो तो बताना। जयप्रकाश बाबू तो धोखा दे गए भैया।’’ उन्होंने जयप्रकाश नारायण की तस्वीर की तरफ देखा और कहा, ''साथी, हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?’’

आगजी रुआँसे हो गए। कहने लगे, ''बन्धु, मेरा विलाप करने का जी हो रहा है। अगर तुम बाहर बात न फैलाओ, तो कर लूँ।’’

मेरा हृदय फटा जा रहा था। मैं उस दुख को दुबारा नहीं देख सकता था। मैंने कहा, ''आगजी, मुझे कोई एतराज नहीं है। मैं अब चलता हूँ। आप बेखटके विलाप करें।’’

और मैं बाहर आ गया।

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रचनाएँ
हरिशंकर परसाई की प्रसिद्ध कहानियाँ
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उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर करारा व्यंग किया है जो हिन्दी व्यंग -साहित्य में अनूठा है। परसाई जी अपने लेखन को एक सामाजिक कर्म के रूप में परिभाषित करते है। उनकी मान्यता है कि सामाजिक अनुभव के बिना सच्चा और वास्तविक साहित्य लिखा ही नही जा सकता। परसाई जी मूलतः एक व्यंगकार है। उनकी रचनाओं में तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इकउम्र से वाकिफ हैं, जाने पहचाने लोग (व्यंग्य निबंध-संग्रह) शामिल हैं
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अकाल-उत्सव

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अनुशासन

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एक अध्यापक था। वह सरकारी नौकरी में था ।मास्टर की पत्नी बीमार थी । अस्पताल में थी। तभी उसके तबादले का ऑर्डर हो गया। शिक्षा विभाग के बड़े साहब उसी मुहल्ले में रहते थे। उसका बंगला मास्टर के घर से दिखता था

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अपनी अपनी बीमारी

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हम उनके पास चंदा माँगने गए थे। चंदे के पुराने अभ्यासी का चेहरा बोलता है। वे हमें भाँप गए। हम भी उन्हें भाँप गए। चंदा माँगनेवाले और देनेवाले एक-दूसरे के शरीर की गंध बखूबी पहचानते हैं। लेनेवाला गंध से ज

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अफसर कवि

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एक कवि थे। वे राज्य सरकार के अफसर भी थे। अफसर जब छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे कवि हो जाते और जब कवि छुट्‌टी पर चला जाता, तब वे अफसर हो जाते। एक बार पुलिस की गोली चली और दस-बारह लोग मारे गए। उनके भीतर क

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अश्लील

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शहर में ऐसा शोर था कि अश्‍लील साहित्‍य का बहुत प्रचार हो रहा है। अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रही हैं। दस-बारह उत्‍साही समाज-सुधारक य

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आध्यात्मिक पागलों का मिशन

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भारत के सामने अब एक बड़ा सवाल है - अमेरिका को अब क्या भेजे? कामशास्त्र वे पढ़ चुके, योगी भी देख चुके। संत देख चुके। साधु देख चुके। गाँजा और चरस वहाँ के लड़के पी चुके। भारतीय कोबरा देख लिया। गिर का सिं

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आँगन में बैंगन (निबंध)

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मेरे दोस्‍त के आँगन में इस साल बैंगन फल आए हैं। पिछले कई सालों से सपाट पड़े आँगन में जब बैंगन का फल उठा तो ऐसी खुशी हुई जैसे बाँझ को ढलती उम्र में बच्‍चा हो गया हो। सारे परिवार की चेतना पर इन दिनों बै

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इस तरह गुजरा जन्मदिन

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तीस साल पहले बाईस अगस्त को एक सज्जन सुबह मेरे घर आये। उनके हाथ में गुलदस्ता था। उन्होंने स्नेह और आदर से मुझे गुलदस्ता दिया। मैं अकचका गया। मैंने पूछा-यह क्यों ? उन्होंने कहा-आज आपका जन्मदिन है न। मुझ

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उखड़े खंभे

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कुछ साथियों के हवाले से पता चला कि कुछ साइटें बैन हो गयी हैं। पता नहीं यह कितना सच है लेकिन लोगों ने सरकार को कोसना शुरू कर दिया। अरे भाई,सरकार तो जो देश हित में ठीक लगेगा वही करेगी न! पता नहीं मेरी इ

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एक और जन्म-दिन

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मेरी जन्म-तीथि जन्ममास के पहलेवाले महीने में छपी थी। अगस्त के एक दिन सुबह कमरे में घुसा तो देखा, एक बंधु बैठे हैं और कुछ सकुचा-से रहे हैं। और वक़्त मिलते थे तो बड़ी बेतक़ल्लूफ़ी से हँसी-मज़ाक करते थे।

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मेरे मित्र की कार बँगले में घुसी तो उतरते हुए मैंने पूछा, 'इनके यहाँ कुत्ता तो नहीं है?' मित्र ने कहा, 'तुम कुत्ते से बहुत डरते हो!' मैंने कहा, 'आदमी की शक्ल में कुत्ते से नहीं डरता। उनसे निपट लेता हू

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एक सज्जन छोटे बेटे की शिकायत करते हैं - कहना नहीं मानता और कभी मुँहजोरी भी करता है। और बड़ा लड़का? वह तो बड़ा अच्छा है। पढ़-लिखकर अब कहीं नौकरी करता है। सज्जन के मत में दोनों बेटों में बड़ा फर्क है और

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‘क्रांतिकारी’ उसने उपनाम रखा था। खूब पढ़ा-लिखा युवक। स्वस्थ सुंदर। नौकरी भी अच्छी। विद्रोही। मार्क्स-लेनिन के उद्धरण देता, चे ग्वेवारा का खास भक्त। कॉफी हाउस में काफी देर तक बैठता। खूब बातें करता। हमे

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साधो, रिजल्ट खुल गए हैं। आधे स्कूल भी खुल गए। हाईस्कूल इस साल 15 दिन पहले खुल गए। लोग पूछते हैं कि साहब 15 दिन पहले स्कूल खुलने से क्या फायदा? साधो, लोग नहीं जानते कि चीन का हमारी सीमा पर हमला हुआ है

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खेती

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सरकार ने घोषणा की कि हम अधिक अन्न पैदा करेंगे और एक साल में खाद्य में आत्मनिर्भर हो जाएँगे। दूसरे दिन कागज के कारखानों को दस लाख एकड़ कागज का आर्डर दे दिया गया। जब कागज आ गया, तो उसकी फाइलें बना दी ग

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एक अमेरिकी सैनिक अधिकारी ने कहा है "भविष्य में अंतरिक्ष में युद्ध होगा" बात कुछ इस लहजे में कही गई जैसे स्कूली लड़के कहते हो अगले साल नए मैदान में कबड्डी खेलेंगे । जैसे सामान्य आदमी आशा करता है कि आग

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ग़ालिब के परसाई

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तमाम दूबों, चौबों, तिवारियों, वर्माओं, श्रीवास्तवों, मिश्रों को चुनौती है -बता दे कोई, अगर ग़ालिब के पूरे दीवान में कहीं किसी का जिक्र हो। कबीरदास ने अलबत्ता हमारे पड़ोसी पाण्डेय जी का नाम लिखा है -“सा

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घुटन के पन्द्रह मिनट

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एक सरकारी दफ्तर में हम लोग एक काम से गए थे–संसद सदस्य तिवारी जी और मैं। दफ्तर में फैलते-फैलते यह खबर बड़े साहब के कानों तक पहुंच गई होगी कि कोई संसद सदस्य अहाते में आए हैं। साहब ने साहबी का हिदायतनामा

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चूहा और मैं

31 जुलाई 2022
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चाहता तो लेख का शीर्षक ''मैं और चूहा'' रख सकता था। पर मेरा अहंकार इस चूहे ने नीचे कर दिया। जो मैं नहीं कर सकता, वह मेरे घर का यह चूहा कर लेता है। जो इस देश का सामान्य आदमी नहीं कर पाता, वह इस चूहे ने

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जैसे उनके दिन फिरे

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एक था राजा। राजा के चार लड़के थे। रानियाँ? रानियाँ तो अनेक थीं, महल में एक 'पिंजरापोल' ही खुला था। पर बड़ी रानी ने बाकी रानियों के पुत्रों को जहर देकर मार डाला था। और इस बात से राजा साहब बहुत प्रसन्न

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टेलिफोन

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एक वैज्ञानिक था । उसने देखा की दुनिया के आधे लोग बाकी आधे लोगो की सूरत से नफ़रत करते हैं, पर उनसे बात ज़रूर करना चाहते हैं । उसने सोचा की कोई ऐसी कल बनानी चाहिए,जिसमे आदमी की सूरत तो ना दिखे पर उससे ब

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बुद्धिजीवी बहुत थोड़े में संतुष्ट हो जाता है। उसे पहले दर्जे का किराया दे दो ताकि वह तीसरे में सफर करके पैसा बचा ले। एकाध माला पहना दो, कुछ श्रोता दे दो और भाषण के बाद थोड़ी तारीफ – वह मान जाता है, इत

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दस दिन का अनशन

31 जुलाई 2022
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आज मैंने बन्नू से कहा, " देख बन्नू, दौर ऐसा आ गया है की संसद, क़ानून, संविधान, न्यायालय सब बेकार हो गए हैं. बड़ी-बड़ी मांगें अनशन और आत्मदाह की धमकी से पूरी हो रही हैं. २० साल का प्रजातंत्र ऐसा पक गया

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दो नाक वाले लोग

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मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो। पर वे बुजुर्ग कह रहे थे - आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी। नाक उनकी काफी लंबी थी। मेरा ख्याल है, नाक

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उसका मुँह देखता हूँ । होंठ ज़्यादा फटे हुए हैं । दाँत बाहर निकलने को हमेशा तत्पर रहते हैं । झूठे और बक्की आदमी का मुँह ऐसा हो जाता है । झूठे दो तरह के होते हैं - चुप्पा और भड़भड़या । चुप्पा परिपक्व झू

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प्रेम की बिरादरी

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उनका सबकुछ पवित्र है । जाति में बाजे बजाकर शादी हुई थी । पत्नी ने 7 जन्मो में किसी दूसरे पुरुष को नहीं देखा । उन्होंने अपने लड़के-लड़की की शादी सदा मण्डप में की । लड़की के लिए दहेज दिया और लड़के के लिए लि

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प्रेम-पत्र और हेडमास्टर

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गुरु लोगों से मैं अभी भी बहुत डरता हूँ । उनके मामलों में दखल नही देता । पर मेरे सामने पड़ी अख़बार की यह खबर मुझे भड़का रही है । खबर है - एक लड़का रोज़ एक प्रेम-पत्र लिखता था । वे हेडमास्टर के हाथ पड़

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सुबह की डाक से चिट्ठी मिली, उसने मुझे इस अहंकार में दिन-भर उड़ाया कि मैं पवित्र आदमी हूँ क्योंकि साहित्य का काम एक पवित्र काम है। दिन-भर मैंने हर मिलनेवाले को तुच्छ समझा। मैं हर आदमी को अपवित्र मानकर

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31 जुलाई 2022
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सरदारजी जबान से तंदूर को गर्म करते हैं। जबान से बर्तन में गोश्त चलाते हैं। पास बैठे आदमी से भी इतने जोर से बोलते हैं, जैसे किसी सभा में बिना माइक बोल रहे हों। होटल के बोर्ड पर लिखा है - ‘यहाँ चाय हर व

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बकरी पौधा चर गई

31 जुलाई 2022
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साधो, तुम सुनते आ रहे हो कि बाड़ खेत को खा ही गई और नाव नदी को ही लील गई और यह भेद आज तक किसी ने नहीं जाना। तुम इन उलटवासियों का दार्शनिक अर्थ निकाल लेते हो और रूपकों को समझ लेते हो। आज मैं तुम्हें एक

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बुद्धिवादी

31 जुलाई 2022
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आशीर्वादों से बनी जिंदगी है । बचपन में एक बूढ़े अंधे भिखारी को उन्होंने हाथ पकड़कर सड़क पार करा दिया था । अंधे भिखारी ने आशीर्वाद दिया- बेटा, मेरे जैसे हो जाना । अंधे भिखारी का मतलब लम्बी उम्र से रहा

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भगत की गत

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उस दिन जब भगतजी की मौत हुई थी, तब हमने कहा था- भगतजी स्वर्गवासी हो गए। पर अभी मुझे मालूम हुआ कि भगतजी, स्वर्गवासी नहीं, नरकवासी हुए हैं। मैं कहूं तो किसी को इस पर भरोसा नहीं होगा, पर यह सही है कि उ

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भारतीय राजनीति का बुलडोजर

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साधो, बहुगुणा को हम लोग चतुर राजनेता मानते हैं। यह अलग बात है कि इंदिराजी संकट में बहुगुणा के घर गईं और संजय से ‘मामाजी’ के चरण छुवा दिए और बहुगुणा पिघल गए कि ‘मेरी बहना’ संकट में है और राखी की लाज रख

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मुक्तिबोध : एक संस्मरण

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भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था - उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आया जिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्ति

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यस सर

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एक काफी अच्छे लेखक थे। वे राजधानी गए। एक समारोह में उनकी मुख्यमंत्री से भेंट हो गई। मुख्यमंत्री से उनका परिचय पहले से था। मुख्यमंत्री ने उनसे कहा - आप मजे में तो हैं। कोई कष्ट तो नहीं है? लेखक ने कह द

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रामकथा-क्षेपक

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एक पुरानी पोथी में मुझे ये दो प्रसंग मिले हैं। भक्तों के हितार्थ दे रहा हूँ। इन्हें पढ़कर राम और हनुमान भक्तों के हृदय गदगद हो जाएंगे। पोथी का नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि चुपचाप पोथी पर रिसर्च करके मुझे प

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लंका-विजय के बाद

31 जुलाई 2022
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तब भारद्वाज बोले, "हे ऋषिवर, आपने मुझे परम पुनीत राम-कथा सुनाई, जिसे सुनकर मैं कृतार्थ हुआ। परन्तु लंका-विजय के बाद बानरो के चरित्र के विषय में आपने कुछ नहीं कहा। अयोध्या लौटकर बानरों ने कैसे कार्य कि

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लघु व्यंग्य, कथाएँ

31 जुलाई 2022
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1. अकाल-उत्सव दरारों वाली सपाट सूखी भूमि नपुंसक पति की संतानेच्छु पत्नी की तरह बेकल नंगी पड़ी है। अकाल पड़ा है। पास ही एक गाय अकाल के समाचार वाले अखबार को खाकर पेट भर रही है। कोई 'सर्वे वाला' अफसर छो

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शर्म की बात पर ताली पीटना

31 जुलाई 2022
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मैं आजकल बड़ी मुसीबत में हूँ। मुझे भाषण के लिए अक्सर बुलाया जाता है। विषय यही होते हैं - देश का भविष्य, छात्र समस्या, युवा-असंतोष, भारतीय संस्कृति भी (हालांकि निमंत्रण की चिट्ठी में 'संस्कृति' अक्सर

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सदाचार का तावीज़

31 जुलाई 2022
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एक राज्य में हल्ला मचा कि भ्रष्टाचार बहुत फ़ैल गया है । राजा ने एक दिन दरबारियों से कहा, "प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है । हमें तो आज तक कहीं नहीं दिखा । तुम लोगों को नही

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संस्कृति (व्यंग्य)

31 जुलाई 2022
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भूखा आदमी सड़क किनारे कराह रहा था। एक दयालु आदमी रोटी लेकर उसके पास पहुँचा और उसे दे ही रहा था कि एक-दूसरे आदमी ने उसका हाथ खींच लिया। वह आदमी बड़ा रंगीन था। पहले आदमी ने पूछा, 'क्यों भाई, भूखे को

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स्नान

31 जुलाई 2022
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गंगा स्नान ही नही, साधारण स्नान के बारे में भी बड़ा अंधविश्वास है । जैसे यही, की रोज़ नहाना चाहिए - गर्मी हो या ठंड । क्यों नहाना चाहिए ? गर्मी में नहाना तो माफ़ किया जा सकता है, पर ठंड में रोज़ नहाना

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सुधार

31 जुलाई 2022
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एक जनहित की संस्‍था में कुछ सदस्‍यों ने आवाज उठाई, 'संस्‍था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्‍था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग

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जिंदगी और मौत का दस्तावेज़

31 जुलाई 2022
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मेरे दुश्मनो, खुश होने में जल्दी मत करना। अभी वह शुभ क्षण नहीं आया कि मैं मरूँ । मैं जानता हूँ कि तुम एक अरसे से मेरी मृत्यु का शुभ समाचार सुनने को लालायित हो, पर फ़िलहाल मैं तुम्हें निराश कर रहा हू

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पहला सफेद बाल

31 जुलाई 2022
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आज पहला सफ़ेद बाल दिखा। कान के पास काले बालों के बीच से झांकते इस पतले रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दिया। ऎसा लगा जैसे बसन्त में वनश्री देखता घूम रहा हूं कि सहसा किसी झाड़ी से शेर निकल पड़े;या पुराने जमा

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व्यंग्य क्यों? कैसे? किस लिए?

31 जुलाई 2022
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मैं व्यंग्य लेखक माना जाता हूँ। व्यंग्य को लेकर जितना भ्रम हिन्दी में है, उतना किसी और विधा को लेकर नहीं। समीक्षकों ने भी इसकी लगातार उपेक्षा की है। अभी तक व्यंग्य की समीक्षा की भाषा ही नहीं बनी। ‘मजा

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गर्दिश फिर गर्दिश !

31 जुलाई 2022
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(आत्मकथ्य) होशंगाबाद शिक्षा अधिकारी से नौकरी माँगने गये। निराश हुए। स्टेशन पर इटारसी के लिए गाड़ी पकड़ने के लिए बैठा था पास में एक रुपया था जो कहीं गिर गया था। इटारसी तो बिना टिकट चला जाता। पर खाऊँ क

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अध्यक्ष महोदय

31 जुलाई 2022
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विधानमंडलों में थोड़ी नोंक-झोंक, दिलचस्प टिप्पणी, रिमार्क, हल्की-फुल्की बातें सब कहीं चलती हैं। जब अंग्रेज सरकार थी, तब केंद्र में 'सेंट्रल असेंबली' थी। इसमें बड़े जबरदस्त लोग थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल क

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अपना-पराया

31 जुलाई 2022
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'आप किस स्‍कूल में शिक्षक हैं?' 'मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्‍यों, कुछ काम है क्‍या?' 'हाँ, मेरे लड़के को स्‍कूल में भरती करना है।' 'तो हमारे स्‍कूल में ही भरती करा दीजिए।' 'पढ़ाई-‍

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अपील का जादू

31 जुलाई 2022
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एक देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है! गणतंत्र जब कुछ चरमराने लगता है, तो गुनिया बताते हैं कि राष्ट्रपति की बग्घी के कील-काँटे में कुछ गड़बड़ आ गई है।

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अयोध्या में खाता-बही

31 जुलाई 2022
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पोथी में लिखा है – जिस दिन राम, रावण को परास्त करके अयोध्या आए, सारा नगर दीपों से जगमगा उठा। यह दीपावली पर्व अनन्तकाल तक मनाया जाएगा। पर इसी पर्व पर व्यापारी बही-खाता बदलते हैं और खाता-बही लाल कपड़े मे

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असहमत

31 जुलाई 2022
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यह सिर्फ़ दो आदमियों की बातचीत है - “भारतीय सेना लाहौर की तरफ़ बढ़ गई- अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके।” “हाँ, सुना तो। छम्ब में पाकिस्तानी सेना को रोकने के लिए यह ज़रुरी है।” “खाक ज़रूरी है! जहाँ वे लड़ें,

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आवारा भीड़ के खतरे

31 जुलाई 2022
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एक अंतरंग गोष्ठी सी हो रही थी युवा असंतोष पर। इलाहाबाद के लक्ष्मीकांत वर्मा ने बताया - पिछली दीपावली पर एक साड़ी की दुकान पर काँच के केस में सुंदर साड़ी से सजी एक सुंदर मॉडल खड़ी थी। एक युवक ने एकाएक

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इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर

31 जुलाई 2022
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वैज्ञानिक कहते हैं, चाँद पर जीवन नहीं है। सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम. डी. साब) कहते हैं- वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है। विज्ञान ने हमेशा

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ईश्वर की सरकार

31 जुलाई 2022
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हमारे देश की सरकार ने देश की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में बढ़ाई है। प्रधानमंत्री ने तो किया ही है, हर मंत्री ने भी इसमें योगदान दिया है। पुलिस भी बदल चुकी है, लाठीचार्ज की घटनाओं में कमी आई है, पर गोलीचालन

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एक अशुद्ध बेवकूफ

31 जुलाई 2022
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बिना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है। कोई भी इसे निभा देता है। मगर यह जानते हुए कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूं और जो मुझे कहा जा रहा है, वह सब झूठ है- बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है। यह

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एक गौभक्त से भेंट

31 जुलाई 2022
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एक शाम रेलवे स्टेशन पर एक स्वामीजी के दर्शन हो गए। ऊँचे, गोरे और तगड़े साधु थे। चेहरा लाल। गेरुए रेशमी कपड़े पहने थे। साथ एक छोटे साइज़ का किशोर संन्यासी था। उसके हाथ में ट्रांजिस्टर था और वह गुरु को

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एक लड़की, पाँच दीवाने

31 जुलाई 2022
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गोर्की की कहानी है, ‘26 आदमी और एक लड़की’। इस लड़की की कहानी लिखते मुझे वह कहानी याद आ गयी। रोटी के एक पिंजड़ानुमा कारखाने में 26 मजदूर सुअर से भी बदतर हालत में रहते और काम करते हैं। मालिक की जवान लड़

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कबीर का स्मारक बनेगा

31 जुलाई 2022
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साधो, हिन्दू और मुसलमान एक ही सार्वजनिक संडास में जा सकते हें, दस्त के मामले में भाई-भाई होते हैं। मगर कबीरदास की मुसलमानो ने मजार बना ली थी और हिन्दुओं ने समाधि बना ली थी । और दोनों के बीच में एक दीव

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किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें

31 जुलाई 2022
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मेरे एक मुलाकाती हैं। वे कान्यकुब्ज हैं। एक दिन वे चिंता से बोले - अब हम कान्यकुब्जों का क्या होगा? मैंने कहा - आप लोगों को क्या डर है? आप लोग जगह-जगह पर नौकरी कर रहे हैं। राजनीति में ऊँचे पदों पर हैं

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किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें

31 जुलाई 2022
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मेरे एक मुलाकाती हैं। वे कान्यकुब्ज हैं। एक दिन वे चिंता से बोले - अब हम कान्यकुब्जों का क्या होगा? मैंने कहा - आप लोगों को क्या डर है? आप लोग जगह-जगह पर नौकरी कर रहे हैं। राजनीति में ऊँचे पदों पर हैं

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कैफियत

31 जुलाई 2022
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एक सज्जन अपने मित्र से मेरा परिचय करा रहे थे-यह परसाईजी हैं। बहुत अच्छे लेखक हैं। ही राइट्स फनी थिंग्स। एक मेरे पाठक (अब मित्रनुमा) मुझे दूर से देखते ही इस तरह हँसी की तिड़तिड़ाहट करके मेरी तरफ बढ़ते

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ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड

31 जुलाई 2022
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मेरी टेबिल पर दो कार्ड पड़े हैं - इसी डाक से आया दिवाली ग्रीटिंग कार्ड और दुकान से लौटा राशन कार्ड। ग्रीटिंग कार्ड में किसी ने शुभेच्छा प्रगट की है कि मैं सुख और समृद्धि प्राप्त करूँ। अभी अपने शुभचिंत

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गांधीजी की शॉल

31 जुलाई 2022
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चार दिन हो गए, पर शॉल का पता नहीं लगा। सेवकजी ने रेलवे स्टेशन पर पूछताछ की, डिब्बे में साथ बैठे एक परिचित यात्री से पूछा, पर पता नहीं लगा। पुलिस में रिपोर्ट और अखबार में विज्ञप्ति छपाने पर सोचा, पर लग

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घायल वसंत

31 जुलाई 2022
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कल बसंतोत्सव था। कवि वसंत के आगमन की सूचना पा रहा था - प्रिय, फिर आया मादक वसंत। मैंने सोचा, जिसे वसंत के आने का बोध भी अपनी तरफ से कराना पड़े, उस प्रिय से तो शत्रु अच्छा। ऐसे नासमझ को प्रकृति-विज्ञ

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जाति

31 जुलाई 2022
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कारख़ाना खुला। कर्मचारियों के लिये बस्ती बन गई। ठाकुरपुरा से ठाकुर साहब और ब्राह्मणपुरा से पंडितजी कारखा़ने में नौकरी करने लगे और पास-पास के ब्लॉक में रहने लगे। ठाकुर साहब का लड़का और पंडितजी की लड़की द

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टार्च बेचनेवाले

31 जुलाई 2022
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वह पहले चौराहों पर बिजली के टार्च बेचा करता था । बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा । कल फिर दिखा । मगर इस बार उसने दाढी बढा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था । मैंने पूछा, ''कहाँ रहे? और यह दाढी क्यों बढा रख

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ठिठुरता हुआ गणतंत्र

31 जुलाई 2022
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चार बार मैं गणतंत्र-दिवस का जलसा दिल्ली में देख चुका हूँ। पाँचवीं बार देखने का साहस नहीं। आखिर यह क्या बात है कि हर बार जब मैं गणतंत्र-समारोह देखता, तब मौसम बड़ा क्रूर रहता। छब्बीस जनवरी के पहले ऊपर ब

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दवा

31 जुलाई 2022
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कवि ‘अनंग’ जी का अन्तिम क्षण आ पहुंचा था। डाक्टरों ने कह दिया कि यह अधिक से अधिक घंटे भर के मेहमान हैं। अनंग जी पत्नि ने कहा कि कुछ ऐसी दवा दे दें जिससे पांच छः घण्टे जीवित रह सकें ताकि शाम की गाड़ी

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दानी

31 जुलाई 2022
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बाढ़-पीड़ितों के लिए चंदा हो रहा था। कुछ जनसेवकों ने एक संगीत-समारोह का आयोजन किया, जिसमें धन एकत्र करने की योजना बनाई। वे पहुँचे एक बड़े सेठ साहब के पास। उनसे कहा, 'देश पर इस समय संकट आया है। लाखों भ

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नया साल

31 जुलाई 2022
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साधो, बीता साल गुजर गया और नया साल शुरू हो गया। नए साल के शुरू में शुभकामना देने की परंपरा है। मैं तुम्हें शुभकामना देने में हिचकता हूँ। बात यह है साधो कि कोई शुभकामना अब कारगर नहीं होती। मान लो कि मै

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निंदा रस

31 जुलाई 2022
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क' कई महीने बाद आए थे। सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे तूफान की तरह कमरे में घुसे, साइक्लोन जैसा मुझे भुजाओं में जकड़ लिया। मुझे धृतराष्ट्र की भुजाओं में जकड़े भीम के पुतले की याद गई। जब धृतराष्ट

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प्रजावादी समाजवादी

31 जुलाई 2022
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साथी तेजराम 'आग' प्रजा समाजवादी दल के पुराने और प्रतिष्ठित नेता हैं। वे पहले प्राय: टोपी भी लगाते थे, पर एक दिन डॉ। लोहिया ने कह मारा कि यह बड़ी बेवकूफी की बात है। 'आग' ने उसी दिन से प्राय: टोपी उतार द

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प्रेमचंद के फटे जूते

31 जुलाई 2022
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प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियां उभर आई हैं, पर घनी मूंछें चेहरे को भरा-भर

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प्रेमियों की वापसी

31 जुलाई 2022
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नदी के किनारे बैठकर दोनों ने अंतिम चिट्ठी लिखी- ”यह दुनिया क्रूर है। प्रेमियों को मिलने नहीं देती। हम इसे छोड़कर उस लोक जा रहे हैं, जहां प्रेम के मार्ग में कोई बाधा नहीं है।” प्रेमेंद्र ने कहा, “यह द

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पिटने-पिटने में फर्क

31 जुलाई 2022
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यह आत्म प्रचार नहीं है। प्रचार का भार मेरे विरोधियों ने ले लिया है। मैं बरी हो गया। यह ललित निबंध है।) बहुत लोग कहते हैं - तुम पिटे। शुभ ही हुआ। पर तुम्हारे सिर्फ दो अखबारी वक्तव्य छपे। तुम लेखक हो

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पुलिस मंत्री का पुतला

31 जुलाई 2022
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एक राज्य में एक शहर के लोगों पर पुलिस-जुल्म हुआ तो लोगों ने तय किया कि पुलिस-मंत्री का पुतला जलाएँगे। पुतला बड़ा कद्दावर और भयानक चेहरेवाला बनाया गया। पर दफा 144 लग गई और पुतला पुलिस ने जब्त कर लिया

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बदचलन

31 जुलाई 2022
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एक बाड़ा था। बाड़े में तेरह किराएदार रहते थे। मकान मालिक चौधरी साहब पास ही एक बँगले में रहते थे। एक नए किराएदार आए। वे डिप्टी कलेक्टर थे। उनके आते ही उनका इतिहास भी मुहल्ले में आ गया था। वे इसके पहले

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बारात की वापसी

31 जुलाई 2022
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बारात में जाना कई कारण से टालता हूँ । मंगल कार्यों में हम जैसी चढ़ी उम्र के कुँवारों का जाना अपशकुन है। महेश बाबू का कहना है, हमें मंगल कार्यों से विधवाओं की तरह ही दूर रहना चाहिये। किसी का अमंगल अपने

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भारत को चाहिए जादूगर और साधु

31 जुलाई 2022
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हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को मैं सोचता हूँ कि साल-भर में कितने बढ़े। न सोचूँ तो भी काम चलेगा - बल्कि ज्यादा आराम से चलेगा। सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं। यह 26 जनवर

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भोलाराम का जीव

31 जुलाई 2022
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ऐसा कभी नहीं हुआ था. धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे. पर ऐसा कभी नहीं हुआ था. सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार

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मुंडन

31 जुलाई 2022
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किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुंडन हो गया था। कल तक उनके सिर पर लंबे घुँघराले बाल थे, मगर रात में उनका अचानक म

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रसोई घर और पाखाना

31 जुलाई 2022
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गरीब लड़का है। किसी तरह हाई स्‍कूल परीक्षा पास करके कॉलेज में पढ़ना चाहता है। माता-पिता नहीं हैं। ब्राह्मण है। शहर में उसी के सजातीय सज्‍जन के यहाँ उसके रहने और खाने का प्रबंध हो गया। मैंने इस मामले

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लघुशंका गृह और क्रांति

31 जुलाई 2022
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मंत्रिमंडल की बैठक में शिक्षा मंत्री ने कहा, ‘यह छात्रों की अनुशासनहीनता है। यह निर्लज्ज पीढ़ी है। अपने बुजुर्गो से लघुशंका गृह मांगने में भी इन्हें शर्म नहीं आती।’ किसी मंत्री ने कहा, ‘इन लड़कों को व

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वह जो आदमी है न

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निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं। निंदा खून साफ करती है, पाचन-क्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है। निंदा से मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। निंदा पायरिया का तो शर्तिया इलाज है। संतों को परनिंद

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वैष्णव की फिसलन

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वैष्णव करोड़पति है। भगवान विष्णु का मंदिर। जायदाद लगी है। भगवान सूदखोरी करते हैं। ब्याज से कर्ज देते हैं। वैष्णव दो घंटे भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, फिर गादी-तकिएवाली बैठक में आकर धर्म को धंधे से ज

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सन 1950 ईसवी

31 जुलाई 2022
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बाबू गोपालचंद्र बड़े नेता थे, क्योंकि उन्होंने लोगों को समझाया था और लोग समझ भी गए थे कि अगर वे स्वतंत्रता-संग्राम में दो बार जेल - 'ए क्लास' में - न जाते, तो भारत आजाद होता ही नहीं। तारीख 3 दिसंबर 19

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समझौता

31 जुलाई 2022
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अगर दो साइकिल सचार सड़क पर एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े तो उनके लिए यह लाजिमी हो जाता है कि वे उठकर सबसे पहले लड़ें, फिर धूल झाड़ें। यह पद्धति इतनी मान्‍यता प्राप्‍त कर चुकी हैं कि गिरकर न लड़ने वाला स

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सिद्धांतों की व्यर्थता

31 जुलाई 2022
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अब वे धमकी देने लगे हैं कि हम सिद्धांत और कार्यक्रम की राजनीति करेंगे। वे सभी जिनसे कहा जाता है कि सिद्धांत और कार्यक्रम बताओ। ज्योति बसु पूछते थे, नंबूदरीपाद पूछते थे। मगर वे बताते नहीं थे। हम लोगों

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व्यवस्था के चूहे से अन्न की मौत

31 जुलाई 2022
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इस देश में आदमी की सहनशीलता जबर्दस्त और तटस्थता भयावह है। पूरी व्यवस्था में मरे हुए चूहे की सड़ांध भरी हुई है। चूहे सरकार के ही हैं और मजे की बात यह है कि चूहेदानियां भी सरकार ने चूहों को पकड़ने के लिए

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कहावतों का चक्कर

31 जुलाई 2022
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जब मैं हाईस्कूल में पढता था, तब हमारे अंग्रेजी के शिक्षक को कहावतें और सुभाषित रटवाने की बड़ी धुन थी । सैकड़ों अंग्रेजी कहावतें उन्होंने हमे रटवाई और उनका विश्वास था की यदि हमने नीति वाक्य रट लिए, तो हम

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मैं नर्क से बोल रहा हूं !

31 जुलाई 2022
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हे पत्थर पूजने वालों! तुम्हें जिंदा आदमी की बात सुनने का अभ्यास नहीं, इसलिए मैं मरकर बोल रहा हूं। जीवित अवस्था में तुम जिसकी ओर आंख उठाकर नहीं देखते, उसकी सड़ी लाश के पीछे जुलूस बनाकर चलते हो। जिंदगी-

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ज्वाला और जल भाग 1

1 अगस्त 2022
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अब्दुल...नहीं नहीं..विनोद- लेकिन विनोद भी कैसे ? न अब्दुल, न विनोद-उसे न अब्दुल नाम से याद कर सकता हूँ न विनोद से। हाँ, यह है कि वह अब्दुल था, पर उतना ही सही यह भी है कि वह विनोद भी था। लेकिन न वह के

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ज्वाला और जल भाग 2

1 अगस्त 2022
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पत्नी ने कहा,  ‘‘इस लड़के को कुछ दे दो।’’ मैंने हाथ में एक रुपया लिया और उसे पुकारा।  वह पास आकर बोला,  ‘‘कितने कप बाबू ?’’ मैंने कहा, ‘‘नहीं, चाय नहीं चाहिए; रक्खो।’’  मैंने रुपया उसकी ओर बढ़ाय

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तट की खोज

1 अगस्त 2022
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एक दिन किसी विवाह के इच्छुक वर के पिता मुझे देखने आये। आशा और निराशा के बीच झूलते पिताजी तीन दिन से घर की तैयारी कर रहे थे। मकान की सफाई की गई, सजावट की गई, साथ ही मुझे भी सजाया गया। ऐसे अवसर पर घर मे

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रानी नागफनी

1 अगस्त 2022
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फेल होना कुँअर अस्तभान का और करना आत्महत्या की तैयारी किसी राजा का एक बेटा था जिसे लोग अस्तभान नाम से पुकारते थे। उसने अट्ठाइसवाँ वर्ष पार किया था और वह उन्तीसवें में लगा था। पर राजा ने स्कूल में उसक

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चंदे का डर

1 अगस्त 2022
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एक  छोटी-सी समिति की बैठक बुलाने की योजना चल रही थी। एक सज्‍जन थे जो समिति के सदस्‍य थे, पर काम कुछ नहीं, गड़बड़ पैदा करते थे और कोरी वाहवाही चाहते थे। वे लंबा भाषण देते थे। वे समिति की बैठक में नहीं

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