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तट की खोज

1 अगस्त 2022

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एक दिन किसी विवाह के इच्छुक वर के पिता मुझे देखने आये। आशा और निराशा के बीच झूलते पिताजी तीन दिन से घर की तैयारी कर रहे थे। मकान की सफाई की गई, सजावट की गई, साथ ही मुझे भी सजाया गया। ऐसे अवसर पर घर में किसी वृद्धा का होना आवश्यक है, इसलिए मेरी एक दूर के रिश्ते की फूफी को तीन दिन के लिए इस घर में बसाया गया।

मेरी परीक्षा का दिन आया। सबेरे से घर में बड़ी हलचल मच गई। वृद्धा फूफी ने मेरा श्रृंगार किया और मुझे उन लोगों के सामने कैसे चलना चाहिए, कैसे बात करनी चाहिए, यह सब सिखाया गया। कुछ मामला ऐसा था जैसे मदारी बन्दर को नाना प्रकार के हाव भाव सिखाए, ताकि वह दर्शकों को प्रसन्न कर सके। जब वे लोग भोजन करने बैठे तो पिताजी ने यह बताते हुए कि यह पकवान मेरे ही बनाए हुए हैं, मेरी पाक विद्या की प्रशंसा की, उन्होंने टेबिलक्लाथ की ओर देखा तो उन्होंने बताया कि यह मेरी कला है। द्वार की झालरों की ओर उनकी दृष्टि गई तो उनसे तुरन्त कहा गया कि वह भी मेरी ही कला है। कोने में रखा हुआ सितार ऐसी जगह रख दिया गया कि जहाँ उनकी दृष्टि उस पर सहज पड़ जावे और उन्हें यह विदित हो जावे कि मैं गान विद्या में भी निपुण हूँ।

यह सब चलता रहा। स्वभाव से ही शांत, पिताजी बालक की तरह चंचल, और वाचाल हो गये। उनकी यह हालत देखकर मेरा मन उनके प्रति करुणा से भर गया। उनका मुख उस समय बड़ा दयनीय हो गया था। थोड़ी देर बाद वे लोग अपने एक रिश्तेदार के यहाँ चले गये। शाम को पिताजी बड़ी आशंका से उनका निर्णय सुनने के लिए वहाँ गये, जैसे विद्यार्थी परीक्षफल सुनने से डरते हैं।

भूमिका

मैं आज भी नहीं समझ पाता कि ‘तट की खोज’ बहुत साल पहले मुझसे कैसे लिखा गया। यह एक ऐसी कहानी है जिसे लघु उपन्यास कहा जाता है। मूल घटना मुझे अपने कवि मित्र ने सुनाई थी। वे काफी भावुक थे। मेरी उम्र भी तब भावुकता की थी। कुछ रूमानी भी था। तार्किक कम था। तभी तगादा लगा था ‘अमृत प्रभात’ के दीपावली विशेषांक के लिए किसी लंबी चीज़ का। जल्दी का मामला था। मित्र ने जो घटना सुनाई थी वह मेरे मन में गूँज रही थी। मेरी संवेदना कहानी की उस लड़की के प्रति गीली थी। मैंने दो रात जागकर इसे लिख डाला।

लिखकर पछताया। छपा तब और पछताया। और अब जब यह वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हो रहा है तब भी मैं पछता रहा हूँ। अब मैं इस रचना का सामना नहीं कर सकता। मेरी एक तिहाई रचनाएँ ऐसी हैं जिनका सामना करते मैं डरता हूं। बहरहाल ‘तट की खोज’ फिर से प्रकाशित होने दे रहा हूँ।

तट की खोज

बच्चों की पुरानी स्कूली किताबें, जब किसी काम की नहीं रह जाती, तब पिता उन्हें आलमारी में बंद कर, ‘होम लायब्रेरी’ कहकर सन्तोष कर लेता है। सामान्य आदमी, जब बेटी का विवाह नहीं कर पाता, तो कालेज में दाख़िल करा, ‘अभी पढ़ रही है’ कहकर संतोष कर लेता है। हाँ, किताबें कभी-कभी मिट्टी के मोल कबाड़ी को भी बेच दी जाती हैं। लड़की का विवाह भी, घबड़ा कर, कभी-कभी ऐसे के साथ कर दिया जाता है, जिसकी लकड़ी मरघट पहुँच चुकी होती है। हमारे समाज में यदि कोई बूढ़ा इसलिए शादी करना चाहे कि उसके मरने पर अर्थी पर चूड़ियां फोडऩे की कोई हो, और ताजा सिंदूर किसी का पुछे, तो वह मरण-शय्या पर भी मजे में विवाह करने की सुविधा पा सकता है।

अपने कालेज में देखती, कि विद्या-प्राप्ति के लिए 100 में से 10 ही पढ़ती हैं। शेष इसलिए पढ़ती हैं, कि पढ़ना उनकी मजबूरी है। शिक्षा उस पॉलिश की तरह प्रयुक्त होती है, जो चीज़ को चमकदार बनाता है तथा ग्राहक को आकर्षित करता है। जब तक पिता कोई वर तलाश न कर ले, तब तक वे बेचारी कालेज के ‘वेटिंग रूम’ में बैठी बैठी इन्तज़ार करती रहती हैं। लड़की के कालेज में पढ़ने से पिता कुछ समय के लिए जिल्लत से बच जाता है। लोगों से यह कहने के बदले कि विवाह नहीं हो पा रहा है, वह यह कह सकने की सुविधा पा लेता है कि अभी पढ़ रही है। ऊपर से सुन्दर लगने वाला यह वाक्य जिस कलेजे से निकलता है, उसमें दमाड़ लगी रहती है। वह जानता है कि वह झूठ बोल रहा है। अगर ठीक इम्तहान के बीच कोई विवाह करने को कहे, तो पिता लड़की का इम्तहान छुड़ाकर तुरन्त शादी कर देगा।

मैं बी.ए. में पढ़ रही थी। मैं सोचती थी कि पढ़ रही हूँ, पर यथार्थ में किसी छोटे स्टेशन के मुसाफिर की तरह किसी गाड़ी का इन्तज़ार कर रही थी, जो मुझे उठा कर ले जावे। छोटे स्टेशनों पर बड़ी गाड़ियाँ तो रुकती नहीं; हरी झंडी दिखा कर उपहास की सीटी देकर, चली जाती हैं। छोटी गाड़ियाँ रुकती हैं, पर वे लेट होती हैं। उनमें भीड़ भी होती है, और धक्का-मुक्की में किसी को जगह मिलती है और कोई रह जाता है। कई गाड़ियाँ सामने से निकल गईं, सोचा कि प्लेट-फार्म पर कब तक बैठेंगे चलो मुसाफ़िरख़ाने में चल कर इन्तज़ार करें- याने मैंने कालेज में नाम लिखा लिया।

इतने वर्षों के बाद, जब आज उस समय की स्थिति को देखती हूँ, तब यह समझ में आता है। उस समय मेरे मन में किसी प्रकार की हीनता नहीं थी। वह ऐसी अवस्था थी, जब जीवन सतरंगी परिधान धारण किये आता है। ऐसी अवस्था, जिसमें हीनता और निराशा को कोई स्थान नहीं होता। मैं खूब मन लगा कर पढ़ती थी। बड़ी प्रतिभा-शालिनी मानी जाती थी। मैट्रिक और इंटर दोनों प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किये थे। अपने मित्रों तथा परिचितों में मेरी प्रतिभा का बड़ा आतंक था। मैं सुन्दरी भी थी, ऐसा मुझे लगता है, क्योंकि सहपाठी तरुणों से लेकर मुँहबोले काका, मामा, दादा सब मुझे बड़ी लोलुपता से घूरते थे। कुछ लोग पिता जी से मिलने आते, तो वे पिता जी से बातें करने में ध्यान कम लगाते, परदे तथा किवाड़ के छिद्र में से मुझे देख सकने का प्रयास करने में अधिक। मेरी माँ नहीं थीं, इससे इस सब का शिकार मुझे अधिक होना पड़ता था। बिना माँ की जवान लड़की ऐसी फसल होती है, जिसका रखवाला नहीं है और जिसे वासना के उजाड़ू पशु चरने को स्वतंत्र हैं। पिता जी सरकारी रिटायर्ड नौकर थे और थोड़ी-सी पेंशन पाते थे। 

मुझे विश्वास है कि वे ईमानदार थे। इसका सबसे बड़ा सबूत हमारी ग़रीबी थी। भलाई को हमेशा मुसीबत की ही गवाही मिलती है। ईमानदारी का दंड हम भुगत रहे थे–मेरा विवाह नहीं हो रहा था और पिता को चिंता के कारण नींद नहीं आती थी। माँ की मृत्यु पहिले हो गई थी, फिर जवान भाई हमें एक दिन छोड़ गया। पिता ने हृदय पर पत्थर रखकर दोनों आघात सहे और मेरे प्रति माँ, भाई, पिता तीनों के कर्त्तव्य निभाये। इतना जहर उन्होंने किस तरह पचाया होगा ! जीवन में कोई रुचि नहीं रह गयी थी, कोई आकांक्षा नहीं थी। जीवन के अंतिम समय में आदमी जिस सुख और शांति की आशा करता है, वह बड़े भाई की मृत्यु के साथ छिन गई थी। उनका जीवन अब एक मशीन की तरह हो गया था। मशीन को भी एक सुभीता होता है- उसमें चेतना नहीं होती-उसे सुख दुख की अनुभूति नहीं होती; लेकिन चेतन की यही मजबूरी है, कि जीवन के हर आघात से कराहना होता है। पिता जी को अब केवल एक काम करना था और वह था, कहीं मेरा विवाह कर देना। यही एक चिंता उन्हें थी। मैं बाईस से तेईस बरस की हो गई, तो उनके हृदय पर एक मन वज़न और बढ़ गया। वे जगह-जगह विवाह की बात चलाते, पर हर बार लड़केवालों की मांग उनके सामर्थ्य की सीमा लाँघ जाती। वे सब लोग हाथ में तराजू लिये थे, जिसके एक पलवे पर बेटे को रखे थे। मुझे, मेरी समस्त विद्या, बुद्धि और सौंदर्य के साथ दूसरे पलवे पर रख कर देखते, तो हर बार मेरा ही पलवा हल्का पाते। तब पलवे बराबर करने के लिए, मेरे साथ रुपयों का वज़न रखने को कहते। पिताजी जब ऐसा नहीं कर पाते, तब वे अपनी तराजू लेकर दूसरे द्वार पर पहुँच जाते।

मैंने उस विडम्बना को अनुभव किया है। फोटो-ग्राफर के सामने जब मैं बैठायी जाती, तब मेरी अंतरात्मा क्रोध और ग्लानि से भर जाती। मैं जानती थी कि यह फोटो माल के नमूने की तरह किसी व्यापारी के पास भेजी जावेगी। परन्तु दूसरी ओर से कभी चित्र नहीं आया, क्योंकि खरीददार ही माल की परख करता है; माल खरीददार को नहीं देखता। स्त्री-पुरुषों के सम्बन्धों में यही दर्शन सब जगह चरितार्थ होता है।

एक दिन किसी विवाह के इच्छुक वर के पिता मुझे देखने आये। आशा और निराशा के बीच झूलते, पिताजी तीन दिन से घर की तैयारी कर रहे थे। मकान की सफाई की गई, सजावट की गई, साथ ही मुझे भी सजाया गया। ऐसे अवसर पर घर में किसी वृद्धा का होना आवश्यक है, इसलिए मेरी एक दूर के रिश्ते की फूफी को तीन दिन के लिए इस घर में बसाया गया।

मेरी परीक्षा का दिन आया। सबेरे से ही घर में बड़ी हलचल मच गई। वृद्धा फूफी ने मेरा श्रृंगार किया और मुझे उन लोगों के सामने कैसे चलना चाहिये, कैसे बात करनी चाहिए, यह सब सिखाया गया। कुल मामला ऐसा था, जैसे मदारी बन्दर को नाना प्रकार के हावभाव सिखाये, ताकि वह दर्शकों को प्रसन्न कर सके। जब वे लोग भोजन करने बैठे, तो पिता जी ने यह बताते हुए कि यह पकवान मेरे ही बनाये हुए हैं, मेरी पाक-विद्या की प्रशंसा की, उन्होंने टेबिल-क्लाथ की ओर देखा, तो उन्हें बताया गया कि यह मेरी ही कला है। द्वार की झालरों की ओर उनकी दृष्टि गई, तो उनसे तुरन्त कहा गया कि वह भी मेरी ही कला है। कोने में रखा हुआ सितार ऐसी जगह रख दिया गया, कि जहाँ उनकी दृष्टि उस पर सहज पड़ जावे और उन्हें यह विदित हो जावे कि मैं गान-विद्या में भी निपुण हूँ।

यह सब चलता रहा। स्वभाव से ही शांत, पिता जी बालक की तरह चंचल और वाचाल हो गये। उनकी यह हालत देख कर मेरा मन उनके प्रति करुणा से भर गया। उनका मुख उस समय बड़ा दयनीय हो गया था। थोड़ी देर बाद वे लोग अपने एक रिश्तेदार के यहाँ चले गये। शाम को पिता जी बड़ी आशंका से उनका निर्णय सुनने के लिए वहां गये, जैसे विद्यार्थी परीक्षा-फल सुनने से डरते हैं। बड़ी रात को वे लौटे और डबडबाये नेत्रों से फूफी को बताया कि उनकी आर्थिक माँग पूरी न कर सकने के कारण यह बात टूट गई। मुझे बात टूटने का कोई दुख नहीं हुआ, किन्तु पिता जी के हृदय के टूटने के कारण मेरा मन अत्यन्त क्षुब्ध हो गया और मैंने बड़े साहस से कहा, ‘‘इतनी अड़चन से विवाह करने की अपेक्षा नहीं करना अच्छा है, मैं विवाह नहीं करूंगी।’’ वे बोले, ‘‘बेटी, कहीं बिना विवाह के रहा जाता है।’’ मैंने उत्तर दिया, ‘‘जो बचपन में विधवा हो जाती हैं, वे भी तो जीवित रहती हैं।’’ उन्होंने यह कह कर बात टाल दी, कि वह बात दूसरी है।

मैं उनकी पीड़ा जानती थी, कि वे सदैव अँधेरे में ही उठ कर काँपते स्वर में ‘हरे राम हरे राम’ क्यों भजते हैं। उस स्वर में घायल पशु की कराह जैसी कातरता होती। वे मुझसे बोलना धीरे-धीरे कम करते जाते। घंटों बरामदे में बैठे शून्य आँखों से आकाश को देखते रहते। वे लोगों से मिलने-जुलने में बहुत हिचकते थे। एक प्रकार की विकृत मान्यता के शिकार वे हो रहे थे। जिसकी अविवाहिता पुत्री घर में हो, उसे कुछ इस दृष्टि से देखा जाता है, मानो उसने कोई घोर पाप किया हो, और समाज की यह हीन दृष्टि उस पिता को धीरे-धीरे अपनी ही नज़रों से गिराती जाती है। वह आत्मग्लानि और आत्म-पीड़न का शिकार होता जाता है।

मैं उनकी इस पीड़ा को देखती और उन्हें कुछ शांति देने के लिए कहती कि मैं विवाह नहीं करूँगी, पर वे मेरी बात नहीं मानते थे। और क्या मैं भी बिलकुल मानकर यह बात कहती थी ? मैं तर्क कर लेती थी, पर विश्वास नहीं कर पाती थी।

विमला से मेरी एक दिन इस बात पर चर्चा हो रही थी। मैंने कहा, ‘‘हमें बिना पैसे के कोई लेने को तैयार नहीं है, तो हमें विवाह करने से इनकार कर देना चाहिये। अगर हमारी एक पीढ़ी इसी प्रकार विद्रोह कर दे, तो लोगों की अक्ल ठिकाने आ जाए।’’

विमला ने कहा, ‘‘ऐसा करने से तो जाति ही समाप्त  हो जाएगी।’’ मैंने कहा, ‘‘प्रकृति को अगर मनुष्य जाति चलानी होगी, तो वह उसका कोई और साधन खोज लेगी। वनस्पति जगत में जैसे वह वायु या अन्य साधनों से उत्पादन क्रिया सम्पन्न कराती है, वैसा ही कुछ यहाँ करा देगी। और यदि मनुष्य जाति अपने को अस्तित्व के अयोग्य सिद्ध कर चुकी होगी, तो चिन्ता क्या ?’’

विमला मेरे तर्क के सामने ठहर न पाई। पर उसने एक ही जवाब दिया, जो बहुत मामूली था, पर जो मेरे समस्त तर्क-व्यूह को छिन्न-भिन्न करके हृदय तक पहुँच गया। उसने अजब स्वर में कहा, हाँ जी, जब तक कोई गुण-ग्राहक नहीं मिला, तभी तक बातें करती हो। जिस दिन कोई हृदय अर्पण करेगा, भाग्य सराहोगी और चुपचाप अनुगामिनी हो जाओगी।’’

गुण-ग्राहक मुझे मिला। उसके लिए मेरे मन में पहिले प्रणय जागा, फिर तीव्र घृणा। प्रणय को मैं ठीक तरह प्रगट नहीं कर पायी, पर घृणा को शक्ति-भर प्रगट किया। कभी-कभी प्रेम की अपेक्षा घृणा का संबंध अधिक मज़बूत होता है। मैंने सम्पूर्ण मन से उससे घृणा की, परन्तु फिर भी अभी जब मैं विगत जीवन में आये व्यक्तियों की कल्पना करने लगती हूँ, तो वही मुझे सबसे पहिले स्मरण हो जाता है। लगता है, घृणा और प्रेम में कोई विशेष अंतर नहीं है। दोनों लगभग समानार्थी हैं। दोनों में एक सी तीव्र प्रतिक्रिया होती है। लेकिन प्रेम और घृणा के विवेचन से कहानी का पथ नहीं रोकूंगी।

गली के मोड़ पर वह रहता था। हाल ही उस मकान में आया था। उसकी प्रशंसा सब ओर हो रही थी। लोग कहते, ‘बड़ा प्रतिभावान आदमी है; शुरू से आख़िर तक फर्स्ट क्लास ! यहाँ कालेज में पढ़ाता है।’ मैं भी यह सब सुनती थी। अनेक पिता उसकी ओर अपनी लड़कियों से अधिक लालयित नेत्रों से देखते। वह किसी सम्पन्न घर का था। 

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रचनाएँ
हरिशंकर परसाई की प्रसिद्ध कहानियाँ
5.0
उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं शोषण पर करारा व्यंग किया है जो हिन्दी व्यंग -साहित्य में अनूठा है। परसाई जी अपने लेखन को एक सामाजिक कर्म के रूप में परिभाषित करते है। उनकी मान्यता है कि सामाजिक अनुभव के बिना सच्चा और वास्तविक साहित्य लिखा ही नही जा सकता। परसाई जी मूलतः एक व्यंगकार है। उनकी रचनाओं में तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, वैष्णव की फिसलन, पगडण्डियों का जमाना, शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन घिसैं, हम इकउम्र से वाकिफ हैं, जाने पहचाने लोग (व्यंग्य निबंध-संग्रह) शामिल हैं
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अनुशासन

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एक अध्यापक था। वह सरकारी नौकरी में था ।मास्टर की पत्नी बीमार थी । अस्पताल में थी। तभी उसके तबादले का ऑर्डर हो गया। शिक्षा विभाग के बड़े साहब उसी मुहल्ले में रहते थे। उसका बंगला मास्टर के घर से दिखता था

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तमाम दूबों, चौबों, तिवारियों, वर्माओं, श्रीवास्तवों, मिश्रों को चुनौती है -बता दे कोई, अगर ग़ालिब के पूरे दीवान में कहीं किसी का जिक्र हो। कबीरदास ने अलबत्ता हमारे पड़ोसी पाण्डेय जी का नाम लिखा है -“सा

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दो नाक वाले लोग

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मैं उन्हें समझा रहा था कि लड़की की शादी में टीमटाम में व्यर्थ खर्च मत करो। पर वे बुजुर्ग कह रहे थे - आप ठीक कहते हैं, मगर रिश्तेदारों में नाक कट जाएगी। नाक उनकी काफी लंबी थी। मेरा ख्याल है, नाक

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प्रेम की बिरादरी

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गुरु लोगों से मैं अभी भी बहुत डरता हूँ । उनके मामलों में दखल नही देता । पर मेरे सामने पड़ी अख़बार की यह खबर मुझे भड़का रही है । खबर है - एक लड़का रोज़ एक प्रेम-पत्र लिखता था । वे हेडमास्टर के हाथ पड़

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सुबह की डाक से चिट्ठी मिली, उसने मुझे इस अहंकार में दिन-भर उड़ाया कि मैं पवित्र आदमी हूँ क्योंकि साहित्य का काम एक पवित्र काम है। दिन-भर मैंने हर मिलनेवाले को तुच्छ समझा। मैं हर आदमी को अपवित्र मानकर

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पुराना खिलाड़ी

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सरदारजी जबान से तंदूर को गर्म करते हैं। जबान से बर्तन में गोश्त चलाते हैं। पास बैठे आदमी से भी इतने जोर से बोलते हैं, जैसे किसी सभा में बिना माइक बोल रहे हों। होटल के बोर्ड पर लिखा है - ‘यहाँ चाय हर व

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बकरी पौधा चर गई

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साधो, तुम सुनते आ रहे हो कि बाड़ खेत को खा ही गई और नाव नदी को ही लील गई और यह भेद आज तक किसी ने नहीं जाना। तुम इन उलटवासियों का दार्शनिक अर्थ निकाल लेते हो और रूपकों को समझ लेते हो। आज मैं तुम्हें एक

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बुद्धिवादी

31 जुलाई 2022
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आशीर्वादों से बनी जिंदगी है । बचपन में एक बूढ़े अंधे भिखारी को उन्होंने हाथ पकड़कर सड़क पार करा दिया था । अंधे भिखारी ने आशीर्वाद दिया- बेटा, मेरे जैसे हो जाना । अंधे भिखारी का मतलब लम्बी उम्र से रहा

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भगत की गत

31 जुलाई 2022
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उस दिन जब भगतजी की मौत हुई थी, तब हमने कहा था- भगतजी स्वर्गवासी हो गए। पर अभी मुझे मालूम हुआ कि भगतजी, स्वर्गवासी नहीं, नरकवासी हुए हैं। मैं कहूं तो किसी को इस पर भरोसा नहीं होगा, पर यह सही है कि उ

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भारतीय राजनीति का बुलडोजर

31 जुलाई 2022
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साधो, बहुगुणा को हम लोग चतुर राजनेता मानते हैं। यह अलग बात है कि इंदिराजी संकट में बहुगुणा के घर गईं और संजय से ‘मामाजी’ के चरण छुवा दिए और बहुगुणा पिघल गए कि ‘मेरी बहना’ संकट में है और राखी की लाज रख

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मुक्तिबोध : एक संस्मरण

31 जुलाई 2022
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भोपाल के हमीदिया अस्पताल में मुक्तिबोध जब मौत से जूझ रहे थे, तब उस छटपटाहट को देखकर मोहम्मद अली ताज ने कहा था - उम्र भर जी के भी न जीने का अन्दाज आया जिन्दगी छोड़ दे पीछा मेरा मैं बाज आया जो मुक्ति

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यस सर

31 जुलाई 2022
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एक काफी अच्छे लेखक थे। वे राजधानी गए। एक समारोह में उनकी मुख्यमंत्री से भेंट हो गई। मुख्यमंत्री से उनका परिचय पहले से था। मुख्यमंत्री ने उनसे कहा - आप मजे में तो हैं। कोई कष्ट तो नहीं है? लेखक ने कह द

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रामकथा-क्षेपक

31 जुलाई 2022
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एक पुरानी पोथी में मुझे ये दो प्रसंग मिले हैं। भक्तों के हितार्थ दे रहा हूँ। इन्हें पढ़कर राम और हनुमान भक्तों के हृदय गदगद हो जाएंगे। पोथी का नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि चुपचाप पोथी पर रिसर्च करके मुझे प

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लंका-विजय के बाद

31 जुलाई 2022
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तब भारद्वाज बोले, "हे ऋषिवर, आपने मुझे परम पुनीत राम-कथा सुनाई, जिसे सुनकर मैं कृतार्थ हुआ। परन्तु लंका-विजय के बाद बानरो के चरित्र के विषय में आपने कुछ नहीं कहा। अयोध्या लौटकर बानरों ने कैसे कार्य कि

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लघु व्यंग्य, कथाएँ

31 जुलाई 2022
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1. अकाल-उत्सव दरारों वाली सपाट सूखी भूमि नपुंसक पति की संतानेच्छु पत्नी की तरह बेकल नंगी पड़ी है। अकाल पड़ा है। पास ही एक गाय अकाल के समाचार वाले अखबार को खाकर पेट भर रही है। कोई 'सर्वे वाला' अफसर छो

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शर्म की बात पर ताली पीटना

31 जुलाई 2022
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मैं आजकल बड़ी मुसीबत में हूँ। मुझे भाषण के लिए अक्सर बुलाया जाता है। विषय यही होते हैं - देश का भविष्य, छात्र समस्या, युवा-असंतोष, भारतीय संस्कृति भी (हालांकि निमंत्रण की चिट्ठी में 'संस्कृति' अक्सर

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सदाचार का तावीज़

31 जुलाई 2022
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एक राज्य में हल्ला मचा कि भ्रष्टाचार बहुत फ़ैल गया है । राजा ने एक दिन दरबारियों से कहा, "प्रजा बहुत हल्ला मचा रही है कि सब जगह भ्रष्टाचार फैला हुआ है । हमें तो आज तक कहीं नहीं दिखा । तुम लोगों को नही

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संस्कृति (व्यंग्य)

31 जुलाई 2022
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भूखा आदमी सड़क किनारे कराह रहा था। एक दयालु आदमी रोटी लेकर उसके पास पहुँचा और उसे दे ही रहा था कि एक-दूसरे आदमी ने उसका हाथ खींच लिया। वह आदमी बड़ा रंगीन था। पहले आदमी ने पूछा, 'क्यों भाई, भूखे को

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स्नान

31 जुलाई 2022
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गंगा स्नान ही नही, साधारण स्नान के बारे में भी बड़ा अंधविश्वास है । जैसे यही, की रोज़ नहाना चाहिए - गर्मी हो या ठंड । क्यों नहाना चाहिए ? गर्मी में नहाना तो माफ़ किया जा सकता है, पर ठंड में रोज़ नहाना

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सुधार

31 जुलाई 2022
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एक जनहित की संस्‍था में कुछ सदस्‍यों ने आवाज उठाई, 'संस्‍था का काम असंतोषजनक चल रहा है। इसमें बहुत सुधार होना चाहिए। संस्‍था बरबाद हो रही है। इसे डूबने से बचाना चाहिए। इसको या तो सुधारना चाहिए या भंग

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जिंदगी और मौत का दस्तावेज़

31 जुलाई 2022
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मेरे दुश्मनो, खुश होने में जल्दी मत करना। अभी वह शुभ क्षण नहीं आया कि मैं मरूँ । मैं जानता हूँ कि तुम एक अरसे से मेरी मृत्यु का शुभ समाचार सुनने को लालायित हो, पर फ़िलहाल मैं तुम्हें निराश कर रहा हू

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पहला सफेद बाल

31 जुलाई 2022
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आज पहला सफ़ेद बाल दिखा। कान के पास काले बालों के बीच से झांकते इस पतले रजत-तार ने सहसा मन को झकझोर दिया। ऎसा लगा जैसे बसन्त में वनश्री देखता घूम रहा हूं कि सहसा किसी झाड़ी से शेर निकल पड़े;या पुराने जमा

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व्यंग्य क्यों? कैसे? किस लिए?

31 जुलाई 2022
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मैं व्यंग्य लेखक माना जाता हूँ। व्यंग्य को लेकर जितना भ्रम हिन्दी में है, उतना किसी और विधा को लेकर नहीं। समीक्षकों ने भी इसकी लगातार उपेक्षा की है। अभी तक व्यंग्य की समीक्षा की भाषा ही नहीं बनी। ‘मजा

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गर्दिश फिर गर्दिश !

31 जुलाई 2022
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(आत्मकथ्य) होशंगाबाद शिक्षा अधिकारी से नौकरी माँगने गये। निराश हुए। स्टेशन पर इटारसी के लिए गाड़ी पकड़ने के लिए बैठा था पास में एक रुपया था जो कहीं गिर गया था। इटारसी तो बिना टिकट चला जाता। पर खाऊँ क

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अध्यक्ष महोदय

31 जुलाई 2022
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विधानमंडलों में थोड़ी नोंक-झोंक, दिलचस्प टिप्पणी, रिमार्क, हल्की-फुल्की बातें सब कहीं चलती हैं। जब अंग्रेज सरकार थी, तब केंद्र में 'सेंट्रल असेंबली' थी। इसमें बड़े जबरदस्त लोग थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल क

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अपना-पराया

31 जुलाई 2022
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'आप किस स्‍कूल में शिक्षक हैं?' 'मैं लोकहितकारी विद्यालय में हूं। क्‍यों, कुछ काम है क्‍या?' 'हाँ, मेरे लड़के को स्‍कूल में भरती करना है।' 'तो हमारे स्‍कूल में ही भरती करा दीजिए।' 'पढ़ाई-‍

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अपील का जादू

31 जुलाई 2022
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एक देश है! गणतंत्र है! समस्याओं को इस देश में झाड़-फूँक, टोना-टोटका से हल किया जाता है! गणतंत्र जब कुछ चरमराने लगता है, तो गुनिया बताते हैं कि राष्ट्रपति की बग्घी के कील-काँटे में कुछ गड़बड़ आ गई है।

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अयोध्या में खाता-बही

31 जुलाई 2022
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पोथी में लिखा है – जिस दिन राम, रावण को परास्त करके अयोध्या आए, सारा नगर दीपों से जगमगा उठा। यह दीपावली पर्व अनन्तकाल तक मनाया जाएगा। पर इसी पर्व पर व्यापारी बही-खाता बदलते हैं और खाता-बही लाल कपड़े मे

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असहमत

31 जुलाई 2022
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यह सिर्फ़ दो आदमियों की बातचीत है - “भारतीय सेना लाहौर की तरफ़ बढ़ गई- अंतर्राष्ट्रीय सीमा पार करके।” “हाँ, सुना तो। छम्ब में पाकिस्तानी सेना को रोकने के लिए यह ज़रुरी है।” “खाक ज़रूरी है! जहाँ वे लड़ें,

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आवारा भीड़ के खतरे

31 जुलाई 2022
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एक अंतरंग गोष्ठी सी हो रही थी युवा असंतोष पर। इलाहाबाद के लक्ष्मीकांत वर्मा ने बताया - पिछली दीपावली पर एक साड़ी की दुकान पर काँच के केस में सुंदर साड़ी से सजी एक सुंदर मॉडल खड़ी थी। एक युवक ने एकाएक

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इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर

31 जुलाई 2022
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वैज्ञानिक कहते हैं, चाँद पर जीवन नहीं है। सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर मातादीन (डिपार्टमेंट में एम. डी. साब) कहते हैं- वैज्ञानिक झूठ बोलते हैं, वहाँ हमारे जैसे ही मनुष्य की आबादी है। विज्ञान ने हमेशा

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ईश्वर की सरकार

31 जुलाई 2022
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हमारे देश की सरकार ने देश की प्रतिष्ठा पूरे विश्व में बढ़ाई है। प्रधानमंत्री ने तो किया ही है, हर मंत्री ने भी इसमें योगदान दिया है। पुलिस भी बदल चुकी है, लाठीचार्ज की घटनाओं में कमी आई है, पर गोलीचालन

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एक अशुद्ध बेवकूफ

31 जुलाई 2022
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बिना जाने बेवकूफ बनाना एक अलग और आसान चीज है। कोई भी इसे निभा देता है। मगर यह जानते हुए कि मैं बेवकूफ बनाया जा रहा हूं और जो मुझे कहा जा रहा है, वह सब झूठ है- बेवकूफ बनते जाने का एक अपना मजा है। यह

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एक गौभक्त से भेंट

31 जुलाई 2022
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एक शाम रेलवे स्टेशन पर एक स्वामीजी के दर्शन हो गए। ऊँचे, गोरे और तगड़े साधु थे। चेहरा लाल। गेरुए रेशमी कपड़े पहने थे। साथ एक छोटे साइज़ का किशोर संन्यासी था। उसके हाथ में ट्रांजिस्टर था और वह गुरु को

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एक लड़की, पाँच दीवाने

31 जुलाई 2022
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गोर्की की कहानी है, ‘26 आदमी और एक लड़की’। इस लड़की की कहानी लिखते मुझे वह कहानी याद आ गयी। रोटी के एक पिंजड़ानुमा कारखाने में 26 मजदूर सुअर से भी बदतर हालत में रहते और काम करते हैं। मालिक की जवान लड़

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कबीर का स्मारक बनेगा

31 जुलाई 2022
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साधो, हिन्दू और मुसलमान एक ही सार्वजनिक संडास में जा सकते हें, दस्त के मामले में भाई-भाई होते हैं। मगर कबीरदास की मुसलमानो ने मजार बना ली थी और हिन्दुओं ने समाधि बना ली थी । और दोनों के बीच में एक दीव

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किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें

31 जुलाई 2022
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मेरे एक मुलाकाती हैं। वे कान्यकुब्ज हैं। एक दिन वे चिंता से बोले - अब हम कान्यकुब्जों का क्या होगा? मैंने कहा - आप लोगों को क्या डर है? आप लोग जगह-जगह पर नौकरी कर रहे हैं। राजनीति में ऊँचे पदों पर हैं

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किस भारत भाग्य विधाता को पुकारें

31 जुलाई 2022
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मेरे एक मुलाकाती हैं। वे कान्यकुब्ज हैं। एक दिन वे चिंता से बोले - अब हम कान्यकुब्जों का क्या होगा? मैंने कहा - आप लोगों को क्या डर है? आप लोग जगह-जगह पर नौकरी कर रहे हैं। राजनीति में ऊँचे पदों पर हैं

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कैफियत

31 जुलाई 2022
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एक सज्जन अपने मित्र से मेरा परिचय करा रहे थे-यह परसाईजी हैं। बहुत अच्छे लेखक हैं। ही राइट्स फनी थिंग्स। एक मेरे पाठक (अब मित्रनुमा) मुझे दूर से देखते ही इस तरह हँसी की तिड़तिड़ाहट करके मेरी तरफ बढ़ते

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ग्रीटिंग कार्ड और राशन कार्ड

31 जुलाई 2022
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मेरी टेबिल पर दो कार्ड पड़े हैं - इसी डाक से आया दिवाली ग्रीटिंग कार्ड और दुकान से लौटा राशन कार्ड। ग्रीटिंग कार्ड में किसी ने शुभेच्छा प्रगट की है कि मैं सुख और समृद्धि प्राप्त करूँ। अभी अपने शुभचिंत

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गांधीजी की शॉल

31 जुलाई 2022
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चार दिन हो गए, पर शॉल का पता नहीं लगा। सेवकजी ने रेलवे स्टेशन पर पूछताछ की, डिब्बे में साथ बैठे एक परिचित यात्री से पूछा, पर पता नहीं लगा। पुलिस में रिपोर्ट और अखबार में विज्ञप्ति छपाने पर सोचा, पर लग

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घायल वसंत

31 जुलाई 2022
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कल बसंतोत्सव था। कवि वसंत के आगमन की सूचना पा रहा था - प्रिय, फिर आया मादक वसंत। मैंने सोचा, जिसे वसंत के आने का बोध भी अपनी तरफ से कराना पड़े, उस प्रिय से तो शत्रु अच्छा। ऐसे नासमझ को प्रकृति-विज्ञ

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जाति

31 जुलाई 2022
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कारख़ाना खुला। कर्मचारियों के लिये बस्ती बन गई। ठाकुरपुरा से ठाकुर साहब और ब्राह्मणपुरा से पंडितजी कारखा़ने में नौकरी करने लगे और पास-पास के ब्लॉक में रहने लगे। ठाकुर साहब का लड़का और पंडितजी की लड़की द

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टार्च बेचनेवाले

31 जुलाई 2022
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वह पहले चौराहों पर बिजली के टार्च बेचा करता था । बीच में कुछ दिन वह नहीं दिखा । कल फिर दिखा । मगर इस बार उसने दाढी बढा ली थी और लंबा कुरता पहन रखा था । मैंने पूछा, ''कहाँ रहे? और यह दाढी क्यों बढा रख

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ठिठुरता हुआ गणतंत्र

31 जुलाई 2022
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चार बार मैं गणतंत्र-दिवस का जलसा दिल्ली में देख चुका हूँ। पाँचवीं बार देखने का साहस नहीं। आखिर यह क्या बात है कि हर बार जब मैं गणतंत्र-समारोह देखता, तब मौसम बड़ा क्रूर रहता। छब्बीस जनवरी के पहले ऊपर ब

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दवा

31 जुलाई 2022
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कवि ‘अनंग’ जी का अन्तिम क्षण आ पहुंचा था। डाक्टरों ने कह दिया कि यह अधिक से अधिक घंटे भर के मेहमान हैं। अनंग जी पत्नि ने कहा कि कुछ ऐसी दवा दे दें जिससे पांच छः घण्टे जीवित रह सकें ताकि शाम की गाड़ी

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दानी

31 जुलाई 2022
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बाढ़-पीड़ितों के लिए चंदा हो रहा था। कुछ जनसेवकों ने एक संगीत-समारोह का आयोजन किया, जिसमें धन एकत्र करने की योजना बनाई। वे पहुँचे एक बड़े सेठ साहब के पास। उनसे कहा, 'देश पर इस समय संकट आया है। लाखों भ

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नया साल

31 जुलाई 2022
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साधो, बीता साल गुजर गया और नया साल शुरू हो गया। नए साल के शुरू में शुभकामना देने की परंपरा है। मैं तुम्हें शुभकामना देने में हिचकता हूँ। बात यह है साधो कि कोई शुभकामना अब कारगर नहीं होती। मान लो कि मै

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निंदा रस

31 जुलाई 2022
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क' कई महीने बाद आए थे। सुबह चाय पीकर अखबार देख रहा था कि वे तूफान की तरह कमरे में घुसे, साइक्लोन जैसा मुझे भुजाओं में जकड़ लिया। मुझे धृतराष्ट्र की भुजाओं में जकड़े भीम के पुतले की याद गई। जब धृतराष्ट

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प्रजावादी समाजवादी

31 जुलाई 2022
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साथी तेजराम 'आग' प्रजा समाजवादी दल के पुराने और प्रतिष्ठित नेता हैं। वे पहले प्राय: टोपी भी लगाते थे, पर एक दिन डॉ। लोहिया ने कह मारा कि यह बड़ी बेवकूफी की बात है। 'आग' ने उसी दिन से प्राय: टोपी उतार द

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प्रेमचंद के फटे जूते

31 जुलाई 2022
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प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियां उभर आई हैं, पर घनी मूंछें चेहरे को भरा-भर

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प्रेमियों की वापसी

31 जुलाई 2022
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नदी के किनारे बैठकर दोनों ने अंतिम चिट्ठी लिखी- ”यह दुनिया क्रूर है। प्रेमियों को मिलने नहीं देती। हम इसे छोड़कर उस लोक जा रहे हैं, जहां प्रेम के मार्ग में कोई बाधा नहीं है।” प्रेमेंद्र ने कहा, “यह द

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पिटने-पिटने में फर्क

31 जुलाई 2022
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यह आत्म प्रचार नहीं है। प्रचार का भार मेरे विरोधियों ने ले लिया है। मैं बरी हो गया। यह ललित निबंध है।) बहुत लोग कहते हैं - तुम पिटे। शुभ ही हुआ। पर तुम्हारे सिर्फ दो अखबारी वक्तव्य छपे। तुम लेखक हो

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पुलिस मंत्री का पुतला

31 जुलाई 2022
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एक राज्य में एक शहर के लोगों पर पुलिस-जुल्म हुआ तो लोगों ने तय किया कि पुलिस-मंत्री का पुतला जलाएँगे। पुतला बड़ा कद्दावर और भयानक चेहरेवाला बनाया गया। पर दफा 144 लग गई और पुतला पुलिस ने जब्त कर लिया

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बदचलन

31 जुलाई 2022
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एक बाड़ा था। बाड़े में तेरह किराएदार रहते थे। मकान मालिक चौधरी साहब पास ही एक बँगले में रहते थे। एक नए किराएदार आए। वे डिप्टी कलेक्टर थे। उनके आते ही उनका इतिहास भी मुहल्ले में आ गया था। वे इसके पहले

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बारात की वापसी

31 जुलाई 2022
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बारात में जाना कई कारण से टालता हूँ । मंगल कार्यों में हम जैसी चढ़ी उम्र के कुँवारों का जाना अपशकुन है। महेश बाबू का कहना है, हमें मंगल कार्यों से विधवाओं की तरह ही दूर रहना चाहिये। किसी का अमंगल अपने

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भारत को चाहिए जादूगर और साधु

31 जुलाई 2022
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हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को मैं सोचता हूँ कि साल-भर में कितने बढ़े। न सोचूँ तो भी काम चलेगा - बल्कि ज्यादा आराम से चलेगा। सोचना एक रोग है, जो इस रोग से मुक्त हैं और स्वस्थ हैं, वे धन्य हैं। यह 26 जनवर

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भोलाराम का जीव

31 जुलाई 2022
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ऐसा कभी नहीं हुआ था. धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे. पर ऐसा कभी नहीं हुआ था. सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार

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मुंडन

31 जुलाई 2022
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किसी देश की संसद में एक दिन बड़ी हलचल मची। हलचल का कारण कोई राजनीतिक समस्या नहीं थी, बल्कि यह था कि एक मंत्री का अचानक मुंडन हो गया था। कल तक उनके सिर पर लंबे घुँघराले बाल थे, मगर रात में उनका अचानक म

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रसोई घर और पाखाना

31 जुलाई 2022
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गरीब लड़का है। किसी तरह हाई स्‍कूल परीक्षा पास करके कॉलेज में पढ़ना चाहता है। माता-पिता नहीं हैं। ब्राह्मण है। शहर में उसी के सजातीय सज्‍जन के यहाँ उसके रहने और खाने का प्रबंध हो गया। मैंने इस मामले

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लघुशंका गृह और क्रांति

31 जुलाई 2022
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मंत्रिमंडल की बैठक में शिक्षा मंत्री ने कहा, ‘यह छात्रों की अनुशासनहीनता है। यह निर्लज्ज पीढ़ी है। अपने बुजुर्गो से लघुशंका गृह मांगने में भी इन्हें शर्म नहीं आती।’ किसी मंत्री ने कहा, ‘इन लड़कों को व

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वह जो आदमी है न

31 जुलाई 2022
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निंदा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं। निंदा खून साफ करती है, पाचन-क्रिया ठीक करती है, बल और स्फूर्ति देती है। निंदा से मांसपेशियाँ पुष्ट होती हैं। निंदा पायरिया का तो शर्तिया इलाज है। संतों को परनिंद

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वैष्णव की फिसलन

31 जुलाई 2022
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वैष्णव करोड़पति है। भगवान विष्णु का मंदिर। जायदाद लगी है। भगवान सूदखोरी करते हैं। ब्याज से कर्ज देते हैं। वैष्णव दो घंटे भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, फिर गादी-तकिएवाली बैठक में आकर धर्म को धंधे से ज

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सन 1950 ईसवी

31 जुलाई 2022
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बाबू गोपालचंद्र बड़े नेता थे, क्योंकि उन्होंने लोगों को समझाया था और लोग समझ भी गए थे कि अगर वे स्वतंत्रता-संग्राम में दो बार जेल - 'ए क्लास' में - न जाते, तो भारत आजाद होता ही नहीं। तारीख 3 दिसंबर 19

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समझौता

31 जुलाई 2022
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अगर दो साइकिल सचार सड़क पर एक-दूसरे से टकराकर गिर पड़े तो उनके लिए यह लाजिमी हो जाता है कि वे उठकर सबसे पहले लड़ें, फिर धूल झाड़ें। यह पद्धति इतनी मान्‍यता प्राप्‍त कर चुकी हैं कि गिरकर न लड़ने वाला स

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सिद्धांतों की व्यर्थता

31 जुलाई 2022
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अब वे धमकी देने लगे हैं कि हम सिद्धांत और कार्यक्रम की राजनीति करेंगे। वे सभी जिनसे कहा जाता है कि सिद्धांत और कार्यक्रम बताओ। ज्योति बसु पूछते थे, नंबूदरीपाद पूछते थे। मगर वे बताते नहीं थे। हम लोगों

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व्यवस्था के चूहे से अन्न की मौत

31 जुलाई 2022
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इस देश में आदमी की सहनशीलता जबर्दस्त और तटस्थता भयावह है। पूरी व्यवस्था में मरे हुए चूहे की सड़ांध भरी हुई है। चूहे सरकार के ही हैं और मजे की बात यह है कि चूहेदानियां भी सरकार ने चूहों को पकड़ने के लिए

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कहावतों का चक्कर

31 जुलाई 2022
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जब मैं हाईस्कूल में पढता था, तब हमारे अंग्रेजी के शिक्षक को कहावतें और सुभाषित रटवाने की बड़ी धुन थी । सैकड़ों अंग्रेजी कहावतें उन्होंने हमे रटवाई और उनका विश्वास था की यदि हमने नीति वाक्य रट लिए, तो हम

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मैं नर्क से बोल रहा हूं !

31 जुलाई 2022
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हे पत्थर पूजने वालों! तुम्हें जिंदा आदमी की बात सुनने का अभ्यास नहीं, इसलिए मैं मरकर बोल रहा हूं। जीवित अवस्था में तुम जिसकी ओर आंख उठाकर नहीं देखते, उसकी सड़ी लाश के पीछे जुलूस बनाकर चलते हो। जिंदगी-

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ज्वाला और जल भाग 1

1 अगस्त 2022
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अब्दुल...नहीं नहीं..विनोद- लेकिन विनोद भी कैसे ? न अब्दुल, न विनोद-उसे न अब्दुल नाम से याद कर सकता हूँ न विनोद से। हाँ, यह है कि वह अब्दुल था, पर उतना ही सही यह भी है कि वह विनोद भी था। लेकिन न वह के

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ज्वाला और जल भाग 2

1 अगस्त 2022
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पत्नी ने कहा,  ‘‘इस लड़के को कुछ दे दो।’’ मैंने हाथ में एक रुपया लिया और उसे पुकारा।  वह पास आकर बोला,  ‘‘कितने कप बाबू ?’’ मैंने कहा, ‘‘नहीं, चाय नहीं चाहिए; रक्खो।’’  मैंने रुपया उसकी ओर बढ़ाय

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तट की खोज

1 अगस्त 2022
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एक दिन किसी विवाह के इच्छुक वर के पिता मुझे देखने आये। आशा और निराशा के बीच झूलते पिताजी तीन दिन से घर की तैयारी कर रहे थे। मकान की सफाई की गई, सजावट की गई, साथ ही मुझे भी सजाया गया। ऐसे अवसर पर घर मे

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रानी नागफनी

1 अगस्त 2022
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फेल होना कुँअर अस्तभान का और करना आत्महत्या की तैयारी किसी राजा का एक बेटा था जिसे लोग अस्तभान नाम से पुकारते थे। उसने अट्ठाइसवाँ वर्ष पार किया था और वह उन्तीसवें में लगा था। पर राजा ने स्कूल में उसक

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चंदे का डर

1 अगस्त 2022
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एक  छोटी-सी समिति की बैठक बुलाने की योजना चल रही थी। एक सज्‍जन थे जो समिति के सदस्‍य थे, पर काम कुछ नहीं, गड़बड़ पैदा करते थे और कोरी वाहवाही चाहते थे। वे लंबा भाषण देते थे। वे समिति की बैठक में नहीं

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