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प्रेम के पथ पर ।

8 दिसम्बर 2021

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प्रेम के पथ पर

लेखक-हिमांशु पाठक

1

जुलाई का महीना, इस वर्ष बारिश अपनें चरम पर है।पहाड भी इससे कहाँ अछूते हैं।  बारिशों में, पहाड़  की सूनी आँखों में प्रतीक्षा रहती है,अतिथियों के आगमन की,मगर कभी-कभार ही कोई इक्का-दुक्का गाड़ियाँ  यहाँ  से गुजरती हैं और गाड़ियों की, दूर से आती आवाज ना केवल, पहाड़ की सूनी आँखों में चमक भर देती है; अपितु छोटे से इस पहाड़ी गाँव के इक्का-दुक्का दुकानदारों की आवाज में भी ऊर्जा का संचार कर देतीं हैं। विगत दो हजार बीस से तो कोरोना ने तो पहाड़ों  की रौनक फीकी कर रखी है। सन दो हजार इक्कीस तो और भी भयावह रूप धर कर आया। अब तो ये हाल है कि जिन्दगी पर से भी विश्वास उठने-सा लगा है। ना जाने कितनों ने अपनों को खोया है।

पहाड़ों के मध्य में एक छोटा-सा स्थान है ,जो चारों ओर से हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा हुआ है,दोगाँव!  जो हल्द्वानी व नैनीताल के बीच में पड़ता है; वहीं पर ही ये कुछ दो-चार दुकानें है। दुकान क्या हैं, लाल टीन से ढकी हुई लकड़ी की दीवारें है, जिनको पत्थरों व मिट्टी की सहायता से मजबूती देने का प्रयास किया गया है। दुकान के अंदर कुछ दो-चार लकड़ी की बेंच व बड़ी- सी दो-चार मेजे रखी हैं। पास में ही शेर के मुँह से निकलता ठंडा पानी ,पहाड़ी यात्रा के दौरान होने वाली थकान को क्षणभर में ही दूर कर देता,इसका मृदुल, शीतल जल के सेवन मात्र से ही तन और मन दोनों ही स्फुरित हो जातें। दुकानों के अंदर से आती आलू के गुटकों की खुशबु, गरम-गरम पकौड़ियाँ  व आलू की टिक्की,साथ में  भांग ,पोदीने व धनिये से बनी खट्टी चटनी यात्रियों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करतीं। विशेष रूप से नेगी जी की दुकान की टिक्की की तो बात ही अलग होती है और उस पर चने के छोले तो आने वाले आगन्तुकों के स्वाद में और चार चाँद लगा देतें हैं ।

दोनों ओर हरे-भरे पेड़ और पहाड़ों के बीच में से जगह-जगह से निकलता पानी ,जिसकी मात्रा और गति बरसात में बढ़ जाती। मन को ऐसा लुभाती कि मन करता कि बस, यहीं बैठे रहों।  दोगाँव की हरी भरी पहाड़ियों के बीच सर्पाकार सड़क गुजरती है। सडक के दोनों ओर हरे-भरे जंगल व बीच-बीच में जगह-जगह स्थित छोटी-छोटी चाय-नाश्ते की दुकानें होती हैं और उन में से ही एक दुकान है,बचदा की।

आज बारिश कुछ ज्यादा ही तेज है बचदा होठों ही होठों पर बुदबुदा रहे हैं ,"कोरोना की महामारी भी चरम पर रही इस बार धन्धा भी ऐसा कुछ खास चल नही रहा है। बचदा उदास कदमों से दुकान की ओर बढ़ाते हुए, मन ही मन बुदबुदा रहे है।" चल रे बची दुकान तो खोलनी ही ठहरी,कोई आए या ना आए शाम को रोटी का भी तो जुगाड़ करना ही ठहरा"। बचदा अभी भी दुकान खोलते-खोलते बड़बड़ा रहें हैं । " क्या बड़बड़ा रहें हो बचदा"? बगल का दुकानदार रमिया ने पूछा।

रमिया  का असल में नाम तो रमेश हुआ , लेकिन प्यार से सब लोग उसे रमिया कहने वाले ठहरें।

रमेश ने अभी-अभी ही बीए की परीक्षा दे रखी है । बीए का रिजल्ट आते ही एम ए का फार्म भी भर देगा साथ ही साथ अपनी नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में भी लगा रहता है।आजकल खाली है इसलिए अपने बाबु का हाथ बटाने को दुकान पर आ जाता है,छोटी मोटी जरनल स्टोर की दुकान  है जिसमें  सभी घरेलु सामान मिल जाता है।

"क्या बड़बड़ाऊँ रे रमिया! कोस रहा हूँ अपने भाग्य को। और क्या! अच्छा खासा धन्धा चल रहा था,ये कोरोना ने तो सब चौपट कर दिया, ये साले चीनियों ने तो; कीड़े पड़े सालों के;इनकी तो; माँ की भद्दी गाली निकालते हुए बचदा बोले"।

बारिश का वेग प्रचंड  हो चला। टिन की छत से आती बारिश की आवाज  ने तो वातावरण को और भी भयावह बना रखा हैं। बचदा तेज बारिश से परेशान हैं । बारिश की भयावहता देख मन ही मन बुदबुदा रहें  हैं," आज का दिन भी खराब।" हे गोल्जयू महाराज इक्कीस रूपें क भेंट चड़ून  जो आज मेरी कै बिक्री ह्यै जाली! कृपा करो है देव"।( हे गोल्जयू महाराज(पहाड़ के देवता) कृपा कीजिए आज जो मेरी दुकान में  बिक्री होगी तो इक्कीस रूपये प्रसाद स्वरूप आपकों  चढ़ाऊँगा।) बचदा मन ही मन गोल्जयू को मनाने लगें, लगता है गोल्जयू महाराज ने उनकी पुकार सुन ली।  एक कार ,स्लेटी रंग की आई20 ,आकर बचदा की दुकान पर आकर रूक गयी; कार के अंदर से चार युवतियां नीचे उतरकर दुकान के अंदर आ गयीं और आकर दुकान में लगी बेंचों पर बैठ गयी और चाय के साथ नाश्ते का ऑर्डर देकर चाय की प्रतीक्षा करने लगीं और साथ ही साथ उस स्थान की सुंदरता का आनन्द लेने लगी थी; हालांकि बारिश में पहाड़ का सौन्दर्य मन को अलग ही रोमांच देता है। ईधर बचदा को लग रहा था कि मानों साक्षात  लक्ष्मी जी स्वयं बचदा पर तरस खाकर आपनी अष्ट सखियों संग दुकान में आ गयीं हो। इसके लिए बचदा गोल्जयू को मन ही भन बारम्बार प्रणाम कर रहे थें।

बचदा नाश्ता तैयार कर रहें हैं साथ ही साथ चूल्हे में  उन्होंने चाय चढ़ा रखी है। अदरक कूटने की आवाज युवतियों के कानों पर व्यवधान उत्पन्न कर रहीं हैं, ऐसा उनके चेहरे की झुंझलाहट से लग रहा है; जो कि अपनी वार्तालाप में व्यस्त हैं।

बाहर  सड़क पर बच्चों का झूँड कोलाहल करता हुआ रहा है। " पागल!पागल!पागल!मारों!पागल को मारो! बच्चे चिल्लाते हुए उसे पत्थर मार रहें हैं और वो बच्चों से बचने की कोशिश कर रहा है; अस्त-व्यस्त सा बदहवास-सा; उसे ना अपनें तन की सुध है, ना मन की। बालों में  लट पड़ी है,शरीर के कपड़े फटे पड़े हैं ; नग्नता उसके फटे हुए कपड़ों से बाहर आ रही है,शरीर से आती भयंकर दुर्गंध आसपास के वातावरण को दूषित किये जा रही हैं। बच्चों के पत्थर से घायल पागल के शरीर से जगह-जगह से रक्त रिस रहा है। बचदा बच्चों को फटकारते हुए उन्हें  भगा रहें,"हटो भागों यहाँ से।" बचदा  हाथ में ड॔डा लिए बच्चों की ओर जा रहें हैं । बचदा के हाथ में डंडा देख और उन्हें गुस्से में देख बच्चों का झूँड बडी तेजी से भाग निकला। बचदा ,उस पागल को दुकान पर लाकर उसके हाथ पॉव साफ करने लगें तथा उसकी नग्नता को एक चादर से ढक रहें है। वो पागल अभी भी घबराई हुई नजरों से ईधर-उधर देख, डरकर थर-थर काँप रहा है।

अकस्मात बाहर का कोलाहल सुन विनीता और अन्य युवतियों  का ध्यान वार्ता से हटकर बाहर सड़क पर  चला गया है।

सहसा ही उस पागल को देखकर चौकतें हुए विनीता  चीख पडी ,"बिऽऽजु!"

साथ खड़ी युवतियां चौंक पड़ी और बोली," अरे ये तो पागल है और तू ये ,,,,,,,।

अभी वो युवती जिसका नाम सुधा है वाक्य भी पूरा नही कर पाई कि विनीता बीच में ही उसकी बात काटते हुए बोली,"  अरे ये अपना बिजु है!

"बिजु ! कौन बिजु!" सुधा चौकतें हुए बोली।

"आप लोगों ने 'लौट आओ मधु' उपन्यास तो पढ़ी है"। उसके रचयिता का नाम क्या है जानतीं है"! विनीता ने प्रश्न-सा पूछने के अंदाज में कहा।

"अरे कोन नही जानता'विजयकांत  शास्त्री  जी' ,को इसके अलावा भी ना जाने कितनी कहानियाँ पढ़ी है मैनें उनकी ," ।एक युवती बोली ।

दूसरी युवती  बोली," अरे उनकी तो हर कहानी  दिल की गहराइयों तक उतर जातीं है । काश! मुझे मिल जाते तो मैं उनसे ढेर सारी बातें करती  और पूछती कि क्यों आपने  उस रात की सूबह  उपन्यास में नायक -नायिका का विछोह दिखाकर उपन्यास बंद कर दी"।

तीसरी बोली ,"अरे इनकी तो अनेकों उपन्यास इन दोनों के अलावा भी छप चुकी है। इधर काफी लंबे अंतराल से इनकी कोई रचना या उपन्यास नही आ रहीं हैं।"

दूसरी युवती उदास होकर बोली ।"आएंगी भी कैसें?" तभी विनीता बोली," यही तो है वो विजयकांत त्रिपाठी यानि बिजु।"

" क्या!" सभी लोगों का मुँह खुला का खुला रह गया। "अरे हाँ ! ये तो विजयकांत जी ही तो हैं।" जैसे ही उनके चेहरे की मिट्टी साफ हुई तो सब चौंक कर चिल्ला सी उठीं। "इनकी ऐसी हालत हो कैसे गयी ? ये यहाँ  कैसे आ गयें"? ये प्रश्न सभी की नजरें एक दूसरे से पूछ तो रही थीं; पर उत्तर किसी के पास नही था।

बचदा, जो उस वक्त उस पागल, विनीता  व अन्य युवतियों के लिए ,चाय बनाकर छान ही रहें थें कि उस पागल की पहचान, 'विजयकांत शास्त्री' के रूप में जान हतप्रभ रह गयें वो तो हाथ में जब चाय गिरी, तब सँभले।

उनमें से एक युवती सुधा,जो दोगाँव के विद्यालय में  अध्यपिका थी, बिजुदा यानि विजयकांत शास्त्री  को देखकर स्तब्ध रह गयी; जिसे वह हर रोज एक पागल के रूप में देखती थी। उसे क्या पता था कि यह पागल वही विजयकांत शास्त्री है।

"हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान, एम ए,पीएच डी अल्मोड़ा महाविद्यालय में हिन्दी के प्रवक्ता ,लेखक ; अरे बहुत सारी विशेषताओं के धनी हैं ये हमारे विजयकांत त्रिपाठी और आज; ऐसे पागल के वेश मे मिलेगा, मैनें तो सोचा भी नही था।" विनीता लगातार बोले  ही जा रही थी।

" तो आज ,इनकी ऐसी हालत ,कैसे हो गयी ?",सुधा ने पुछा ।

"क्या बताऊँ  ये सब विधि का विधान कहे या फिर इस बिजु का भाग,कुछ समझ में नही आता। बहुत ही दुःखद और लंबी कहानी हैं।"विनीता कहने लगी।

इधर वो सभी युवतियां बिजु अर्थात विजयकांत शास्त्री के उपन्यास के बारें में उत्सुकता दिखाने लगी और उधर बचदा का तो मन कर रहा था कि वो बिजु के चरण पकड़े लें और हो जाएं नतमस्तक बिजु अर्थात विजयकांत शास्त्री के चरणों में; परन्तु हाय! रे भाग्य की गति! ना उन युवतियों को अपनें प्रश्न का ही उत्तर मिल पा रहा है और ना ही चाहते हुए भी बचदा बिजुदा के पॉव ही छू सकतें है।

इधर चाय भी आ गयी । विनीता का मन, अब चाय पीने को नही हो रहा, पर मरे मन से चाय-नाश्ता कर व कुछ समय दुकान में बिताने के पश्चात, विनीता और उसके साथ आई युवतियां कार में बैठ हल्द्वानी की ओर निकल गयीं आगे के सफर में, बिजु को, जीर्ण-शीर्ण हालत में,उसके भाग्य के भरोसे, बचदा की दुकान में,छोड़े, नम आँखों  में आँसू लिए और बिजु की स्मृति को अपने साथ ले जाते हुए।

विनीता अपनी सहेलियों के साथ हल्द्वानी की ओर बढ़ रही थी। कार तेजी से आगे को बढ़ रही थी। विनीता की आँखों के आगे बिजु का वो बदहवास चेहरा रह-रहकर घुम रहा था। "ऐसा कैसे हो सकता है",वो हल्के से बुदबुदाई।

"क्या कैसे हो सकता है?" सुधा ने पुछा।

विनीता की आँखों में आँसू निकल पड़े जिन्हें , उसने बडी चतुराई से छिपा लिया और उदास होते हुए कहने लगी ," आज बिजु को देखकर मुझे उर्मिला पर गुस्सा आ रहा है। क्या से क्या बना दिया,उसके वियोग ने, बिजु को। बहुत मंहगा पड़ा गया बिजुदा को उर्मिला के साथ ,प्रेम के पथ पर चलना"।

"क्या मतलब! मैं समझी नही!", सुधा चौकतें  हुए  बोली।

"रहने दे तू नही समझेंगी बहुत लंबी कहानी है"। विनीता आँसू पोछते हुए बोली।

"तो सुना ना! हम सभी जानना चाहते हैं आखिर इतना अच्छा बिजु का,आज ये रूप क्यों है! सभी सहेलियां, एक साथ  विनीता से, बिजु के अतीत की कहानी सुनाने को कहने लगीं; तो विनीता लौट चली वापस अतीत के पथ पर।

2

अल्मोड़ा में डिग्री काॅलेज मे पहला दिन बाहर हल्की-हल्की बारिश हो रही है। विनीता का कॉलेज मे पहला दिन। कई नए व अपरिचित चेहरे आ रहें हैं आज कॉलेज में। जो आपस में एक-दूसरे से पहले से ही परिचित हैं, वो झूँड बना कर खड़े, गपिया रहें हैं ,जो बिल्कुल ही नए-नवेले हैं ।अकेले व शान्त खड़े हैं, किंकर्तव्यविमूढ़ होकर।

विनीता भी उनमें से ही एक है कॉलेज में बिल्कुल नई। आज पहला दिन जो है कॉलेज में। तभी उसके सामने ही मैदान में एक गौर वर्ण की कमनीय वय युवती खड़ी, धानी रंग का कुर्ता व सफेद रंग की चुढ़ीदार पहनें हुए कानों में स्वर्ण कुंडल झूल रहें है गले में सोने की पतली चेन पहन रखी हैं, नाक मे छोटी-सी कुमाऊंनी नथ उसकी सुदंरता को और निखार रही है। हाथों में सोने के पतले कड़े व धानी रंग की ही चुड़ियाँ उसके हाथों की हलचल के साथ मानों  खन-खन  की मीठी धुन छेड़ रहीं  हों। उसकी बड़ी-बड़ों मृगनयन आते-जाते सभी लोगों को अनायास अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं,उसपर आँखों में काजल उसकी आँखों की सुंदरता को और बड़ा रही है। उभरे हुए उसके वक्ष-स्थल,पतली कमनीय कमर लंबी पतली उसकी टाँगे व उसकी लंबा शरीर ,हर युवाओं  के दिल की धड़कनों को बड़ा रहीं है;उसके पहनावें से वह संभ्रात परिवार की लग रही है। उसकी भी स्थिति विनीता की सी ही लग रही है।

चलों मेरी तरह ये भी शायद अकेले और निरीह है,क्यों ना इसके पास जाकर अपना कुछ समय व्यतीत किया जाए। मन ही मन बुदबदाते हुए विनीता दूसरी छोर पर खड़ी उस युवती के पास गयी।

अलग ही मासूमियत से भरा चेहरा बालों को लंबे चेहरे पर आकर उसको परेशान कर रही हैं, जिन्हें वो झुंझलाकर अपने चेहरे से हटा रही है उसके व्यक्तित्व में कुछ तो आकर्षण है,जो विनीता खीची हुई सी उसके पास चली जा रही है; हालांकि विनीता के चेहरे में भी पहाड़ी खुबसूरती हैं ; गुलाबी गाल उसके गौर वर्ण चेहरे पर ऐसे प्रतीत होतें है जैसे स्वच्छ श्वेत जल में गुलाबी कमल का पुष्प; परन्तु उस युवती  की सुंदरता में बाल-सुलभ भोलापन था।

संकुचित सी खड़ी उस युवती के पास पहुंच गयी। अपना परिचय देते हुए विनीता ने उससे बातचीत करना आरंभ कर दिया। उसने अपना परिचय उर्मिला के नाम से दिया और  आगे बताया कि बीए प्रथम वर्ष, 'कला संकाय में उसका दाखिला हुआ है। विनीता ने भी अपना परिचय  उसको दिया और ये जानकर कि उसका(विनीता) भी दाखिला कला संकाय में आज हुआ है ,उसके मन को तसल्ली दे रहा था। थोड़ी देर बातचीत के पश्चात  दोनों  ही एक साथ कक्षा में प्रवेश कर गयें।

पाण्डेयखोला, भैरवाथान से नीचे को जाने पर एक हरे-भरें  वृक्षों से आच्छादित वन के मध्य में  स्थित है एक आलिशान बंगला ,'निर्मला' जिसकी भव्यता की चर्चा, ना केवल अल्मोड़ा बल्कि आसपास के शहरों व गावों में होती है। घर ,बाहर से देखने में तो कोई राजमहल सा ही जान पड़ता है। घर के बाहर खुमानी,आड़ू,काफल,प्लम  आदि विभिन्न प्रकार के पहाड़ी फलों के पेड़ लगें हैऔर साथ ही साथ कहीं-कहीं पर हिसालू व किल्मोड़ी की झाड़ियाँ भी।  ऊपर सड़क से लेकर नीचे सड़क तक हरियाली ही हरियाली  दालान(लौन) है। जिसमें गोल्फ का मैदान है। व ढेर सारे विभिन्न प्रजातियों के देश-विदेश से मँगायी गयी विभिन्न प्रजातियों के पुष्पों के पौधे लगें है जिनकी सुगंध  से आसपास का वातावरण महकता रहता है एवं घर के पास से गुजरता कल-कल करता ठंडे पानी का श्रोत और उसमें से छन-छन कर आती ठंडी हवा घर के बगीचे से उठती सुगंध को और सुरम्य बना देती।  घर में विदेशी नस्ल के दो कुत्ते है जो देखने से ही अत्यन्त खुँखार प्रतीत होतें है व तीन गाड़ियाँ तो घर के पास वाली सड़क के किनारे व दो गैराज के अंदर बंद रहतीं है जिनका उपयोग यदा-कदा ही हो पाता है। घर के अंदर की भव्यता तो घर को, और चार चाँद लगाती है। अतिथि-कक्ष ऐसा कि अच्छा खासा व्यक्ति तो वहाँ पैर धरने से भी घबराये । घर में चार नौकर तो घर की सजावट को बनाये रखने में दिनभर अपनी ऊर्जा लगाए रहतें हैं। घर के मालिक है सेना से अवकाश प्राप्त लेफ्टिनेंट जर्नल महेंद्र सिंह रावत; उन्ही की इकलौती बेटी है उर्मिला।बहुत सीधी व सरल इतना वैभव होते हुए भी कॉलेज आना-जाना पैदल ही पसंद करती हैं। माँ,उर्मिला के बचपन में ही, उसे दस वर्ष  की छोटी सी अवस्था में ही ,तपेदिक से ग्रसित हो,  उसके पिताजी के सुपुर्द छोड़ कर, हमेशा-हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो  चले गयी थी। तब से, उर्मिला को ,उसकी स्नेहमयी  नौकरानी दमयंती ने ही माँ का संपूर्ण स्नेह प्रदान करने का प्रयास किया ,जिसमें दमयंती सफल भी रही। रावत जी अमूमन सेना में रहते हुए देश सेवा में बाहर सीमान्त जगहों पर रहतें  आए हैं । अवकाश के पश्चात भी वो अपने आप को बाहर की दुनियाँ में मित्रों के साथ व्यतीत करतें, उनका उठना-बैठना अक्सर बड़े लोगो के बीच ही रहता है। घर में आए दिन पार्टियां होते रहतीं हैं। उर्मिला व रावत साहब की मुलाकात यदा-कदा ही कभी दस-पन्द्रह दिन एक-आध बार हो जाती। दोनों के  आचरण में भी धरती-आसमान का अंतर है। उर्मिला जहाँ  शान्त स्वभाव की बहुत ही कम बोलने वाली लड़की है,वहीं रावत जी अपने वैभव का प्रदर्शन करना पसंद करतें हैं इसलिए  रावत जी अंतर उर्मिला एक-दूसरे के सामने यदा-कदा ही आतें हैं । हालांकि उर्मिला की उदासी उन्हें  दिन-रात बैचैन किए रहती है। एक तो दोनों ही अल्मोड़ा में  नये-नयें  आएं है इसलिए यहाँ  उर्मिला का किसी से कोई परिचय नही है।

उर्मिला के कमरे की खिड़की खुलते ही  सूबह- सूबह हिमालय की सुनहरी पर्वत श्रृंखला  व उससे आती बर्फीली हवा तन और मन दोनो को स्फुरित कर देतीं । शान्त स्वभाव की उर्मिला या तो पर्वत को देखती या फिर अपनी दुनियां तक सीमित रहती। उसकी दुनियाँ या तो दमयंती; जिसे वो प्यार से छोटी माँ कहकर बुलाती , साहित्यक किताबें; विशेष रूप से विजयकांत त्रिपाठी  जिन्हें लोग शास्त्री उपनाम से भी जानते है की कहानियों से वो ज्यादा प्रभावित होती है या फिर उसकी मामा की लड़की,माधवी ,जो उसकी हम उम्र है ,तक सिमित है। अब उसकी मित्रों की लिस्ट में एक नाम और जुड़ गया वो है, विनीता; जिससे उसकी प्रगाढ़ता सीमित समय की पहचान से हो गयी थी और अल्मोड़ा शहर में एकमात्र विनीता ही है जिसे ,उर्मिला जानती है ।उर्मिला , विनीता का भोलापन व,दयालुता स्पष्टवादिता से अत्यधिक प्रभावित  है।

पनियाऊडार के एक छोटे से घर में  किराये पर  रहती है ,विनीता  यानि विनीता पाण्डे, साधारण परिवार ,घर में  ईजा ,बाबु के अलावा तीन भाई और दो बहनें,। विनीता के सभी भाई ,अल्मोड़ा से बाहर अलग-अलग शहरों  मे सरकारी विभाग में सामान्य पद पर कार्य करतें हैं; वो अपने परिवार के साथ शहर में सामान्य जीवन गूजर-बसर कर रहें हैं । एक बहन है अमिता,जिसका रिश्ता तय हो चुका है और एक विनीता जिसका परिचय मैं पहले ही करा चुका हूँ  आपसे। बस दो-तीन महीने के अंदर अमिता भी अपने ससुराल विदा हो जाएगी,बाबुजी श्रीमान जयदत पाण्डे जी ज्योतिष का काम करतें  है व साथ ही साथ घरों में पुजा-पाठ करतें हैं। ईजा बुढ़ापे के कारण रुग्ण रहती है घर के कामकाज की जिम्मेदारी विनीता व उसकी बड़ी बहन अमिता मिलकर उठाती हैं।

3

विनीता के ही बड़ी मौसी(ताईजी), मतलब माँ की बड़ी बहन का लड़का है विजयकांत त्रिपाठी यानी विजयकांत शास्त्री ,अपनी पहचान को गोपनीय बनाये रखने के लिए विजयकांत त्रिपाठी के स्थान विजयकांत शास्त्री लगाता है अपने कहानियों और किताबों में और अपनी तस्वीर सार्वजनिक करता नही। इस बात की जानकारी दो लोगों तक ही सीमित है एक बिजु स्वंय और दूसरा उसकी दीदी सुशीला दीदी,जो उसके पडोस में  रहती है और बिजु से स्नेह रखती है।

यद्यपि विनीता बिजु करके तो उसे जानती है। और ये भी जानती है कि वो विजयकांत त्रिपाठी है,पर अभी तक  उसे ये नही पता है कि असल में विजयकांत त्रिपाठी ही विजयकांत शास्त्री है 'प्रसिद्ध लेखक'।  वो अक्सर उर्मिला के मुँह से उसकी काफी प्रशंसा  सुन चुकी है,उसने स्वयं भी उसके उपन्यास पढ़ें हैं और उसकी प्रशंसक भी है। अन्य लोगों की ही तरह वो भी उससे मिलना चाहती है। बिजु को देखकर ऐसा लगता भी नही। बिजु और विनीता की खुब बनती है। जब भी उर्मिला विजयकांत त्रिपाठी की बातें छेड़ती, तो उसे बिजु की याद आ जाती है। उर्मिला अक्सर उससे मजाक में पूछती भी है कि कहीं यही तो बिजु ही तो विजयकांत त् विजयकांत शास्त्री तो नही है तो विनीता कहती है," धत्त! " वो तो अभी छोटा है मेरे बराबर।" उर्मिला मजाक करते हुए कहती ," कभी मिला भी उससे"। वो भी हँस देती।

आप लोग सोच रहें होगें कि ये कैसे संभव है कि विनीता के सगे ताई  का लड़का विजयकांत शास्त्री है और इसका पता विनीता को नही,असल में बात ये है कि विनीता को तो क्या स्वयं विनीता के मौसा, मौसी (ताऊ,ताई)और परिवार में भी विजयकांत त्रिपाठी के लेखक होने की जानकारी नही है । इसका भी कारण है कारण ये कि विजयकांत त्रिपाठी को बचपन से ही लिखने का शौक रहा। एक दिन उसके पिताजी के पास बिजु के स्कूल से उसके हिन्दी  के अध्यापक की शिकायत आ गयी कि बिजु ने उनके हिन्दी विषय की  कॉपी में उनके द्वारा कराये गये काम की जगह ये कहानी लिख रखी है; फिर तो मौसा जी ने जो बिजु की पिटाई लगाई कि हफ्ते भर तक तो बेचारा बिजु ठीक से चल फिर भी नही पा रहा था और ऊपर से तीन दिन भूखा रहना पड़ा सो अलग; वो दिन था, बिजु ने अपनी पहचान छिपाकर लिखना जारी रखा। वो त्रिपाठी उपनाम की जगह शास्त्री उपनाम का प्रयोग करने लगा और उसके विशेष आग्रह पर उसके प्रकाशक ,ना ही उसका चित्र और ना ही  उसकी पहचान पुस्तक में प्रदर्शित करतें । इस तरह से बिजु , बिजु ही बना रहा।

4

अल्मोड़ा से कौसानी को जाने वाले रास्ते में कई छोटे-छोट गाँव दिखाई देतें हैं। उनमें से ही कोसी नदी के किनारे एक गाँव पड़ता है कोसी गाँव। चारों ओर बाॅज व चीड़ के जंगलों से घिरा सुरम्य ग्राम है। उसी गाँव में रहते हैं ! पंडित दीनानाथ त्रिपाठी जी। वहीं गाँव के विद्यालय में शिक्षक हैं। वेतन इतना भर है कि परिवार का भरण-पोषण बहुत ही कठिनाई से हो पाता है, इसलिए शिक्षण कार्य के साथ वृत्ति का काम भी कर लेते हैं, इसलिए गाँव में वो पंडित जी के नाम से ही प्रचलित हैं। उनके परिवार में  उनके अलावा उनकी पत्नी व आठ बच्चें हैं ; जिनमें पाँच कन्याएं व तीन पुत्र हैं।सभी अपनें कारोबार में अलग-अलग शहरों में सपरिवार व्यस्त हैं सभी कन्याओं का विवाह हो चुका है तीन इस समय दिल्ली में ब्याही हैं व एक लखनऊ में  तथा एक नैनीताल सभी एक से बढ़कर एक घर। अच्छी किस्मत लेकर जन्मीं  थी ; जो गरीबी में पलकर भी आज राजसी ठाठ से जी रहीं हैं ; लोग तो कहतें है कि एक बार शादी करके गयीं , तो फिर पलटकर भी नहीं देखा घर की ओर। पुत्र रत्न एक महाशय बम्बई में  भाभा एटोमिक सेन्टर में सीनियर साईन्टिस्ट हैं व दूसरे अल्मोड़ा में ही  अस्पताल में डाँक्टर हैं, सुना है अल्मोड़ा बाजार में रहतें है कभी-कभार घर की सुध लेने आ जाते हैं ,तीसरे पुत्र हैं विजयकांत यानी बिजु निखट्टु और बेकार ऐसा मैं  नही कह रहा हूँ। ये पंडित जी कहते रहतें  है उन्हें  तो वो फूटी आँखों  नही सुहाता और जो पंडित जी आँखो में सदा खटकतें रहता  है। पंडित जी बिजु को बज्जर मूर्ख समझतें हैं। ऐसा कोई अवसर या दिन नही होता, जब बिजु, पंडित जी से डॉट ना खाए या ना पिटे। सभी भाई- बहनों  की आँखों में वो बेकार और निखट्टु है। इसलिए वो भी इसको धरती का निकृष्ट जीव मान उसे लताड़तें चलें आएं हैं । हर कोई अपना-अपना भाग्य लिखाकर जो लाता है। ऐसा नही है कि बिजु बहुत बड़ा हो गया है या निखट्टु है ,जो पंडित जी पर बोझ बन गया हो। वो कहतें हैं ना कि जब बाप ही लताड़े तो भाई-भौजाई क्या पूछेंगे। बहिनें तो मजाक उड़ातीं है पर इस पर भी बिजु अपने आंसुओ को अपनी मोहक मुस्कान में ऐसे छिपा लेता है जैसे माँ अपने बच्चे को आँचल में। माँ से याद आया माँ बिजु को दुलार करती है ,सही कहूँ तो एक माँ ही उसका पूरा ख्याल रखती है,पर वो भी दीनानाथ जी के कठोर व्यवहार से भयातुर रहती है। घर वालों के द्वारा बिजु की उपेक्षा उसे हमेशा परेशान किये रहती है।

पंडित जी को लगता है कि इस बजरमुर्ख को पैदा कर उन्होंने बहुत बड़ा अपराध कर दिया; जो अक्सर उनके  होठों से होकर शब्दों के द्वारा प्रकट भी होता है;"कौन से पाप किये थे मैंने, जो ऐसा बजरमुर्ख पैदा हुआ,इससे तो पैदा होते ही मर जाता। बिजु के साथ होता भी ऐसा ही है।  बचपन से ही स्कूल से मासस्ब उसकी शिकायतें  लेकर उसके घर आ जातें । उनके लिए भी एक पंथ दो काज हो जाता; शिकायत कर मन को प्रसन्न कर लेते चाय पीकर तन को सन्तुष्ट कर लेते। गडबडान शुद्ध दुध की चाय हर दिन शाम को तय थी ही, इसलिए मासस्ब लोगों मे होड़ लगे रहती कि आज मैं, आज मैं कि और जिस का नंबर पड़ा जाता वो सौभाग्यशाली होता उस दिन ; इसलिए हर मास्टर पढ़ाने में कम ,बिजु की नयी-नयी शिकायतों पर अनुसंधान करतें ।

बेचारा इसका शिकार तो हर रोज बिजु ही होता। किसी ने भी बिजु को समझने का प्रयास कभी किया ही नही; ना ही स्कूल में अध्यापकों ने और ना ही घर में परिवारीजनों ने।

बिजु की माँ, बिजु को लेकर हमेशा चिन्तित रहती। बिजु को अगर कोई माँ के अलावा अच्छा मानता तो वो थी उसकी सुशीला दीदी, जो उसके ही पड़ोस में  रहती। वो ही बिजु के अंदर की छिपी प्रतिभा को जानती भी थी और समझती भी। बिजु भी अपने सुख-दुःख की बातें अपनी दीदी के साथ ही साझा करता। आज बिजु अगर विजयकांत शास्त्री बना है तो अपनी सुशीला दीदी ही बदौलत है। आज अगर दुनियाँ उसको जानती है तो वो दीदी की ही बदौलत । ये बात बस एक या तो बिजु जानता है या फिर दीदी, कि वो विजयकांत शास्त्री है। बाकि सभी की नजरों में  तो वो बजरमुर्ख और निकृष्ट है; जो घर-परिवार में एक बोझ मात्र है बस।

आप सोच रहें होगें कि ऐसा हो सकता है भला कि विश्व प्रसिद्ध आदमी अपने घर,मुहल्ले,नगर को ये बात पता ना हो; पर ये सच है। बिजु जब दस साल का था तो उसकी एक कहानी उसकी दीदी ने चुपके से पढ ली थी,जो दीदी को बहुत भा गयी और उसने उसकी कहानी को अपनी हिन्दी की शिक्षिका को दिखाई ,उस शिक्षिका को उस कहानी में छिपा हुआ दर्द दिखाई दिया ।जिसमें कुछ संशोधन कर शिक्षिका महोदया ने वो कहानी एक पत्रिका को भेज दी; जो छप भी गयी। उस कहानी में पहली बार बिजु का नाम फोटो सहित था। बिजु की दीदी उस पत्रिका को लेकर बिजु के घर गयी और बिजु को उसकी कहानी, नामवर फोटो सहित दिखाया तो बिजु के चेहरें में आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता थी। दीदी ने बिजु को उपहार जो दिया था। वो उपहार बिजु को ऐसा भाया कि सुशीला दीदी से उसकी आत्मीयता और घनिष्ठ हो गयी।

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शायद कोई और परिवार होता तो वो खुशी से फुला ना समाता। बच्चे को खुब दुलारा जाता व पूरे गाँव में इसकी चर्चा गर्व के साथ की जाती। पूरे रिश्तेदारों में इस बात को प्रसारित किया जाता; परन्तु  हाय रे! बिजु का भाग्य ना जाने विधाता ने किस घड़ी में लिखा था। पंडित जी को तो ये फालतु के काम लग रहे थें सो पत्रिका हाथ में लेकर उसे चूल्हे में जलती आग को समर्पित कर दिया और बिजु की जो पिटाई लगी वो अलग।

परन्तु ऊपर वाला भी इतना क्रुर थोड़ी है। एक दरवाजा बंद है तो दूसरा दरवाजा खोलता भी है। बिजु की कहानी के कारण ही पत्रिका की लोकप्रियता को चार चाँद लग रहें थे सो पत्रिका के संपादक ने बिजु से और कहानियां भेजने का अनुरोध किया। इस तरह से बिजु को तो लोकप्रियता मिल रही थी। परन्तु घर,परिवार इससे अनभिज्ञ ही रहे विजयकांत त्रिपाठी की कहानियाँ अब विजयकांत शास्त्री के नाम से बिना फोटो के छप रहीं थी।

विजयकांत शास्त्री अब हर दिलों की धड़कन बन चूकें थें। विनीता और उर्मिला भी कहाँ इससे बचें थें। ऐसा कोई दिन नही होता जब विजयकांत का नाम, उर्मिला के जुबान पर ना आता हो। उधर विनीता भी विजयकांत शास्त्री के उपन्यास पढ़-पढ़कर उनकी दीवानी-सी हो चली थी। उर्मिला हर पल विजयकांत के बारे में सोचती रहती।

विनीता और उर्मिला की प्रगाढ़ता भी दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। " विनिता"! अचानक अपनें घर उर्मिला को देख, विनीता चहक उठी," आ उर्मिला " ,कहते  हुए विनीता और उर्मिला घर के अंदर चले गये। घर बहुत ही साधारण, चार लकड़ी की कुर्सियाँ व एक साधारण सा टेबल ,एक घड़ी दीवार में टंगी हुई टक-टक की आवाज कर रही है। कुछ किताबें ,सामने दीवार पर, बनी अलमारी पर करीने से लगाई गयीं हैं। घर भले ही साधारण हो,पर घरपर लोग असाधारण हैं । एक दूसरे से स्नेह करने वाले विनीता की स्नेहमयी माँ, पिताजी व बहन जिनसे मिलकर उर्मिला का मन खिल उठा इस तरह जब भी अवसर प्राप्त होता, उर्मिला विनीता के घर आती। कभी-कभी तो वह विनीता के घर रूक भी जाती।

विजयकांत  अपना ज्यादा समय वन में ही व्यतीत करता, घर के पशुओं को लेकर जंगल चराने ले जाता और दिनभर वहीं बैठकर अपना लेखन-कार्य करता। उसकी दीदी भी जंगल में गाय चराने आती तो बिजु की माँ बिजु के लिए कुछ ना कुछ बनाकर सुशीला के हाथ भिजवा देती।

बिजु का लेखन जब पूरा हो जाता तो, सुशीला अपने हिन्दी की अध्यापिका से संशोधन कराकर उसे पत्रिका को भेजती रहती। इस तरह बिजु और उसकी दीदी दिनभर उसकी कहानियों पर चर्चा करतें। उसकी अध्यापिका जो-जो भी संशोधन सुशीला को समझाती ,बिजु अपनी अगली कहानियों में उन त्रुटियों को दुबारा नही दोहराता।इस तरह सुशीला दीदी बिजु को लेखन में सहयोग  करती। वो स्वयं भी बिजु की कहानियों को पढ़ते व उसमें क्या छोड़ना चाहिए ,क्या हटाना चाहिए उसपर चर्चा करती। बिजु को विजयकांत शास्त्री बनाने में सुशीला दीदी की भूमिका अहंम रही है।

आजकल पत्रिका में उसका उपन्यास 'उस रात की सूबह' धारावाहिक का रूप ले, हर पन्द्रह दिन में प्रकाशित हो रहा है जिसकी धूम जगह-जगह मची  है। विनीता और उर्मिला भी धारावाहिक की प्रतीक्षा उत्सुकता से करतीं। विनीता का तो खैर पूरा घर ही विजयकांत शास्त्री का उपन्यास पढ़-पढ़कर  उसके प्रशंसक बन गयें है। उधर पत्रिका के संपादक पर दबाव भी बढ़ता जा रहा है कि वो विजयकांत शास्त्री की गोपनीयता को प्रकट करे; परन्तु संपादक भी शर्तों से बंधे होने के कारण विवश है। इस तरह विजयकांत शास्त्री लोगों के लिए अभी अबूझ ही है।

"आजकल तो बिजु हर जगह तेरी ही चर्चा चल रही हैं ।बिजु,मेरी मैडम कह रहीं थीं।"

बिजु हँसते हुऐ कहता है," ये सब तेरे ही कारण है दीदी।" खैर आज खाने में क्या है दीदी?"

तेरे पसंद की मड़ुवे की रोटी है (मड़ुवा पहाड़ का एक अनाज,जो कुमाऊं में अत्यधिक प्रचलित है, जिसकी की रोटी बड़ों ही स्वादिष्ट होती है) गुड़ की डली के साथ खाएगा या फिर भांग के नमक के साथ"?दीदी ने पूछा ।

" अरे दीदी , आज भांग के नमक के साथ हो जाए।" बिजु हँसते हुए कहने लगा

दोनों भांग के नमक के साथ मड़ुवे की रोटी खाने लगें।

"कुछ भी कह दीदी,अपने पहाड़ की हवा,पानी की तो बात ही कुछ और है।" मन नही करता इसको छोड़ने का" बिजु फिर बोला।

"परन्तु अब तो तेरी बारहवी भी पूरी हो चुकी है अब आगे की पढ़ने के लिए तूझे अल्मोड़ा तो जाना ही होगा"। दीदी हँस कर बोली।

"मन नही करता अल्मोड़ा जाने का दीदी,एक तू ही तो है जिससे मैं अपने मन की कह सकता हूँ "। बिजु उदास होते हुए कहने लगा।

" पर ऐसा नही होता ना बिजु, तू आगे पढ़ने और खूब आगे बढ़ ,ये तेरी दीदी की इच्छा है"।  दीदी ने फिर कहा "फिर तू ही थो कहता है ना अल्मोड़ा में ददा-भाभी के अतिरिक्त तेरी एक प्यारी बहन है,' विनीता'। उसके रहते मुझे कोई चिन्ता है तेरी। मेरे पीछे से अल्मोड़ा में वो तेरा ध्यान रखेगी। दीदी फिर हसँते हुए कहे जा रही थी । हालांकि अंदर से वो बहुत उदास है पर बाहर से कठोरता का आवरण ओड़ हँस रही है। "तूझे मेरी कसम है बिजु तू अब लौटकर कोसी नहीं आएगा,चाहे परिस्थिति कैसी भी क्यों ना हो" दीदी की रूलाई निकलने ही वाली थी,पर दीदी ने बहुत ही चालाकी से उसपर नियन्त्रण कर लिया था।

अब तूझे मेरी कसम अब आगे कोई  चर्चा नही "। सुशीला के समझाने पर बिजु अल्मोड़ा अपने ददा के पास जाने को तैयार हो गया,आगे की पढ़ाई के लिए।

6

शाम का समय,अल्मोड़ा शहर की छटा देखते ही बनती है। हर ओर रोशनी ही रोशनी मानों पूरा शहर ही रोशनी में नहाया हुआ हो। बिजु बस में बैठे-बैठे थक चुका है; हालांकि बस में बैठे हुए उसे मुश्किल से एक घंटा भी नही हुआ है पर बस के अंदर के दूषित वातावरण के कारण उसको थकान की अनुभूति हो रही है। बस दूर पहाड़ की यात्रा करके अल्मोड़ा आ रही है ऐसा बस के यात्रियों को देखकर लग रहा है बस की खिड़की से सर बाहर निकाल आधे यात्री तो उल्टी करनें मे व्यस्त हैं, कुछ पुरूष यात्री बीड़ी सुलगा रहें है जिसकी गंध से पूरी बस महक रही है।एकाध महिलाएं यात्री जो  आधी साड़ी बदन में पहने हुए हैं आधे से सर बाँध रखा है मैला-सा पेटीकोट साड़ी से बाहर झाँक रहा है,चेहरे पर हल्की झुर्रियाँ ,सर पर ऊनी स्कार्फ जो पूरे कानो तक ढका हुआ है,व मैला-सा ब्लाऊज जिसे देखकर ऐसा लग रहा है जाने कबसे नही धोया है। शरीर से आती गंध ,मानो महिने होगये हो नहाए हुए,बीड़ी पीकर पुरूषों से मानों कह रही हैं कि आजकल महिलाएं भी पुरूषों से कम नही । पर इन सब में पीसा तो बिजु ही जा रहा है। अल्मोड़ा शहर के बस स्टैंड पर बस के रुकते ही  डोटियालों ने बस को घेर लिया है। "कहाँ जाना है बाबुस्याब। लाओ आपनिसमान मुझये देदो हो बाबुस्याब" डोटियाल सभी यात्रियों से पूछ रहे है। इन सबसे बचकर बिजु, बस से उतर  अपने गन्तव्य की ओर अपने भाई के घर की ओर प्रस्थान कर रहा है। अल्मोड़ा शहर की बाजार से गुजरता हुआ बिजु मल्ला पोखरखाली पहुँच गया अपने भाई के घर।

घर के बाहर दिवार पर नाम पट्टिका टंगी है डॉक्टर बंशीधर त्रिपाठी एमबीबीस, एमडी ,सीनियर सर्जन ।

घर की डोर बैल बजाते ही दरवाजा डॉक्टर साहब ने ही खोला। हालांकि उनके चेहरे पर बिजु को देखकर कोई प्रसन्नता नही थी,जैसा कि विदित ही था। भाभी भी बाहर आगयी; परन्तु दोनों के ही चेहरे के भाव से ऐसा प्रतीत सो रहा था कि मानो किसी ने अतिरिक्त भार उनके सर पर रख दिया हो।

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कॉलेज की कक्षा में छात्र-छात्राओं का समूह आपसी गपियाश में व्यस्त हैं । विनीता और उर्मिला के कक्षा में प्रवेश करतें ही उर्मिला के बदन से निकलती केवड़े से बनी परफ्यूम की भीनी-भीनी खुशबू के कारण ही अनायास पूरी कक्षा का ध्यान उर्मिला की ओर चला जाता। उर्मिला व विनीता के आगे-पीछे तो लड़के भँवरों की तरह मँडराते, पर इन सब का उनको तनिक भी अंतर नही पड़ता।

कक्षा में एक अलग सीट पर बिजु गुमशुम व उदास बैठा है। कक्षा के सभी छात्र-छात्राएँ उसकी वेश-भूषा पर हँस रहें है ,कई छात्र उस पर व्यंग बाणों की बौछार भी कर रहे हैं। कई छात्राएँ उसके भोलेपन पर उसका मजाक बना रहीं हैं,परन्तु इन सब से बेपरवाह बिजु गुमशुम व उदास हो, अकेले एक सीट में बैठा अपने ही विचारों में डूबा, कलम से कागज में कुछ लिखने में व्यस्त है।

अचानक बिजु को कक्षा में देख विनीता तो खुशी से उछल पड़ी ," बिऽऽजु"! बिजु तो मानों सकपका गया । "बिजु तू कब आया "? तू भी हमारे साथ ही आ गया कॉलेज में बड़ा अच्छा लग रहा है रे बिजु"।  विनीता तो खुशी से इस तरह पागल हो बोले जा रही थी कि उसे ध्यान ही नही रहा कि ये कक्षा है और भी लोग हैं, कक्षा में । " उर्मिला ये बिजु ,विजयकांत त्रिपाठी" मेरी मौसी का लड़का । " उर्मिला की ओर देखते हुए उर्मिला से बिजु का परिचय कराते हुए विनीता बोली,"और बिजु ये उर्मिला मेरी दोस्त"।

खुशी तो बिजु को भी थी, विनीता को देखकर पर वो व्यक्त नही कर पा रहा था, क्योंकि उसके साथ कक्षा के अन्य छात्र-छात्राओं द्वारा किये जा रहे इस अप्रत्याशित व्यवहार से वो अंदर से द्रवित है। उसकी मुस्कराहट में, दुःख झलक रहा था,जिसे विनीता ने भाँप लिया। बहुत पूछने पर भी उसने मुस्कुराते हुए बात को टाल दिया। क्योंकि बिजु बेवजह बात को तूल देने के पक्ष में कभी नही रहा है। वो थोड़ा-सा दुःखी अवश्य होता है फिर अपने को संयमित कर लेता है।इन सब की आदत उसे बचपन से ही है।

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बिजु कुछ दिनों में विनीता से घुल-मिल गया था इसलिए अब वो अपनें मन की व्यथा विनीता को व्यक्त करता पर उतना नही जितना वो अपनी दीदी से कर पाता था। उसे विनीता में अपनी दीदी की छवि तो दिखाई देती,परन्तु ना जाने क्यों बिजु पर पूरी तरह से विश्वास नहीं  कर पाता इसलिए वो कुछ बातें तो विनीता से करता है और कुछ बातों पर सकुचाता है। विनीता भी उसका ध्यान रखती। कक्षा में बिजु के साथ घटित पहले दिन की घटना से विनीता और उर्मिला दोनों ही भिज्ञ थी और उर्मिला तो बिजु के विनम्र व्यवहार व उसकी क्षमाशीलता के गुणों के कारण मन ही मन उसकी ओर आकर्षित हुए जा रही थी। विनीता उर्मिला के मन में बिजु के लिए उमड़ रहे भावों को पड़ा रही हैऔर इसलिए विनीता उसे(उर्मिला को) बार-बार इस बारे में  सावधान करते हुए  कहती," ये अल्मोड़ा है यहाँ जाति के प्रति हर कोई  सजग रहता है तेरा और बिजु का मेल कभी भी संभव नही है; ना सामाजिक आधार पर और ना ही आर्थिक आधार पर"। उर्मिला उससे कुछ नही कहती वो बस मौन साध लेती।

परन्तु बिजु इन सब से अनभिज्ञ, अपनी सुशीला दीदी की इच्छा पूर्ति हेतू बस अपनी पढ़ाई और अपने लेखन में  संलग्न रहता; सामाजिक और व्यावहारिक ज्ञान से परे।

9

बिजु को अपने बड़े भाई के घर में असहजता महसूस हो रही है,हालांकि भाई-भौजाई मुँह से कड़वी बातें नही करतें, पर ना जाने क्यों उसको(बिजु) ऐसा महसूस होता है कि मेरा आना उनको अच्छा नही लगा। वो अपना ज्यादा समय अपने कमरे में ही गुजारता, अपने लेखन-कार्य में।भौजी खाने को कहती, खाने चले जाता, खाने में ना वो भौजाई से कुछ बात करता और  ना ही भौजाई बिजु से। भाई तो खैर कभी उसके पास आता ही नहीं। सांसारिक लोक-लाज के भय से वंशीधर और उसकी श्रीमती औपचारिकता वश उसको अपने घर में शरण दिये हुए है। ये अल्मोड़ा जो है बातें फैलने में यहाँ तनिक समय थोड़ी लगता है।

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मध्यान्ह का समय है ,कॉलेज में इस समय  भोजनावकाश है,कुछ छात्र-छात्राओं का समूह कॉलेज केंटिन में एक साथ बैठकर भोजन कर रहें हैं, कुछ अलग-अलग समूहों मे कॉलेज के मैदान में बैठकर भोजन कर रहें  हैं,  विनीता और उर्मिला भी मैदान के एक कोने में बैठकर भोजन करनें की तैयारी कर रहें है ,तभी विनीता की नजर बिजु पर पड़ गयी, जो मैदान के एक कोने में अकेला  बैठा भोजन करने के लिए अपना टिफ़िन निकाल रहा है ,गुमशुम और उदास।   उर्मिला, विनीता से कहने लगी,"ये इतना उदास और गुमशम क्यों रहता है। ना किसी से फालतू बात करता है ,ना ही किसी से कोई मतलब रखता ,किसी की ओर देखता बस अपनी कलम और कागज ,उसमें ही या तो कुछ ना कुछ लिखता रहता है या फिर पुस्तकों में डूबा रहता है। विनीता बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ? विनीता मौन हो उर्मिला की ओर देखने लगी। उर्मिला फिर बोली," क्या हमें उसके साथ नही रहना चाहिए? मेरी बात को अन्यथा मत ले देख एक तो तेरे से घुलामिला है ,दूसरा तुझसे वो अपनें थोडा-बहुत अपनी मन की भी कहता। इसको देखकर मुझे तो नही लगता कि ये अल्मोड़ा में खुश है अपनें भाई के साथ घर में  खुश है।; अगर हम इसको यहाँ अपने साथ नही रखेंगे या इसको ऐसा वातावरण नही देंगे कि ये मन की बात तुझसे या मुझसे कह सके तो वो समय भी दूर नही होगा जब ये मानसिक अवसाद में चला जाएगा। क्या तब तू स्वयं को माफ कर पाएगी"? विनीता मौन हो उर्मिला की बात को सुन रही थी। उसने अपना टिफ़िन बंद करा और चल दी बिजु के पास ,पीछे-पीछे उर्मिला भी

"आज क्या लाया है रे बिजु तू खाने में"  विनीता बोली।

"कुछ खास नहीं" ये कहकर बिजु झेंपते हुए जल्दी से अपना टिफ़िन बंद करने लगा; परन्तु विनीता ने झट से बिजु का टिफ़िन छीन लिया और बिजु के साथ बैठ गयी और कहने लगी ,"आज से हम साथ ही खाना खाया करेगें । क्यों उर्मिला तूझे कोई परेशानी तो नही है ना।"

" अरे बिलकुल नही पर देख ना बिजु को"।

"क्यों रे बिजु क्यों शरमा रहा है।" उर्मिला हँस कर कहने लगी।

नहीं तो शरमा नहीं रहा था वो तो,अभी भूख नहीं लगती रही थी ना "।  बिजु ने सर झुकाए हुए कहाँ।

हालांकि बिजु, विनीता व उर्मिला हर रोज कॉलेज में मिला करतें है पर बिजु अभी भी विनीता से संकोच ही करता है। उर्मिला को इस बात से आश्चर्य भी होता और ईर्ष्या भी, जहाँ कॉलेज के सारे युवा उसके वैभव पर मरते  हैं और ये एक है! जो एक नजर उठाकर देख भी नही लेता। बिजु की सादगी,सहनशीलता,क्षमाशीलताऔर भोलापन बिजु को दूसरें छात्रों से विशिष्ट बनाता।

"बिजु"! अचानक विनीता कहने लगी ,"आज तो हम तेरा ही टिफ़िन खाएंगे ।क्यों उर्मिला !"

और क्या बिल्कुल और बिजु ,हमारा...। ठीक है बिजु "; विनीता और उर्मिला बिजु का टिफिन खोलते हुए बोलें। टिफ़िन खोलते ही विनीता की तो मानों रूलाई आ गयी। उर्मिला के दिल के एक कोने में कहीं उसके प्रति करूणा के भाव थें।

"ऐसा खाना"! विनीता गुस्से में बोली।

"क्या भाई-भौजाई.....! अरे! कुत्ते को भी नही खिलाते।"" रूखी जली हुई रोटी वो भी ऐसा प्रतीत हो रहा था रात की बासी है।

" छीः"! ये कह विनीता की तो मानो रूलाई-सी फूट गयी। "तू ठीक ही कह रही थी उर्मिला। तेरा लाख-लाख धन्यवाद "। विनीता रोते हुए कहने लगी।

उस दिन  विनीता का मन उदास ही रहा।उसको ऐसा लगता कि काश बिजु उनके साथ ही रहता।

11

समय मंथर गति से आगे बढ़ता ही जा रहा है। देखते ही देखते एक वर्ष विनीता,उर्मिला व बिजु को साथ पढ़ते हो गयें हैं। बिजु अपने भाई के घर सभ्यताओं से परिपूर्ण अत्याचार को सहते हुऐ भी मोहक मुस्कान बिखेर कर विनीता को अपने सन्तुष्ट व प्रसन्न रहने का दिखावा करता है। विनीता हर घड़ी इसी उधेड़बुन में है कि किस तरह से बिजु को अपने साथ अपने घर रखा जाए। घर में अमिता की शादी भी निकट है। विनीता को लग रहा है कि ये अच्छा मौका है बिजु को अपने घर रखने का।

विनीता के विशेष आग्रह पर आज जयदत जी वंशीधर के घर की ओर प्रस्थान कर रहें  है ये सोचकर चलों एक पंथ दो काज हो जायेगा।

इधर आजकल पूरे शहर में जोरदार चर्चा चल रही है कि इस साल ,कॉलेज के वार्षिकोत्सव  समारोह में विजयकांत शास्त्री, मुख्य अतिथि बनकर आने वालें हैं। ये खबर जंगल में आग की तरह पूरे शहर में फैल चुकी है। हालांकि अभी इसकी पुष्टि समाचार-पत्र में नही हुई है।

इधर कॉलेज के प्राचार्य महोदय भी शहर से बाहर गयें हुए हैं  शायद दिल्ली । विनीता और उर्मिला की तो खुशी का कोई ठौर ही नहीं है। इस खुशी से कोई भी अछूता नही है।

12

दरवाजे की घंटी बजते ही दरवाजा बिजु ने ही खोला और मौसाजी को सामने देख मौसाजी के चरण-स्पर्श किये।"अरे! भाऊ कैस छैरे तू"? (अरे बेटा कैसे हो?) बिजु की पीठ ठोकते हुए जयदत्त जी बिजु से बोले

"ठीक छ्यू मौसाजी" ( ठीक हूँ मौसाजी) बिजु ने जबरदस्ती  मुस्कुराते हुए उत्तर दिया। जिसे जयदत्त जी की अनुभवी व बुढ़ी आँखों ने भाँप लिया और उन्हें विनीता की कही हुई एक-एक बात अक्षरशः  सही लगने लगी थी।

तब तक बंशीधर और उनकी श्रीमती जी भी मुस्कुराते हुए बाहर आ गये । "अरे मौसाज्यू प्रणाम!"  बंशीधर और उनकी श्रीमती जी एक साथ जयदत्त जी के चरणों को छूने लगे।" आज मस्त दिन क बाद आछा मौसाज्यू"(आज आप काफी दिनों के बाद आए मौसाजी)

होय तुम लोग तो जैसी लटकी रोजा घर में । जयदत जी ने दोनों की ओर देखते हुए कटाक्ष कर उनसे कहा।  "यो ने  कि नन्द क ब्याह छू घर जा बैरन मौसी,मौसाजी न हाथ बटूनू जबर । मैं तो बुढ़ भरी आब यदु भाग-दौड़ का ह सकूँ मै धी । विनीता च्यली भै और न अल्ले नानी भै।" "( हाँ तुम लोग तो जैसे रोज ही लटके रहतें हो। ये नहीं  चलो नन्द की शादी है घर जाकर मौसाजी व मौसी की हाथ बँटा आएँ। मै तो बुढ़ा हुआ और विनीता भी लड़की हुई और छोटी भी।) जयदत्त जी की बातों से दोनों ही शर्मिंदा महसूस कर रहे थें। "मौसाज्यू  अस्पताल क काम बटी फुरसत मिलो "( मौसाजी अस्पताल के काम से फुरसत  मिले तब ना) बिजु की ओर देखते हुए , "बिजु कब बेटी छू यहाँ "( बिजु कब से यहाँ) अंजान बनते हुए जयदत्त जी बोले। "एक साल हगो"( एक साल हो गये हुए है।)  वंशीधर ने उत्तर  दिया। "मनु ल जिद की कि देवरज्यू क अब अल्मोड़ क कॉलेज में पढ़ूनु । यके शहर में  लै बैरेन  उकै भल मैस बनुन आखिर नान भै भौ उ तुम्हार।" ( मनु यानि बंशीधर की श्रीमती ने ही जिद करी अब बिजु को अल्मोड़ा के कॉलेज में पढ़ाई इसे अच्छा आदमी बनाना चाहिए ।आखिर छोटा भाई हुआ बिजु तुम्हारा) "अरे यो भल होगो को, बिजु को लिजाओ आपण दगढ़ आपण घर  अमिता क ब्याह जाड़ें क।"( अरे ये अच्छा हो गया बिजु को अपने साथ घर ले जाईये अमिता की शादी तक) "किले बिजु कै दिक्कत तो नहे न।(" क्यों बिजु कोई परेशानी तो नही है।) बिजु की ओर देखते हुए बंशीधर बोले। बिजु ने भी सिर हिलाकर अपनी सहमति  देदी। इस तरह चाय पीकर बंशीधर और उसकी श्रीमती से विदा ले, जयदत्त और बिजु चल दिये मौसी के घर।

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आज सुशीला को रह-रहकर बिजु की याद आ रही है ।कैसा होगा बिजु? खाना भी ढंग से खा पाता होगा या नही ? वंशीधर दा को वो भली भांति जानती है बहुत ही तेज है। दो चेहरे हैं उनके घर के अंदर कुछ और और बाहर समाज में कुछ और। बिजु ठहरा सीधा- सादा। किससे अपनी बात कह पाता होगा? अंदर ही अंदर घुटता होगा। यहाँ तो कम से कम उसकी ईजा थी ,दीदी के रूप में, मैं थी। वहाँ तो वो बिल्कुल ही अकेला। अकेलापन उसको कचोटता होगा। सोच रही थी कब से चिट्ठी लिखने की। चलों आज लिखती हूँ। ये सोचकर एक कागज में  पत्र लिखकर पास के ही लेटर बॉक्स में  डाल आई,बंशीधर के पते पर।

बिजु ,मौसाजी के साथ थोड़ी देर में पहुँच ही गया अपनी मौसी के घर ये सोचकर, चलों एक जेल से निकले दूसरे जेल और दूसरे से तीसरे।

बिजु को बचपन से हर घर, जेल सा लगता और घर के सदस्य घर में रहने वाले कठोर पहरेदार।

ये सच है कि बिजु विनीता से घुल-मिल गया था पर,विनीता पर वैसा विश्वास नही करता, जैसा वो अपनी सुशीला दीदी पर करता। मौसी के घर पहुंचेने पर  उसने मौसी के चरण-स्पर्श करें और मौसी ने उसे अपने छाती से लगा लिया। ईजा और दीदी के बाद आज उसे स्नेहमयी, कोई नजर आया, तो वो मौसी; पर बचपन से मिली उपेक्षा और यंत्रणा के कारण उसे मौसी के स्नेह में  भी छलावा सा नजर आ रहा था,जैसा उसे विनीता पर होता है।

अमिता विनीता ने भी उसका स्वागत मधुर मुस्कान से करा। बिजु के, घर आने से, विनीता अत्यधिक खुश थी।

बिजु मौसी के घर में शान्त ही रहता। अमिता की शादी की तैयारी में मौसाजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनको सहयोग करता। वो बहुत कम बोलता,कम खाता। एक दिन बिजु स्नान के बाद अपने कपड़े धोने लगा,तो मौसी ने देख लिया फट से बिजु के पास जाकर बिजु से कपड़ों को छीन, स्वयं धोने लगी और डॉटतें हुए बोली,"खबरदार अपनी मौसी के होते तू अपनें  कपड़ों को खुद  धोएगा तो"। अमिता और विनीता को बाहर बुलाकर कहा कि कल से तुम बिजु के कपड़े देख लेना मैले होने पर उसे धोने के लिए अन्य कपड़ों में शामिल कर लेना। "अरे जैसी अमिता,विनीता वैसे ही तू।" अमिता ,विनीता भी हँस कर बोली," अरे बिजु हद है। हम बहनों के होते तू कपड़े धोएगा।" अरे बस तू अपनी बहनों को अधिकार से आदेश दिया कर।" बिजु की आँखें छलक आई असल में आज बहुत दिनों बाद जो उसे इतना स्नेह मिला था,जिसे बिजु अपनी मोहक मुस्कान से चतुराई से छिपा गया; सभी लोगों से, सिवाय विनीता के।

अक्सर विनीता जब बिजु के कपड़े धोने के लिए लाने के लिए उसके कमरे में जाती तो वो आश्चर्य में पड़ा जाती विजयकांत शास्त्री के द्वारा लिखी गयी हर कहानी व उपन्यास की किताबों का संग्रह उसके पास होता कभी-कभी तो कागज पर लिखी हुई  कुछ आधी-अधूरी सी कहानी ,तो उसके अंदर मन के कोने पर बिजु के विजयकांत शास्त्री होंने का शक तो होता,पर वो ये सोचकर कि शायद उसे पढ़ने का शौक होगा और विजयकांत शास्त्री बनने का शौक पाले हुए शायद वह लिखने-पढ़ने का प्रयास करता होगा,उन किताबों को यथावत रख देतीं।

"अरे विनीता "!  मौसी ने पुकारा तो विनीता "हो ईजा"(हाँ माँ) कहते हुए रसोई मे आगयी। "   चैली !यो बिजु क कै जरा  घुमा ला कर आपण दागड़ कभ-कभार   ।" ( जा बिजु को कही घुमा लाया कर अपने साथ कभी-कभी  ) चैली यो बेचार घर में गुमशुम रुँ ।दुःखीऔर उदास। " जा जरा भैर जालों ,तो मन बहल जाल त्यार दागड़ थोड़ी घुलिमिली छुः नै।" ( ये बेचारा घर में गुमशुम रहता है।दुःखी और उदास रहता है तेरे साथ जरा बाहर जाएगा तो मन बहल जाएगा। तेरे साथ थोड़ा घुला-मिला है।) आज बिजु अपनें मौसाजी के साथ बाजार गया हुआ है,तब विनीता की माँ ने विनीता से विजय को घुमाने की बात कही।

मन ही मन में विनीता सोच ही रही थी कि कहाँ  जाया जाए , तभी उर्मिला की आवाज ने उसे चौंका दिया, "कैसी हे रे तू विनीता" ? "अरे उर्मिला आ।" विनीता आश्चर्य चकित हो, हँसते हुए बोली।

"ईजा प्रणाम ! बाबू कहाँ  हैं ? " उर्मिला ने पुछा

"वो तो बाजार गये हैं ,बिजु को साथ लेकर कुछ खरीददारी करनें।" विनीता की माँ ने कहा।

उर्मिला विनीता की माँ को ईजा और पिताजी को बाबू कहती है। उर्मिला  को अपने घर की अपेक्षा विनीता के घर में समय बिताना ज्यादा अच्छा  लगता है।

"बिजु आया हुआ है आजकल!" आश्चर्य व खुशी का मिश्रण चेहरे व आवाज में लाते हुए उर्मिला ने पुछा।

"हाँ  बाबूजी जाकर यहाँ लिवा लाए मौका भी था, अमिता की शादी का , सो कुछ बाबूजी की मदद कर देगा कहकर इसी बहाने वंशी दद्दा के वहाँ से घर ले आए"। विनीता रसोई में प्रवेश करते हुए विनीता बोली।

"ये ठीक करा आप लोगों ने,उस दिन उसका खाना देखकर मन दुःखी हो गया था हम लोगों का"। उर्मिला अचानक   कहने लगी ।

"अच्छा  हाँ विनीता मैं एक विशेष प्रयोजन से यहाँ आई हूँ, " अचानक उर्मिला बातों की दिशा बदलते हुए बोली। "कल हमारे घर में, मेरे जन्म दिवस पर पापा ने एक छोटा-सा कार्यक्रम का आयोजन करा है। तू और अमिता जरूर आना और सुन बिजु को भी लाना ना साथ में।" थोड़ा-सा शर्माते हुए उर्मिला बोली। उस समय उसके गालों की लाली देखने लायक थी।

" हाय! हम आएँ ना आएँ तेरे बिजु को जरूर भेज देंगे "।  अमिता हँस कर बोली।

उर्मिला इसके लिए तैयार नहीं थी। आज अमिता ने उनकी बातों पर जो आनन्द रस लिया, उससे शर्माते हुए उर्मिला ,"धत" कहते हुए तेजी से घर से बाहर निकल गयी।

14

मौसाजी और बिजु घर आ गये थें । दोनों के चेहरे को देखकर स्पष्ट लग रहा था कि आज दोनों ने दिनभर खूब भागदौड़ करी है।

"आ गये आप लोग",विनीता ने कहा ।

"हो च्यली " । ( हाँ बेटी)जयदत्त जी  मुस्कुराते हुए बोले।

"बिजु"  जयदत्त जी बोले।

"जी मौसाजी"। बिजु ने उत्तर दिया।

"जा बेटा खा-पीकर थोड़ा आराम कर ले। थक गया होगा सुबह से काम में ही लगा रहता है। जा बेटा आराम कर।" स्नेह से बिजु के सिर पर हाथ फेरते हुए मौसाजी  ने कहा।

आज पहली बार उसे किसी और से इतना स्नेह मिला था।

इस घर में  बिजु को वो सभी स्नेह मिलता है ,जो उसको आज तक नही मिला। वो तो हमेशा तिरस्कार और घृणा का प्रसाद ही ग्रहण किया करता आया है आजतक। बिजु 'जी' कहते हुए अपनें कमरे में चला गया।

" बड़ा ही सीधा  लड़का है" जयदत्त जी अपनी धर्मपत्नी से कहने लगें। "किसी से भी कुछ नही बोलता।  जितना बोलो उसका सिमित उत्तर देता है बस। नजरें नीची रहतीं हैं। इसकी आँखों में झाँकता हूँ तो ऐसा लगता है कि अनन्त पीड़ाएं को ना जाने कब से अपनें अंतर में छिपाए बैठा है।  मन खिन्न सो जाता है ,इसकी दशा देखकर।" जयदत्त जी रूआँसे हो बोले ही जा रहें थे।

विनीता की माँ अपनें आँसुओं को पोछते हुए कह रही थी," बड़ा ही अभागा है ये बिजु। इससे तो अच्छा होता कि  ये बचपन में ही मर जाता तब सबों के कलेजे में  ठंडक पहुँचती।"

"क्या ईजा! तू भी ऐसा क्यों कहती है। हम लोग हैं ना,ये हमारा वचन है ईजा आज से और अभी से, बिजु हमारी जिम्मेदारी।  हम चौबीसों घंटे इसके साथ रहेंगे। खुब प्यार देंगें; इसलिए ही तो यहाँ बुलाया है। इतना प्यार और अपनापन कि ये अपनी बचपन की सभी कड़वाहट भूल जाएगा।" विनीता और अमिता एक साथ कहने कहें जा रहीं थीं।

कमरे में बिजु ,दीदी का पत्र पढ़ रहा था । दीदी का पत्र पढ़ते हुए उसकी आँखों में  खुशी चमक रही थी। उसे ऐसा लग रहा है कि जैसे उसकी दीदी उसके पास बैठी उससे ढेर-सारी बातें कर रही है। पत्र के एक-एक शब्द में मानो दीदी ने अपने दिल की भावनाओं को बाहर निकाल कर रख दिया हो,मानों अपना कलेजा निकाल कर रख दिया हो। थोड़ी देर को ही सही बिजु अपने गाँव कोसी में  अपनी दीदी के पास चले गया ,स्मृतियों के पंख लगाकर।तभी अमिता व विनीता की आवाज उसके कानों  में गूँजी,

" बिजु "अमिता और विनीता दोनों ही बिजु के कमरे में  आते हुए बोली।

बिजु ने उनको कमरे में देखकर थोड़ा-सा चौंका ,"आओ बैढ़ा"।

फिर विनीता और अमिता, बिजु के साथ ढेर सारी बातें करने लगीं। बिजु जो अमूमन शान्त ही रहता, विनीता और अमिता से बातें करने में शुरू में  वो अनमना रहा था, पर उन दोनों की बातों  में ,जब  उसे आत्मियता नजर आई तो फिर उन दोनों से बात करना उसे अच्छा लग रहा था। अमिता और विनीता दोनों उससे विजयकांत शास्त्री की कहानियों के बारें में बातचीत कर रहें थें ,जिसमेँ बिजु को बहुत ही आनन्द आ रहा था। देर रात तक तीनों ढेर सारी बातें करतें रहें। कभी कॉलेज की,कभी बिजु के बचपन की,कभी विनीता के बचपन की। आज पहली बार बिजु खुल के बातें कर पा रहा था।

अचानक अमिता ने कहा, "चल विनीता! रात बहुत हो गयी।अब सोने चलतें है।"

विनीता ने भी सहमति में सर हिलाते हुए ,बिजु को कमरे में छोड़े बाहर जानें लगी। तभी अनायास उन दोनों को ध्यान आया कि असल बात तो कही नही।

तब विनीता ने पलटते हुए कहा," बिजु तेरे कल का कोई कार्यक्रम तो नही है ना।"

बिजु ने उत्तर दिया अभी तक तो नही है।"

तो कल कहीं  मत जाना मैं बाबु को भी बता दूंगी,कल हमारे साथ चलना है"। " विनी ता कहने लगी

परन्तु कहा"? बिजु ने पूछा ।

तब अमिता चंचल मुस्कान के साथ बोली," उर्मिला के घर।"

बिजु ने कहा," मैं क्या करूँगा वहाँ जाकर ,तुम लोग चले जाना"।

अमिता फिर बोली ," अरे बुद्धु! तूझे तो विशेष रुप से आमन्त्रण मिला है, कल उसका जन्म दिन है, तू नही जाएगा तो हम भी नही जाएँगी।"

बिजु ने अपनी स्वीकृति दे दी। विनीता और अमिता कमरे से बाहर सोने चलीं गयीं ।

15

सूबह सूरज सर पर चढ़ आया था। बाहर चिड़ियाओं के चहकने की आवाजें आ रही थी। विनीता और अमिता घर के सारे कामों से निवृत हो, नहा-धोकर उर्मिला के घर जानें की तैयारी कर रही है। विनीता बिजु के कमरे में गयी, चाय लेकर। कल देर से सोने के कारण सुबह नींद नहीं खुल पाई थी।

विनीता कमरे में आते ही बोली," बिजु ले चाय पी ले"। बिजु अचानक हड़बड़ाकर उठते हुए बोला," अरे बाप रे! आज देर हो गयी लगता है।"

विनीता हँसते हुए बोली ,"अरे ज्यादा देर नही हुई"। खिड़की का परदा हटाते हुए विनीता बोली," ये ले चाय पी।" विनीता भी अपनी चाय लेकर कमरे में आगयी, तभी अमिता भी चाय लेकर कमरे में आगयी। तीनों एक साथ चाय पी रहें थें  और गपशप भी कर रहें थें।

चाय पीने के बाद विनीता बोली," चल बिजु तू नहा-धोकर तैयार हो।" बिजु ने उत्तर दिया" ठीक है; मैं कमरा ठीक कर देता हूँ ।"

विनीता बोली," तू नहाने जा ,हम कर लेते है तेरा कमरा ठीक,और अपनी बहनों के होते,तू कोई काम नही करेगा समझा"।

बिजु हँसता हुआ  नहाने को चला गया। आज विनीता के घर में सभी ने बिजु के चेहरें में पहली बार वास्तविक मुस्कान देखी थी। कितना मोहक चेहरा है इसका। बडी सी गहरी आँखे,होठों पर मोहक मुस्कान सॉवला रंग। बिल्कुल कृष्ण सा आकर्षण है इसमें। काश भाग्य भी अच्छा होता बिजु की मौसी अपनी आँखों से छलकते आँसुओं को पोछते हुए बोली जा रही थी।

बिजु, कुर्ता- पैजामा पहनकर तैयार हो बोला," विन्नी मैं तैयार हूँ ; देख ठीक है ना।" बिजु अक्सर कुर्ता-पैजामा ही पहनता।  बिजु को विन्नी कहता देख विनीता को आज पहली बार अपने पर गर्व हो रहा था, क्योंकि विन्नी नाम से उसे, बिजु से पहले और किसी ने नही पुकारा था। ये अपनापन और विनीता के प्रति।

विनीता बोली," बिजु ये कपड़े बदल, कल मैं तेरे लिए नये कपड़े लाई हूँ  वह पहन जाकर कमरे में  देख।"

विनीता बिजु को आदेश दे रही थी और बिजु विनीता के आदेश को टाल नही पा रहा था । थोड़ी देर बाद बिजु कमरे से बाहर आया ,तो किसी हीरो से कम नही लग रहा था। तीनों तैयार हो चल दिए उर्मिला के घर।

आज बिजु की मौसी के चेहरे पर संतोष था। काफी दिनों बाद बिजु का हँसना,विनीता को विन्नी कहना। जयदत्त और उनकी श्रीमती जी को अंदर तक आनन्द प्रदान कर रहा था।

16

उर्मिला के घर में आज रौनक छायी हुई है घर दुल्हन की तरह सजा हुआ है बड़े-बड़े अधिकारी ,गणमान्य जन,नेताऔर मंत्री सभी उपस्थित हैं । थोड़ी  देर के लिए  मुख्यमंत्री भी आने वाले हैं ।

लक्ष्मेश्वर से लेकर पाण्डेयखोला तक की भव्यता की, जिनकी तारीफ की जाए वो भी कम।

विनीता  लोगों को भी मकान ढूंढने में किसी प्रकार की कोई परेशानी नही हुई।  विनीता भी आज उर्मिला की भव्यता को देखकर आश्चर्यचकित हो रही है। उसे तो उर्मिला के विषय में ये अनुमान भी नही लगाया था। उर्मिला के घर की भव्यता को देखकर,विनीता मन ही मन लजा रही है।

मुख्य द्वार पर ही रावत साहब से उनका सामना हुआ," आओ विनीता बिटिया ,आज पहली बार इस  घर में आगमन पर स्वागत है।" मुस्कुराते हुए रावत जी बोले। विनीता ने उनको नमस्कार करते हुए जैसे ही बिजु और अमिता का परिचय कराना चाहा।

"ये अमिता और ये  विजयकांत! क्यों ठीक पहचाना  ना" रावत  जी बोले।

" जी अंकल।"  विनीता ने आश्चर्य के भाव चेहरे में  लाते हुए उत्तर  दिया,जिसे रावत जी ने भांप लिया और

जोर से हँसते हुए बोल पड़े ," तुम लोग भी तो मेरे लिए मेरी उर्मिला जैसे ही हो; सो नो अंकल, बाबु ओनली ओके! "

"जी बाबु जी " विनीता ने हँसते सुए उत्तर  दिया।रावत जी के साथ  विनीता ,अमिता और बिजु भी हँस दिये।

तब तक उर्मिला भी बाहर आ गयी और तीनों को अपने साथ घर के भीतर अपने कक्ष में  ले गयी ; हालांकि बिजु बाहर ही रूक गया ,परन्तु उर्मिला उसको भी अपने साथ भीतर ले गयी अपने कक्ष में।

अमिता, विनीता और उर्मिला तीनों बातचीत में संलग्न है व बिजु,चुपचाप उनकी बातों को सुन रहा है। आज तो वार्ता का विषय ही बिजु है। अरे भाई! मेरा तात्पर्य विजयकांत शास्त्री है। जब पूरे अल्मोड़ा में चर्चा जोरों पर है तो फिर ये तीनों अछूते कैसें  रह सकतें है।

अचानक विनीता कहने लगी," इस बिजु के पास तो पूरा संकलन है विजयकांत शास्त्री का। लगता है ये भी प्रशंसक है विजयकांत शास्त्री का। क्यों  रे बिजु।"

बिजु मुस्कुराभर दिया। उर्मिला कहने लगी हो भी क्यो ना लेखक भी विजयकांत और बिजु भी विजयकांत।" अमिता ने कहाँ चूकना हुआ आँखों को मटकाते हुए बोली " तभी उर्मिला को बिजु से,,,,,,! है ना उर्मिला।"

"धत्त"! कहकर उर्मिला शरमातें हुए बिजु को तिरछी नजर से देख रही थी; पर बिजु तो मानों जड़वत हो, अपनें ही विचारों में खोया हुआ था।

बिजु का उसको उपेक्षा करना उर्मिला को रत्तीभर ना सुहाता; शायद यही कारण है कि उर्मिला उसकी ओर खीची-सी चली जा रही थी। जिसको बिजु को छोड़ कर विनीता और अमिता भली- भाँति समझ रहीं थीं ।

17

बाहर सभी मेहमान आ चूकें हैं। मुख्यमंत्री के आगमन से घर में चहल-पहल और बढ़ गयी है उर्मिला को बुलाने के लिए सती  जो उनका नौकर है,कमरे के बाहर से पुकारता हुआ बोला," बिटिया रानी आपको साहब बाहर अतिथि-कक्ष में बुला रहें  है। उर्मिला सहित तीनों बाहर अतिथि-कक्ष में आ गयें। अतिथि-कक्ष की शोभा तो देखने ही लायक थी। खास मेहमान अतिथि-कक्ष में हैं बाकी मेहमानों के लिए बाहर लॉन में भोजन की व्यवस्था है। हर प्रकार के व्यंजन का प्रबंध किया गया है। ऐसा कोई भी व्यंजन नही है जो इस पार्टी में नही हो; लग नही रहा है कि ये जन्म दिवस की पार्टी है,इस पार्टी को देखकर लग रहा है मानो महाभोज का आयोजन हो।

अतिथि-कक्ष की भव्यता अपने आप में ही बहुत कुछ बयान कर रहें  थे। थोड़ी देर बैठकर मुख्यमंत्री उर्मिला को शुभकामनाएं देकर एवं थोड़ा-बहुत भोजन कर, अपनें लावा-लश्कर के साथ वापस चलें गये। पार्टी देर रात तक चल रही है। आधी रात होने को आ गयी है। पार्टी अभी भी चल ही रही है। आधी रात के बाद धीरे-धीरे सभी मेहमान खा-पीकर अपने घरों को प्रस्थान कर रहें  हैं। कुछ मेहमान तो अपनी सुध-बुध खोकर लड़खड़ाते हुए अपनी-अपनी गाड़ियो की ओर प्रस्थान कर रहें  है। विनीता, अमिता और बिजु आज उर्मिला के घर पर ही रूक गयें है रातभर चारों के मध्य बातचीत का दौर चल रहा है।

सूबह होते ही विनीता,अमिता और बिजु भी अपने घर जाने की तैयारी कर रहें है। रावत जी भी सुबह उठकर बाहर आ गये। विनीता, अमिता और बिजु घर को प्रस्थान कर रहें हैं। रावत जी ने उन्हें चाय पीने को कहकर उनके साथ बातचीत करने लग गये हैं। थोड़ी देर में चाय भी आगयी। उर्मिला सहित सभी लोग चाय पीने लगें। आज उर्मिला और रावत साहब ना जाने कितने दिनों बाद एक साथ बैठकर चाय पी रहें हैं ; उससे पहले दोनों ने कब एक साथ चाय पी थी, ये ना तो उर्मिला को याद है और ना ही रावत साहब को। फिर रावत जी अपनी कार लेकर उन लोगों को जाखनदेवी तक छोड़कर बाजार चलें गये और विनीता लोग अपने घर।

घर पहुँचकर विनीता ने सोचा चलो समाचार-पत्र ही देख लिया जाए। एक समाचार से तो विनीता की आँखों में चमक आ गयी। खबर थी महाविद्यालय में  परसों होने वाले वार्षिकोत्सव कार्यक्रम में  मुख्य अतिथि के रूप में  विजयकांत शास्त्री जी का आगमन, उनके आगमन पर स्वागत हेतू प्रदेश के मुख्यमंत्री स्वयं उपस्थित होंगे। ये खबर विनीता ने पूरे घर को सुना दी।

18

दोपहर के समय, बंशीधर सपत्नीक, जयदत्त जी के घर आते हुए बोले,"पैलाग हो मौसाज्यू!"(प्रणाम मौसाजी)दोनों ने मौसाजी के चरण-स्पर्श किये।

" ओ हो! आ हो बंशीया! बैठ, हिट भीतेर हीटनु ,भीतर ही बैठून,आ आ हो ब्वारी "।( अरे! आ रे बंशी! बैठ ( क्योंकि जयदत्त जी बाहर आँगन में धूप बैठकर अखबार पढ़ने रहें थें। अचानक उन्हें ध्यान आया तो फिर बोले चल अंदर चलकर बैठते हैं, आजा बहू तू भी आ।)

अंदर प्रवेश करतें ही जयदत्त जी कहने लगे," अरे ओ विनीता क ईजा! काँ छी तू? देख धॆ कौ अरो घर मा आज। विनीता, अमिता ओ बिजु देखों य बंशी अरो दूल्हैणी क दगाड़"( अरे ओ विनीता की माँ ! कहाँ है तू? देख तो कौन आया है घर में आज। विनीता,अमिता, बिजु देख तो बाहर बंशी अपनी पत्नी के साथ आया है।)

सभी लोग बाहर बैठक के कमरे में आकर एक-दूसरे से औपचारिक मुलाकात कर बातचीत में लग गये। "आज रविवार छू, तुमर ब्वारी जिद करण लागरे छी, आज मौसी क घर हुआनु,के काम काज होली पूछ ले उनु।"(आज रविवार हुआ तो आपकी बहु कहने लगी, चलो! बहुत दिन हो गये हैं  मौसी के घर हो आते हैं, शादी भी नजदीक ही है ,तो कुछ काम हो तो पूछ आतें हैं।) बंशीधर बोला।

"भल करों , ये बहान ल सही घर तो आछा"( अच्छा करा इसी बहाने से घर तो आए।) मौसी ने हल्का-सा कटाक्ष करते हुए कहा।

" अरे बिजु यार त्यार चिट्ठी अरे"।( अरे यार बिजु तेरी चिट्ठी आई है।) चिट्ठी निकलते हुए वंशीधर ने कहा। " त्यार कॉलेज बेटी मेरी लिजी सपरिवार निमन्त्रण आ रो छ, घर में ले सबने क  निमन्त्रण भेज रखो और उँण-जाण क लिजी कार भेज रखो बौज्यू क सहित परिवार क लोगन हैरान हरेई"। वंशीधर  खबर सुनाते हुए बिजु से कहने लगें।( अरे बिजु तेरे कॉलेज से मेरे लिए निमन्त्रण पत्र आया है घर में  परिवार के लोगों को निमंत्रण पत्र के साथ लाने व घर छोड़ने हेतु कार का प्रबंध कर रखा है ,कॉलेज प्रशासन की ओर से । घर में बाबु सहित सब हैरान हो रहें हैं।)  इस तरह अपनी बात पूरी कर वंशीधर सपत्नीक विदा हो गये।

19

बिजु पत्र लिए  अपने कमरे में चला गया। पत्र उसकी सुशीला दीदी का है।  पत्र  पढ़ते हुए बिजु की आँखें भर आई है, तभी अमिता और विनीता दोनों ही उसके पास आ गयी," किसका पत्र है बिजु "? दोनों ने एक साथ पूछा।बिजु बोला ," सुशीला दीदी का। " बिजु कहने लगा ये मेरे पड़ोस में  रहती है , ईजा के अलावा ये ही है जिसने मेरा ख्याल रखा है,अभी तक।  ये कहकर बिजु थोड़ा उदास हो गया। विनीता और अमिता बिजु को उदास देखकर थोड़ी-सी उदास हुईं,फिर एकदम से बात की दिशा बदलते हुए कॉलेज मे विजयकांत शास्त्री के आगमन  की चर्चा शुरू कर दी।

सुबह- सुबह विनीता बिजु के कमरे में, अपनी  एवं बिजु की चाय लेकर आई तो बिजु आज उठा नहीं था। विनीता को थोड़ा आश्चर्य हुआ,अमूमन तो बिजु इस समय उठकर या तो कुछ लिखने में व्यस्त रहता है या फिर पढ़ने में, यदाकदा ही ऐसा होता है जब बिजु देर से उठे; वो भी तब जब वह देर रात को सोया हो तो,परन्तु कल तो वह समय से सो गया था,फिर आज उसके न उठने का कोई विशेष कारण ही होगा। इस चिन्ता से विनीता ने बिजु को उठाने के प्रयोजन से उसे स्पर्श किया तो बिजु का शरीर भयंकर ताप से उबल रहा था। विनीता ने तत्काल बिजु का  तापमान लिया तो बिजु को ज्वर था। विनीता ने अपने हाथ से पहले बिजु को उठाकर स्वयं से चाय पिलाने लगी। चाय पीने से बिजु को थोड़ा सा आराम मिला। "अमिता" विनीता ने पुकारा तो अमिता कमरे में आते हुए बोली ,"क्या है विनीता"?

"ये बिजु को बुखार लग रहा है"; जरा तुलसी की चाय बना ला तो"! विनीता ने फिर कहा

तब तक जयदत्त जी और उनकी श्रीमतीजी भी घबरा हुए कमरे में  आ गये। " क्या हुआ बिजु को "? दोनों ने बिजु के सिर  को छूते हुए कहा,"अरे इसे तो बहुत बुखार है।" बिजु की मौसी घबराये हुए बोली। तब तक अमिता भी तुलसी व अदरक वाली चाय ले आई और साथ में बुखार उतारने के लिए पीसीएम ले आई। दवाई खाकर व चाय पीकर बिजु फिर लेट गया। करीब एक घंटे के पश्चात बिजु का बुखार उतर गया।

अब तक विनीता और अमिता तैयार होकर बिजु के पास आकर बोली," कैसा है रे बिजु"।

"अरे विन्नी,अमु मुझे क्या हुआ देखो बिल्कुल ठीक हूँ ।"बिजु ण

हँसते हुए बोला।

"चल तैयार हो"। अमिता बोली

"क्यों आज भी उर्मिला के घर जाना है क्या अमु?" फिर बिजु मजाक करने लगा।

"क्यों उसकी याद आ रही है उसकी"? अमिता हँस कर कहने लगी।

"किसकी याद आ रही है और किसको", तभी दरवाजे पर खड़ी उर्मिला बोली।

"अरे आ उर्मिला सही समय पर आगयी" अमिता कह रही थी और बिजु उसको इशारा कर चुप रहने को कह रहा था ,उर्मिला  देखकर हँसने लगी।

"अरे कुछ नही अभी बिजु,,,! " अमिता की बात पूरी नही हुई कि बिजु कहने लगा," अमिता पानी ले आ तो"। अमिता तू उर्मिला से बात कर मैं ले आती हूँ पानी"। विनीता बिजु को चिढ़ाने के अंदाज मे बोलते हुए पानी लेने चली गयी। बिजु के हतप्रभ चेहरे को देख उर्मिला भी चटकारे लेते हुए बोली," अमिता तू कुछ कह रही थी , बात पूरी करना ।' उर्मिला तिरछी नजर से बिजु को देखते हुए बोली। "क्या बताऊँ कि ये बिजु ,अमिता बिजु को देख कर ना बताने का इशारा कर रहा था। "अरे बता ना"। उर्मिला फिर शरारती अंदाज में मुस्कुराते हुए बोली। क्योंकि वो समझ चुकी थी कि बिजु की चर्चा में वो भी शामिल थी। "बिजु तेरे को याद कर रहा ना"। अमिता ने तेजी से कहा और बिजु से कुछ कहते नही बन पा रहा था।

तभी विनीता पानी ले आई ," ले बिजु पानी पी ले"।

बिजु मौन था पर उर्मिला आँखे मटकाते हुए बोली," सच में बिजु"। तभी विनीता,बिजु से बोली ,"अरे तू तैयार हो जल्दी; डॉक्टर के पास चलना है।

"क्या हुआ बिजु को?" उर्मिला ने पुछा।

"सुबह से बुखार है ना डॉक्टर के पास ले जा रहें हैं।" विनीता बोली।

" चलो! चलते हैं ; अच्छा हुआ आज मैं कार लाई हूँ।" ये कहते हुए उर्मिला ने बिजु के साथ को अपने हाथ में ले,उसका बुखार देखने लगी।

तीनों को लेकर उर्मिला कार से डॉक्टर के पास चले गये।

20

दो दिन के बाद आज बिजु अपने आप को अच्छा महसूस कर रहा था। उर्मिला भी घर से सीधे विनीता के घर बिजु को देखने आ गयी।  "कैसे हो बीजु", उर्मिला ने पूछा, तो बिजु ने उत्तर दिया आज स्वयं को अच्छा अनुभव कर रहा हूँ । बिजु का माथा छुते हुए उर्मिला बोली," हाँ आज बेहतर हो ।"

तभी विनीता पीछे से आकर बोली," ओ हो अभी से बिजु का इतना ध्यान।" विनीता शरारत से मुस्कुराने लगी।

दोनों  ही झेंप  गयें । इस तरह से धीरे-धीरे बिजु और उर्मिला की नजदीकियाँ भी बढ़ने लगीं, जिसमें आग में घी डालने का काम ,अमिता और विनीता बीच-बीच में कर रहीं थीं।हालांकि किसी उद्देश्य से प्रभावित होकर नहीं, केवल उपहास करने के दृष्टिकोण से ।

21

कॉलेज परिसर में आज चहल-पहल है। पूरा कॉलेज प्राँगण आज विजयकांत शास्त्री के आगमन पर दुल्हन की तरह सजा हुआ है। छात्र- छात्राओं का आना शुरू हो गया है। कॉलेज का सभी स्टाफ सुबह से आकर वार्षिकोत्सव की तैयारी में लगा हुआ है।

विनीता आज सपरिवार  कॉलेज परिसर में पहुँच चुकी है। उर्मिला अपनें पापा के साथ कॉलेज प्राँगड़ मे आ चुकी हैं। विनीता व उर्मिला अपने-अपने परिवार का परिचय एक-दूसरे से करा रहें  है। सभी लोग सभागार मे आ चुके हैं। बस अब प्रतीक्षा है विजयकांत शास्त्री और मुख्यमंत्री का। बिजु व उसका परिवार भी विनीता व उसके परिवार के पास आकर बैठ गया ,बिजु के परिवार के साथ थीं सुशीला दीदी एवं वो अध्यापिका,जिसने बिजु को ,विजयकांत  बनाया।

तभी सामने के मुख्य द्वार से मुख्यमंत्री के साथ प्रधानाचार्य मंच पर पदार्पण कर रहे हैं; परन्तु साथ में विजयकांत शास्त्री नहीं दिखाई दे रहे हैं। सभी की आँखें टकटकी लगाये मुख्यद्वार पर स्थिर हैं। वार्षिकोत्सव कार्यक्रम के संबध में औपचारिक घोषणा करने के पश्चात मंच को प्राचार्य महोदय को हस्तांतरित कर दिया गया। मंच संचालन करते हुए प्राचार्य महोदय सभागार को संबोधित करते हुए बोले," मैं आप सभी लोगों के अंतर पर चल रहे द्वंद्व को भलीभांति समझ रहा हूँ ,विजयकांत शास्त्री जी यही पर हैं, इस सभा में आप लोगों के मध्य और आप लोगों के साथ । इससे पहले कि मैं उन्हें मंच पर आमन्त्रित करूँ; इससे पहले मैं एक-एक कर उन सभी गणमान्यों को मंच पर आमन्त्रित करना चाहूंगा, जो श्रीमान विजयकांत शास्त्री के साथ, उनके सफर में कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ चलें; इनमें सबसे पहले मैं, वो नाम लेना चाहूँगा जिन्होंने विजयकांत शास्त्री के अंदर की प्रतिभा को पहचान, उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।और वो हैं!सुशीला जी! जिन्हें विजयकांत शास्त्री स्नेह से 'दीदी' कहतें है। आज मैं भी आप को दीदी कहकर मंच पर आमन्त्रित करना चाहूंगा एवं चाहूँगा कि आप ही विजयकांत शास्त्री के बारे में कुछ कहें। तब दीदी ने कहना आरंभ किया। विजयकांत शास्त्री, जिनकी मैंने एक-एक रचनाओं को गहराई से पढ़ाई है। कौन है ये विजयकांत शास्त्री, आपकी और हमारी तरह, एक छोटे से गांव, 'कोसी' से निकला है, विजयकांत त्रिपाठी। हम सबका बिजु आखिर क्यों विजयकांत त्रिपाठी को अपनी वास्तविक पहचान छिपानी पड़ी, ये आपके लिए और हमारे लिए गंभीर चिन्ता का विषय है। उत्तराखंड में विजयकांत त्रिपाठी जैसी कितनी ही प्रतिभाएँ है,पर दुर्भाग्यवश उन्हें हतोत्साहित कर दिया जाता है; अपनों के ही द्वारा। आपके मध्य बैठे हुए उस विजयकांत त्रिपाठी को आप नहीं पहचान पाएं है, जिन्हें आज पूरा विश्व विजयकांत शास्त्री के नाम से जानता है। ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है आप के लिए और हमारे लिए। मुझे आज भी याद है जब पहली बार विजयकांत की तस्वीर व कहानी एक पत्रिका में छपी तो उसको प्रोत्साहन के स्थान पर उसके ही सामने उस पत्रिका को अग्नि के हवाले कर दिया ,अपितु इस कार्य के लिए उसे इनाम के स्थान पर मार ! उपहार में मिली। तब भला कैसे विजयकांत त्रिपाठी बाहर आएँगे। कुछ लोग आज उत्तरदायी है ,इस बात के लिए कि इन्होंने बिजु को विजयकांत त्रिपाठी से विजयकांत शास्त्री बने को विवश किया। एक बात और मैं  विजयकांत त्रिपाठी के बगल में बैठी उसकी बहन विनीता से भी पूछना चाहती हूं कि क्या आप विजयकांत शास्त्री को जानती हैं? विनीता ने नहीं में उत्तर  देते हुए जिज्ञासा व्यक्त करते हुए पूछा," ये प्रश्न आपने मेरे से क्योँ पूछा"। अब मैं आगे और क्या कहूँ ।दीदी ने अपनी बात समाप्त कर दी। विनीता का प्रश्न,प्रश्न ही बनकर रह गया। प्राचार्य महोदय ने सुशीला की अध्यापिका को मंच पर बुलाया। अध्यापिका महोदया ने भी सभा को संबोधित करते हुए कहा," विजयकांत शास्त्री की कहानी को मैंने पढ़ा भी है और समझा भी; बहुत कुछ कहती है प्रिय सुशीला से मैं आज ये अपेक्षा कर रही थी कि वो अभी और इसी समय विजयकांत शास्त्री से मेरा साक्षात्कार कराए पर शायद अभी क्षणिक प्रतीक्षा करनी होगी शायद।चलिए थोड़ी देर और सही"। ये कहकर अध्यापिका महोदया ने अपनी बात को विराम दिया। मंच को अपने हाथ में लेते हुए प्राचार्य महोदय बोले अब मेरे एक विशेष मित्र, विजयकांत शास्त्री से आपको परिचित कराएंगे। अब! मैं अनुरोध करूँगा उस खास व्यक्ति का जो विजयकांत शास्त्री का परिचय आपसे कराएं। तभी प्रकाशक महोदय मंच पर आते हुए बोले कि मैं प्राचार्य महोदय से अनुरोध करूँगा कि मुख्यमंत्री महोदय के साथ विजयकांत त्रिपाठी को मंच पर लाए। तभी प्राचार्य और मुख्यमंत्री महोदय मंच से उतरकर बिजु के परिवार के समीप आकर बिजु का श्रद्धा से अभिनंदन कर, उसका हाथ थामकर मंच की ओर ले जाने लगें। विनीता अमिता,उर्मिला, जयदत्त जी उनकी श्रीमती जी वंशीधर व उनकी श्रीमती जी दीनानाथ त्रिपाठी उनकी पत्नी सहित सभी लोग हतप्रभ थें। जिसे वह एक सीधा-सादा बिजु समझ रहें थे; यही विश्व प्रसिद्ध लेखक 'विजयकांत शास्त्री' यानि विजयकांत त्रिपाठी हैं । मंच पर आकर विजयकांत त्रिपाठी ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री, जो स्वयं विजयकांत शास्त्री के प्रशंसक रहे हैं, ये जानकर हतप्रभ थें कि विजयकांत त्रिपाठी ,हमारे ही राज्य से है। उन्होंने अपने समापन भाषण में इस दर्द का उल्लेख भी किया।

बिजु मंच में उपस्थित था,विजयकांत शास्त्री के रूप में, अंत में मंच बिजु अर्थात विजयकांत शास्त्री को देते हुए प्राचार्य महोदय ने बिजु से दो शब्द कहने का अनुरोध किया तो पूरा कार्यक्रम स्थल बिजु को सुनने के लिए उत्सुक हो गया। बिजु के होंठों से निकल रहें एक-एक शब्दों में बिजु की विद्वता, उसके भाव एवं  उसकी पीड़ा झलक रही थी। बिजु के भाषण के समापन पर पूरा सभागार बिजु की जय-जय कार करने लगा था। विजयकांत शास्त्री की जय। विजयकांत शास्त्री की जय। मुख्यमंत्री महोदय ने मंच को संबोधित करते हुए कहा विजयकांत शास्त्री नही विजयकांत त्रिपाठी की जय।

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अचानक, कार झटके से रूक गयी, जिससे विनीता सहित,कार में बैठी अन्य युवतियां, वापस आ गयीं, दोगाँव से दो किलोमीटर आगे एक सड़क पर कार के अंदर, अतीत के पथ पर। असल में जैसे ही विनीता लोगों की कार दो गाँव से आगे दो किलोमीटर दूर निकली ही थी कि अचानक एक बड़ा-सा पत्थर,कार से किलोमीटर दूर आकर सड़क के बीचो-बीच गिरा,ये तो चालक की सतर्कता थी कि उसने फुर्ती से कार रोक ली और एक बड़ी दुर्घटना विनीता लोगों के साथ घटित होने से रूक गयी।  चालक नै कार को पीछे कि ओर कर लिया,चालक  पहाड़ के वातावरण व मौसम से भली-भाँति परिचित था। थोड़ी ही देर में पहाड़ से एक बहुत बड़ा मलवा सड़क पर बीचों-बीच आकर गिर गया और सड़क अनिश्चित काल के लिए बाधित हो गयी।

इस तरह विजयकांत की कहानी भी थोड़ी देर के लिए बाधित हो गयी थी,परन्तु सभी युवतियों के अंतर में एक प्रश्न अभी भी कौंध रहा था कि जब सब कुछ सही हो गया था तो फिर विजयकांत के पागल होने के पीछे क्या कारण था, उर्मिला और विजयकांत की कहानी क्या आगे बढ़ पायी उसका परिणाम क्या रहा ,कैसे उर्मिला उत्तरदायी  थी विजयकांत के पागल होने के पीछे। सभी इस प्रश्न को जानना चाहतें थें! शायद आप भी।

कार सड़क के किनारे रूक गयी थी। आगे जाने कि तो मतलब ही नही। तभी सुधा,जिसको बिजु से सहानुभूति  होने लगी थी। हालांकि सहानुभूति तो और युवतियों को भी हो रही थी पर ,सुधा की सहानुभूति का एक रूप मन ही मन उसके प्रति उमड़ता प्रेम था। सुधा अपने आप को रोकना तो चाह रही थी पर रोक नही पा रही थी ,सो पूछ ही लिया," विनीता उसके बाद क्या हुआ?", विनीता जो सड़क पर घटी उस घटना से विचलित होगयी थी वापस चली गयी अतीत के पथ से होते हुए कॉलेज।

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सभी स्तब्ध थें कि बिजु ही विजयकांत शास्त्री है। ताउजी यानी दीनानाथ त्रिपाठी जी आज शर्म से धरती पर गढ़े जा रहें थें, ताईजी का सीना आज गर्व से फूला नही समा रहा था। अपनें बेटे को मंच में इस तरह सम्मानित होता देख। सबसे ज्यादा स्तब्ध व दुःखी अगर कोई थे तो वो अमिता और विनीता। रह-रहकर सुशीला दीदी का प्रश्न विनीता को चुभे  जा रहा था। पूरा कॉलेज विजयकांत त्रिपाठी की जय कार के उदघोष से गुंज रहा था। उर्मिला की स्थिति प्रसन्नता व आश्चर्य से परिपूर्ण थी। विनीता जो बिजु के इतना बड़ा आदमी होंने से प्रसन्न तो बहुत थी,पर उसे आज अपने ताईजी व उसके परिवार के सभी सदस्यों से घृणा-सी महसूस हो रही थी और हो भी क्यों  ना ? उनके ही कठोर व्यवहार ने बिजु के व्यक्तित्व को इतना दबा दिया कि उसकी हर उपलब्धि में एकमात्र वही खुश होता था।  हम विजयकांत शास्त्री को तलाश रहें थें और वो हमारेे घर में, मेरा ही छोटा भाई । छि:! धिक्कार है! मुझको कि मैं उसे इतना भी विश्वास नही दिला पाई। आज विनीता को रह-रहकर अपने पर गुस्सा और सुशीला दीदी पर ईर्ष्या हो रही थी।

"अरे ओ विन्नी कहाँ खो गयी"? बिजु उसके पास आकर बोला। अरे कार्यक्रम का समापन भी हो गया और सब बाहर चले गयें और तू यही पर है ।

विनीता की आँखों में आँसू भर आएं थे बिजु को अपने गले से लगाते हुए रोयें जा रही थी।" मेरा बिजु इतना बड़ा आदमी है",कितना दुःख था तेरे अंतर में? इतना भय था तेरे अंदर कि तू अपनों से अपनी  खुशी भी साझा ना कर सका।" विनीता रोए जा रही थी और बोले जा रही थी;" पर अब कसम खा अपने इस बहन की कि तू मुझसे अब कुछ नही नही छिपाएगा"।

"तेरी कसम विन्नी अब मैं तुझसे कुछ भी नही छिपाऊँगा। ना खुशी बातें  ना ही दुःख की बातें । मुझे तो तूने ही यहाँ बुलाया था ना अमिता की शादी तो एक बहाना था। इतनी प्यारी बहन हो जिसकी उससे कोई भाई कुछ छिपा भी कहाँ सकता है। अरे मैं दुनिया के लिए विजयकांत शास्त्री रहा हूँ। अब विजयकांत त्रिपाठी शास्त्री बन भी जाऊं, तेरा तो बिजु ही रहूँगा और अमिता के लिए भी। दोनो भाई-बहन एक-दूसरे से लिपटकर रोए जा रहें थें। तब तक सभी लोग उनके पास आ गयें। "अरे राम-भरत चलना नही है क्या"? अमिता ने रोते हुए कहा और सभी हँस दिये। बाहर आकर सभी लोग बिजु को घेरकर उससे बातचीत करने लग गयें करीब दो घंटे बाद सभी लोगों से मिलकर बिजु परिवार सहित,जैसे ही घर को जानें लगें  तभी प्राचार्य महोदय विजयकांत के पास आकर  सम्मान देते हुए बोलें, "श्रीमान विजयकांत जी ऐसे थोड़ा ही जाने देंगे"। "अरे सर !आप तो मुझे शर्मिन्दा कर रहें है आपके लिए तो मैं सिर्फ विजयकांत ही रहूँगा"। " अरे मैं तो दिल्ली गया था ,विजयकांत शास्त्री जी को निमंत्रित करने के लिए, क्योंकि जो प्रकाशक आपकी किताबें प्रकाशित करतें हैं, वो मेरे अभिन्न मित्र भी हैं,इसलिए मैने सोचा ,चलो एक पंथ दो काज उनसे विजयकांत शास्त्री जी के विषय में भी जानकारी ले लूँगा, मित्र के माध्यम से ही उन्हें आमन्त्रित भी कर कर आऊंगा और मित्र से मुलाकात भी कर आऊंगा, तो वहां  पता चला कि आप तो हमारे ही महाविद्यालय के एक छात्र हैं। मेरे लिए तो ये चिराग तले अंधेरा वाली चरितार्थ वाली बात हो गयी। उनसे ही आपकी कहानी का भी पता चला। मैंने दिल्ली से ही इस विषय में मुख्यमंत्री से बातचीत कर इस कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करी; जिससे बिजु को विजयकांत शास्त्री से विजयकांत त्रिपाठी के रूप में वापस लाया जाए"।

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आज विनीता लोगों के घर में आने-जानें वाले लोगों का ताँता लगा रहता है। लोग-बाग काम पूछने को आने लगें हैं,कोई दो रुपये के बताने कागज की थैली में ला रहें  हैं, कोई लोटे में गरम दूध ला हरेक हैं, कोई मूँगफली ही ले आए मतलब कुछ ना कुछ लेकर काम पूछने लोग आ-जा रहें हैं। जबसे बिजु की प्रसिद्धि अल्मोड़ा में भी फैल गयी बिजु के भाई-भौजाई रोज काम पूछने के बहाने बिजु से मिलने किसी नि किसी के साथ आ ही जातें  हैं। अमिता की शादी  के दिन  जैसे-जैसे नजदीक आ रहें थें, वैसे-वैसे उनके घर में रौनक भी बढ़ने लगी थी। ज्यादातर लोग तो बिजु से मिलने आतें।

आज घर में गणेश-पूजा एवं सुआल पथाई का कार्यक्रम है। सुबह से ही घर की महिलाएं ,सुआंले बनाने में लगी हुई है।कोई तिल भींगा कर छत में सुखाने लगीं हैं,कोई  आटा गूँथ कर समधी-समध्योल बना रही हैं, उर्मिला ने तीन दिन पहले से ही घर में डेरा जमा रखा है। आज वो भी अमिता, विनीता के साथ काम में व्यस्त है।

रावत साहब जो बिजु के सम्मान में कसीदे पढ़ते रहते हैं ,बिजु से मिलने के लिए व काम निभाने के बहाने हर रोज सुबह-शाम पहुँच जाते। उन्होंने अपने समस्त संसाधनों को विनीता के घर में ,लगा रखा है ,जिससे विनीता व उनके परिवार का काम सहज हो सके।

बिजु मौसाजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर रात-दिन अमिता की शादी की तैयारी में व्यस्त है। यद्यपि अब पहले वाली बात नही है बिजु की,बिजु का सम्मान अब इतना बड़ा चुका है कि वह मौसाजी के साथ जिस दुकान पर जाता, दुकानदार सम्मान में पलकें बिछा देतें,दुकान में स्थित अन्य लोग बिजु से मिलने को आतुर रहतें। बाजार में बिजु का स्वागत महानायक के समान होता। इन सब में मौसाजी फूले ना समाते। घर आकर पूरे घटनाक्रम को विस्तार से सभी को बतलाते फिरतें।

सुआल पथाई  के लिए सभी महिलाएं रंग्याली-पिछौड़ा ओड़े हुई हैं, सभी महिलाएं समधी-समंध्योल बना रहीं हैं और अमिता को चिढ़ा भी रहीं है। घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाएं,जो अब गिनी-चुनी रह गयीं है ,आपस में बैठकर अपने दौर की शादियों को याद कर, रह-रहकर उदास हो, रूआंसी हुई जा रहीं हैं। वो  शगुनागर के गाने गाती थी, महिनों से रंग्याली बनाने की तैयारी करतीं थी रंग्याली बनाने के  लिए सूत की सफेद साड़ी को पीले रंग से रंगकर पच्चीस या पचास पैसे के सिक्कों की सहायता से लाल रंग का ठप्पा लगातीं थी। कैसे सुआल पथाई के गीत गातीं थी। फिर ढोलक मंजीरा लेकर समूह में महिलाएं कैसे नृत्य-गान किया करतीं थी। वो घर के युवा पीढ़ी  से भी यही अपेक्षा कर उन्हें सुआलपथाई को मनाने के लिए निर्देश देने लगतीं हैं, व शगुनागर गाने को कहतीं, जिसे आज की आधुनिक पीढ़ी हास-परिहास में टाल कर अपनें-अपनें कार्यों में व्यस्त हो रहीं हैं।

फोटोग्राफर आकर उनकी तस्वीरें ले रहा है, वीडियोग्राफी हो रही है। कुछ युवतियां मेहंदी लगवाने में व्यस्त हो रही है ,एक ओर डैक पर गाने चल रहा है,कुछ युवतियां नृत्य कर रही है। "आज की पीढ़ी को तो ना कोई लाज,न शर्म",कुछ बुढ़े महिलाएं अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती हुई आपस में बोल रही हैं। बच्चों का झुंड खेल-कुद में व्यस्त हैं। देखते-देखते आज सुआलपथाई का कार्यक्रम भी संपन्न होगया। रात में बिजु, अमिता,विनीता और उर्मिला हास-परिहास में व्यस्त है।दूसरे दिन महिला संगीत का कार्यक्रम होना है जो बैंक्वेट-हाॅल में संपन्न होना है,इसलिये सब लोग  सूबह की तैयारी रात में करने में व्यस्त है।सुबह नाश्ता कर, सब लोग, बैंक्वेट-हाॅल को चले जायेंगे, तीन बजे से महिला-संगीत का कार्यक्रम रखा गया है।

उर्मिला व बिजु में अब घनिष्टता बढ़ने लगी हैं,फुरसत के पलों में, यदि विनीता और अमिता काम में  व्यस्त हों तो दोनों ही विभिन्न विषयों पर घंटो तक बतियाते रहतें हैं। यहां तक दोनों एक-दूसरे की आँखों में घंटों तक खोये रहतें हैं, पर सामाजिक लोक-लाज व मर्यादा एक-दूसरे से प्रेम का अनुमोदन कर नहीं  पाते।

रात बहुत हो चुकी है,सूबह सभी लोगों को उठना है घर के लगभग सभी सदस्य ता तो सो चूकें हैं या फिर सोने की तैयारी कर रहें हैं; परन्तु इन सभी में युवामंडल विशेष रूप से विनीता, अमिता बिजु, उर्मिला अभी भी जागरण कर, वार्ता में व्यस्त हैं, परसों अमिता अपनें ससुराल चली जाएगी,फिर कब मुलाकात हो इसलिए वो आज को जीभर जी लेना चाह रहे हैं।

सूबह घर के प्रमुख सदस्य जल्दी उठ गयें हैं। सूबह से ही साफ-सफाई  कर रहें हैं, कोई बाहर पानी की व्यवस्था देख रहा है,घर में बाकायदा खाना बनाने की व्यवस्था की गयी है,हलवाई के साथ दो-तीन सहायक भी हैं। सुबह चाय की मांग होने पर चाय चूल्हे पर चढ़ा चुकी है ,बाहर बहुत ठंड है आज। बिजु बाहर की व्यवस्था देख रहा है।  थोड़ी देर में चाय लेकर एक सहायक आ गया।सभी लोग एक साथ बैठकर चाय पी रहें हैं और साथ ही साथ आज के कार्यक्रम की रूपरेखा को मूर्त रूप देने की तैयारी भी चल रही है।

चाय पीने के बाद सभी नहा-धोकर चाय-नाश्ता करने बाहर दिलाने में आ गये हैं, जहाँ चाय-नाश्ते की तैयारी की गयी हैं । पुरानी वृद्ध महिलाएं वापस अपने समय पर चली गयी हैं।

कैसे महीनों पहले से ही नाते-रिश्ते दार घर में आकर डेरा जमा लिया करतें थें।सभी लोग मिलकर महीनों से शादी की तैयारी में व्यस्त हो जातें थें । कोई गेहूं बिनता,कोई चावल साफ करते ,उन्हें धोकर सुखाने में व्यस्त हो जातें, कोई लकड़ियो की व्यवस्था करता,कोई रंग्याली -पिछौड़ा बनाने की तैयारी करतें, जैसे-जैसे शादी का समय निकट आतें जाता ,तैयारियाँ भी वैसे ही जोर पकड़नें लगतीं।युवा-दल में कुछ केले के पेड़ लाकर तोरण द्वार  बनाते, उसे आम के व केले के पत्तों से सजाते।कुछ युवा-दल रंग-बिरंगे पताकों से संपूर्ण घर को सजाने में व्यस्त रहतें थें। वो भी क्या शादी होती थी। एक वृद्धा अपनी शादी का स्मरण कर थोड़ा भावुक हो गयी और बताने लगी," दे हो सुरेशक इज मेरे ब्या में तो सब गौं वाल लोग काम करण में ल्याग रो छी। कुछ लोग सफेद सुतक धाग घर मे जाग-जाग लपेट छी, कोई लोग आटक लेई बने बेरन ऊक पताक में लगुंछी, कोई लाल, नील,पील सफेद,हरी,गुलाबी व बैगनी पताक लगुड़ मे लाग र छी"।( क्या कहूँ सुरेश की ईजा मेरी शादी में तो सब लोग काम में  लगे हुए थे।कुछ लोग सफेद सुत का धागा घर में जगह-जगह लपेटते थे,कुछ लोग आटे की लेई बनाकर उसको पताकों मे लगातें और कुछ लोग ,नीले,पीले,हरे, लाल, सफेद और गुलाबी रंग के रंग-बिरंगी पताका जगह-जगह लगातें थें ) "हो को  सही कुड़ लाग रोछा हो रमाक इजा, महैण बेटी घर में ब्याक रौनक रुंण वाले भै को आज क ब्या थोड़ी भै।बबाल  टालण क ज्यस।" सुरेश की ईजा ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा।  (हाँ हो सही कहने वाले ठहरे हो रमा की ईजा ! पहले से तो महीने भर  पहले से ही शादी की रौनक होने वाली ठहरी  आजकल की शादियां ठहरी बबाल टालने जैसा ठहरा)पहले से तो खाने का भी अपना ही आनन्द होने वाला ठहरा ।खाने का कार्यक्रम भी सामुहिक होता था। घर की कुछ महिलाएँ रसोई संभाल लेतीं।निर्वस्त्र हो रसोई में खाना बनातीं ।खाने में आलू टमाटर की रसदार सब्जी ,फूलगोभी की सब्जी, ककड़ी का रायता,मीठी चटनी,बड़े ,पूरी चावल आदि खाना बनाया जाता। पहले पुरुषों की मंडली खाना खाने बैठती,पुरूषों की मंडली भोजन से निवृत होती फिर बच्चों की मंडली भोजन करने बैठती जैसे ही वो निपटाती तत्पश्चात घर की लड़कियाँ खाने पर बैठती और अंत में घर की महिलाएं भोजन करतीं। भोजन से जब सब निवृत हो जाते तो सब अपनें- अपनें कार्यों  को पूर्ण करने में व्यस्त हो जातें। शादी के सभी कार्यक्रम का आयोजन घर में ही संपन्न होतें।

दिन में खाने का प्रबंध घर के बाहर आँगन में बड़ी-बड़ी दूरियाँ  बिछाकर किया जाता। खाना परोसने का काम युवाओं की मंडली करती। कोई बाल्टी में चटनी लाकर  परोसता,कोई रायता परोसता,कोई आलू टमाटर की रसदार सब्जी लाता कोई गोभी की सब्जी परोसता,कोई चावल लाता ,कोई गरम-गरम पूरी लेकर आता, कोई बात परोसता।इस तरह धीरे-धीरे खाना आने से जहाँ एक ओर  मुँह में पानी आता ,वही दूसरी ओर भोजन का स्वाद बढ़ जाता।

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एक बजे सभी लोग तैयार होकर बैंक्वेट-हाॅल के लिए निकल गये हैं। वहां की पूरी व्यवस्था का अवलोकन करने के पश्चात सभी लोगों ने अपनी-अपनी  जिम्मेदारी सँभाल ली । वंशीधर जी को मौसाजी ने अमिता के लिए आने वाले दहेज को लेने की जिम्मेदारी सौंप दी,वंशीधर जी की पत्नी को महिलाओं को पिठ्या लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी गयी। मौसाजी आगंतुकों का स्वागत कर रहें हैं। बिजु ने खाने-पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी ले रखी है। मौसीजी महिला-मंडली के साथ गपियाश कर रहीं है। विनीता,उर्मिला और अमिता ब्यूटी पार्लर से अभी-अभी आईं  हैं  सज-सँवर कर।

बैंक्वेट-हाॅल में संगीत का शोर सभी के कान फाड़ रहा है।  महिलाओं का नृत्य व गान का कार्यक्रम चल रहा है। महिलाओं के आने-जाने का क्रम भी निरन्तर बना हुआ है।

उधर दीनानाथ जी ,जयदत्त जी केसाथ लोगों का स्वागत कर रहें हैं ।लोग विजयकांत त्रिपाठी की तारीफ करतें तो वो फूले ना समाते, परन्तु कहीं ना कहीं वो बिजु से आँख नही मिला पाते हैं, इसलिये वो अक्सर बिजु के पास आने पर वो झेंपकर नजर चुरा लेते हैं, बिजु की माँ व उसकी सुशीला दीदी  तो बिजु की सफलता पर गर्व से गौरवान्वित हो रही हैं ।बिजु का ज्यादा समय अपनी दीदी के साथ गुजरता। विजयकांत के सभी भाई-बहन ,जो कभी बिजु को हेय-दृष्टि से देखा करतें थें  आज बिजु से बात करनें के लिए तरसें जा रहें हैं; जैसे ही बिजु से बात करने के लिए बिजु के पास जातें, वैसे ही लोग बिजु को घेर लेतें।  महिल-संगीत का कार्यक्रम भी निवृत हो चुका है। सभी लोग जा चूके हैं अब घर के लोग व रिश्तेदार ही रह गयें  हैं।सभी कुछ समेट कर घर पहुँचते-पहुँचते रात के आठ बज गये।

घर पहुँच कर सभी लोग अब कल की शादी की तैयारी में संलग्न हैं, आज अमिता  उदास है; कल इस घर में उसका अंतिम दिन जो है ।परसों तो वह अपने ससुराल, चले जाएगी। पता नहीं कैसा होगा वहाँ।अमिता की माँ की आँखें भी नम  हैं। विनीता आज अपनें हाथों से अमिता को अपने हाथों से खिला रही है। कल से तो अमिता का व्रत जो होगा,परन्तु अमिता ने थोड़ा सा ही खाना खाया है।

आज सूबह अमिता सहित  सभी लोग जल्दी उठ गयी । हाथ में कंकड़ बँध गया है। हल्दी के कार्यक्रम में सभी लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहें हैं । शाम होते-होते सभी लोग बैंक्वेट-हाॅल में पहुँच गये। करीब-करीब रात के ग्यारह-बारह बजे बारात लड़की वालों के पास पहुँच गयी।दूल्हा सहित सी बाराती ,शराब के नशे में धुत्त  हैं। उनकी हालत देखकर अमिता की माँ व जयदत्त जी दुःखी हैं । बारातियों की दशा इस समय ऐसी है कि इस समय उनसे किसी भी मर्यादित व्यवहार की अपेक्षा करना व्यर्थ है।

शादी का कार्यक्रम दो-तीन घंटो मे सिमट गया। आज विनीता को अकेला छोड़ अमिता ससुराल चली गयीं, पुरानी महिलाओं को आज के वैवाहिक कार्यक्रम की तुलना उनके समय में होने वाली शादी में तुलना करने के लिए।अमिता भी शादी कर अपनें घर चली गयी।

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दूसरे दिन विनीता, उर्मिला, बिजु आदि चितई गोल्जयू के मंदिर गये; तभी वहाँ अमिता उसके पति भी मंदिर आए हुए थें,इसे संयोग ही कहना उचित होगा,क्योकिं ना अमिता व उसके पति को ज्ञात था कि विनीता, बिजु व उर्मिला मंदिर आ रहें  है और ना ही बिजु लोगों को अमिता व उसके पति के आगमन की कोई जानकारी थी। सभी लोग मंदिर प्रांगण में थोड़ी देर बैठे तभी अमिता के पति शशिभूषण जी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए सभी लोगों को चितई मंदिर के बाहर दुकान में बैठकर आलू के गुटके व चाय लेने के लिए आमंत्रित किया पहले तो सभी लोग थोड़ा सा हिचके पर फिर उनके आमन्त्रण में आत्मीयता को देख सभी लोग हाथ छोड़े बाहर दुकान में आकर आलू के गुटके रायता के साथ खाने लगें, फिर चाय का आनन्द उठाकर थोड़ी देर बाद अपनें-अपनें गन्तव्य को चले गयें। इसके बाद फिर अमिता को पति के साथ अल्मोड़ा से बाहर जाना पड़ा ,जिस वजह से उससे पत्र के माध्यम से ही संपर्क हो पाता।

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शनेः-शनैः समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा। उर्मिला वैसे ही बिजु की ओर ओर आकर्षित हुए जा रही थी। मैं, बिजु और उर्मिला रात-रातभर बैठकर  विभिन्न विषय पर बहस करतें रहते।  देखते-देखते दस साल बीत गयें  विजयकांत उसी महाविद्यालय में  प्राध्यापक बन चूकें थें और उर्मिला उनके देखभाल में पीएचडी कर रही थी। दोनों एक-दूसरे से अपनें दिल की बात कहना तो चाहतें हैं पर,कुछ शालीनता, कुछ पद की गरिमा एवं गुरू- शिष्या कुछ ऐसी बाध्यताएं हैं  कि दोनों ही आँखों ही आँखों में तो एक-दूसरे से बहुत कुछ कहतें पर अपनी भावनाओं को शब्दों का आवरण नही पहना पा रहे हैं , कुछ कह नहीं पा रहें हैं । बिजु की नयी-नयी किताबें हर साल प्रकाशित होती रही।

इधर विजयकांत अपनी संगोष्ठियों में  व्यस्त रहने लगे,विनीता उसके साथ संगोष्ठियों में जाती ।उर्मिला की पीएचडी भी पूरी हो चुकी है। समय गुजरता ही गया।देखते-देखते दो वर्ष बीत चुके हैं,।उर्मिला ने भी अब विनीता के घर आना लगभग बंद ही कर दिया। आजकल पूरे अल्मोड़ा में  उर्मिला की ही चर्चा चल रही है,उसके चरित्र को लेकर। ये अल्मोड़ा है! जहाँ चीटी के मरने की चर्चा भी बड़ी तेजी से फैलती है ,फिर ये तो ठहरी लड़की जात ऊपर से बड़ा बाप की बेटी तो फिर क्यों ना फैले। बात उड़ती-उड़ती विनीता के घर तक भी पहुंच ही गयी।

तो एक दिन विनीता की ईजा कहने लगी," विनीता "।

विनीता," हाँ ईजा"!

" उर्मिला काफी दिनों से घर नहीं आई ,सब ठीक तो है ना"। मौसी कहने लगी।" आजकल शहर में बड़ी चर्चा चल रही है कि रावत साब की बेटी के रंग-ढंग कुछ ठीक नही चल रहें हैं "।

"हाँ ईजा सुन तो मैं भी रही हूँ "। विनीता ने जवाब  दिया।

अरे जब यहाँ आती थी तो कितनी सीधी-सी लगती थी। छि:! मुझे पता होता ऐसे चरित्र की है तो, मैं तो, घर में ही नही घुसने देती" । मौसी बोलती ही जा रही थी, परन्तु बिजु को ये अच्छा नही लग रहा था कि किसी के चरित्र पर अंगुली उठाई जाए हालांकि उसके ना आने से बिजु धीरे-धीरे गुमशुम हो चला था।  विनीता भी कुछ ना बोल मन ही मन सोचने लगी थी। दोनों के बीच सब कुछ तो ठीक ही चल रहा था; परन्तु ना जाने कहाँ से मानव आ गया।

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इस बीच  उर्मिला को शहर छोड़ दिल्ली  जाना पड़ा है उपचार के लिए। आपने स्वास्थ्य से परेशान उर्मिला का विनीता लोगों के घर आना भी कम ही हो पाया है और आपस में किसी प्रकार का कोई संपर्क भी नही हो पा रहा है।

मानव! सुना है, बहुत बड़े घर से है,पिताजी की रुद्रपुर में  मिलें है। उनका ज्यादातर समय राजनीति में ही गुजरता है। इकलौतें चिराग हैं घर के, सो  बचपन से ही किसी चीज की कमी नहीं रही। हल्द्वानी में इनकी दो  कोठियां है,रुद्रपुर में दो कोठियां अल्मोड़ा में भी दो कोठियां हैं हीं और हर कोठी में तीन-चार महंगी गाड़ियाँ हैं। बस पहली बार उर्मिला को देखा तो, साहब आ गया मनचले का दिल। हल्द्वानी कॉलेज मे पड़तें थे सुना पाँच साल बीए में फेल हो गयें,तीन साल रुद्रपुर में बर्बाद कर दिये ,यहाँ भी आए हैं तो मात्र समय व्यतीत करनें ।

उर्मिला उन दिनों  सांस्कृतिक विभाग के सचिव पद का चुनाव लड़ रही थी,उन दिनों ही उनकी मुलाकातें हुई, सो उर्मिला अब विनीता लोगों के साथ कम, मानव के साथ ज्यादा समय बिताती। मानव का चाल-चरित्र ना तो विनीता को कभी भाया और ना ही बिजु को, तो विनीता,बिजु,सहित लगभग पूरे कॉलेज ने ही उर्मिला का मानव सहित परित्याग कर दिया था।

आजकल अल्मोड़ा शहर, उर्मिला और मानव को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं करने लगा है।

बिजु को अब अल्मोड़ा से घृणा होंने लगी है ,जिसकी चर्चा वो यदा-कदा विनीता से करता रहता है। उसकी चुप्पी, धीरे-धीरे अवसाद में परिवर्तित होतें जा रही है। उर्मिला का इस तरह दूर जाना ,शायद वह नही सह पा रहा है। धीरे-धीरे उसका मानसिक अवसाद भयंकर रूप लेने लगा है।

सूबह का समय है। सभी लोग गहरी नींद में हैं अचानक मुर्गे की बांग से सभी लोगों की नींद खुल गयी है। सभी लोग सोकर उठे ।विनीता चाय लेकर बिजु के कमरे मे खयी है ; परन्तु बिजु कमरे में  नही है। शायद बिजु इधर-उधर कहीं गया होगा सोच ,विनीता बाहर आकर काम में  लग गयी है

अपने गृहस्थी के सारे काम निपटा विनीता चाय लेकर फिर बिजु के कमरे  मे आ गयी; परन्तु बिजु अभी भी कमरे में  नही है। बिजु को कमरे में नही पाकर विनीता विचलित हो गयी और फिर ये खबर पूरे घर में फैल गयी है। सभी लोग दिनभर बिजु को खोजते रहे है,पर बिजु की कोई खबर नही मिल पाई है इस तरह हर रोज काफी तलाश करने पर भी बिजु की कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है।

अब ये समाचार अल्मोड़ा से भला कैसे छिपता सो ,पूरे अल्मोड़ा में चर्चा है कि सुप्रसिद्ध लेखक विजयकांत त्रिपाठी लापता। उर्मिला भी इससे अछूता कहाँ रहती खबर सुनते ही चली आई विनीता के पास ; परन्तु आज ना ही विनीता ने उसका स्वागत करा और ना ही उसके पिताजी  ने। मौसी ने तो उसे देहरी से ही बाहर रोक दिया और बहुत ही संयत होकर कहने लगी ," आज तू चले जा ,अब बिजु यहाँ नही है,चले गया जाने कहाँ, इससे पहले की मैं संयम खो दूँ,तू चले जा। अब वो विजयकांत त्रिपाठी कहां रहा, कपाल ही ऐसा है उसका। सबने उसको दुत्कारा ही था, जैसे-तैसे सह लेता,परन्तु  पता नही इस बार किसने उसे दुत्कार दिया जो वह सह नही पाया" मौसी उर्मिला को कटाक्ष कर कहने लगी,ऐसा कहते-कहते मौसी ,बेहोश हो गयीं, उर्मिला ईजा को थामने के लिए आगे बढ़ ही थी कि  विनीता ने अपनी माँ को  सहारा देते हुए अंदर चटाई पर लिटा दिया और द्वार बंद कर दिये ।

उर्मिला, बाहर सर झुकाए काफी देर तक खड़ी रही। शायद आज वह अपने दुर्भाग्य को कोस रही है कि अंततः मानव अपने उद्देश्य में सफल ही हो गया; काश कि ना वो बीमार होती, ना ही ईलाज के लिए शहर से बाहर जाती और  ना ही मानव की मंशा पूरी हो पाती।

असल में  एक दिन उर्मिला को हल्का सा ज्वर आया ,जिसे उसने मामूली समझकर अनदेखा कर दिया धीरे-धीरे ये ज्वर बढ़ने लगा,डॉक्टर को दिखाने पर पता लगा कि ये एक गंभीर बीमारी है और अल्मोड़ा में तो क्या कुमाऊं भर में इसका उपचार  नही है, तो उसे बाहर जाना पड़ा दिल्ली आर्मी बेस हॉस्पिटल में। ये बीमारी का उपचार काफी वर्षों तक चला। आज जब वो शहर लौटी तो उसके सबंध में उड़ रही चर्चा ने उसे  विचलित कर दिया था और आज बिजु लापता,इस समाचार को सुन वो अपने आप को रोक नही पाईं थी इसलिए आज विनीता से मिलने ,विनीता के घर आई थी,पर शायद नियति को यही स्वीकार था। अपनें भाग्य को कोसते उर्मिला विनीता के घर के बाहर आँसू बहाती रही।

इधर बिजु की खोज निरन्तर जारी रही,समय आगे बड़ता रहा वर्ष पर वर्ष बीतते गये,बिजु की कमी सभी को अखरती। समय के साथ ही सभी ने मान लिया था कि बिजु शायद अब इस दुनियाँ में ही नही रहा हो। धीरे-धीरे लोग विजयकांत त्रिपाठी को भूलने लगें थे। विजयकांत त्रिपाठी! अब किताब में जिन्दा था और कहानियों में जिन्दा था । अपने अंतिम क्षणों मैं  उसने 'लौट आओ मधु 'नाम से अंतिम किताब लिखी थी जो बिजु की अपने साथ घटित घटना पर आधारित थी; उस कहानी में भी नायक पागल हो जाता है,रातभर बारिश में भीगता है और अंत में रातभर  ठंड से अकड़कर"मुझसे दूर ना जाओ ,आ जाओ,लौट आओ मधु " ये कहते हुए,मर जाता है।

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"आज बिजु  मिला भी तो इस रूप में और मैं भी कितनी स्वार्थी हूँ ना!  छोड़े आई उसे,इस हाल में, पता नहीं कब से उसकी ये हालत है ,ना खाने की सुध,ना कपड़ों की सुध। अगर ये प्रेम की परिणति है तो भगवान ऐसा प्यार किसी को भी ना दे"। ये कहकर विनीता फूट-फूटकर रोने लगी। बारिश इतने जोर से हो रही है और बिजु लावारिस हालत में सड़क पर भीग रहा होगा ,कहीं कोई गाड़ी उसको कुचल ना दे। हे भगवान! कितनी निर्दयी हूँ मैं। विनीता की आँखों से आँसू बहनें लगें। सुधा भी विजयकांत की इस स्थिति से द्रवित थी। मन ही मन सोचने लगी कि हाय रे नियति तेरी लीला भी विचित्र है मैं  तो हर रोज इस पागल को देखती थी,यदा-कदा मेरे पास आता ," भूख लगी है"। कहता ; मैं बचदा से पैसे देकर कहती इसको कुछ खिला देना, कहते हुए आगे बड़ जाती। तब मुझे भी क्या पता था कि ये ही विजयकांत त्रिपाठी अर्थात विजयकांत शास्त्री है। उसकी आँखे भी नम थी। लगभग सभी युवतियों का हाल उस समय एक सा ही था। तभी अचानक सुधा बोली," ड्राईवर गाड़ी वापस लो,दोगाँव की ओर " इस तरह बारिश अनवरत  हो रही थी।और गाड़ी दो गाँव की ओर वापस जा रही थी। सुधा ने कही पर फोन किया। " किस को फोन कर रही है सुधा?", विनीता बोली । सुधा फुँफकारते हुए बोली," विनीता तू भले ही छोड़ आई हो, बिजु को उसके हाल में, पर मैं नहीं  छोड़ूँगी। ना मैं विनीता जैसी बहन हूं और ना ऊर्मिला जैसी प्रेयसी। मैं थामूँगी उसका हाथ और ले चलूँगी बिजु को, प्रेम के पथ पर ।

दोगाँव पहुंचे तो बिजु नंग-धड़॔ग रोड के किनारे पड़ा हुआ था।

बिजु की आँखे खुली हुईं थी,मानों किसी के आने की प्रतीक्षा कर रही हों शायद उर्मिला की और कह रही हो," लौट आओ उर्मिला", साँसें स्थिर थीं,जो हार चुकीं थी जीवन का युद्ध, धड़कनें शान्त थी,क्योंकि अब जीवन से संघर्ष करने का सामर्थ्य समाप्त हो चुका था शायद। मोहक मुस्कान ,जीवन के सुख-दुःख से परे, आनन्द में  विलीन ,सो गया था बिजु, हमेशा-हमेशा के लिए चिरनिद्रा में।

विनीता और सुधा इससे पहले कि कुछ समझ पाते ,तभी नगर पालिका की गाड़ी आई और बिजु के शव को लावारीस लाश की तरह ले गयी,अंतिम संस्कार के लिए।

विवश,विनीता सुथा और अन्य युवतियां देखतीं रही बिजु को जाते हुए ,प्रेम के पथ पर,वही मोहक मुस्कान, खुली आँखें, कृष्ण सी आभा; पर कपाल ,पता नहीं कहाँ से लेकर आया!

अचानक एक मोड़ पर, जाकर गाड़ी , विनीता की  आँखों से ओझल हो गयी और विनीता चकरा  कर पृथ्वी में गिर गयी और जब होश आया तो पूरी जोर से रोते हुए कह रही थी ,"चला गया मेरा भाई बिजु प्रेम के पथ पर"।

समाप्त

हिमांशु पाठक

'पारिजात',ए-36,जज-फार्म,

छोटी मुखानी हल्द्वानी-263139

जिला-नैनीताल, उत्तराखंड ।

मोबाइल-7669481641

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌 👌

2 जनवरी 2022

29 दिसम्बर 2021

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रचनाएँ
कुसुमदी
4.5
"कुसुमदी ", इंगित करती है एक ऐसी महिला की कहानी जो,करुणामयी हैं, ममतामयी हैं, वसुधैव कुटुंबकम की भावना से ओतप्रोत हैं । जो मनुष्य मात्र के लिए संभाव रखेती हैं । "कुसुमदी" का हृदय बहुत ही विशाल है। आज वो धरा से दूर अंबर पर कहीं हैं पर हम सभी के दिल में यादों के रूप में आज भी इस धरा पर विचरण करतीं हैं। कौन कहता है! कि कुसुमदी अब नहीं रहीं, वो आज भी जिंदा है हर अधरों में, हर दिल में व हर आँखों में ।

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