जब-जब थके हुए हाथों से छूट लेखनी गिर जाती है
'सूखा उर का रस-स्रोत' यह शंका मन में फिर जाती है,
तभी, देवि, क्यों सहसा दीख, झपक, छिप जाता तेरा स्मित-मुख
कविता की सजीव रेखा-सी मानस-पट पर तिर आती है?
23 जून 2022
जब-जब थके हुए हाथों से छूट लेखनी गिर जाती है
'सूखा उर का रस-स्रोत' यह शंका मन में फिर जाती है,
तभी, देवि, क्यों सहसा दीख, झपक, छिप जाता तेरा स्मित-मुख
कविता की सजीव रेखा-सी मानस-पट पर तिर आती है?
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अज्ञेय जी का जन्म 7 मार्च, 1911 को जिला गोरखपुर के गाँव कसिया में हुआ था. बचपन 1911 से '15 तक लखनऊ में बिता। अज्ञेय की घरेलू शिक्षा का प्रारम्भ लखनऊ में और विद्यालीय शिक्षा का समापन लाहौर में हुआ । बाद में पिता की सरकारी नौकरी के चलते इन्होने लाहौर विश्वविद्यालय से बीएस सी परीक्षा ऊतीर्ण की. एम ए अंग्रेजी साहित्य में करते हुए ये स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े और जेल भी गये. इन्होने कुछ समय तक फौज में भी नौकरी की एवं आसाम के जंगलों में घुमते रहे. अज्ञेय घुमक्कड़ी स्वभाव के रहे हैं. सुदूर दक्षिण भारत से लेकर उत्तर पूर्वी भारत के कई स्थानों पर रहे.अज्ञेय का व्यक्तित्व बहुमुखी था. वे एक सफल वक्ता, कवि, उपन्यासकार, संसमरणकार एवं यात्रा लेखक के रूप में स्मरण किये जाते हैं. ये स्पष्टवादी, गम्भीर चिंतक एवं अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के धनी थे. लोगों से कम मेल मुलाक़ात करना एवं अधिक घुल मिल जाना इन्हें प्रिय नहीं था. इनका जीवन सतत रूप से लेखन कार्य में ही व्यतीत हुआ. ये निबंधकार और आलोचक थे. इन्होने विदेश यात्राएं भी की. साहित्यिक क्षेत्र में ये पश्चिम के कवि समीक्षक इलियट से अधिक प्रभावित थे. इनकी कविताओं में तथा उपन्यास और कहानी के क्षेत्र में भी उच्च कोटि की रचनाये की | सम्पादक और पत्रकार के रूप में अज्ञेय जी की विशेष ख्याति की | अज्ञेय एक प्रयोगवादी कवि थे। उनके साहित्य का उनके काव्य का भाव पक्ष और कला पक्ष समान रूप से समृद्ध है। उनके शुरुआती साहित्य में छायावाद और रहस्यवाद का एक मिश्रित पुट मिलता है। अज्ञेय जी ने अपने साहित्य में राष्ट्रीय चेतना को भी प्रकट किया है। उन्होंने अपने काव्य में तीखे व्यंग्य भी शामिल किए हैं। उनके काव्य में अनुभूति की गहनता सागर की गहनता के समान देखी जा सकती है। अज्ञेय के काव्य भाषा की सर्जनात्मक विशिष्टता 'असाध्यवीणा' में सबसे अधिक प्रकट है । उन्होंने छायावादी संस्कारों के प्रभाव से मुक्त होने में वह नयी काव्यभाषा अर्जित की । जिससे प्रयोगवाद और आगे नई कविता की पहचान बनी । अज्ञेय की नयी काव्य भाषा आकस्मिक घटना नहीं है बल्कि उसके पीछे लंबा संघर्ष है। अज्ञेय जी का काव्य विविध भाषा शैलियों से परिपूर्ण है। उन्होने भाषा और शैली को लेकर अनेक प्रयोग किए। उन्होने तत्सम और तद्भव ओर अन्य भाषाओं के शब्दो का भी सुंदर एवम् सार्थक प्रयोग किया है। 1964 में साहित्य अकादमी अवार्ड, 1978 में ज्ञानपीठ अवार्ड, 1983 में गोल्डन माला पुरस्कार जैसे बड़े सम्मानों से नवाजे गये अज्ञेय जी का देहावसान 4 अप्रैल 1987 को हो गया था. हिंदी साहित्य की इस महान विभूति को यथार्थ दर्शन को मुखर रूप से कलमबद्ध करने वाले साहित्यकार थे. देश और समाज उन्हें सदियों तक याद रखेगा. । D