
नई दिल्ली : देश की सबसे बड़ी स्पेक्ट्रम नीलामी से इस बार सरकार की उतनी कमाई नही हो पायी जितना कि वह उम्मीद लगाए बैठी थी। स्पेक्ट्रम नीलामी से सरकार को 65789 करोड़ रूपये मिले जबकि वह इस नीलामी से वह 5.66 लाख करोड़ की उम्मीद लगाए बैठी थी। इस नीलामी में सबसे आगे भारती एयरटेल और वोडाफोन रही जबकि तीसरे स्थान पर रिलायंस जियो रही। इस बार की स्पेक्ट्रम नीलामी में देश की बड़ी टेलीकॉम कंपनियों ने बढ़चढ़ कर स्पेक्ट्रम क्यों नही खरीदे इसके पीछे दो कारण बताये जा रहे हैं।
इसका पहला कारण टेलीकॉम कंपनियों के बीच छिड़ी प्राइस वॉर है। रिलायंस जियो के आने के बाद देश की अन्य बड़ी कंपनियों पर टेरिफ रेट कम करने का दबाव है, जिससे इन कंपनियों के रेवेन्यू पर बड़ा असर पड़ा है वहीँ टेलीकॉम कंपनियां पर 4 लाख करोड़ से भी ज्यादा के कर्ज है। इस बार टेलीकॉम कंपनियों द्वारा नीलामी में बढ़चढ़ कर हिस्सा न लेने का कारण मेगाहर्ट्ज की बेहद ऊंची कीमते भी हैं।
उदाहरण के लिए 700 मेगाहर्ट्ज का रिजर्व प्राइस 11485 करोड़ प्रति एमएचजेड रखा गया था, जो बहुत ज्यादा है। सरकार को उम्मीद थी कि अगर यह बैंड अपने बेस प्राइस पर भी बिक जाए तो चार लाख करोड़ से ज्यादा की आय सरकार के पास आ जाएगी। ऑक्शन के पहले दिन यानी 1 अक्टूबर को 53,531 करोड़ रुपए की बिडिंग हुई थी। जबकि बुधवार तक 63500 करोड़ रुपए स्पेक्ट्रम के लिए बोली लगाई गई थी। नीलामी के 31 राउंड पूरे हुए। सरकार को 66400 करोड़ रुपए आए। बिडिंग के दौरान टेलिकॉम कंपनियों ने खासतौर पर 2100 मेगाहर्ट्ज और 2300 मेगाहर्ट्ज बैंड के लिए बोली लगाई।