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पूजा

hindi articles, stories and books related to puja


पलना स्याम झुलावती जननी। अति अनुराग पुरस्सर गावति, प्रफुलित मगन होति नँद-घरनी ॥ उमँगि-उमँगि प्रभु भुजा पसारत, हरषि जसोमति अंकम भरनी । सूरदास प्रभु मुदित जसोदा, पुरन भई पुरातन करनी ॥ माता श्यामसु

जसोदा हरि पालनैं झुलावै। हलरावै, दुलराइ मल्हावै, जोइ-जोइ कछु गावै॥ मेरे लाल कौं आउ निंदरिया, काहैं न आनि सुवावै। तू काहैं नहिं बेगहिं आवै, तोकौं कान्ह बुलावै॥ कबहुँ पलक हरि मूँदि लेत हैं, कबहुँ अध

कनक-रतन-मनि पालनौ, गढ़्यौ काम सुतहार । बिबिध खिलौना भाँति के (बहु) जग-मुक्ता चहुँधार ॥ जननि उबटि न्हवाइ कै (सिसु) क्रम सौं लीन्है गोद । पौढ़ाए पट पालनैं (हँसि) निरखि जननि मन-मोद ॥ अति कोमल दिन सात

(माई) आजु तौ बधाइ बाजै मंदिर महर के । फूले फिरैं गोपी-ग्वाल ठहर ठहर के ॥ फूली फिरैं धेनु धाम, फूली गोपी अँग अँग । फूले फरे तरबर आनँद लहर के ॥ फूले बंदीजन द्वारे, फूले फूले बंदवारे । फूले जहाँ जोइ

आजु गृह नंद महर कैं बधाइ । प्रात समय मोहन मुख निरखत, कोटि चंद-छबि पाइ ॥ मिलि ब्रज-नागरि मंगल गावतिं, नंद-भवन मैं आइ । देतिं असीस, जियौ जसुदा-सुत कोटिनि बरष कन्हाइ ॥ अति आनंद बढ्यौ गोकुल मैं, उपमा

आजु बधाई नंद कैं माई । ब्रज की नारि सकल जुरि आई ॥ सुंदर नंद महर कैं मंदिर । प्रगट्यौ पूत सकल सुख- कंदर ॥ जसुमति-ढोटा ब्रज की सोभा । देखि सखी, कछु औरैं गोभा ॥ लछिमी- सी जहँ मालिनि बोलै । बंदन-माला ब

(माई) आजु हो बधायौ बाजै नंद गोप-राइ कै ।जदुकुल-जादौराइ जनमे हैं आइ कै ॥ आनंदित गोपी-ग्वाल नाचैं कर दै-दै ताल, अति अहलाद भयौ जसुमति माइ कै । सिर पर दूब धरि , बैठे नंद सभा-मधि , द्विजनि कौं गाइ दीनी ब

आजु हो निसान बाजै, नंद जू महर के ।आनँद-मगन नर गोकुल सहर के ॥ आनंद भरी जसोदा उमँगि अंग न माति, अनंदित भई गोपी गावति चहर के । दूब-दधि-रोचन कनक-थार लै-लै चली, मानौ इंद्र-बधु जुरीं पाँतिनि बहर के ॥ आनं

सोभा-सिंधु न अंत रही री । नंद-भवन भरि पूरि उमँगि चलि, ब्रज की बीथिनि फिरति बही री ॥ देखी जाइ आजु गोकुल मैं, घर-घर बेंचति फिरति दही री । कहँ लगि कहौं बनाइ बहुत बिधि,कहत न मुख सहसहुँ निबही री ॥ जसुम

धनि-धनि नंद-जसोमति, धनि जग पावन रे ।धनि हरि लियौ अवतार, सु धनि दिन आवन रे ॥ दसएँ मास भयौ पूत, पुनीत सुहावन रे ।संख-चक्र-गदा-पद्म, चतुरभुज भावन रे ॥ बनि ब्रज-सुंदरि चलीं, सु गाइ बधावन रे ।कनक-थार रोच

आजु बधायौ नंदराइ कैं, गावहु मंगलचार । आईं मंगल-कलस साजि कै, दधि फल नूतन-डार ॥ उर मेले नंदराइ कैं, गोप-सखनि मिलि हार । मागध-बंदी-सूत अति करत कुतूहल बार ॥ आए पूरन आस कै, सब मिलि देत असीस । नंदराइ क

बहुत नारि सुहाग-सुंदरि और घोष कुमारी । सजन-प्रीतम-नाम लै-लै, दै परसपर गारि ॥ अनँद अतिसै भयौ घर-घर, नृत्य ठावँहि ठाँव । नंद-द्वारैं भेंट लै-लै उमह्यौ गोकुल गावँ ॥ चौक चंदन लीपि कै, धरि आरती संज

बहुत नारि सुहाग-सुंदरि और घोष कुमारी । सजन-प्रीतम-नाम लै-लै, दै परसपर गारि ॥ अनँद अतिसै भयौ घर-घर, नृत्य ठावँहि ठाँव । नंद-द्वारैं भेंट लै-लै उमह्यौ गोकुल गावँ ॥ चौक चंदन लीपि कै, धरि आरती संज

आजु नंद के द्वारैं भीर । इक आवत, इक जात विदा ह्वै , इक ठाढ़े मंदिर कैं तीर ॥ कोउकेसरि कौ तिलक बनावति, कोउ पहिरति कंचुकी सरीर । एकनि कौं गौ-दान समर्पत, एकनि कौं पहिरावत चीर ॥ एकनि कौं भूषन पाटंबर,

ब्रज भयौ महर कैं पूत, जब यह बात सुनी । सुनि आनन्दे सब लोग, गोकुल नगर-सुनी ॥ अति पूरन पूरे पुन्य, रोपी सुथिर थुनी । ग्रह-लगन-नषत-पल सोधि, कीन्हीं बेद-धुनी ॥ सुनि धाई सब ब्रज नारि, सहज सिंगार कि

हौं सखि, नई चाह इक पाई । ऐसे दिननि नंद कैं सुनियत, उपज्यौ पूत कन्हाई ॥ बाजत पनव-निसान पंचबिध, रुंज-मुरज सहनाई । महर-महरि ब्रज-हाट लुटावत, आनँद उर न समाई ॥ चलौं सखी, हमहूँ मिलि जैऐ, नैंकु करौ अतुरा

हौं इक नई बात सुनि आई । महरि जसौदा ढौटा जायौ, घर घर होति बधाई ॥ द्वारैं भीर गोप-गोपिनि की, महिमा बरनि न जाई । अति आनन्द होत गोकुल मैं, रतन भूमि सब छाई ॥ नाचत बृद्ध, तरुन अरु बालक, गोरस-कीच मचाई ।

उठीं सखी सब मंगल गाइ । जागु जसोदा, तेरैं बालक उपज्यो, कुँअर कन्हाइ ॥ जो तू रच्या-सच्यो या दिन कौं, सो सब देहि मँगाइ । देहि दान बंदीजन गुनि-गन, ब्रज-बासनि पहिराइ ॥ तब हँसि कहत जसोदा ऐसैं, महरहिं ले

गोकुल प्रगट भए हरि आइ। अमर-उधारन असुर-संहारन, अंतरजामी त्रिभुवन राइ॥ माथैं धरि बसुदेव जु ल्याए, नंद-महर-घर गए पहुँचाइ। जागी महरि, पुत्र-मुख देख्यौ, पुलकि अंग उर मैं न समाइ॥ गदगद कंठ, बोलि नहिं

हरि मुख देखि हो बसुदेव । कोटि-काल-स्वरूप सुंदर, कोउ न जानत भेव ॥ चारि भुज जिहिं चारि आयुध, निरखि कै न पत्याउ । अजहुँ मन परतीति नाहीं नंद-घर लै जाउ ॥ स्वान सूते, पहरुवा सब, नींद उपजी गेह । निस

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