दिल्ली : "आप सिद्धू को मिलो तो मेरी तरफ़ से एक सवाल ज़रूर पूछना जी- एमपी की सीट से उतर कर एमएलए के लिए गली गली घूम रहा है, अगर हार गया तो अगला चुनाव क्या मुंसीपाल्टी (म्यूनिसिपलिटी) का लड़ेगा? “ लाऊडस्पीकर के शोर के बीच अमृतसर के रंजीत सिंह ने खिल्ली उड़ाने वाले अंदाज़ में हँसते हुए मुझसे कहा।
पंजाब के चुनावी माहौल का जायज़ा लेने के इरादे से राज्य के कई शहरों और गांवों से होते हुए अमृतसर पहुंचकर हम सुल्तानविंडरोड पर खड़े थे। आम आदमी पार्टी की चुनाव प्रचार सभा चल रही थी। शाम का समय था, व्यस्त बाज़ार के बीच हो रही सभा के चलते दुपहिया वाहनों की आवाजाही में दिक़्क़त दिख रही थी लेकिन कहीं कोई दिल्ली की सड़कों पर दिखने वाली नाराज़गी नहीं थी। मोहल्ले में जुटी भीड़ अपनी जगह थी, बाक़ी लोगों का कारोबार अपनी रफ़्तार से चल रहा था। कुल्चे वाला साइकिल पर कुल्चे छोले का बर्तन टिकाकर इत्मीनान से कुल्चे बेच रहा था, मूँगफली वाला मूँगफलियों के सौदे में मशगूल था और लाउडस्पीकर पर 'चाड़ूवालियां दी पार्टी ' के खेमे से भाषण चालू थे।पार्टी के दो स्टार प्रचारकों भगवंत मान और गुरप्रीत घुग्गी का इंतज़ार हो रहा था।करीब डेढ़ घंटे के इंतज़ार के बाद भगवंत मान आये. और फिर शुरू हुआ सिलसिला ज़िंदाबाद , शेरोशायरी और भाषणबाज़ी का.
मान की लोकप्रियता साफ़ दिख रही थी लेकिन सब उससे प्रभावित हों ऐसा भी नहीं था। पंजाब में टिकट बंटवारे में पैसे के लेनदेन के आरोप, , पार्टी की आपसी फूट , सुच्चा सिंह छोटेपुर का अलग होना, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार का कामकाज भी स्थानीय वोटर की नज़र में है । बदलाव का मूड दिख रहा है लेकिन खुल कर बोलने को बहुत से लोग तैयार नहीं होते। वजह- डर लगता है कि उनकी राय मीडिया में आ गयी तो प्रशासन कहीं परेशान न करे ।
सिद्धू से हमारी मुलाक़ात नहीं हो पायी लेकिन रंजीत सिंह की टिप्पणी से ये अंदाज़ा ज़रूर लग गया कि उनके स्टारडम पर इस बार सब जगह ठोंको ताली वाला माहौल नहीं है। स्वर्ण मंदिर और जलियाँवाला बाग़ के लिए पूरी दुनिया में मशहूर अमृतसर शहर की चुनावी फ़िज़ा में नवजोत सिंह सिद्धू की उम्मीदवारी का चर्चा है।सिद्धू बीजेपी छोड़कर आम आदमी से नाकाम सौदेबाज़ी करते हुए अपना बेअसर मोर्चा बनाने के बाद कांग्रेस में आए हैं और मुन्नी शीला से भी बदनाम कांग्रेस वाला अपना डायलाग भूल कर वोटरों से भी उसे भूलने की इल्तिजा कर रहे हैं।
बादल सरकार ने अपनी विकासोन्मुख छवि बनाने के लिए और वोटरों को लुभाने के लिए आनन फ़ानन में जिस तरह काम किये हैं उनकी एक बानगी अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के आस पास भी देखी जा सकती है। जलियाँवाला बाग़ के आगे बनी चमकदार हेरिटेज स्ट्रीट के प्रोजेक्ट के पत्थर पर राज्य के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल का नाम खुदा हुआ है और ये भी बताया गया है कि ये काम 2015 में शुरू होकर रिकार्ड 330 दिनों में पूरा कराया गया।
पर्यटक तो इससे वाक़ई ख़ुश होंगे लेकिन क्या पंजाब का वोटर भी इससे प्रभावित होगा?
लगता नहीं है वर्ना अमृतसर में राज्य के मंत्री अनिल जोशी नोटबंदी के मुद्दे पर सिटपिटाये से घूमते न दिखते।
फगवाड़ा के चह़ेड़ू गाँव के नौजवान सर्वजीत मान ने ये तो माना कि इस बार पंजाब में आम आदमी पार्टी का ज़बरदस्त ज़ोर दिख रहा है और बदलाव होना चाहिये लेकिन उसकी राय थी कि सरकार कांग्रेस की बनेगी । 27 साल के सर्वजीत मान को इस बात पर भरोसा नहीं है कि आम आदमी पार्टी स्थिरता के साथ काम कर पाएगी। वो इस बारे में पूछने पर दिल्ली की सुनी सुनाई अखबारी रिपोर्टों और न्यूज़ चैनलों की ख़बरों का हवाला देते हैं।
117 विधानसभा सीटों वाले पंजाब में 4 फ़रवरी को वोट पड़ने हैं। मालवा में 69, दोआबा में 23 और माझा में 25 सीटें हैं। देशमें सबसे ज़्यादा 32 फ़ीसदी दलित वोटर पंजाब में है जो इस चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच बँटा हुआ लग रहा है।
69 सीटों वाले मालवा इलाक़े में आम आदमी पार्टी की ज़ोरदार धमक बताई जा रही है । पार्टी को 2014 में चारों सांसद इसी इलाक़े से मिले थे। विधानसभा चुनावों में जिसे बदलाव की बयार कहा जा रहा है उसका केंद्र यही इलाक़ा है। अरविंद केजरीवाल समेत तमाम आम आदमी पार्टी नेताओं का 100 सीट पाने का दावा भी इस इलाक़े में कांग्रेस और अकाली दल पर पूरी तरह झाड़ू फेर देने की उम्मीद पर टिका हुआ है। पंजाब में इस बार लगभग 53 फ़ीसदी वोटर 18 सालसे 39 साल की उम्र का है । राज्य के क़रीब दो करोड़ मतदाताओं में से लगभग 10 लाख ऐसे हैं जो पहली बार वोट डालेंगे। इनमें आम आदमी पार्टी को लेकर ज़बरदस्त उत्साह है। युवा वोटर का मानना है कि आम आदमी पार्टी नशाबंदी , बेरोज़गारी, भ्रष्टाचार और ग़रीबों के मुद्दों पर बाक़ी दोनों (बीजेपी अकाली गठजोड़ में है) पार्टियों के मुक़ाबले ज़्यादा ईमानदार और भरोसेमंद लगती है। फ़तहगढ़ साहिब के पास चाय का ठेला लगाने वाले जगजीत सिंह तो यहाँ तक कहते हैं कि चाहे वोट कूड़े में चला जाय लेकिन बटन तो झाड़ू वाला ही दबाना है।
केजरीवाल का सिख न होना भी कोई मुद्दा नहीं है तमाम वोटरों के लिए। वे पलट कर पूछते हैं- क्या नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी सिख हैं?
युवाओं के लिए मुद्दा इस बार बादलां नू सबक़ सिखाने का है।
आम आदमी पार्टी से सबक़ लेकर कांग्रेस ने भी युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने मेनिफेस्टो में नौकरियाँ देने, नशाबंदी, बेरोज़गारी भत्ते के वादे किये हैं। 50 लाख स्मार्टफ़ोन देने का वादा, और काॅफी विद कैप्टन जैसी चुनावी योजनाएँ युवाओं को ध्यान में रखकर ही बनायी गयी हैं।
लेकिन वोटरों का एक अच्छा ख़ासा तबक़ा ख़ामोश भी है। झाड़ू, पंजा और तराज़ू की तक़दीर काफ़ी हद तक इनकी चुप्पी की आवाज़ से तय होगी।