लखनऊ ब्यूरो-: सिर्फ सात दिनों के अंदर ही राजधानी लखनऊ में धूम मचाकर समूचे प्रदेश में अच्छा संदेश देने वाले मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ का आज सायं उनके संसदीय क्षेत्र गोरखपुर में भव्य स्वागत हुआ। सैलाब की तरह लोग उमड आये थे। पूरी शहर किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सजा दिया गया था। सफाई ऐसी कि कुछ पूछो मत। लकदक करता शहर। वजह यह भी रही कि योगी ने लोगों में उम्मीदों की एक ऐसी लौ जगा दी है, जिससे सूबे का सर्वशक्तिमान बनकर पहली बार यहां आये योगी ने लोगों को इस बात का बहुत अच्छी तरह एहसास करा दिया है कि पूर्वांचल के लिये महाकाल बन गये दिमागी बुखार से अब उन्हें मुक्ति मिल कर ही रहेगी।
पिछले 37 सालों में यह महाकाल लगभग 16 हजार लोगों का लील चुका है। एक लाख से भी अधिक लोग हमेशा हमेशा के लिये अपाहिज बना दिये गये हैं। हाइकोर्ट की फटकार से भी सरकारें नहीं चेती। संवेदनहीन बनी रहीं। ऐसा सिर्फ और सिर्फ इसलिये कि मरने वाले ये सारे लोग अधिकांशतः उन परिवारों से ही रहे हैं, गरीब और वंचित परिवारों के रहे हैं। कोई ‘बडा‘ जिनका पुरसाहाल नहीं रहा है। मरने वालों में समृद्ध और ऊंची पहुंच वाले परिवारों में से शायद ही कोई भी ऐसा रहा हो। विडंबना तो यह है कि सार्स और स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों से युद्धस्तर पर लडने वाली सरकारें इस महामारी को लेकर आज तक पूरी तरह संवेदनहीन बनी हुईं हैं। याद कीजिये भोपाल गैस त्रासदी में मरने वाले उस बच्चे की अधखुली आँखों की तस्वीर को, जिसे देखकर पूरा देश दहल गया था। इसलिये कि वह बच्चा किसी गरीब किसान का नहीं, बडी ऊंची हैसियत वाले परिवार का लाडला था। सिर्फ इसी एक सच की वजह से पिछले लगभग 25 सालों से लोग एकजुट रहे हैं।
इस संबंध में सरकारी दस्तावेजों की माने, तो दिमागी बुखार, जिसे अंग्रेजी में इंसाफ्लेंइंटिस कहा जाता है, पिछले 37 सालों से पूर्वांचल के लगभग एक दर्जन जिलों में महाकाल तांडव कर रहा है। अपनी लाख कोशिशों के बावजूद, गोरखपुर के सांसद योगी आदित्य नाथ लोगों कों इससे राहत नही दिला सके थे।, एक मोटे गैरसरकारी अनुमान के अनुमार, इससे अब तक लगभग पचास हजार से भी अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और लगभग दो लाख लोग जीवन भर के लिये अपाहिज हो गये हैं। लेकिन, भ्रष्टाचार में आकंठ धॅसी प्रदेश और केंद की सरकारों के कान पर जूं तक नहीं रेंग सकी । हाईकोर्ट की फटकार और पांच सौ से भी अधिक लोगों के खून से लिखा गया पत्र भी उन्हें विचलित नहीं कर सका। चरम संवेदनहीनता यह पत्र भी फाइलों में दबाकर रख दिया गया।
सच तो यह भी है कि सांसद योगी आदित्य पूर्वांचल के लगभग एक दर्जन जिलों के अलावा, नेपाल और बिहार के सीमावर्ती कई जिलों में तबाही मचा रही इस प्राणलेवा बीमारी के खिलाफ लगातार जूझते गये। इसके लिये कई बार संसद में कई बार गुहार भी लगायी। सूबे की सरकारों को लगातार झकझोरते रहे। लेकिन, प्रदेश के एक भी मुख्य मंत्री ने आज तक गोरखपुर और आसपास के जिलों में जाकर पीडितों की दुखती रगों पर हाथ रखने की जरूरत ही नहीं समझी। हद तो उस समय हो गयी, जब मुलायम सरकार के कालखंड में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के स्वागत में उनकी सरकार ने सिर्फ एक रात में ही करोडों रु पानी की तरह बहा दिया था। लेकिन, भयंकर बीमारी से जूझ रहे पूर्वांचल के लोगों के लिये सरकारी खजाने से एक फूट कौडी तक देने की जरूरत नहीं समझी गयी। यही हाल पूर्ववर्ती अखिलेश यादव की भी सरकार का रहा है। रहस्यपूर्ण कारणों से लंदन और आस्ट्रेलिया की निजी यात्रा ओं पर एक से अधिक बार जा चुके पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव भी लोगों के आंसू पोछने की गरज से यहां नहीं आये। खुद को दलितों और वंचितों का मसीहा घोषित करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती का भी यही हाल रहा। वह दलितों की छाती पर चढकर तीन बार तो प्रदेश की मुख्य मंत्री बन गयीं। लेकिन, उन्होंने भी यही किया। सूबे में लगातार कई दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस का भी यही हाल रहा। और तो और पं0 दीनदयाल उपाध्याय ने नाम की माला जपकर उनकी अन्त्योदय योजना को अमलीजामा पहनाने के लिये भारतीय जनता पार्टी की सरकार से भी लोगों को बडी निराशा हुई हैं। इस दिशा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी तक से भी कोई अच्छा संकेत नहीं मिल सका है। यही वजह है कि समूचा पूर्वांचल अब मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ की ओर टकटकी लगाकर देख रहा है।
यही वजह है कि मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ के रोडशो में सैलाब की तरह उमड कर आये थे। ये सारे लोग इस बात के लिये बडे आतुर रहे हैं कि देखें योगी इस महाकाल के खूनी जबडे से पूर्वांचल को निकालने के लिये क्या करते हैं? मार्च बीतने को है। मई जून से लेकर अक्टूबर नवंबर तक इस महामारी का प्रचंड प्रकोप रहता है। इस बीच सिर्फ गोरखपुर जिले में लगभग आठ सौ बच्चों की मौत हो जाती है। पूर्वांचल के मऊ, देवरिया, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, कुशीनगर और देवरिया सहित एक दर्जन से भी अधिक जिलों में मरने वालों की तादाद को जोडें, तो यह संख्या बढकर छह हजार के आसपास हो जाती है।
इस महामारी की शुरुआत मच्छरों के काटने से होती है। पहले हल्का बुखार होता है। फिर देखते ही देखते यह बुखार इतना तेज हो जाता है कि पीडित व्यक्ति का शरीर बुरी तरह झटके खाने लगता है। दिमाग के बाहरी आवरण यानी इन्सेफलान में सूजन आ जाती है। उसका दिल भी सूज जाता है। इससे उसे सांस तक लेने में तकलीफ होने लगती है। कुछ भी निगलने में उसे बडी कठिनाई होने लगती है। इसी के साथ उसका शरीर इस तरह से ऐंठने लगता है, जैसे कोई कपडा निचोड रहा हो। इसी के कुछ देर बाद मरीज दम तोड देता है।
इस महामारी ने यहां के सांसद योगी आदित्यनाथ को भी बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है। लेकिन, वह करते भी क्या? उनका कहना रहा है कि ‘पिछले चैदह सालों से ‘मैं हर साल संसद में किसी दीर्घकालिक योजना की मांग करता रहा हॅू। लेकिन, कभी कभार की अल्पकालिक सक्रियता के अलावा कोई ठोस योजना नहीं बन सकी है।‘ सौभाग्य से यही योगी अब प्रदेश के मुख्य मंत्री हो गये हैं। पिछडों, दलितों ओर गरीबों के प्रति अत्यंत संवेदनशील रहे हैं और इस महामारी से उन्हें मुक्ति दिलाने के लिये संकल्पबद्ध भी। ऐसी शख्सियत के प्रदेश का मुख्य मंत्री बन जाने के बाद भी यदि पूर्वांचल के इस महाकाल पर काबू नहीं पाया जा सका, तो फिर नामुमकिन ही समझिये। वजह एकदम साफ है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ जैसे फकीरे मिजाज और इस्पाती इरादे के दूसरे मुख्य मंत्री के होने की संभावना दूर दूर तक नजर नही आ रही है।