आज दिशाएं भी हंसती हैं
है उल्लास विश्व पर छाया,
मेरा खोया हुआ खिलौना
अब तक मेरे पास न आया ।
शीत न लग जाए, इस भय से
नहीं गोद से जिसे उतारा
छोड़ काम दौड़ कर आयी
'माँ' कहकर जिस समय पुकारा ।
थपकी दे दे जिसे सुलाया
जिसके लिए लोरियां गायीं ।
जिसके मुख पर जरा मलिनता
देख आंख में रात बितायी ।
जिसके लिए भूल अपनापन
पत्थर को भी देव बनाया
कहीं नारियल, दूध, बताशे
कहीं चढ़ाकर शीश नवाया ।
फिर भी कोई कुछ कर न सका
छिन ही गया खिलौना मेरा
मैं असहाय विवश बैठी ही
रही उठ गया छौना मेरा ।
तड़प रहे हैं विकल प्राण ये ।
मुझको पलभर शान्ति नहीं है
वह खोया धन पा न सकूंगी
इसमें कुछ भी भ्रांति नहीं है ।
फिर भी रोता ही रहता है
नहीं मानता है मन मेरा
बड़ा जटिल नीरस लगता है
सूना-सूना जीवन मेरा ।
यह लगता है एक बार यदि
पल भर को उसको पा जाती ।
जी से लगा प्यार से सर
सहला सहला उसको समझाती ।
मेरे भैया मेरे बेटे अब
मां को यों छोड़ न जाना
बड़ा कठिन है बेटा खोकर
मां को अपना मन समझाना ।
भाई-बहिन भूल सकते हैं
पिता भले ही तुम्हें भुलावें
किन्तु रात दिन की साथिन मां
कैसे अपना मन समझावे ।