shabd-logo
Shabd Book - Shabd.in

बिखरे मोती - सुभद्रा कुमारी चौहान (कहानियों का संकलन)

सुभद्रा कुमारी चौहान

16 अध्याय
0 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
3 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

'बिखरे मोती' उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल 15 कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं!  

bikhare moti subhadra kumari chauhan kahaniyon ka sankalan

0.0(0)

पुस्तक के भाग

1

भूमिका बिखरे मोती

3 मार्च 2022
2
0
0

एक बार एक नये कहानी लेखक ने जिनकी एक-दो कहानियाँ प्रकाशित हो चुकी थीं, मुझसे बड़े इतमीनान के साथ कहा- “मैं पहले समझता था कि कहानी लिखना बड़ा कठिन है, परन्तु अब मुझे मालूम हुआ कि यह तो बड़ा सरल है। अब त

2

भग्नावशेष

3 मार्च 2022
0
0
0

1 न मैं कवि था न लेखक, परन्तु मुझे कविताओं से प्रेम अवश्य था। क्यों था यह नहीं जानता, परन्तु प्रेम था, और खूब था। मैं प्रायः सभी कवियों की कविताओं को पढ़ा करता था, और जो मुझे अधिक रुचतीं, उनकी कटिंग्

3

होली

3 मार्च 2022
0
0
0

(1) "कल होली है।" "होगी।" "क्या तुम न मनाओगी?" "नहीं।" ''नहीं?'' ''न ।'' '''क्यों? '' ''क्या बताऊं क्यों?'' ''आखिर कुछ सुनूं भी तो ।'' ''सुनकर क्या करोगे? '' ''जो करते बनेगा ।'' ''तुमसे कु

4

पापी पेट

3 मार्च 2022
0
0
0

(1) आज सभा में लाठी चार्ज हुआ। प्रायः पांच हजार निहत्थे और शान्त मनुष्यों पर पुलिस के पचास जवान लोहबन्द लाठियाँ लिये हुए टूट पड़े। लोग अपनी जान बचाकर भागे; पर भागते-भागते भी प्रायः पाँच सौ आदमियों को

5

मंझली रानी

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) वे मैने कौन थे ? मैं क्या बताऊँ ? वैसे देखा जाय तो वे मेरे कोई भी न होते थे। होते भी तो कैसे ? मैं ब्राह्मण, वे क्षत्रिय; मैं स्त्री, वे पुरुष; फिर न तो रिश्तेदार हो सकते थे और न मित्र आह ! यह क्

6

परिवर्तन

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) ठाकुर खेतसिंह, इस नाम को सुनते ही लोगों के मुँह पर घृणा और प्रतिहिंसा के भाव जागृत हो जाते थे । किन्तु उनके सामने किसी को उनके खिलाफ़ चूं करने की भी हिम्मत न पड़ती। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष, किसी

7

दृष्टिकोण

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) निर्मला विश्व प्रेम की उपासिका थी। संसार में सब के लिए उसके भाव समान थे। उसके हृदय में अपने पराये का भेद-भाव न था । स्वभाव से ही वह मिलनसार, सरल, हंसमुख और नेक थी । साधारण पढ़ी लिखी थी । अंगरेजी

8

कदम्ब के फूल

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) “भौजी ! लो मैं लाया ।” “सच ले आए ! कहाँ मिले ?” । “अरे ! बड़ी मुश्किल से ला पाया, भौजी !” “तो मजदूरी ले लेना ।” “क्या दोगी ?” “तुम जो माँगो।” “पर मेरी मांगी हुई चीज़ मुझे दे भी सकोगी ?” “क

9

क़िस्मत

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) "भौजी, तुम सदा सफेद धोती क्यों पहनती हो ?" "मैं क्या बताऊँ, मुन्नी”। “क्यों भौजी ! क्या तुम्हें अम्मा रंगीन धोती नहीं पहिनने देती?" "नहीं मुन्नी ! मेरी किस्मत ही नहीं पहनने देती, अम्मा भी क्या

10

मछुए की बेटी

3 मार्च 2022
0
0
0

चौधरी और चौधराइन के लाड़ प्यार ने तिन्नी को बड़ी ही स्वच्छन्द और उच्छृङ्खल बना दिया था। वह बड़ी निडर और कौतूहल-प्रिय थी। आधी, रात, पिछली पहर, जब तिन्नी की इच्छा होती वह नदी पर जाकर नाव खोलकर जल-विहार

11

एकादशी

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) शहर भर में डाक्टर मिश्रा के मुक़ाबिले का कोई डाक्टर न था। उनकी प्रैकटिस खूब चढ़ी बढ़ी थी। यशस्वी हाथ के साथ ही साथ वे बड़े विनोद प्रिय, मिलनसार और उदार भी थे। उनकी प्रसन्न मुख और उनकी उत्साहजनक ब

12

आहुति

3 मार्च 2022
0
0
0

(1) जनाने अस्पताल के पर्दा-वार्ड में दो स्त्रियों को एक ही दिन बच्चे हुए। कमरा नं० 5 में बाबू राधेश्याम जी की स्त्री मनोरमा को दूसरी बार पुत्र हुआ था। उन्हें प्रसूति-ज्वर हो गया था। उनकी अवस्था चिंता

13

थाती

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) क्यों रोती हूँ। इसे नाहक पूँछ कर जले पर नमक न छिड़को ! जरा ठहरो ! जी भर कर रो भी तो लेने दो, न जाने कितने दिनों के बाद आज मुझे खुलकर रोने का अवसर मिला है। मुझे रोने में सुख, मिलता है; शान्ति मिलत

14

अमराई

3 मार्च 2022
0
0
0

[१] उस अमराई में सावन के लगते ही झूला पड़ जाता और विजयादशमी तक पड़ा रहता। शाम-सुबह तो बालक-बालिकाएँ और रात में अधिकतर युवतियाँ उस झूले की शोभा बढ़ातीं। यह उन दिनों की बात है जब सत्याग्रह आन्दोलन अपने

15

अनुरोध

3 मार्च 2022
0
0
0

(१) "कल रात को मैं जा रहा हूँ ।” "जी नहीं, अभी आप न जा सकेंगे” आग्रह, अनुरोध और आदेश के स्वर में वीणा ने कहा। निरंजन के ओठों पर हल्की मुस्कुराहट खेल गई। फिर बिना कुछ कहे ही उन्होंने अपने जेब से एक

16

ग्रामीणा

3 मार्च 2022
1
0
0

पंडित रामधन तिवारी को परमात्मा ने बहुत धन-संपत्ति दी थी, किंतु संतान के बिना उनका घर सूना था। धन धान्य से भरा पूरा घर उन्हें जंगल की तरह जान पड़ता। संतान की लालसा में उन्होंने न जानें कितने जप-तप एवं

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए