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मत जाओ

4 मार्च 2022

34 बार देखा गया 34

अंधकार ! सघनांधकार ! हा,
निराधार संसार हुआ ।
हम असहाय निहत्थों पर, यह
कैसा भीषण वार हुआ ।


लुटते देखा अपना धन, हम

कुछ न कर सके हार गये ।
लोकमान्य, यह क्या सुनती हूँ,
सहसा स्वर्ग सिधार गये ?


यों असहाय छोड़ कर असमय

कैसे जाते हो भगवान ?
लौटो, तुम्हें न जाने देंगे,
दुखी देश के जीवन-प्राण !


भारत मैया की नैया के

चतुर खेवैया लौट चलो ।
इस कुसमय में साथ न छोड़ो,
रुक जाओ, ठहरो, सुन लो ।।


आशा-बेलि स्वदेश-भूमि की

यों न हाय ! मुर्झाने दो !

...............................

तिलक यहीं के कहलाओ ।

अमरपुरी बलि कर दो इस पर
यहीं रहो, हां ! मत जायो ।।  

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रचनाएँ
सुभद्रा कुमारी चौहान की प्रसिद्ध कविताएँ
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सुभद्रा कुमारी चौहान एक प्रसिद्ध हिंदी कवियत्री थी जिन्होंने मुख्यतः वीर रस में लिखा। उन्होंने हिंदी काव्य की अनेकों लोकप्रिय कृतियों को लिखा। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना झांसी की रानी थी, जो रानी लक्ष्मी बाई के जीवन का वर्णन करने वाली एक भावनात्मक कविता है।
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जलियाँवाला बाग में बसंत

4 मार्च 2022
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 (जलियाँवाला बाग की घटना बैसाखी को घटी थी,बैसाखी वसंत से सम्बंधित महीनों (फाल्गुन और चैत्र)के अगले दिन ही आती है)यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।कलियाँ भी अधखि

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मेरा नया बचपन

4 मार्च 2022
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 बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी।चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछ

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साध

4 मार्च 2022
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 मृदुल कल्पना के चल पँखों पर हम तुम दोनों आसीन।भूल जगत के कोलाहल को रच लें अपनी सृष्टि नवीन।वितत विजन के शांत प्रांत में कल्लोलिनी नदी के तीर।बनी हुई हो वहीं कहीं पर हम दोनों की पर्ण-कुटीर।कुछ रूखा, स

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यह कदम्ब का पेड़

4 मार्च 2022
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यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपक

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ठुकरा दो या प्यार करो

4 मार्च 2022
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 देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैंसेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैंधूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैंमुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैंमैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी ज

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कोयल

4 मार्च 2022
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देखो कोयल काली है परमीठी है इसकी बोलीइसने ही तो कूक कूक करआमों में मिश्री घोलीकोयल कोयल सच बतलानाक्या संदेसा लाई होबहुत दिनों के बाद आज फिरइस डाली पर आई होक्या गाती हो किसे बुलातीबतला दो कोयल रानीप्या

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पानी और धूप

4 मार्च 2022
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अभी अभी थी धूप, बरसनेलगा कहाँ से यह पानीकिसने फोड़ घड़े बादल केकी है इतनी शैतानी।सूरज ने क्‍यों बंद कर लियाअपने घर का दरवाजा़उसकी माँ ने भी क्‍या उसकोबुला लिया कहकर आजा।ज़ोर-ज़ोर से गरज रहे हैंबादल है

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वीरों का कैसा हो वसंत

4 मार्च 2022
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 आ रही हिमालय से पुकारहै उदधि गरजता बार बारप्राची पश्चिम भू नभ अपार;सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्तवीरों का कैसा हो वसंतफूली सरसों ने दिया रंगमधु लेकर आ पहुंचा अनंगवधु वसुधा पुलकित अंग अंग;है वीर देश में क

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खिलौनेवाला

4 मार्च 2022
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वह देखो माँ आजखिलौनेवाला फिर से आया है।कई तरह के सुंदर-सुंदरनए खिलौने लाया है।हरा-हरा तोता पिंजड़े मेंगेंद एक पैसे वालीछोटी सी मोटर गाड़ी हैसर-सर-सर चलने वाली।सीटी भी है कई तरह कीकई तरह के सुंदर खेलचा

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उल्लास

4 मार्च 2022
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शैशव के सुन्दर प्रभात कामैंने नव विकास देखा।यौवन की मादक लाली मेंजीवन का हुलास देखा।जग-झंझा-झकोर मेंआशा-लतिका का विलास देखा।आकांक्षा, उत्साह, प्रेम काक्रम-क्रम से प्रकाश देखा।जीवन में न निराशा मुझकोकभ

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झिलमिल तारे

4 मार्च 2022
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कर रहे प्रतीक्षा किसकी हैंझिलमिल-झिलमिल तारे?धीमे प्रकाश में कैसे तुमचमक रहे मन मारे।अपलक आँखों से कह दोकिस ओर निहारा करते?किस प्रेयसि पर तुम अपनीमुक्तावलि वारा करते?करते हो अमिट प्रतीक्षा,तुम कभी न व

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मधुमय प्याली

4 मार्च 2022
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रीती होती जाती थीजीवन की मधुमय प्याली।फीकी पड़ती जाती थीमेरे यौवन की लाली।हँस-हँस कर यहाँ निराशाथी अपने खेल दिखाती।धुंधली रेखा आशा कीपैरों से मसल मिटाती।युग-युग-सी बीत रही थींमेरे जीवन की घड़ियाँ।सुलझ

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मेरा जीवन

4 मार्च 2022
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मैंने हँसना सीखा हैमैं नहीं जानती रोना;बरसा करता पल-पल परमेरे जीवन में सोना।मैं अब तक जान न पाईकैसी होती है पीडा;हँस-हँस जीवन मेंकैसे करती है चिंता क्रिडा।जग है असार सुनती हूँ,मुझको सुख-सार दिखाता;मेर

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झाँसी की रानी की समाधि पर

4 मार्च 2022
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इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी ।जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी ।यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की ।अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ।यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग

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इसका रोना

4 मार्च 2022
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तुम कहते हो - मुझको इसका रोना नहीं सुहाता है ।मैं कहती हूँ - इस रोने से अनुपम सुख छा जाता है ।सच कहती हूँ, इस रोने की छवि को जरा निहारोगे ।बड़ी-बड़ी आँसू की बूँदों पर मुक्तावली वारोगे । 1 ।ये नन्हे से

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नीम

4 मार्च 2022
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सब दुखहरन सुखकर परम हे नीम! जब देखूँ तुझे।तुहि जानकर अति लाभकारी हर्ष होता है मुझे।ये लहलही पत्तियाँ हरी, शीतल पवन बरसा रहीं।निज मंद मीठी वायु से सब जीव को हरषा रहीं।हे नीम! यद्यपि तू कड़ू, नहिं रंच-म

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मुरझाया फूल

4 मार्च 2022
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यह मुरझाया हुआ फूल है,इसका हृदय दुखाना मत।स्वयं बिखरने वाली इसकीपंखड़ियाँ बिखराना मत।गुजरो अगर पास से इसकेइसे चोट पहुँचाना मत।जीवन की अंतिम घड़ियों मेंदेखो, इसे रुलाना मत।अगर हो सके तो ठंडीबूँदें टपका

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फूल के प्रति

4 मार्च 2022
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डाल पर के मुरझाए फूल!हृदय में मत कर वृथा गुमान।नहीं है सुमन कुंज में अभीइसी से है तेरा सम्मान।मधुप जो करते अनुनय विनयबने तेरे चरणों के दास।नई कलियों को खिलती देखनहीं आवेंगे तेरे पास।सहेगा कैसे वह अपमा

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चलते समय

4 मार्च 2022
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तुम मुझे पूछते हो ’जाऊँ’?मैं क्या जवाब दूँ, तुम्हीं कहो!’जा...’ कहते रुकती है जबानकिस मुँह से तुमसे कहूँ ’रहो’!!सेवा करना था जहाँ मुझेकुछ भक्ति-भाव दरसाना था।उन कृपा-कटाक्षों का बदलाबलि होकर जहाँ चुका

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कलह-कारण

4 मार्च 2022
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कड़ी आराधना करके बुलाया था उन्हें मैंने।पदों को पूजने के ही लिए थी साधना मेरी।तपस्या नेम व्रत करके रिझाया था उन्हें मैंने।पधारे देव, पूरी हो गई आराधना मेरी।उन्हें सहसा निहारा सामने, संकोच हो आया।मुँदी

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मेरे पथिक

4 मार्च 2022
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 हठीले मेरे भोले पथिक!किधर जाते हो आकस्मात।अरे क्षण भर रुक जाओ यहाँ,सोच तो लो आगे की बात।यहाँ के घात और प्रतिघात,तुम्हारा सरस हृदय सुकुमार।सहेगा कैसे? बोलो पथिक!सदा जिसने पाया है प्यार।जहाँ पद-पद पर ब

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जीवन-फूल

4 मार्च 2022
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मेरे भोले मूर्ख हृदय नेकभी न इस पर किया विचार।विधि ने लिखी भाल पर मेरेसुख की घड़ियाँ दो ही चार।छलती रही सदा हीमृगतृष्णा सी आशा मतवाली।सदा लुभाया जीवन साकी नेदिखला रीती प्याली।मेरी कलित कामनाओं कीललित

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भ्रम

4 मार्च 2022
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देवता थे वे, हुए दर्शन, अलौकिक रूप था।देवता थे, मधुर सम्मोहन स्वरूप अनूप था।देवता थे, देखते ही बन गई थी भक्त मैं।हो गई उस रूपलीला पर अटल आसक्त मैं।देर क्या थी? यह मनोमंदिर यहाँ तैयार था।वे पधारे, यह अ

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समर्पण

4 मार्च 2022
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सूखी सी अधखिली कली हैपरिमल नहीं, पराग नहीं।किंतु कुटिल भौंरों के चुंबनका है इन पर दाग नहीं।तेरी अतुल कृपा का बदलानहीं चुकाने आई हूँ।केवल पूजा में ये कलियाँभक्ति-भाव से लाई हूँ।प्रणय-जल्पना चिन्त्य-कल्

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चिंता

4 मार्च 2022
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लगे आने, हृदय धन सेकहा मैंने कि मत आओ।कहीं हो प्रेम में पागलन पथ में ही मचल जाओ।कठिन है मार्ग, मुझकोमंजिलें वे पार करनीं हैं।उमंगों की तरंगें बढ़ पड़ेंशायद फिसल जाओ।तुम्हें कुछ चोट आ जाएकहीं लाचार लौट

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प्रियतम से

4 मार्च 2022
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बहुत दिनों तक हुई परीक्षाअब रूखा व्यवहार न हो।अजी, बोल तो लिया करो तुमचाहे मुझ पर प्यार न हो। जरा जरा सी बातों परमत रूठो मेरे अभिमानी।लो प्रसन्न हो जाओगलती मैंने अपनी सब मानी।मैं भूलों की भरी पिटारीऔ

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प्रथम दर्शन

4 मार्च 2022
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प्रथम जब उनके दर्शन हुए,हठीली आँखें अड़ ही गईं।बिना परिचय के एकाएकहृदय में उलझन पड़ ही गई।मूँदने पर भी दोनों नेत्र,खड़े दिखते सम्मुख साकार।पुतलियों में उनकी छवि श्याममोहिनी, जीवित जड़ ही गई।भूल जाने क

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परिचय

4 मार्च 2022
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क्या कहते हो कुछ लिख दूँ मैंललित-कलित कविताएं।चाहो तो चित्रित कर दूँजीवन की करुण कथाएं।सूना कवि-हृदय पड़ा है,इसमें साहित्य नहीं है।इस लुटे हुए जीवन में,अब तो लालित्य नहीं है।मेरे प्राणों का सौदा,करती

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अनोखा दान

4 मार्च 2022
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अपने बिखरे भावों का मैंगूँथ अटपटा सा यह हार।चली चढ़ाने उन चरणों पर,अपने हिय का संचित प्यार।डर था कहीं उपस्थिति मेरी,उनकी कुछ घड़ियाँ बहुमूल्यनष्ट न कर दे, फिर क्या होगामेरे इन भावों का मूल्य?संकोचों म

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उपेक्षा

4 मार्च 2022
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इस तरह उपेक्षा मेरी,क्यों करते हो मतवाले!आशा के कितने अंकुर,मैंने हैं उर में पाले।विश्वास-वारि से उनको,मैंने है सींच बढ़ाए।निर्मल निकुंज में मन के,रहती हूँ सदा छिपाए।मेरी साँसों की लू सेकुछ आँच न उनमे

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तुम

4 मार्च 2022
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जब तक मैं मैं हूँ, तुम तुम हो,है जीवन में जीवन।कोई नहीं छीन सकतातुमको मुझसे मेरे धन।आओ मेरे हृदय-कुंज मेंनिर्भय करो विहार।सदा बंद रखूँगीमैं अपने अंतर का द्वार।नहीं लांछना की लपटेंप्रिय तुम तक जाने पाए

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व्याकुल चाह

4 मार्च 2022
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सोया था संयोग उसेकिस लिए जगाने आए हो?क्या मेरे अधीर यौवन कीप्यास बुझाने आए हो??रहने दो, रहने दो, फिर सेजाग उठेगा वह अनुराग।बूँद-बूँद से बुझ न सकेगी,जगी हुई जीवन की आग।झपकी-सी ले रहीनिराशा के पलनों में

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आराधना

4 मार्च 2022
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जब मैं आँगन में पहुँची,पूजा का थाल सजाए।शिवजी की तरह दिखे वे,बैठे थे ध्यान लगाए।जिन चरणों के पूजन कोयह हृदय विकल हो जाता।मैं समझ न पाई, वह भीहै किसका ध्यान लगाता?मैं सन्मुख ही जा बैठी,कुछ चिंतित सी घब

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पूछो

4 मार्च 2022
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जब मैं आँगन में पहुँची,पूजा का थाल सजाए।शिवजी की तरह दिखे वे,बैठे थे ध्यान लगाए।जिन चरणों के पूजन कोयह हृदय विकल हो जाता।मैं समझ न पाई, वह भीहै किसका ध्यान लगाता?मैं सन्मुख ही जा बैठी,कुछ चिंतित सी घब

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मेरा गीत

4 मार्च 2022
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जब अंतस्तल रोता है,कैसे कुछ तुम्हें सुनाऊँ?इन टूटे से तारों पर,मैं कौन तराना गाऊँ??सुन लो संगीत सलोने,मेरे हिय की धड़कन में।कितना मधु-मिश्रित रस है,देखो मेरी तड़पन में।यदि एक बार सुन लोगे,तुम मेरा करु

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वेदना

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दिन में प्रचंड रवि-किरणेंमुझको शीतल कर जातीं।पर मधुर ज्योत्स्ना तेरी,हे शशि! है मुझे जलाती।संध्या की सुमधुर बेला,सब विहग नीड़ में आते।मेरी आँखों के जीवन,बरबस मुझसे छिन जाते।नीरव निशि की गोदी में,बेसुध

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विदा

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अपने काले अवगुंठन कोरजनी आज हटाना मत।जला चुकी हो नभ में जोये दीपक इन्हें बुझाना मत।सजनि! विश्व में आजतना रहने देना यह तिमिर वितान।ऊषा के उज्ज्वल अंचल मेंआज न छिपना अरी सुजान।सखि! प्रभात की लाली मेंछिन

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प्रतीक्षा

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बिछा प्रतीक्षा-पथ पर चिंतितनयनों के मदु मुक्ता-जाल।उनमें जाने कितनी हीअभिलाषाओं के पल्लव पाल।बिता दिए मैंने कितने हीव्याकुल दिन, अकुलाई रात।नीरस नैन हुए कब करकेउमड़े आँसू की बरसात।मैं सुदूर पथ के कलरव

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विजई मयूर

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तू गरजा, गरज भयंकर थी,कुछ नहीं सुनाई देता था।घनघोर घटाएं काली थीं,पथ नहीं दिखाई देता था।तूने पुकार की जोरों की,वह चमका, गुस्से में आया।तेरी आहों के बदले में,उसने पत्थर-दल बरसाया।तेरा पुकारना नहीं रुका

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स्वदेश के प्रति

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आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ,स्वागत करती हूँ तेरा।तुझे देखकर आज हो रहा,दूना प्रमुदित मन मेरा।आ, उस बालक के समानजो है गुरुता का अधिकारी।आ, उस युवक-वीर सा जिसकोविपदाएं ही हैं प्यारी।आ, उस सेवक के समान तू

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विदाई

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कृष्ण-मंदिर में प्यारे बंधुपधारो निर्भयता के साथ।तुम्हारे मस्तक पर हो सदाकृष्ण का वह शुभचिंतक हाथ।तुम्हारी दृढ़ता से जग पड़ेदेश का सोया हुआ समाज।तुम्हारी भव्य मूर्ति से मिलेशक्ति वह विकट त्याग की आज।त

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मेरी टेक

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निर्धन हों धनवान,परिश्रम उनका धन हो।निर्बल हों बलवान,सत्यमय उनका मन हो।हों स्वाधीन गुलाम,हृदय में अपनापन हो।इसी आन पर कर्मवीरतेरा जीवन हो।तो, स्वागत सौ बारकरूँ आदर से तेरा।आ, कर दे उद्धार,मिटे अंधेर-अ

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प्रभु तुम मेरे मन की जानो

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मैं अछूत हूँ, मंदिर में आने का मुझको अधिकार नहीं है।किंतु देवता यह न समझना, तुम पर मेरा प्यार नहीं है।प्यार असीम, अमिट है, फिर भी पास तुम्हारे आ न सकूँगी।यह अपनी छोटी सी पूजा, चरणों तक पहुँचा न सकूँगी

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बालिका का परिचय

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यह मेरी गोदी की शोभा, सुख सोहाग की है लालीशाही शान भिखारन की है, मनोकामना मतवालीदीप-शिखा है अँधेरे की, घनी घटा की उजियालीउषा है यह काल-भृंग की, है पतझर की हरियालीसुधाधार यह नीरस दिल की, मस्ती मगन तपस्

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स्मृतियाँ

4 मार्च 2022
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क्या कहते हो? किसी तरह भीभूलूँ और भुलाने दूँ?गत जीवन को तरल मेघ-सास्मृति-नभ में मिट जाने दूँ?शान्ति और सुख से येजीवन के दिन शेष बिताने दूँ?कोई निश्चित मार्ग बनाकरचलूँ तुम्हें भी जाने दूँ?कैसा निश्चित

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सभा का खेल

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सभा सभा का खेल आज हम,खेलेंगे जीजी आओ।मैं गांधी जी छोटे नेहरू,तुम सरोजिनी बन जाओ।मेरा तो सब काम लंगोटी,गमछे से चल जायेगा।छोटे भी खद्दर का कुर्ता,पेटी से ले आयेगा।लेकिन जीजी तुम्हें चाहिये,एक बहुत बढ़िय

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राखी

4 मार्च 2022
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भैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैंराखी अपनी, यह लो आज ।कई बार जिसको भेजा हैसजा-सजाकर नूतन साज ।।लो आओ, भुजदण्ड उठाओइस राखी में बँध जाओ ।भरत - भूमि की रजभूमि कोएक बार फिर दिखलाओ ।।वीर चरित्र राजपूतों कापढ़ती ह

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राखी की चुनौती

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बहिन आज फूली समाती न मन में ।तड़ित आज फूली समाती न घन में ।।घटा है न झूली समाती गगन में ।लता आज फूली समाती न बन में ।।कही राखियाँ है, चमक है कहीं पर,कही बूँद है, पुष्प प्यारे खिले हैं ।ये आई है राखी,

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जाने दे

4 मार्च 2022
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कठिन प्रयत्नों से सामग्रीएकत्रित कर लाई थी ।बड़ी उमंगों से मन्दिर में,पूजा करने आई थी ।।पास पहुंकर देखा तो,मन्दिर का का द्वार खुला पाया ।हुई तपस्या सफल देव केदर्शन का अवसर आया ।।हर्ष और उत्साह बढ़ा, कुछ

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पुरस्कार कैसा

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सहसा हुई पुकार ! मातृ-मन्दिर में मुझे बुलाया क्यों ?जान-बूझकर सोई थी, फिरजननी ! मुझे जगाया क्यों ?भूल रही थी स्वप्न देखना,आमंत्रण पहुँचाया क्यों ?बन्द द्वार करने जाती थीफिर पथ हाय ! सुझाया क्यों ?मान

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शिशिर-समीर

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शिशिर-समीरण, किस धुन में हो,कहो किधर से आती हो ?धीरे-धीरे क्या कहती हो ?या यों ही कुछ गाती हो ?क्यों खुश हो ? क्या धन पाया है ?क्यों इतना इठलाती हो ?शिशिर-समीरण ! सच बतला दो,किसे ढूँढने जाती हो ?मेरी

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मानिनि राधे

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थीं मेरी आदर्श बालपन सेतुम मानिनि राधेतुम-सी बन जाने को मैंनेव्रत-नियमादिक साधे ।।अपने को माना करती थीमैं वृषभानु-किशोरी।भाव-गगन के कृष्णचन्द्र कीथी मैं चतुर चकोरी ।।था छोटा-सा गाँव हमाराछोटी-छोटी गलि

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पुरस्कार का मूल्य

4 मार्च 2022
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मधुर-मधुरन मीठे शब्दों मेंमैंने गाना गाया एक ।वे प्रसन्न हो उठे खुशी सेशाबाशी दी मुझे अनेक ।।निश्चल मन से मैंने उनकीकी सभक्ति सादर सेवा ।पाया मैंने कृतज्ञताका उसी समय मीठा मेवा ।।नवविकसित सुरभित कलिया

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मातृ-मन्दिर में

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वीणा बज-सी उठी, खुल गये नेत्रऔर कुछ आया ध्यान।मुड़ने की थी देर, दिख पड़ाउत्सव का प्यारा सामान॥जिसको तुतला-तुतला करकेशुरू किया था पहली बार।जिस प्यारी भाषा में हमकोप्राप्त हुआ है माँ का प्यार॥उस हिन्दू

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रामायण की कथा

4 मार्च 2022
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आज नहीं रुक सकता अम्मांजाऊंगा मैं बाहररामायण की कथा हो रहीहोगी सरला के घर ।मेरे ही आगे उसके घरआया था हलवाईपूजा में प्रसाद रखने कोवह दे गया मिठाई ।पूजा हो जाने पर बंटताहै प्रसाद मनमानाचाहो तो प्रसाद ले

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कुट्टी

4 मार्च 2022
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मोहन से तो आज हो गईहै मेरी कुट्टी अम्मां ।अच्छा है शाला जाने सेमिली मुझे छुट्टी अम्मां ।।रोज सवेरे आकर मुझकोवह शाला ले जाता था ।दस बजते हैं इसी समय तोयह अपने घर आता था ।।मोहन बुरा नहीं है अम्मांमैं उस

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नटखट विजय

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कितना नटखट मेरा बेटा ।क्या लिखता है लेटा-लेटा ॥अभी नहीं अक्षर पहचाना ।ग, म, भ का भेद न जाना ॥फिर पट्टी पर शीश झुकाए ।क्या लिखता है ध्यान लगाए ॥मैं लिखता हूँ बिटिया रानी।मुझे पिला दो ठंडा पानी॥  

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मुन्ना का प्यार

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माँ मुन्ना को तुम हम सबसेक्यों ज्यादा करती हो प्यार ?हमें भेज देतीं पढ़ने कोउसका करतीं सदा दुलारउसे लिए रहती गोद मेंपैरों हमें चलाती होहमें अकेला छोड़ उसे तुमअपने साथ सुलाती होउसके रोने पर तुम अपनेकाम छ

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पतंग

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जो तुम अम्माँ देर करोगीपतंग न हम ले पाएँगेसब लड़के खरीद लेंगे माँहम यों ही रह जाएँगेतुम तो नहीं समझती हो माँपतंग और मंझे की बातघर में बैठी-बैठी जाने क्याकरती रहतीं दिन-रातअब हम रह न सकेंगे अम्माँहम भी

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अजय की पाठशाला

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माँ ने कहा दूध तो पी लो,बोल उठे माँ रुक जाओवहीं रहो पढ़ने बैठा हूँमेरे पास नहीं आओहै शाला का काम बहुत-सामाँ उसको कर लेने दोग म भ लिख-लिख कर अम्माँपट्टी को भर लेने दोतुम लिखती हो हम आते हैंतब तुम होती ह

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लोहे को पानी कर देना

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जब जब भारत पर भीड़ पड़ी, असुरों का अत्याचार बढ़ा,मानवता का अपमान हुआ, दानवता का परिवार बढ़ा ।तब तब हो करुणा से प्लावित करुणाकर ने अवतार लिया,बनकर असहायों के सहाय दानव-दल का संहार किया ।दुख के बादल हट गये,

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पुत्र-वियोग

4 मार्च 2022
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आज दिशाएं भी हंसती हैंहै उल्लास विश्व पर छाया,मेरा खोया हुआ खिलौनाअब तक मेरे पास न आया ।शीत न लग जाए, इस भय सेनहीं गोद से जिसे उताराछोड़ काम दौड़ कर आयी'माँ' कहकर जिस समय पुकारा ।थपकी दे दे जिसे सुलायाज

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तुम

4 मार्च 2022
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कितनी बार बुलाया तुमकोदे दे सविनय आमंत्रण ।फिर भी नहीं पसीजे तिल-भरअरे निठुर तुम मेरे धन ।।तूम चपला सी चमक दिखाकरनीले नभ में छिप जाते ।फिर ऊषा की लाली में आफूलों में मुसका जाते ।।मन्द वायु लहरों के सं

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व्यथित हृदय

4 मार्च 2022
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व्यथित है मेरा हृदय-प्रदेशचलूँ उसको बहलाऊँ आज ।बताकर अपना सुख-दुख उसेहृदय का भार हटाऊँ आज ।।चलूँ मां के पद-पंकज पकड़नयन जल से नहलाऊँ आज ।मातृ-मन्दिर में मैंने कहा-चलूँ दर्शन कर आऊँ आज ।।किन्तु यह हुआ अ

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विदाई

4 मार्च 2022
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आशे ! किसी हरित पल्लव में जाओ, जाओ छिप जाओ ।खुला हूआ है द्वार निराशे ! आओ स्वागत है आओ ।।आयो उद्विग्नते ! हृदय का मंथन कर दुख पहुंचाओ ।निष्ठुरते ! जाओ- निष्ठुरतम उनका हृदय बना आओ ।।मुझ अकिंचना को तजकर

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आहत की अभिलाषा

4 मार्च 2022
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 जीवन को न्यौछावर करके तुच्छ सुखों को लेखा।अर्पण कर सब कुछ चरणों पर तुम में ही सब देखा।।थे तुम मेरे इष्ट देवता, अधिक प्राण से प्यारे।तन से, मन से, इस जीवन से कभी न थे तुम न्यारे।।अपना तुमको समझ, समझती

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विजयादशमी

4 मार्च 2022
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विजये ! तूने तो देखा हैवह विजयी श्री राम सखी !धर्म भीरु सात्विक निश्छ्ल मनवह करुना का धाम सखी !वनवासी असहाय और फिरहुआ विधाता वाम सखी ।री गई सहचरी जानकीवह व्याकुल घनश्याम सखी !कैसे जीत सका रावण कोरावण

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वे कुंजें

4 मार्च 2022
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देव ! वे कुंजें उजड़ी पड़ींऔर वह कोकिल उड़ ही गयी ।हटायीं हमने लाखों बारकिन्तु घड़ियां जुड़ ही गयीं ।।विष्णु ने दिया दान ले लियाकुश्लता गयी, अंधेरा मिला ।मातृ-मन्दिर में सूने खड़ेमुक्ति के बदले मरना मिला ।।

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सेनानी का स्वागत

4 मार्च 2022
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हम हारे या थके रुकी-सीकिन्तु युद्ध की गति है ।हमें छोड़कर चला गयापथ-प्रदर्शक सेनापति है ।अन्धकार छा रहा भ्रमित सीआज हमारी मति है ।जिधर उठाते दृष्टि दिखायीदेती क्षति ही क्षति है ।।ऐसी घोर निराशा में तुम

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मेरी प्याली

4 मार्च 2022
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अपने कविता-कानन कीमैं हूँ कोयल मतवालीमुझ से मुखरित हो गातीउपवन की डाली-डाली ।मैं जिधर निकल जाती हूँमधुमास उतर आता है।नीरस जन के जीवन मेंरस घोलघोल जाता है।सूखे सुमनों के दल परमैं मधु-संचालन करती।मैं प्

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जल समाधि

4 मार्च 2022
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अति कृतज्ञ हूंगी मैं तेरीऐसा चित्र बना देना।दुखित हृदय के भाव हमारे।उस पर सब दिखला देना।।प्रभु की निर्दयता, जीवों कीकातरता दरसा देना।मृत्यु समय के गौरव को भीभली-भांति झलका देना।।भाव न बतलाए जाते हैं।श

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मनुहार

4 मार्च 2022
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क्यों रूठे हो, क्या भूल हुई,किसलिए आज हो खिन्न हुए?जो थे अभिन्न दो हृदय देव,वे आज कहो क्यों भिन्न हुए?सुख की कितनी अतुलित घड़ियांहमने मिल साथ बिताई हैं।कितनी ही कठिन समस्याएंहमने मिलकर सुलझाई हैं।मिल ब

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मेरी कविता

4 मार्च 2022
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मुझे कहा कविता लिखने को,लिखने बैठी मैं तत्काल ।पहले लिखा जलियाँवाला,कहा कि बस हो गये निहाल ।।तुम्हें और कुछ नहीं सूझता,ले-देकर वह खूनी बाग ।रोने से अब क्या होता है,धुल न सकेगा उसका दाग ।।भूल उसे चल हं

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स्वागत गीत

4 मार्च 2022
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कर्म के योगी, शक्‍ति-प्रयोगीदेश-भविष्य सुधारियेगा ।हाँ, वीर-वेश के दीन देश के,जीवन प्राण पछारियेगा ।।तुम्हारा कर्म-चढ़ाने को हमें डोर हुआ ।तुम्हारी बातों से दिल-में हमारे जोर हुआ ।।तुम्हें कुचलने को दु

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स्वागत

4 मार्च 2022
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(१९२० में नागपुर में होने वालीकांग्रेस के स्वागत में)तेरे स्वागत को उत्सुक यह खड़ा हुआ है मध्य-प्रदेशअर्घ्यदान दे रही नर्मदा दीपक सवयं बना दिवसेश ।।विंधयाचल अगवानी पर हैवन-श्री चंवर डुलाती है ।भोली-भाल

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मत जाओ

4 मार्च 2022
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अंधकार ! सघनांधकार ! हा,निराधार संसार हुआ ।हम असहाय निहत्थों पर, यहकैसा भीषण वार हुआ ।लुटते देखा अपना धन, हमकुछ न कर सके हार गये ।लोकमान्य, यह क्या सुनती हूँ,सहसा स्वर्ग सिधार गये ?यों असहाय छोड़ कर अस

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स्वागत साज

4 मार्च 2022
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ऊषे सजनि ! अपनी लाली सेआज सजा दो मेरा तन,कला सिखा खिलने की कलिकेविकसित कर दो मेरा मन ।हे प्रसून-दल ! अपना वैभवबिखरा दो मेरे ऊपर,मुझ-सी मोहक और न कोईकहीं दिखायी दे भू पर ।।माधव ! अपनी मनोमोहिनीमधु-माया

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करुण-कहानी

4 मार्च 2022
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आह ! करोगे क्या सुन कर तुममेरी करुण कहानी को ।भूल चुकी मैं स्वयं आजउस स्वप्न-लोक की रानी को ।।जो चुन कर आकाश-कुसुम काहार बनाने वाली थी ।उनके काँटों से इस उर कासाज सजाने वाली थी ।अपने वैभव को बटोर करकह

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अपराधी है कौन

4 मार्च 2022
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अपराधी है कौन, दण्ड काभागी बनता है कौन ?कोई उनसे कहे कि पल भरसोचें रह कर मौन ।वे क्या समझ सकेंगेउनकी खीजमयी मनुहार ।उनका हँस कर कह देना, 'सखि,निभ न सकेगा प्यार ।यहीं कुचल दो, यहीं मसल दोमत बढ़ने दो बे

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