बड़ी ही अजीब सी रंगत है प्यार की भी
पहले पहल मिलते है प्यार होता है दो
चार मुलाकाते भी होती है सब को ही
ये बहुत ही अच्छा अहसास लगता है ये जो
पहला प्यार का नशा होता फिर धीरे धीरे
साथ समय गुजारते जाते तो असली रंगत
दिखने लग जाते है कोई बहाना ढूढ़ते है दूर जाने
की तो कोई सामने से ही रिस्ता ख़त्म कर आगे बढ़
जाते है कोई ज़िंदगी ख़त्म करने पर लग जाते है
तो कोई कुछ कर करने पर अलग अलग राह पकड़
चलते है
रंगों की एक लाली लाई है सब कहते उसे प्यार।
होने को भी हुई ना होने को भी हुई हुई तो हुई
सब को हुई मगर साथ साथ कहर ये लाया
जिसने भी इसको आजमाया दर्द ही पाया कोई बच
ना पाया इस लाली से किसी को आबाद किया तो
किसी को बर्बाद किया है ना समझ सकोगे इसको