नई दिल्लीः
1989 से पहले यूपी में आइएएस-आइपीएस अफसरों को पोस्टिंग के लिए न नेताओं का पैर छूने की जरूरत होती थी, न उनका दरबारी बनने की। जो जितना काबिल होता था, उस हिसाब से तैनाती मिल जाती थी। गिने-चुने मामले उस दौर में अपवाद हुआ करते थे। चाहे यूपी के पहले मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत रहे हों या फिर वीपी सिंह, वीर बहादुर सिंह या एनडी तिवारी का दौर रहा हो। खाने-कमाने के लिए कम से कम इन्होंने कभी ट्रांसफर-पोस्टिंग को धंधा नहीं बनाया। यह बात हम कुछ पुराने ब्यूरोक्रेट्स से बातचीत करने के बाद उनके अनुभवों के आधार पर कह रहे। मगर पांच दिसंबर 1989 को जैसे ही मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री हुए तो जनाब की आंखों ने ट्रांसफर-पोस्टिंग में भी कमाई देख ली। बस फिर क्या था कि थोक के भाव में अफसरों को छटकाया जाने लगा। ट्रांसफर पॉलिसी गई तेल लेने। बस एक फार्मूला चल निकला। पैसा लाओ-मनचाही पोस्टिंग पाओ। ट्रांसफर-पोस्टिंग में जाति विशेष को वरीयता तो मिली मगर उन्हें भी रुपया गिनना पड़ा।
दोस्तों, अपने दावे को यथार्थ का धरातल देने के लिए पिछले दो साल की दो नजीर देता हूं। आइएएस अशोक कुमार पिछले साल तब सुर्खियों में आए थे, जब उन्होंने 70 लाख में डीएम की तैनाती के रेट का खुलासा कर दिया था। हुआ यूं कि ये जनाब साइडलाइन चल रहे थे। राष्ट्रीय एकीकरण परिषद के सचिव अशोक को चीफ सेक्रेटरी ने बस्ती जिले में निरीक्षण के लिए भेजा था। वहां पत्रकारों ने डीपीआरओ की शिकायत करते हुए कहा कि वे 70 हजार रुपये में ग्राम पंचायत अधिकारियों की नियुक्ति कर रहे हैं। इस पर उन्होंने कहा था-अरे यार यही तो आजकल हो रहा है। मेरे पास 70 लाख रुपये होते तो मैं आज सचिवालय में नहीं किसी जिले का डीएम बनकर बैठा होता। मुंह से रेट निकल जाने पर अशोक को निलंबित होना पड़ा। ट्रांसफर-पोस्टिंग के गोरखधंधे से जुड़ा सबसे धांसू मामला तो जून 2015 में सामने आया था। जब पुलिस महकमे का सबसे बड़ा दलाल सपा नेता पकड़ा गया था। नाम था शैलेंद्र अग्रवाल। रुतबे का आलम यह था कि यह पट्ठा 18 बॉडी गार्ड लेकर चलता था। क्योंकि इस दलाल का कनेक्शन सीधे तत्कालीन डीजीपी ए सी शर्मा और ए एल बनर्जी से था। गिरफ्तारी के बाद उसने खुलासा किया था कि 40 दारोगाओं को इंस्पेक्टर बनवाने के लिए उसने पूर्व डीजीपी को 3.20 करोड़ रुपये कैश दिए थे।
36 साल की नौकरी में मुख्यमंत्री बनारसी दास से लेकर मायावती तक का शासनकाल करीब से देख चुके रिटायर्ड आइएएस अफसर प्रभात चंद्र चतुर्वेदी भी बातचीत में इस गोरखधंधे की पुष्टि करते हैं। तीन-तीन मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्रीके सचिव के रूप में काम कर चुके चतुर्वेदी कहते हैं कि नौकरशाही में ट्रांसफर-पोस्टिंग को कारोबार की शक्ल मुलायम के दौर में ही मिली। यह भी बताते हैं कि 1991 में जब कल्याण सिंह का शासन आया तो उन्होंने जरूर इस कारोबार पर चोट की। एक बार फिर से अफसरों को काबिलियत के हिसाब से पद मिलने लगे। मगर यही कल्याण सिंह जब दूसरी दफा मुख्यमंत्री बने तो फिर से ट्रांसफर-पोस्टिंग का धंधा चोखा हो गया। दूसरे कार्यकाल में कल्याण सिंह के नेचर में यह बदलाव अप्रत्याशित था।
कारखाने नहीं लगे मगर ट्रांसफर -पोस्टिंग की इंडस्ट्री खडी़ हो गई
मुलायम सिंह, मायावती और अखिलेश के राज में भले ही यूपी को किसी कल-कारखाने का तोहफा न मिला हो, मगर उन्होंने खाद-पानी देकर सूबे में एक नए तरह की इंडस्ट्री जरूर तैयार की।। यह इंडस्ट्री रही हजारों करोड़ कमाई वाली ट्रांसफर-पोस्टिंग की। बापू भवन के पंचम तल से आइएएस-आइपीएस की मनमानी ट्रांसफर-पोस्टिंग से कमाने की रवायत चली तो जिले के साहबान भी नक्शेकदम पर चले। देखादेखी जिले के बीएसए साहब भी शिक्षकों को 15-15 हजार में फेंटने लगे। यह देख डीपीआरओ साहब से भी नहीं रहा गया। उन्होंने पांच-पांच हजार में सफाईकर्मियों को फेंटना शुरू किया। बेसिक शिक्षा विभाग में तो कब टीचर को निलंबित किया जाता है, कब पैसा ऐंठकर बहाल कर दिया जाता है, किसी को पता ही नहीं चलता। ट्रांसफर-पोस्टिंग होनी बुरी बात नहीं है, मगर जब यह कारोबार की शक्ल ले ले तो सवाल उठना लाजिमी है। इस कारोबार को इसलिए बढ़ावा दिया गया, क्योंकि हाकिमों की घर के तहखाने में छुपाई तिजोरियों को भरने से इसका कनेक्शन जुड़ा रहा।
आंकड़े बोलते हैं
यूपी में आईपीएस हैं सिर्फ 407। मगर इन्हें अखिलेश ने ताश के पत्तों की तरह खूब फेंटा। मार्च 2012 से 2017 के बीच कुल 2454 आइपीएस अफसरों के तबादले हुए। औसत आंकड़े निकालें तो हर दिन 1.3 आईपीएस इधर से उधर हुआ तो पांच साल में हर आईपीएस को औसतन छह बार ट्रांसफर झेलना पड़ा। आईपीएस उमेश कुमार श्रीवास्तव को पांच साल में 20 बार ट्रांसफर से गुजरना पड़ा तो अनीस अहमद को 18, राजेंद्र पांडेय को 17 और हाल में निलंबित हुए हिमांशु कुमार को भी पांच साल में 15 बार अखिलेश के राज में ट्रांसफर झेलना पड़ा। अखिलेश राज में कुल 3921 पीपीएस अफसरों के तबादले हुए। औसतन 02 पीपीएस अफसर प्रति दिन की दर से तबादला हुए जो औसतन 4.25 तबादला प्रति पीपीएस अफसर था। यह सूचना यूपी के आईजी कार्मिक पीसी मीना ने डॉ. नूतन ठाकुर की आरटीआई के जवाब में मुहैया कराया है।