नई दिल्ली: राजस्थान के अलवर जिले के गढ़ीसवाईराम गांव में एक आदर्श स्कूल श्मशान में चलाया जा रहा है। डर के माहौल में बच्चे पढ़ने को मजबूर हैं। श्मशान में एकतरफ मुर्दे जलाए जाते हैं, तो दूसरी तरफ वहीं बगल में बच्चों की पढ़ाई होती है। यहां के हालात ये हैं कि जब भी गांव में किसी की मौत हो जाती है। विद्यालय में तब छुट्टी कर दी जाती है। इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि जब लाश श्मशान में जलने आती है, तो बच्चे बेहद डर जाते हैं।
बच्चे नहीं कर पाते पढ़ाई
गांव के किसी की मौत होने पर स्कूल की छुट्टी कर दी जाती है अन्तिम संस्कार होने से पूर्व ही बच्चों की तीन से चार दिनों के लिए छुट्टी कर देते हैं, ताकि बच्चे डरे नहीं, लेकिन बच्चों के मन से खौफ नहीं जाता। इसके कारण बच्चों की पढ़ाई पर इसका असर पढ़ता है।
दूसरी जगह नहीं मिली जमीन
स्कूल प्रबंधन और शिक्षा विभाग ने स्कूल को दूसरी जगह शिफ्ट करने के लिए लाख कोशिश की लेकिन आजतक इस स्कूल को जमीन नहीं उपलब्ध हो पाई है। फिलहाल स्कूल में 180 बच्चे पढ़ रहे हैं। श्मशान भूमि पर दो कमरे और छतरियां बनी हुई हैं। इनमें ही बच्चों को पढ़ाया जाता है। बच्चों के प्रार्थना स्थल पर शवों का अंतिम संस्कार होता है।
माँगा है पांच कमरे का बजट
सीनियर सेंकडरी स्कूल के प्रधानाध्यापक बाबूलाल ने बताया कि डेढ़ साल पहले एकीकरण के तहत स्कूल को मर्ज करने की योजना थी लेकिन उनके पास जगह का अभाव होने के कारण स्कूल यथावत संचालित हो रहा है। उन्होंने बताया की हमने सरकार से पांच कमरो का बजट मांगा है। बजट मिलने के बाद स्कूल में खेल मैदान और कमरे बनाकर और श्मशान भूमि की तरफ दीवार कर दूसरी तरफ गेट निकाल कर स्कूल संचालित किया जाएगा।