... समाज के अलग-अलग वर्ग से प्रभावशाली लोगों को चुनने के बाद उनसे आर्टिकल, बाइट और पब्लिक इवेंट में अप्रत्यक्ष तौर पर क्लाइंट (जिसकी ब्रांडिंग करनी हो) की तारीफ या उनकी इमेज को बेहतर करने का काम होता है. जाहिर है, इससे काफी फर्क पड़ता है और एक हद तक जनता प्रभावित भी होती है तो इसके लिए पैसे का लेन-देन भी खूब होता है, जो अंततः जनता की जेब से निकाले जाते हैं. इन सबके बीच सोशल साइट्स, मीडिया मैनेजमेंट, स्पीच राइटिंग, प्रेस रिलीज मैनेजेमेंट, पब्लिक इवेंट कराना, वेब ब्लॉग और अन्य जगहों पर भी क्लाइंट की इमेज बिल्डिंग का काम खूब ज़ोर शोर से जारी रहता है. ऐसा नहीं है कि पीआर कंपनियों का कांसेप्ट कोई नया है, किन्तु इससे पहले जब भी 'पीआर' का नाम सुना जाता था, वह बॉलीवुड सेलिब्रिटीज़ या फिर कॉर्पोरेट के प्रोडक्ट्स और इमेज बिल्डिंग के सन्दर्भ में ही सामने आता था. भारत में, इसकी गम्भीर शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 2014 के लोकसभा चुनावों से मानी जा सकती हैं. नरेंद्र मोदी की धुआंधार सफलता से, अधिकांश राजनेताओं का ध्यान इस तरफ गया है. उस समय, जहाँ एक तरफ मोदी की जीत की चर्चा हो रही थी वहीं उनके जीत में सहायक "प्रशांत किशोर" का नाम भी खूब मशहूर हुआ. ये वही...
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