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मन रीझ न यों

22 फरवरी 2016

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मन!

अपनी कुहनी नहीं टिका

उन संबंधों के शूलों पर

जिनकी गलबहियों से तेरे

मानवपन का दम घुटता हो।


मन!

जो आए और छील जाए

कोमल मूरत मृदु भावों की

तेरी गठरी को दे बैठे

बस एक दिशा बिखरावों की


मन!

बाँध न अपनी हर नौका

ऐसी तरंग के कूलों पर

बस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिर

जिसका पग तट तक उठता हो।


जो तेरी सही नज़र पर भी

टूटा चश्मा पहना जाए

तेरे गीतों की धारा को

मरुथल का रेत बना जाए


मन!

रीझ न यों निर्गंध-बुझे

उस सन्नाटे के फूलों पर

जिनकी छुअनों से दृष्टि जले,

भावुक मीठापन लुटता हो।

-डॉ. कुँअर बेचैन

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रचनाएँ
kunvarbechain
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बेटियाँ

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चल ततइया

20 फरवरी 2016
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चल ततइया !काट तन मोटी व्यवस्था काजो धकेले जा रही हैदेश का पइया !चल ततइया !छोड़ मीठा गुड़तू वहाँ तक उड़है जहाँ पर क़ैद पेटों में रुपइया !चल ततइया !!डंक कर पैनाचल बढ़ा सेनाथाम तुरही, छोड़कर मीठा पपइया !!चल ततइया !!-डॉ. कुँअर बेचैन

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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे

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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसेराह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसेउसने पोंछे ही नहीं अश्क़ मेरी आँखों सेमैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसेबस उसी दिन से ख़फ़ा है वो मेरा इक चेहराधूप में आईना इक रोज दिखाया था जिसेछू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर गईइक ग़ज़ल शौक़ से मैंने कभी गाया था जिस

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(रात)जाते-जाते दिवस,रात की पुस्तक खोल गया।रात कि जिस परसुबह-शाम की स्वर्णिम ज़िल्द चढ़ीगगन-ज्योतिषी नेतारों की भाषा ख़ूब पढ़ीआया तिमिर,शून्य के घट में स्याही घोल गया।(सुबह)देख भोर कोनभ-आनन पर छाई फिर लालीपेड़ों पर बैठे पत्तेफिर बजा उठे तालीइतनी सारी-चिड़ियों वाला पिंजड़ा डोल गया।(दोपहर)ड्यूटी की पाब

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