बेटियाँ-
शीतल हवाएँ हैं
जो पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतीं
ये तरल जल की परतें हैं
लाज की उज़ली कनातें हैं
है पिता का घर हृदय-जैसा
ये हृदय की स्वच्छ बातें हैं I
बेटियाँ -
पवन-ऋचाएँ हैं,
बात जो दिल की, कभी खुलकर नहीं कहतीं
हैं चपलता तरल पारे की
और दृढता ध्रुव-सितारे की
कुछ दिनों इस पार हैं लेकिन
नाव हैं ये उस किनारे की I
बेटियाँ-
ऐसी घटाएँ हैं
जो छलकती हैं, नदी बनकर नहीं बहतीं I
-कुँअर बेचैन