ज़िन्दगी यूँ ही चली यूँ ही चली मीलो तक
चांदनी चार कदम, धूप चली मीलों तक
प्यार का दाँव अजब दाँव है जिसमे अक्सर
कत्ल होती ही नहीं दुख की गली मीलों तक
घर से निकला तो चली साथ मे बिटिया की हँसी
खुशबू इनसे ही जी रही नन्ही कली मीलों तक
मन के आँचल मे जो सिमटी तो घुमड़ कर बरसी
मेरी पलको पे जो एक पीर पली मीलों तक
-डॉ. कुँअर बेचैन