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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे

20 फरवरी 2016

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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे

राह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसे


उसने पोंछे ही नहीं अश्क़ मेरी आँखों से

मैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसे


बस उसी दिन से ख़फ़ा है वो मेरा इक चेहरा

धूप में आईना इक रोज दिखाया था जिसे


छू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर गई

इक ग़ज़ल शौक़ से मैंने कभी गाया था जिसे


दे गया घाव वो ऐसे कि जो भरते ही नहीं

अपने सीने से कभी मैंने लगाया था जिसे


होश आया तो हुआ यह कि मेरा इक दुश्मन

याद फिर आने लगा मैंने भुलाया था जिसे


वो बड़ा क्या हुआ सर पर ही चढ़ा जाता है

मैंने काँधे पे `कुँअर' हँस के बिठाया था जिसे

-डॉ. कुँअर बेचैन

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रचनाएँ
kunvarbechain
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बेटियाँ

20 फरवरी 2016
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बेटियाँ-शीतल हवाएँ हैं जो पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतींये तरल जल की परतें हैंलाज की उज़ली कनातें हैंहै पिता का घर हृदय-जैसाये हृदय की स्वच्छ बातें हैं Iबेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं,बात जो दिल की, कभी खुलकर नहीं कहतींहैं चपलता तरल पारे कीऔर दृढता ध्रुव-सितारे कीकुछ दिनों इस पार हैं लेकिननाव हैं ये उस क

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सबकी बात न माना कर

20 फरवरी 2016
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सबकी बात न माना करखुद को भी पहचाना करदुनिया से लड़ना है तोअपनी ओर निशाना कर या तो मुझसे आकर मिलया मुझको दीवाना कर बारिश में औरों पर भीअपनी छतरी ताना कर बाहर दिल की बात न लादिल को भी तहखाना कर शहरों में हलचल ही रखमत इनको वीराना कर-डॉ. कुँअर बेचैन

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अन्तर

20 फरवरी 2016
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मीठापन जो लाया था मैं गाँव सेकुछ दिन शहर रहा अब कड़वी ककड़ी है।तब तो नंगे पाँव धूप में ठंडे थेअब जूतों में रहकर भी जल जाते हैंतब आया करती थी महक पसीने सेआज इत्र भी कपड़ों को छल जाते हैंमुक्त हँसी जो लाया था मैं गाँव सेअब अनाम जंजीरों ने आ जकड़ी है।तालाबों में झाँक,सँवर जाते थे हमअब दर्पण भी हमको नही

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चल ततइया

20 फरवरी 2016
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चल ततइया !काट तन मोटी व्यवस्था काजो धकेले जा रही हैदेश का पइया !चल ततइया !छोड़ मीठा गुड़तू वहाँ तक उड़है जहाँ पर क़ैद पेटों में रुपइया !चल ततइया !!डंक कर पैनाचल बढ़ा सेनाथाम तुरही, छोड़कर मीठा पपइया !!चल ततइया !!-डॉ. कुँअर बेचैन

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गुलाब हम, गुलाब तुम

20 फरवरी 2016
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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसे

20 फरवरी 2016
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उँगलियाँ थाम के खुद चलना सिखाया था जिसेराह में छोड़ गया राह पे लाया था जिसेउसने पोंछे ही नहीं अश्क़ मेरी आँखों सेमैंने खुद रोके बहुत देर हँसाया था जिसेबस उसी दिन से ख़फ़ा है वो मेरा इक चेहराधूप में आईना इक रोज दिखाया था जिसेछू के होंठों को मेरे वो भी कहीं दूर गईइक ग़ज़ल शौक़ से मैंने कभी गाया था जिस

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सोख न लेना पानी

22 फरवरी 2016
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22 फरवरी 2016
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22 फरवरी 2016
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(रात)जाते-जाते दिवस,रात की पुस्तक खोल गया।रात कि जिस परसुबह-शाम की स्वर्णिम ज़िल्द चढ़ीगगन-ज्योतिषी नेतारों की भाषा ख़ूब पढ़ीआया तिमिर,शून्य के घट में स्याही घोल गया।(सुबह)देख भोर कोनभ-आनन पर छाई फिर लालीपेड़ों पर बैठे पत्तेफिर बजा उठे तालीइतनी सारी-चिड़ियों वाला पिंजड़ा डोल गया।(दोपहर)ड्यूटी की पाब

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मन रीझ न यों

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मन!अपनी कुहनी नहीं टिकाउन संबंधों के शूलों परजिनकी गलबहियों से तेरेमानवपन का दम घुटता हो।मन!जो आए और छील जाएकोमल मूरत मृदु भावों कीतेरी गठरी को दे बैठेबस एक दिशा बिखरावों कीमन!बाँध न अपनी हर नौकाऐसी तरंग के कूलों परबस सिर्फ़ ढहाने की ख़ातिरजिसका पग तट तक उठता हो।जो तेरी सही नज़र पर भीटूटा चश्मा पहना

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