* दो ही मनुष्य अपने विपरीत कर्म के कारण शोभा नहीं पाते---अकर्मण्य गृहस्थ और प्रपंच में लगा हुआ सन्यासी(महाभारत)
* जो सन्यास गृहण करने के बाद पुन: स्त्रीसंग करता है वह साठ हजार वर्षों तक विष्ठा का कीडा होता है (स्कन्दपुराण)
* जो सन्यासी सबके द्वारा पूजा जा रहा है;उस सन्यासी को भी अपनी माता समक्ष आ जाने पर प्रयत्नपूर्वक उसकी वन्दना करनी चाहिए(स्कन्दपुराण)
* कौपीन;लंगोटी;चादर;सर्दी दूर करने हेतु एक गुदड़ी तथा खड़ाऊं सन्यासी इन वस्तुओं के सिवाय अपने पास किसी वस्तु का संग्रह न करे(नृसिंहपुराण)
* सन्यासी को चाहिए की वह लकड़ी से बनी स्त्री का भी स्पर्श न करे! हाथ से स्पर्श करना तो दूर रहा पैर से भी स्पर्श न करे(श्रीमद्भागवत्)
* जो एक बार सन्यास गृहण करके फिर उसे त्याग देता है;ऐसा व्यक्ति सभी के द्वारा बहिष्कृत होता है(यमस्मृति)
* जो पुरुष अपनी कुलीन पतिव्रता युवती पत्नी को सन्तानहीन अवस्था में त्यागकर -सन्यासी;ब्रह्मचारी;यति हो जाता है उस पुरुष को मोक्ष सुख तो मिलता नहीॆं उल्टा पत्नी के शाप के कारण;धर्म का नाश होता है;लोक में अपकीर्ति होती है और नरक मिलता है(ब्रह्मवैवर्तपुराण)
* जब मन में सब पदार्थों से पूर्ण वैराग्य हो ;तभी सन्यास की इच्छा करनी चाहिए ! वैराग्यवान पुरुष सन्यास गृहण करे और रागवान गृहस्थ(नारदपरिव्राजकोपनिषद)
* सन्यासी नहीं होते हुए भी जो मनुष्य सन्यासी का वेश धारण करके अपनी आजीविका चलाता है;वह पाप को प्राप्त होता है(मनुस्मृति)