कहते हैं, सब मुझको "सैनिक"
पर, सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ"
मैं सपूत इस जन्मभूमि का
ज्ञान ये तुमने दिया।
मस्त-मगन था तेरी गोद में
भेज दिया तुमने फिर जंग में।
बोली, मिट्टी का कर्ज चुकाओं
मातृभूमि के लाल कहलाओं।
आँचल तेरा छुट गया "माँ"
छूटा गांव, घर और चौबारा।
रोया था मैं फूट-फूट के
जिस दिन छूटा था साथ तुम्हारा।
तुमने मुझको जन्म दिया "मां"
इस मिट्टी ने पाला है।
मातृभूमि का कर्ज चुकाना
तुमने ही तो सिखालाया है।
तू ही हिम्मत,तू ही हौसला
शौर्य उपहार तुमने दिया है।
चिर सकूँ दुश्मन का सीना
वो,बल तुमने दिया है।
आज धरा का कर्ज चुकाकर
तिरंगे में लिपट गया "मैं"।
तेरी ममता का मान बढ़ाकर
लो,देश का बेटा बन गया "मैं"।