shabd-logo

हमारे त्यौहार और हमारी मानसिकता

29 अक्टूबर 2018

354 बार देखा गया 354
featured image

article-imageरहम करे अपनी प्रकृति और अपने बच्चो पर , आप से बिनम्र निवेदन है ना मनाया ऐसी दिवाली


गैस चैंबर बन चुकी दिल्ली को क्या कोई सरकार ,कानून या धर्म बताएगा कि " हमे पटाखे जलाने चाहिए या नहीं?" क्या हमारी बुद्धि और विवेक बिलकुल मर चुकी है ? क्या हम मे सोचने- समझने की शक्ति ही नहीं बची जो हम समझ सके कि - क्या सही है और क्या गलत ? क्या अपने जीवन मूल्यों को समझने और उसे बचाने के लिए भी हमे किसी कानून की जरुरत है ? क्या हमे हमारे बच्चो के बीमार फेफड़े नहीं दिखाए देते जो एक एक साँस मुश्किल से ले रहे है ? क्या तड़प तड़प कर दम तोड़ते हमे हमारे बुजुर्ग दिखाई नहीं देते ?तो लानत है हम पे, हम इंसान क्या जानवर कहलाने के लायक भी नहीं है।


मैं समझ नहीं पा रही हूँ कि " पटाखे जलने पर सुप्रीम कोर्ट के रोक को" बहस का मुद्दा क्यूँ बनाया जा रहा है। पहले तो हमे शर्म आनी चाहिए कि ऐसे बिषय पर भी कानून बनाने की जरूरत पड़ रही है।हमने अपने जमीर अपनी इंसानियत को कितने हद तक गिरा लिया है। क्या इंसानियत के लिए भी किसी कानून और स्कूल की जरूरत है? 2016 के इसी प्रदूष्ण ने मेरे हठे- कठे पिता की जान ली थी। उस वक़्त हमारे 5 साल के भतीजे और आठ साल के बहन के बेटे ने जब हम से पूछा की दादा जी को साँस लेने में दिक्क्त क्यों हो रही थी, वो अचानक हमे छोड़ कर कैसे चले गये? तो हमने उन्हें समझाया कि - प्रदूष्ण ने दादा जी की जान ली है । उस वक़्त उन्होंने ये कसम खाई कि अब हम कभी पटाखे नहीं जलायेगे। उन्हें किसी कानून ने नहीं कहा था बल्कि उनका खुद का जमीर जगा था। और अब हमारे घर का हर बच्चा पटाखे ना जलाने के लिए अपने सारे दोस्तों को भी मना करते है। क्या हम इन बच्चो से भी कुछ नहीं सीख सकते ? तो सचमुच धिधकार है हम पे।



article-image

ये है हमारी परम्परागत दिवाली


कब तक हम धर्म के नाम पर खुद का ,समाज का और अपने पर्यावरण का शोषण करते रहेंगे ? क्या क्रिसमस ,ईद और दिवाली पर पटाखे जलने से ही हमारा त्यौहार मनाना सम्पन होगा ? क्या जगह जगह रावण जलाकर ही हम ये सिद्ध कर सकते है कि हमने रावण को मार दिया? रावण भी ऊपर से देखकर हंस रहा होगा और कहता होगा - "मूर्खो मारना है तो अपने भीतर के रावण को मारो,मैं तो तुम सब के अंदर जिन्दा हूँ ,तभी तो किसी ना किसी रूप में हर साल हज़ारो की जान ले ही लेता हूँ ,पाखंडियो खुद के भीतर के रावण को तो मार नहीं सकते इसलिए हर साल मेरे पुतले को जला मुझे मारने का ढोंग करते हो। " इन दिनों हुए इन सारे घटनाकर्मो को देख कर क्या आप को नहीं लगता कि हमने अपनी इंसानियत पूरी तरह खो दी है ? क्या हमने अपने हर "त्योहारों" चाहे वो किसी भी धर्म का हो उसे बदनाम नहीं कर दिया है? क्या हर त्यौहार की पाकीज़गी , उसकी खूबसूरती और उसके उदेश्य को हमने मिटटी में नहीं मिला दिया ?


कभी कभी मैं सोचती हूँ की हमारे पूर्वजो ने ये इतने सारे "त्यौहार "क्यूँ बनाये। इन त्योहारों के पीछे उनकी क्या मानसिकता रही होगी ,कही ऐसा तो नहीं की उस वक़्त कोई मनोरजन के साधन नहीं थे तो इसी बहाने लोग अपने रोजमर्रा के दिनचर्या को छोड़ एक हंसी ख़ुशी का माहौल और मिलने मिलाने का अवसर बना लेते थे ,सब एक साथ खाते पीते और नाचते -गाते थे। क्योकि हर धर्म के त्यौहार में एक बात तो समान्य रूप से दीखता है कि सारे त्यौहार सामाजिक रूप से ही मनाये जाने का चलन है। किसी धर्म का कोई एक त्यौहार ऐसा नहीं जो अकेले अकेले मानाने को कहता हो। ये तो तय है कि हर धर्म का हर त्यौहार आपस में मिल कर सुख दुःख बाटने और खुशियाँ मानाने के लिए ही बने थे। हिन्दुओ की होली -दिवाली हो, मुस्लिमो का ईद या ईसाइयो की क्रिसमस सब में एक ही संदेश है प्रेम और भाईचारे का। लेकिन क्या आज के परिवेश में ऐसा हो रहा है ?


लेकिन फिर सोचती हूँ कि अगर सिर्फ खुशियाँ मनाने के लिए त्यौहार बने थे तो फिर हर धर्म के हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई कहानियाँ कैसे है ? ये तो मानना पड़ेगा की इन कहानियों में सचाईया तो है जो की हमारे इतिहासकर ,पुरातत्व बिभाग वाले और शोध कर्ताओ ने सिद्ध कर दिया है। हिन्दुओ के पर्व में दशहरा "विजयादशमी "के रूप में मनाते है। मन्यता है की उस दिन रामजी ने रावण जैसे दुष्ट राक्षस जिसने सीता माता का हरण किया था उसका का वध किया था यानि बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी। उस जीत के जश्न के रूप में हम दशहरा मनाते है। इस्लाम में ईद का त्यौहार भी जीत के जश्न के रूप में ही मानते है। कहते है कि उस दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्त की थी। वैसे ही ईसाई समुदाय ईसामसीह के जन्म दिवस के रूप में क्रिश्मस मानते है। ईसामसीह ने ईसाई समाज को उस समय के क्रूर शासको के यातना से बचाया और इंसानियत और भाईचारे का संदेश दिया। यानि हर त्यौहार किसी जीत या यूँ कहे की बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्नहै। हर जीत के जश्न को त्यौहार के रूप में मनाने का परम्परा शायद इसलिए बनाया गया हो कि - हम याद रखे की बुराई की जीत कभी नहीं होती और ये भी बताते है की कोई भी युद्ध अकेले नहीं लड़ा जाता सामूहिक एकता ही हर विजय दिलाती है। लेकिन क्या हम त्यौहार मानते वक़्त इस सन्देश को याद रखते है?


हिन्दू धर्म को सबसे प्राचीन धर्म मानते है। इसलिए इसमें त्यौहार भी अनगिनत है। तो क्या सारे त्योहारों के पीछे यही दो कारण होंगे। हिन्दुओ में हर देवी देवता के जन्म दिवस को भी एक भव्य त्यौहार के रूप में मानाया जाता है। ऐसा क्यों ? शायद हमारे पूर्वज हमे हर उस महापुरुष जिन्हो ने हमे जीवन दर्शन का ज्ञान दिया उनके जीवन चरित्र को याद रखने और जीवन में अपनाये रखने के लिए इस त्यौहार की परम्परा बनाई होगी। उन्हें लगा होगा की शायद साल को वो एक दिन याद कर उनके बच्चे जो भटकाव के राह पर यदि चल पड़े होंगे तो वो संभाल जायेगे। लेकिन क्या रामनवमी ,कृष्णआष्ट्मी या गणेशचतुर्दसी मानते समय हम एक बार भी उन देवपुरुषों के गुण और कर्म को याद करते है ?


हिन्दुओ में सरस्वती पूजा ,लक्ष्मीपूजा और दुर्गा पूजा भी बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। शायद इन देवी स्वरूपा नारियो की पूजा कर हमारे पूर्वज हमे ये बताना चाहते थे कि नारी सर्वशक्ति मान है। कहते है की जब सारे देवगण राक्षसों के प्रकोप से अपने आप को बचाने में असहाय हो जाते थे तो वो देवी के शरण में जाते थे। तो शायद वो हर साल इन देवियो की पूजा करने की परम्परा बना कर हमे ये याद रखने को कहते थे की नारियाँ पुरषो से कमजोर नहीं उनका आदर -सम्मान करो। आज पुरषो की बात छोड़े क्या नारियो ने खुद अपनी मान मर्यादा को कायम रख अपनी भीतर छुपी शक्ति को पहचान पा रही है?


सारे त्योहारों के पीछे उपवास की भी परम्परा बनाई गई क्यों? हिन्दू में तो अनगिनत दिन उपवास के लिए बनाये गए है लेकिन इस्लाम और ईसाइयो में भी उपवास रखने का रिवाज़ है क्यों ? उपवास के साथ दान करने का भी रिवाज़ बना है। इस्लाम में भी ईद के दिन दान का रिवाज़ है जिसे जकात कहते है ,ईसाई भी क्रिसमस के दिन गरीबो में मिठाई और कपडे बांटते है। शायद इसके पीछे धर्म को जोड़ उन्होंने ये बताना चाहो हो कि - यदि हम एक दिन के भोजन का त्याग करे तो वो भोजन किसी दूसरे इंसान का पेट भर सकती है। दान देने को भी धर्म से जोड़ा ताकि हम गरीबो की मदद कर सके।


इन त्योहारों को मनाने और उपवास भी रखने के पीछे मानसिक, सामाजिक और धार्मिक कारणों के अलावा कोई वैज्ञानिक कारण भी हो सकता है क्या ? हो सकता है, अब उपवास को ही ले विज्ञानं भी कहता है कि हमे समय समय पर अपने पाचनतंत्र को एक दिन का बिश्राम देना चाहिए और उस दिन ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए ताकि हमारे पाचनतंत्र की सफाई हो सके। हमारे पूर्वजो ने भी तो यही कहा है। अब दिवाली मनाने के परम्परा को ही ले ले। कहते है रामजी उस दिन 14 वर्ष का वनवास काट अयोध्या लोटे थे इस लिए घरो की सफाई की गई दीये जलाये गये और इस घटना को त्यौहार और परम्परा का रूप दिया गया। ताकि हम याद रखे की कोई अपना जब वर्षो बाद घर लौटता है तो उसका दिल से स्वागत कैसे करते है।


अब इसके पीछे एक वैज्ञानिक तथ्य शायद ये भी हो ,चार माह के बारिस के मौसम के बाद सर्दी के मौसम का आगमन होता है। बरसात के मौसम में घर के अंदर से लेकर बाहर तक गंदगी और कीड़े मकोड़े की संख्या काफी बढ़ जाती है। सर्दी बढ़ने से पहले अगर इनकी सफाई नहीं हुई तो बीमारियो का प्रकोप बढ़ जायेगा। हमारे पूर्वजो ने दिवाली को लक्ष्मी पूजा से भी जोड़ा और कहा कि अपना घर और अपने आस पास का वातावरण अगर साफ नहीं रखोगे तो लक्ष्मीजी तुमसे नाराज़ हो जाएगी और तुम्हारे घर नहीं आएगी। दिवाली पर तेल या घी के दीपक जलने की परम्परा बनाई ताकि उस दीये के आग में वो सारे बरसाती कीट -पतंगे जल कर खत्म हो जाये जो हमारे शरीर के साथ साथ आगे चलकर हमारे खेतो को भी नुकसान पहुचायेगे। घी और तेल से निकलने वाले धुएं हमारे पर्यावरण को शुद्ध करेंगे। कितनी बड़ी वैज्ञानिकता छिपी थी इस त्यौहार में। क्या आज हम इस तथ्य को समझ त्यौहार मना रहे है ?

इन सारे "क्यों ?"का जबाब आप भी जानते है कि " नहीं " हैं आज तो हम इस बात पर बहस करने में लगे है कि दिवाली पर कोर्ट ने पटाखे ना जलाने का फैसला क्यों दिया है। कोई उसे धार्मिक बहस का मुदा बना रहा है तो कोई उसे राजनीतिक रूप दे रहा है। तो सिर्फ अपने बारे में सोचने वाले लोग अपना आर्धिक नुकसान का रोना रो रहे है। क्यूँ ,क्यूँ हमने अपना इतना मानसिक पतन कर लिया है कि हमे सिर्फ और सिर्फ अपना स्वार्थ दिखाई दे रहा है।


कहते है इंसान ने अपने बुद्धि और विवेक से बहुत प्रगति किया है। एक बार हर व्यक्ति अपनी आत्मा को साक्षी मान दिल से कहे- क्या हम ने सचमुच प्रगति की है या हमारा पतन हुआ है। हमारी बुद्धि ने हमे चाँद पर घर बसने का रास्ता तो दिखा दिया लेकिन अपनी स्वर्ग जैसी धरती को हमने नर्क का रूप दे दिया। जब धरती धुधु कर जलेगी तो क्या चाँद पर शरण मिलेगी हमे ? चाँद तक पहुंचने का रास्ता भी तो धरती से ही जायेगा न । हमे आश्चर्य होता है हम इतने मुर्ख ,इतने बुद्धिहीन कैसे हो सकते है कि खुद ही अपने खाने पीने में यह तक की जीने के लिए सबसे जरुरी चीज़ हवा में भी अपने हाथो जहर मिला रहे है। अमृतसर की घटना ने तो ये बात और सिद्ध कर दी है कि ना तो हमारे अंदर कोई भावना बची है ना संवेदना ना बुद्धि ना विवेक। यही चार चीज़ जानवरो से ज्यादा दे कर ही तो परमात्मा ने हमे इन्सान बनने का सौभाग्य दिया है। और आज हम ही अपने परिवार ,अपने समाज ,अपने त्योहारों यहाँ तक की अपने धरती माता का स्वरूप भी यूँ बिगड़ रहे कि -ईश्वर भी हमे देख स्वयं को लज्जित महसूस कर रहे होंगे और सोच रहे होंगे क्युँ ,क्यूँ -" बनाया हमने इन इंसानो को ?"



विराज चौहान

विराज चौहान

बहुत हे अछि

1 नवम्बर 2018

1

टूटते - बिखरते रिश्ते

19 जून 2018
0
5
3

आज कल के दौड के टूटते बिखरते रिश्तो को देख दिल बहुत वय्थित हो जाता है और सोचने पे मज़बूर हो जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?आखिर क्या थी पहले के रिश्तो की खुबिया और क्या है आज के टूटते बिखरते रिश्तो की वज़ह ? आज के इस व्यवसायिकता के दौड में रिश्ते

2

परिवर्तन या पीढ़ियों में अन्तर

23 जून 2018
0
3
4

उम्र के तीसरे पड़ाव में हूँ मैं .बचपन और जवानी के सारे खुबसुरत लम्हो को गुजर कर प्रौढ़ता के सीढ़ी पर कदम रख चुकी हूँ .तीन पीढ़ियों को देख लिया है या यूँ कहे की उनके साथ जी लिया है. बदलाव तो प्रक्रति का नियम है इसलिए घर परिवार, संस्कार और समाज में भी निरंतर बदलाव होत

3

समंदर - " मेरी नज़र में "

5 जुलाई 2018
0
4
6

क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं .सागर दिन में तो बिलकुल शांत और गंभीर होता है. ऐसा लगता है जैसे अपने अंदर अनको राज छुपाये ,अपना विशाल आँचल फैलाये एक खामोश लड़की हो जिसने सारे जहान के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियो को अपने दामन मे समेट रखा है. ले

4

प्रकृति और इंसान

18 जुलाई 2018
0
4
1

नदी,सागर ,झील या झरने ये सारे जल के स्त्रोत है. यही हमारे जीवन के आधार भी है. ये सब जानते और मानते भी है कि " जल ही जीवन है." जीवन से हमारा तातपर्य सिर्फ मानव जीवन से नहीं है. जीवन अर्थात " प्रकृति " अगर प्रकृति है तो हम है .लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम है

5

हर पल सिखाती ज़िंदगी

22 जुलाई 2018
0
6
5

दोस्तों,मैं कोई शायरा,लेखिका या कवित्री नहीं हूँ। मैंने जवानी के दिनों में डायरी के अलावा कभी कुछ नहीं लिखा। हां, बचपन से कुछ लिखने की चाह जरूर थी। लेकिन किस्मत कुछ ऐसी रही कि छोटी उम्र से ही जो पारिवारिक जिमेदारियो में उलझी तो उलझी ही रह गई। उम्र के तीसरे पड़ाव में आ

6

आत्ममंथन

27 जुलाई 2018
0
4
2

आराधना का मन आज बहुत व्यथित हो रहा था। वो फुट फुट कर रो रही थी और खुद को कोसे भी जा रही थी। अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी "क्या मिला मुझे सबको इतना प्यार करके,सब पर अपना आप लुटा के ,बचपन के सुख ,जवानी की खुशियाँ तक लुटा दी तुमने ,सबको बाटा ही कभी

7

स्वतंत्रता दिवस -" एक त्यौहार "

10 अगस्त 2018
0
3
2

15 ऑगस्त " स्वतंत्रता दिवस " यानि हमारी आज़ादी का दिन .हां ,सालो गुलामी का दंस झेलने के बाद ,लाखो लोगो के कुर्बानियो के फ़लस्वरुप हमे ये दिन देखने नसीब हुए .हम हिन्दुस्तानियो के लिए हर त्यौहार से बड़ा सबसे पवन त्यौहार है ये . यकीनन होली, दिवाली

8

फुर्सत के चंद लम्हे -"एक मुलाकात खुद से "

18 अगस्त 2018
0
7
3

फुर्सत के चंद लम्हे जो मैं खुद के साथ बिता रही हूँ। घर से दूर,काम -धंधे,दोस्त - रिस्तेदार से दूर,अकेली सिर्फ और सिर्फ मैं। हां,आस बहरी दुनिया है कुछ लड़के - लड़किया जो मस्ती में डूबे है,कुछ बुजुर्ग जो अपने पोते - पोतियो के साथ खेल रहे है,कुछ और लोग है जो शायद मेरी तरह ब

9

रक्षाबंधन -" कमजोर धागे का मजबूत बंधन "

24 अगस्त 2018
0
2
4

सावन का रिमझिम महीना हिन्दुओ के लिए पवन महीना होता है। आखिर हो भी क्यों न ये देवो के देव महादेव का महीना जो होता है। और इसी महीने के आखिरी दिन यानि पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम को अभिवयक्त करने का एक जश्न है। जिसे आम बोल चाल में राखी कहते है। सुबह सुबह

10

हमारी प्यारी बेटियाँ

28 सितम्बर 2018
0
6
5

"बेटियाँ "कहते है बेटियाँ लक्ष्मी का रूप होती है ,घर की रौनक होती है। ये बात सतप्रतिस्त सही है। इसमें कोई दो मत नहीं हो सकता कि बेटियाँ ही इस संसार का मूल स्त

11

" बृद्धाआश्रम "बनाम "सेकेण्ड इनिंग होम "

3 अक्टूबर 2018
0
4
5

" बृद्धाआश्रम "ये शब्द सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते है। कितना डरावना है ये शब्द और कितनी डरावनी है इस घर यानि "आश्रम" की कल्पना। अपनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में दो पल ढहरे और सोचे, आप भी 60 -65 साल के हो चुके है ,अपनी नौकरी और घर की ज़िम्मेदारियों से आज़ाद हो चुके है। आप के

12

दिल तो बच्चा है जी

18 अक्टूबर 2018
0
1
3

ज़िंदगी हर पल एक चलचित्र की तरह अपना रंग रूप बदलती रहती है।है न , जैसे चलचित्र में एक पल सुख का होता है तो दुसरा पल दुःख का ,फिर अगले ही पल कुछ ऐसा जो हमे अचम्भित कर जाता है और एक पल के लिए हम सोचने पर मजबूर हो जाते है कि "क्या

13

कहानी सोना की

24 अक्टूबर 2018
0
2
2

"सोना "हाँ ,यही नाम था घुंघट में लिपटी उस दुबली पतली काया का। जैसा नाम वैसा ही रूप और गुण भी। कर्म तो लौहखंड की तरह अटल था बस तक़दीर ही ख़राब थी बेचारी की। आज भी वो दिन मुझे अच्छे से याद है जब वो पहली बार हमारे घर काम करने आई थी। हाँ ,वो एक काम करने वाली बाई थी। पहली नज़र मे देख कर कोई उन्हें काम वाली

14

सोना के बेटे की-" हीरा" बनने की कहानी

25 अक्टूबर 2018
0
3
2

चलिये ,सोना की कहानी को आगे बढ़ाते है और जानते है कि -कैसे उनका बेटा हीरा बन चमका और अपने माँ के जीवन में शीतलता भरी रौशनी बिखेर दी। सोना की बाते सुन माँ ने उन्हें पहले चुप कराया और फिर सारी बात बताने को कहा। सोना ने बताया कि- मेरी बहन ने मेरे बेटे को अब आगे पढ़ाने से म

15

हमारे त्यौहार और हमारी मानसिकता

29 अक्टूबर 2018
0
3
1

रहम करे अपनी प्रकृति और अपने बच्चो पर , आप से बिनम्र निवेदन है ना मनाया ऐसी दिवाली गैस चैंबर बन चुकी दिल्ली को क्या कोई सरकार ,कानून या धर्म बताएगा कि " हमे पटाखे जलाने चाहिए या नहीं?" क्या हमारी बुद्धि और विवेक बिलकु

16

"ज़िंदगी का सबक सिखाता " - दिसम्बर और जनवरी का महीना

24 दिसम्बर 2018
0
2
2

एक और साल अपने नियत अवधि को समाप्त कर जाने को है और एक नया साल दस्तक दे रहा है। बस, एक रात और कैलेंडर पर तारीखे बदल जायेगी। दिसम्बर और जनवरी महीने की कुछ अलग ही खासियत होती है। कहने को तो ये भी दो महीने ही तो है पर साल के सारे महीनो को बंधे रखते है। दोस

17

जीवन का अनमोल "अवॉर्ड "

8 जनवरी 2019
0
0
0

" नववर्ष मंगलमय हो " " हमारा देश और समज नशामुक्त हो " नशा जो सुरसा बन हमारी युवा पीढ़ी को निगले जा रहा है ,

18

यादें

2 मार्च 2019
0
1
0

"बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनियाँ , हमारे बीते हुये कल के छोटे छोटे टुकड़े हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं,

19

दम तोड़ती भावनायें

20 मई 2019
0
4
4

"क्या ,आज भी तुम बाहर जा रहे हो ??तंग आ गई हूँ मैं तुम्हारे इस रोज रोज के टूर और मिटिंग से ,कभी हमारे लिए भी वक़्त निकल लिया करो। " जैसे ही उस आलिशान बँगले के दरवाज़े पर हम पहुंचे और नौकर ने दरवाज़ा खोला ,अंदर से एक तेज़ आवाज़ कानो में पड़ी ,हमारे कदम वही ठिठक गये। लेकिन तभी बड़ी शालीनता के साथ नौकर न

20

गाना : हँसते आँसु

27 जून 2019
0
2
2

हजारो तरह के ये होते हैं आँसुअगर दिल में गम हैं तो रोते हैं आँसुख़ुशी में भी आँखे भिगोते हैं आँसुइन्हे जान सकता नहीं ये जमानामैं खुश हूँ मेरे आँसुओं पे न जानामैं तो दीवाना ,दीवाना ,दीवाना "मिलन " फिल्म का ये गाना वाकई लाजबाब हैं। आनं

21

जाने चले जाते हैं कहाँ ......

23 सितम्बर 2019
0
2
2

जाने चले जाते हैं कहाँ ,दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहाँ कैसे ढूढ़े कोई उनको ,नहीं क़दमों के निशां अक्सर मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया

22

आस्था और विश्वास का पर्व -" छठ पूजा "

31 अक्टूबर 2019
0
1
0

" छठ पूजा " हिन्दूओं का एक मात्र ऐसा पौराणिक पर्व हैं जो ऊर्जा के देवता सूर्य और प्रकृति की देवी षष्ठी माता को समर्पित हैं। मान्यता है कि -षष्ठी माता ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं,प्रकृति का छठा अंश होने के कारण उन्हें षष्ठी माता कहा गया जो लोकभाषा में छठी माता के नाम

23

धरती की करुण पुकार

7 अगस्त 2021
0
1
1

हे! मानस के दीप कलशतुम आज धरा पर फिर आओ।नवयुग की रामायण रचकर मानवता के प्राण बचाओं ।आज कहाँ वो राम जगत में जिसने तप को गले लगाया ।राजसुख से वंचित रह जिसने मात - पिता का वचन निभाया । सुख कहाँ है वो राम राज्य का ?वह सपना तो अब टूट गया ।कहाँ

24

सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ"

30 अगस्त 2021
0
8
0

<p>कहते हैं, सब मुझको "सैनिक"</p> <p>पर, सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ" </p> <p>मैं सपूत इस

25

दे दो ऐसा वरदान...

31 अगस्त 2021
7
8
3

<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

26

आईं झुम के बसंत....

10 फरवरी 2022
0
0
0

बसंत अर्थात "फुलों का गुच्छा", बसंत, अर्थात  "शिव के पांचवें मुख से निकला एक राग" बसंत जिसके "अधिष्ठाता देवता ही कामदेव" हो, ऐसे ऋतु के क्या कहने।"बसंत" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही दिलों में  फुल

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए