क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं .सागर दिन में तो बिलकुल शांत और गंभीर होता है. ऐसा लगता है जैसे अपने अंदर अनको राज छुपाये ,अपना विशाल आँचल फैलाये एक खामोश लड़की हो जिसने सारे जहान के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियो को अपने दामन मे समेट रखा है. लेकिन फिर भी खामोश है .किसी से उसे कोई शिकायत नहीं .( वैसे हमेशा से सागर को पुरुष के रूप में ही सम्बोथित किया गया है लेकिन मुझे उसमे एक नारी दिखती है.) हां कभी कभी हलकी फुलकी लहरें जरूर उठती रहती है. उस पल ऐसा लगता है जैसे दर्द सहते सहते अचानक से वो तड़प उठती हो और उसके दिल की तड़प ने ही लहरों का रूप ले लिया हो. लेकिन जैसे जैसे शाम होती है उसकी लहरों में तेज़ी आती जाती है. वो काफी उझाल के साथ किनारे की तरफ तेज़ी से बढ़ती जाती है. ऐसा लगता है जैसे किनारे पर उसे उसका प्रियतम खड़ा दिखाई दे रहा है, जिससे वो बरसो से नहीं मिली. और वो अपने सारे बंधनो को खोलते हुए,सारी सीमाओ को तोड़ते हुए, बेचैन हो कर अपनी पूरी शक्ति के साथ अपने प्रियतम से मिलने के लिए दौड पड़ी है. लेकिन किनारे तक आते आते उसकी हिम्मत टूट जाती है. वो थक कर,निढ़ाल होकर गिर जाती है. तभी कोई हाथ बढ़ता है और उसे खींच कर अंदर की तरफ ले जाता है और कहता है - " तुम्हे अपनी सीमाओं को तोड़ने का कोई हक़ नहीं है. " दो पल के लिए वो शांत हो जाती है. उसे भी लगता है कि - " हां,मुझे अपनी सीमाओं के मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए. " लेकिन फिर जैसे ही उसकी नज़र किनारे पर इंतज़ार कर रहे अपने प्रेमी पर पड़ती है वो फिर उसी व्याकुलता ,उसी बेचैनी से, अपनी दुगुनी शक्ति के साथ अपने प्रियतम के बाहों में जाने को दौड पड़ती है. जैसे जैसे रात गहरी होती जाती है उसकी बेचैनियाँ लहरों की तेज़ी को बढाती जाती है. कभी कभी तो वो आखरी देहलीज़ तक चली जाती है. ( जहा सागर की सीमाओं को पत्थर और दीवारों से घेर कर बंधा गयाहै. ) अपनी दहलीज़ से टकरा- टकरा कर वो वापस आती रहती है लेकिन फिर भी अपनी कोशिश नहीं छोड़ती .सारी रात ये सिलसिला चलता रहता है और जैसे जैसे सुबह होती जाती है वो धीरे धीरे शांत होती जाती है. सूरज के निकलते ही वो फिर अपनों पहली वाली स्थिति में आ जाती है. मुझे नहीं पता वो अपने प्रियतम से मिल भी पति है या नहीं. लेकिन ये सिलसिला हर दिन चलता है. दिनों से नहीं ये तो अनंत कल से चलता आ रहा है और अनंत कल तक चलता रहेगा .शायद जब प्रियतम मिलान की उसकी व्याकुलता हद से जयादा बढ़ जाती है तो उसकी लहरे सुनामी का रूप लेलेती है और चारो तरफ तबाही फैला देती है. ये तो सत्य है न कि जब प्यार अपनी सारी सीमाये तोड़ता है तो तबाही ही लाता है. किसी शायर ने क्या खूब कहा है -
" सूरज को धरती तरसे, धरती को चन्द्रमा
पानी में सीप जैसे प्यासी हर आत्मा "