चलिये ,सोना की कहानी को आगे बढ़ाते है और जानते है कि -कैसे उनका बेटा हीरा बन चमका और अपने माँ के जीवन में शीतलता भरी रौशनी बिखेर दी।
सोना की बाते सुन माँ ने उन्हें पहले चुप कराया और फिर सारी बात बताने को कहा। सोना ने बताया कि- मेरी बहन ने मेरे बेटे को अब आगे पढ़ाने से मना कर दिया है। क्युकी मेरे बेटे के साथ ही उसका बेटा भी 10 वी का परीक्षा दिया था लेकिन वो फेल हो गया है इस बात से मेरी बहन नाराज़ है और बेटा आगे पढ़ने के ज़िद में खाना पीना छोड़ रखा है। फिर वो सकुचाती हुई बोली - मालकिन आप के भाई तो प्रोफ़ेसर है न ,आप अगर मेरे बेटे को उनके यह रखवा देगी तो आप का बड़ा एहसान होगा वो उनके घर का सारा काम करेगा ,बर्तन -चौका ,खाना -पीना ,बाजार- हाट सब करेगा बस वो मेरे बेटे को कॉलेज में दाखिला करवा देंगे ,मेरी बहन के घर भी तो वो ये सारे काम करके ही पढ़ा है। माँ एकदम से चौकी - क्या, अपनी सगी मौसी के घर वो ये सब कर के पढ़ा है ?लानत है उस मौसी पर। फिर माँ ने सोना को समझाया कि - मैं कुछ करती हूँ , चिंता नहीं करो और बेटे को भी जाकर खाना खिलाओ ,सब ठीक हो जायेगा।
सोना का मझला बेटा बचपन से बड़ा मेघावी था। अपने भाई बहनो से बिलकुल अलग ,उसके भाई बहनो को जो मिल जाता वो खाते पीते और गांव के बच्चो के साथ खेलने में मगन रहते। सोना ने उनका दाखिल सरकारी स्कूल में करा रखा था लेकिन उन्हें पढ़ाई लिखाई से कुछ खास मतलब नहीं रहता। लेकिन मझला बेटा जैसे जैसे बड़ा हुआ उसकी पढ़ने की लग्न बढ़ती गई। ये देख सोना ने उसे अपनी बहन जो की टीचर थी उसके पास रख दिया ये सोच कर कि वहाँ उसे खाना पीना भी अच्छा मिल जायेगा और पढाई का माहौल भी।
लेकिन सोना की बहन एक बेरहम औरत थी उसने ये सोच कर उस लड़के को रख लिया की उसे मुफ्त का एक नौकर मिल गया। वो उससे घर का पूरा काम करती थी और तब जाकर उसे खाना देती थी। वो लड़का जिसका नाम अनिल था वो सब कुछ सह जाता सिर्फ इसलिए क्युकी उसे पढ़ने को किताबे और अच्छा खाना मिल जाता था। स्वादिस्ट खाना खाने और बनाने दोनों के ही बड़े शौकीन थे वो। सोना को जब पता चला तो उसे वापस घर लाना चाहती थी लेकिन अनिल ने उन्हें समझाया कि -माँ मुझे पढ़ना है और यहाँ वो सारी सुबिधा है जिससे मैं पढ़ सकता हूँ। सोना मान गई। समय के साथ अनिल बड़ा होने लगा और उस औरत के ज़ुलम भी बढ़ते गए,वो जान बुझ कर उसे सारा दिन काम में उलझाए रखती ताकि वो पढ़ न सके। जब सारा घर का काम खत्म कर रात को वो पढ़ने जाते तो लाइट बंद कर देती। गन्दी गालिया दे कर कहती -बिजली बिल तुम्हारा बाप देगा। कितनी बार वो औरत उन्हें बेरहमी से मारती भी थी।
एक बार बातो बातो में अनिल भैया ने हमे बताया था कि -कभी कभी वो औरत गुस्से में उनके ऊपर गरम चाय तक फेक देती थी। वो सब सेह लेते थे क्युकी उन्हें पढ़ना था। वो एक दीया छुपा कर रखते थे और जब सब सो जाते तो उस दीये की रोशनी में पढ़ते और कोई जग जाता तो फुक मार कर बुझा देते थे। इतने जुल्म करने के वावजूद जब वो अच्छे नंबर लेकर आये और उसका बेटा फेल हो गया तो ये जलन वो बर्दास्त न कर सकी और आगे पढ़ाने से मना कर दिया।
जब मेरे मामा को माँ ने सारी बात बताई तो उन्होंने कहा कि -मैं पहले उस लड़के से मिलुंगा। माँ ने अनिल भैया को बुलाया ,मेरे मामा उन्हें सर से पैर तक देखे और फिर थोड़ी बहुत बात की। मामा ने माँ से कहा -इस लड़के का लालट चमक रहा है ये भविष्य में जरूर कोई बड़ा आदमी बनेगा ,मैं इसे अपने घर में नौकर की तरह नहीं रख सकता क्युकी कल को जब वो कुछ बन जायेगा जो की इसका बड़ा आदमी बनना तय है तो मैं इससे नज़रे नहीं मिला पाऊंगा ,मैं इसे ले जाऊँगा लेकिन घर का सदस्य बना कर ,अपना बेटा बना कर।
मामा की बाते सुन माँ पहले तो अपने भाई पर गर्व की लेकिन फिर माँ -पापा सोच में पड़ गये। क्युकी मामा के पास पहले से ही मेरे बड़े भैया रहते थे,माँ उन पर ज्यादा बोझ डालना नहीं चाहती थी। माँ को पता था की मामा माँ पापा का एहसान उतरने के लिए अनिल को रखने से मना नहीं करेंगे। क्युकी मेरे मामा को मेरे पापा ने ही अपने पास रख पढ़ाया था और आज वो एक कामयाब प्रोफ़ेसर थे। माँ पापा सोच में पड़ गए कि अब इस समस्या का समाधान कैसे करे। काफी सोच बिचार करने के बाद पापा ने ये फैसला किया कि -अनिल हमारे साथ रहेगा।
पापा ने सोना से कहा -सोना अनिल हमारे साथ रहेगा। सोना जो की पापा से पर्दा करती थी सकुचाते हुए बोली -मालिक यहां कैसे रहेगा ,आप सब को परेशानी होगी , यहाँ भी तो दो ही कमरा है और रहने वाले सात -आठ लोग ,मैं आप पर और बोझ डालना नहीं चाहती। पापा ने कहा -मैंने फैसला कर लिया है वो यही रहेगा,मैं सर्वेन्ट क्वाटर में एक कमरा उसे दिला दुगा जो हमारे क्वाटर से लगा ही है अनिल जहां सुकून से अपनी पढ़ाई कर पायेगा और बाकी खाना पीना सब हम सब के साथ होगा। और पापा अनिल भैया को घर ले आये। हम भाई बहन इन सारे बातो से अनजान थे। हमारे लिए तो ये एक रोचक वाक्या था जिसने हमारे होश उड़ा दिए थे।
राखी के दिन की बात है। हम दोनों बहने अपने सारे भाइयो को राखी बांध चुके थे और खाना खाने जा रहे थे तो माँ ने कहा - थोड़ी देर रूक जाओ ,तुम्हारे पापा तुम सब के लिए एक सरप्राइज़ गिफ्ट ला रहे है। हम सब खुश हो गए। थोड़ी देर में पापा आये उनके साथ एक लड़का था, पापा दरवाज़े पर ही रूक गये और बोले - रानी ,गुड़िया पूजा की थाल ले कर आओ और अपने नये भाई को राखी बांधो। हम दोनों ने बिना कोई सवाल किये उन्हें राखी बँधा और उनके पैर छुये।फिर पापा ने उनसे कहा -बेटा अब घर के अंदर चलो आज से ये तुम्हारा ही घर है। हम भाई बहन ये सुन कर चौक गये और एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि ये क्या हुआ ये घर में नया सदस्य कौन आ गया। पापा ने हमे पास बुलाया और कहा - मैं हमेशा तुम सब से कहता था न कि मेरा एक बेटा है जो पटना में रहता है और पढ़ने में अवल है। हम सब ने हां में सर हिला दिया। पापा ने कहा - आज में उसे हमेशा के लिए घर ले आया। हमारे तो होश गायब हो गये रोना आने लगा,हमने कुछ नहीं कहा और चुपचाप दूसरे कमरे में चले गये।
हमारे दुखी होने के पीछे एक अलग ही वाक्या है। बात ये थी कि जब भी हम भाई -बहन कोई बदमाशी करते,मन लगा कर नहीं पढ़ते या हमारे नंबर काम आते तो पापा हमसे यही कहते थे कि -तुम सब बदमाशी करते हो न इसी लिए मैं तुम सब को कम प्यार करता हूँ ,मेरा एक अच्छा बेटा पटना में है वो पढ़ने में काफी तेज़ है इसलिए मैं उसे ज़्यादा प्यार करता हूँ। और आज पापा सचमुच उस बेटे को घर ले आये थे। हमे लगा अब पापा हमे प्यार नहीं करेंगे, ये सोच हम बहुत दुखी हो रहे थे।
हम उदास हो कमरे में बैठे थे तभी पापा माँ दोनों हँसते हुए आये और बोले -- "डरो नहीं हमने तुम सब से वो सारी बाते झूठ कही थी लेकिन बिधाता ने मेरे उस झूठ को सच कर दिया है आज से ये सचमुच हमारा बेटा और तुम सब का भाई है तुम सब इसको भी उतना ही प्यार और आदर देना जितना सगे बड़े भाई को देते हो।" फिर पापा ने सारी बात बताई फिर हम सब जाकर उनके गले लग गए और उन्हें दिल से अपना भाई स्वीकार कर लिया,फिर हम सब ने साथ खाना खाया। वो दिन है और आज का दिन ना हम ने कभी अनिल भैया को पराया समझा ना अनिल भैया ने हमे। उन्होंने भाई होने का हर कर्तव्य निभाया और प्यार भी भरपूर दिया। हमारी मदद तो वो भाई बहन दोनों की तरह करते थे। बाहर का कोई काम हो या हम बहनो की रखवाली करनी हो तो भाई बन जाते थे और अगर घर में कोई काम बढ़ जाये तो बहन की तरह रसोई में भी मदद करते थे।खाना बनाने के शौकीन थे इस कारण किचन में कई बार सब्जी बनाने को लेकर हम दोनों की लड़ाई भी हो जाती थी। वैसे भी हम दोनों हम उम्र थे तो हम दोनों में कभी पटती नहीं थी
लेकिन प्यार भी इतना था कि एक घंटा भी एक दूसरे से बात किये वगैर रह भी नहीं सकते थे।
भैया 10 वी पास करके आये थे और मैं 10 वी में थी।दोनों ही किशोरावस्था में थे। कॉलोनी वालो को जब पापा के इस फैसले का पता चला तो वो परेशान हो पापा को समझने लगे कि -सिन्हा जी ये आपने ठीक नहीं किया आप के घर में सायानी लड़की है और लड़का भी सायना है कल को कुछ ऊंचनीच हो गया तो ?पापा ने जबाब दिया -उस लड़के को तो मैं अभी ठीक से नहीं जानता लेकिन मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है वो हमारे इस फैसले को कभी शर्मसार नहीं करेगी। हम बहन -भाई ने पापा का वो मान रखा ,भगवान ने भी हमारा भरपुर साथ दिया।अनिल भैया सूरत सकल से भी हम भाई बहनो से बिलकुल मिलते थे। हमारे बड़ी भइया और वो दोनों जब साथ चलते थे तो कोई ये नहीं कह सकता था की दोनों एक माँ के बच्चे नहीं है। माँ पापा तो ये कहते थे की पूर्बजन्म का मेरा बिछड़ा बेटा है। माँ तो उन्हें हमेशा अपना अच्छा बेटा कह कर ही बुलाती थी। आज भी हम भाई बहन माँ को छेड़ते है तो कहते है कि -आप का अच्छा बेटा तो अनिल भइया है न। माँ हँस कर कहती है -बेशक है।
अनिल भइया ने कड़ी मेहनत और लगन से पढाई की और M.A किया। थोड़े दिन तो उनके संघर्ष के रहे, पापा के मना करने पर भी वो अपने ऊपर के खर्चे के लिए ट्युसन पढ़ते थे वो पापा पर ज्यादा बोझ नहीं डालते थे। क्युकी उन्हें लेकर हम पांच भाई बहन और दादा दादी सब की जिम्मेदारी पापा पर ही थी। ये बात वो अच्छे से समझते थे। पापा ने उनकी मदद कर टुयुशन सेंटर खोल दिया।
लेकिन जल्द ही उनकी मेहनत ने रंग लाया और वो लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास किये और आज वो एक सफल ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर के रूप में कार्यरत है। जब तक हम उस कॉलोनी में रहे सोना हमारे घर काम करती रही एक सदस्य की तरह। फिर धीरे धीरे हम सब बड़े हो गये अपने अपने मज़िल की तरफ चल पड़े, सब की अलग अलग शहर में नौकरी हो गई, हम बहनो की शादी हो गई,और हम एक दूसरे से बिछड़ते चले गये। "बिछड़ना "यानि शारीरिक रूप से बिछड़ गये मानसिक रूप से हम आज भी जुड़े है। हमारा प्यार वैसा ही है। साल दो साल पर किसी अवसर पर हम मिलते है ,हमारे बच्चे भी आपस में सगे भाई बहनकी तरह ही रहते है। अनिल भइया आज भी हर सुख दुःख में हमारे साथ है। भाभी भी बहुत अच्छी है। पापा को जब डॉक्टरों ने जबाब दे दिया और हमने भैया को खबर की तो ऑफिस से छुट्टी नहीं मिलने के वावजूद वो अपने नौकरी को खतरे में डाल दिल्ली आये ,आर्धिक रूप से भी हमारी मदद की।
हमारी सोना आज अपने कामयाब बेटे -बहु और पोते पोतियो के साथ एक सुखी जीवन व्यतीत कर रही है। लेकिन आज भी वो अपना अतीत नहीं भूली,कभी भी "अफसर बेटे की माँ " होने का घमंड नहीं किया। आज भी जब वो हमारे घर आती है तो माँ उनके लिए मालिकन ही है ,मना करने के वावजूद आज भी वो किचन में जा कर भाभियो का हाथ बटाने लगती है। थोड़ा सा हमने ये बोला नहीं कि सर दर्द हो रहा है या पैर दर्द हो रहा है तेल ले कर मालिस करने आ जाती है। हमे उन्हें कसम दे कर रोकना पड़ता है।
सोना जो तपते धुप में अकेली एक बृक्ष के समान खड़ी थी उन्होंने अपने प्यार और व्यवहार से हमे अपना बनाया। उन्ही के कारण पापा माँ ने उनकी मदद की और उनके बेटे को भी अपना बनाया , जो एक दिन हीरा बन कर चमका और अपनी माँ सोना के तपस्या को पूरा कर उनके जीवन में सुनहरी धुप बन रौशनी ही रौशनी बिखेर दी। ये थी हमारी " सोना " की कहानी , जो आज भी हमारे साथ है, भगवान उनका साथ बनाये रखे।