सावन का रिमझिम महीना हिन्दुओ के लिए पवन महीना होता है। आखिर हो भी क्यों न ये देवो के देव महादेव का महीना जो होता है। और इसी महीने के आखिरी दिन यानि पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम को अभिवयक्त करने का एक जश्न है। जिसे आम बोल चाल में राखी कहते है।
सुबह सुबह नहा धो कर पजामा कुर्ता पहने भागते दौड्ते अति उत्साहित लड़के और प्यारा सा फ्रॉक या लेहगा चुनी पहने हाथ में पूजा का थाली लिए हुए इतराती फिरती लड़किया। कही कोई भाई अपनी छोटी बहन को माना रहा है, उससे छोटे छोटे प्यारे प्यारे वादे कर रहा कि - आज से मैं तुम्हे बिल्कुल नहीं मारुंगा,तुम्हे कभी नहीं सताऊँगा,तुम्हे ढेर सारे चॉकलेट भी दुगा प्लीज मुझे राखी बांध दो। और कही कोई बहन भैया को मन रही है कि -मैं मम्मी से तुम्हारी कभी कोई शिकायत नहीं करुँगी ,अपने खिलोने भी दे दूगी ,तुम्हारी हर बात मानूगी प्लीज् मुझसे राखी बँधवा लो। सच ,बड़ा प्यारा नज़ारा होता है।राखी के दिन मैं भी अपने बचपन में खो जाती हुँ। हम दो बहन और दो भाई थे। इसके अलावा चाचा ,बुआ के बच्चे ,हम सब में सगे भाई बहन जितना ही प्यार था। राखी के दिन हम सारे इकठे होते थे और राखी बंधवाने का कार्यक्रम एक साथ ही होता था सारे भाई एक लाइन में बैठ जाते थे और हम सारी बहने आरती का थाल हाथ में लिए खड़ी रहती थी। मैं सबसे बड़ी थी ,सारे भाई पहले मुझसे ही राखी बंधवाना चाहते थे क्युकि मैं सबको एक सामना प्यार करती थी और सब मुझे भी उतना ही प्यार देते थे। मैं एक लाइन से बड़े भाई से शुरू कर छोटे तक पहुँचती थी। सब एक दूसरे को अपने हाथो से मिठाई खिलते थे और प्यार से गिफ्ट देते थे। वो गिफ्ट चाहे पांच रूपये का ही क्यों न हो हमारे लिए लाखो से भी कीमती होते थे। बड़ा ही पवित्र होता था ये बचपन का प्यार.
राखी पर्व का नाम लेते ही शायद ही ऐसा कोई हो जिसे अपने बचपन की याद ना आती हो। वैसे तो हर त्यौहार का असली मज़ा तो बचपन में ही आता है लेकिन राखी की तो बात ही अलग थी। भाई बहन का असली प्यार झलकता था। कोई दिखावा नहीं ,कोई लालच नहीं ,कोई मन पे बोझ नहीं। जितना ज्यादा बचपन में इस त्यौहार का आनद होता है उतना ही बड़े होने के बाद इस त्यौहार का रंग रूप बिगड़ जाता है। मैं ये नहीं कहुगी की भाई बहन के बीच प्यार कम हो जाता है बस उस प्यार पर औपचारिकता भरी पड़ जाता है और प्यार धूमिल हो जाता है। मुझे इस राखी में बनाये गए एक रिवाज़ से सबसे ज्यादा शिकायत है -" वो है तोहफों का आदान प्रदान " और मेरे बिचार से इसी रिवाज़ ने ही बड़े होने पर इस त्यौहार को बोझ बना दिया।
अगर ये उपहारों का लें देन परम्परा ना हो कर ख़ुशी होती तो राखी हमेशा अपने बचपन वाल स्वरूप में भाई बहन का प्यार दिन-ब-दिन बढ़ता कभी कम नहीं होने देता। क्योकि बचपन में जो उपहार प्यार से दिया जाता था बड़े होने पर औपचारिकता के साथ साथ बोझ भी बन गया। वास्तव में राखी हम हिन्दुस्तानियो के लिए इतना पवित्र धागा है कि अपने खून के रिश्ते की तो बात ही छोड़े अगर किसी अनजाने अपने जाति धर्म से अलग व्यक्ति को भी अगर कोई लड़की एक बार ये धागा बांध देती है तो आजीवन निभाती है।
वैसे तो इस पवित्र बंधन की बहुत सी कहानियाँ मशहूर है मगर आज मैं आप को इससे जुडी अपने बचपन की एक दस्ता सुनती हूँ। बात उन दिनों की है जब मैं 15 -16 साल की थी। हमारे पापा बिजली बिभाग में इलेक्ट्रिसियन थे और हम सरकारी कवाटर में रहते थे। उन्ही दिन एक इंजीनियर का परिवार टांस्फर होकर आया था। हमारी उनसे अभी अच्छे से जान पहचान भी नहीं हुई थी। उनके 10 -12 साल के दो बेटे थे कोई बेटी नहीं थी। उनके आने के महीने बाद ही राखी आ गया था। हम सारे भाई बहन हर साल की तरह इकठे थे और राखी बांधने का कार्यक्रम चल रहा था उसी बीच उनका बड़ा लड़का आ गया वो थोड़ी देर खड़ा होकर सब देखता रहा फिर दौडता हुआ चला गया। थोड़ी देर बाद उसकी माँ उसे लेकर आई। बच्चे का रो रो कर बुरा हाल था आखे सूजी थी,सिसकिया अभी भी बंद नहीं हुए थी। हम सब डर गए की क्या हो गया इसे। उसकी माँ मेरे पास आई और बोली -बेटी क्या तुम मेरे बेटे को राखी बांध सकती हो ये रोये जा रहा है कि " मुझे भी रानी दीदी से राखी बधवाना है।" (घर में सब मुझे रानी बुलाते है ) मैं उसे पहले प्यार करके चुप कराई फिर मैंने कहा कि -"चाची राखी एक दिन का बंधन नहीं है ,ये सिर्फ एक धागा नहीं है जिसे मैं आज बांध दू और फिर भूल जाऊ ,अगर आज मैं इसे राखी बांधूगी तो ये हमेशा के लिए मेरा भाई हो जायेगा ,आप को मंजूर हो तो बोलिये। "उस लड़के की माँ कुछ बोलती इससे पहले वो लड़का मेरा हाथ पकड़ बोल पड़ा -"हाँ हाँ ,मैं आजीवन आप का साथ निभाऊंगा ,आप मेरे हाथ पर राखी बांध दे मैं आप का हाथ कभी नहीं छोड़ूगा।"
सब हंस पड़े, मैंने उसे राखी बांध दिया उसने बड़े प्यार और आदर से मेरे पैर छुये और अपने जेब से निकल कर एक टॉफी पकड़ा दिया।उस वक़्त उसके कहे हुए बात को ना उसकी माँ ने गंभीरता से लिए और ना मेरे परिवार वालो ने ,सबको लगा बच्चा है और उसकी बहन भी नहीं है इसीलिए बोल दिया, 3 साल बाद उनका ट्रांस्फर हो जायेगा और वो चला जायेगा फिर कहानी ख़त्म। लेकिन मैं उस बच्चे की पवित्रता समझ रही थी उसके कहे एक एक शब्द मेरी आत्मा को छू गई थी। उसके हाथ पकड़ने का अहसास आज तक मुझे महसूस होता है। उस बच्चे ने सच कहा था आज वो 44 साल का हो गया है और एक सफल डॉक्टर है और मुझसे बहुत दूर भी रहता है। 5 -6 साल पर हम कभी कभी मिलते है लेकिन आज भी वो मेरा हाथ उसी प्यार और खुलूस के साथ पकड़ा है। आज भी उसका प्यार एक मासूम बच्चे की तरह निश्छल और निस्वार्थ है। खून के रिश्ते के भाई बहन स्वार्थ बस बिखर गए लेकिन आज भी मैं उसकी " प्यारी रानी दीदी " और वो भी मेरा " प्यारा ,मासूम पिंकू "ही है। ये होता है राखी के एक कमजोर धागे का मज़बूत बंधन। यूँ ही नहीं इस त्यौहार को पवित्र मानते है।
मेरी भगवन से यही प्रार्थना है कि कभी किसी बहन से उसका भाई ना बिछड़े और हर भाई -बहन से आग्रह है कि कभी भी अपने बीच कोई दीवार न आने दे चाहे वो स्वार्थ का हो, चाहे गलतफहमी का या चाहे किसी व्यक्ति बिशेष का।
रक्षाबंधन की ढेरो बधाइयाँ ।