जाने चले जाते हैं कहाँ ,दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहाँ
कैसे ढूढ़े कोई उनको ,नहीं क़दमों के निशां
अक्सर मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया से जाने वाले कहाँ चले जाते हैं ?कहते है इस जहां से परे भी कोई जहां हैं ,हमे छोड़ शायद वो उसी अलौकिक जहां में चले जाते हैं। क्या सचमुच ऐसी कोई दुनिया हैं ? क्या सचमुच आत्मा अमर हैं ? क्या वो हमसे बिछड़कर भी हमे देख सुन सकती हैं ? क्या वो खुद को हमारी भावनाओं से जोड़ पाते हैं ? क्या वो दूसरे जहां में जाने के बाद भी हमे हँसते देखकर खुश होते हैं और हमे उदास देख वो भी उदास हो जाते हैं ? श्राद्ध के दिन चल रहे हैं सारे लोग पितरो के आत्मा की तृप्ति के लिए पूजा -पाठ ,दान पुण्य कर रहे हैं ,क्या हमारे द्वारा किये हुए दान और तर्पण हमसे बिछड़े हमारे प्रियजनों की आत्मा तक पहुंचते हैं और उन्हें तृप्त करते हैं ? ऐसे अनगिनत सवाल मन में उमड़ते रहते हैं ,ये सारी बाते सत्य हैं या मिथ्य ?
युगों से श्राद्ध के विधि -विधान चले आ रहे हैं ,हम सब अपने पितरो एवं प्रियजनों के आत्मा की शांति के लिए पूजा -पाठ ,दान -पुण्य और जल तर्पण करते आ रहे हैं। आत्मा जैसी कोई चीज़ का इस ब्रह्माण्ड में आस्तित्व तो हैं इसकी पुष्टि विज्ञान भी कर चूका हैं। पर क्या इन बहरी क्रियाकलापों से आत्मा को तृप्ति मिलती होगी ? मुझे नहीं पता आत्मा तिल और जल के तर्पण से तृप्त होती हैं या ब्राह्मणों को भोजन करने से ,गाय और कौओ को रोटी खिलने से या गरीबों में वस्त्र और भोजन बांटने से ,मंदिरो में दान करने से या पूजा -पाठ -हवन आदि करने से।
मुझे तो बस इतना महसूस होता हैं कि हमसे बिछड़े हमारे प्रियजनों की आत्मा एक अदृश्य तरगों के रूप में हमारे इर्द गिर्द तो जरूर रहती हैं और हमे दुखी देख तड़पती हैं और हमे खुश देखकर संतुष्ट होती हैं ,उनके द्वारा दिए गए अच्छे संस्कारों का जब हम पालन करते हैं तो उन्हें शांति मिलती हैं , अपने प्रियजनों को सुखी और संतुष्ट देख उन्हें तृप्ति मिलती हैं और हमारे सतकर्मो से उन्हें मोक्ष मिलती हैं।
मुझे तो यही महसूस होता है ,जिन्हे हम प्यार करते हैं वो आत्माएं शायद हमारे आस -पास ही होती हैं उन अनदेखी हवाओं की तरह बस हमे छूकर गुजर जाती हैं।उन्हें याद करके एक पल के लिए आँखें मूंदते ही हमे उनका स्पर्श महसूस होने लगता हैं। हम ही उन्हें महसूस नहीं करते शायद वो भी हमारे सुख दुःख ,आँसू और हंसी को महसूस करते होंगे तभी तो यदा कदा हमारे सपनो में आकर हमे दिलासा भी दे जाते हैं और कभी कभी तो अपने होने का एहसास भी करा जाते हैं ।
शायद मृतक आत्माओं के प्रति हमारी सच्ची श्रधांजलि ही श्राद्ध हैं। सिर्फ विधि -विधान का अनुसरण नहीं बल्कि हर वो कार्य जिसमे परहित छुपा हो और पूरी श्रद्धा के साथ की गयी हो ,अपने पितरो के प्रति आदर ,सम्मान और प्यार के भावना के साथ की गई हो ,अपने पितरो के सिर्फ सतकर्मो को याद करके की गई हो वही सच्ची श्रधांजलि हैं।
शायद ये श्राद्धपक्ष सिर्फ हमे हमारे पितरो और प्रियेजनों की याद दिलाने ही नहीं आता बल्कि हमे ये याद दिलाने के लिए भी आता हैं कि -एक दिन हमे भी इस जहां को छोड़ उस अलौकिक जहां में जाना हैं जहाँ साथ कोई नहीं होगा सिर्फ अपने कर्म ही साथ जायेगे और पीछे छोड़ जायेगे अपनी अच्छे कर्मो की दांस्ता और प्यारी सी यादे जो हमारे प्रिये जनो के दिलो में हमारे लिए हमेशा जिन्दा रहेगी और वो अच्छी यादें हमारे वर्तमान व्यक्तित्व पर ही निर्भर करेगी।
गलत कहते हैं लोग -" खाली हाथ आये थे हम ,खाली हाथ जायेगे " ना हम खाली हाथ आये हैं ना खाली जायेगे। हम सब जायेगे तो साथ अपने कर्मो का पिटारा लेकर जायेगे और जब भी फिर इस जहां में वापस आना होगा तो उन्ही कर्मो के हिसाब से अपने हाथो में अपने भाग्य की लकीरे ले कर आयेगे। हां ,भौतिक सुख सुविधा के सामान और अपने प्रिये यही पीछे छूट जायेगे।
यकीनन ,ये श्राद्ध हमे याद दिलाने आता हैं कि -इस दुनिया में तुम्हारा आना जाना लगा रहेगा और तुम्हारे कर्म ही तुम्हारे सच्चे साथी हैं। इस श्राद्धपक्ष मैं अपने प्रिये पापा और भाई तुल्य बहनोई जो मुझे भी अपनी बड़ी बहन सा मान और स्नेह देते थे ( जिनको हमे छोड़कर गए अभी सिर्फ 41 दिन हुए हैं }के प्रति अपनी सच्ची श्रधांजलि अर्पित करती हूँ और उन्हें ये वचन भी देती हूँ कि मैं उनके अधूरे कामो को, अधूरे सपनो को पूरा करने की पूरी ईमानदारी से कोशिश करुँगी। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे।