दोस्तों,मैं कोई शायरा,लेखिका या कवित्री नहीं हूँ। मैंने जवानी के दिनों में डायरी के अलावा कभी कुछ नहीं लिखा। हां, बचपन से कुछ लिखने की चाह जरूर थी। लेकिन किस्मत कुछ ऐसी रही कि छोटी उम्र से ही जो पारिवारिक जिमेदारियो में उलझी तो उलझी ही रह गई। उम्र के तीसरे पड़ाव में आ गई लेकिन कभी फुर्सत ही नहीं मिली कि कुछ वक़्त खुद के साथ बिताऊ।खुद से बाते करू,खुद को समझू,खुद के अंदर झांक के देखु कि मैं कौन हूँ,मैं क्या हूँ, मैं कैसी हूँ ,मेरा खुद का कोई वज़ूद है भी या नहीं। अपने जीवन की कहानी और उसकी उलझनों को बता कर मैं आप को बोर नहीं करुँगी क्योकि मेरी पीढ़ी की हर औरत का मेरे जैसा ही हाल रहा। खुद के लिए कम जीना और दुसरो के लिए ज्यादा। हां,ये जरूर बताऊँगी कि मेरी लाइफ में बदलाव कैसे आया। भगवान ने मुझे एक बड़ी प्यारी सी बेटी दी है अभी वो 20 साल की है उसका जॉब मुंबई में हुआ है और उसी के साथ मैं भी मुंबई मायानगरी में आई हूँ। यहां सिर्फ मैं और मेरी बेटी ही है। मैंने अपने समय के सारे रूढ़िवादिता को तोड़ कर अपनी बेटी की माँ कम और दोस्त ज्यादा बनने की कोशिश की है। उसमे बहुत हद तक कामयाब भी रही हूँ। हमारे समय में दो पीढ़ियों के बीच काफी परहेज़ रखा जाता था जो कभी कभी बच्चो और माँ बाप से खुलके बात करने की इज़ाज़त नहीं देता था ।अगर आज के दौड में हम ऐसे रहेंगे तो बच्चे हम से काफी दूर हो जायेगे। इसलिए हमे अपने बच्चो के अभिभावक के साथ साथ उनका दोस्त भी बन के रहना चाहिए .ऐसा मेरा मानना है। मैं अपनी बेटी की ही नहीं उनके दोस्तों की भी दोस्त हूँ। वो अपनी सारी बाते मुझसे बेझिझक शेयर करते है। उन्हें मेरे साथ घूमने या मूवी देखने जाने में भी कोई परहेज़ नहीं होता। संझेप में कहु तो मेरे साथ भी वो फुल एन्जॉय करते है। इसका मतलब ये नहीं कि वो मेरी respect नहीं करते हैं। मैं भी अपनी सीमाओं का ध्यान रखती हूँ और जितना space उनसे रखना चाहिए रखती भी हूँ। जवानी में जो वक़्त मैं कभी जी नहीं पाई थी और सोचा भी नहीं था कि कभी ऐसा पल जी पाऊंगी वो मिला है मुझे इन बच्चो के साथ।
जीवन में आये इस परिवर्तन में कुछ अलग ही तरह से वक़्त गुजरने का मौका मिला मुझे। शाम के वक़्त समुन्द्र किनारे पे घूमना,घंटो बैठे -बैठे समुन्दर की आती जाती लहरों को निरखना,वहाँ बच्चो और युवाओ को मस्ती करते देखना बुजुर्गो को टहलते या रिलेक्स करते देखना,कभी कभी पार्क में बैठ कर झूला झूलना।हर जिमेदारियो से दूर हूँ मैं। हां कभी कभी फ़िक्र होती है घर की,पति की ,भाई बहनों की,माँ की याद भी बहुत आती है। लेकिन इन जगहो पर आकर सारी फ़िक्र सारी यादे पता नहीं कहाँ चली जाती है। दिल बिलकुल सुकून में डूब जाता है। फुर्सत के इस पल में बहुत सारे ख़्यालात उमड़ने लगे। मैं उन ख्यालातों को शब्दो में पिरौने लगी और मेरी लेखनी चल पड़ी। मैंने सोचा क्यों न मैं नये दोस्त बनाऊँ और उनसे अपनी बाते share करू। हर मनुष्य का जीवन जीने का अपना ही अंदाज़ होता है। उसी तरह से जीवन को,रिश्तो को और समाज को देखने का सबका अपना अपना नज़रिया होता है मैं भी जीवन के 40-45 बसंत देख चुकी हूँ मैंने यही देखा है कि ये जीवन आप को हर पल कुछ न कुछ सिखाती रहती है बशर्ते आप सीखना चाहे तो। मैंने अपने जीवन के उतार चढ़ाव से बहुत कुछ सीखा है। वैसे तो जीवन की सबसे बड़ी पाठशाला तो आप के खुद का ही जीवन होता है लेकिन इंसान देख कर और पढ़कर भी बहुत कुछ सीखता हैं। कभी कभी एक छोटा बच्चा भी आप को बहुत कुछ सीखा जाता है। जीवन में कुछ भी शास्वत नहीं है।हर पल जीवन बदलता रहता है अगर आज बहुत सुख है तो जरुरी नहीं की कल आप को दुःख ना देखना पड़े और आज अगर दुःख है तो एक ना एक दिन तो ख़ुशियाँ वापस जरूर आएगी और आप को कुछ ना कुछ जरूर सीखा जाएगी महत्वपूर्ण ये है कि आप उनमे से कितनी बातो को ग्रहण करते है और उससे आगे अपने जीवन में कैसे अपनाते है ।आपने देखा होगा चिड़िया तिनका तिनका जोड़ कर अपना घोसला बनती है और आंधी आकर उनके घोसले को उड़ा जाती है। चिड़िया बैठ कर उस घोसले का मातम नहीं मानती बल्कि आंधी के थमते ही वो फिर तिनका इकठा करने में जुट जाती है आज के युवा पीढ़ी से हमने यही सीखा है कि " जो गुजर गया वो कल की बात थी ।"