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हर पल सिखाती ज़िंदगी

22 जुलाई 2018

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दोस्तों,मैं कोई शायरा,लेखिका या कवित्री नहीं हूँ। मैंने जवानी के दिनों में डायरी के अलावा कभी कुछ नहीं लिखा। हां, बचपन से कुछ लिखने की चाह जरूर थी। लेकिन किस्मत कुछ ऐसी रही कि छोटी उम्र से ही जो पारिवारिक जिमेदारियो में उलझी तो उलझी ही रह गई। उम्र के तीसरे पड़ाव में आ गई लेकिन कभी फुर्सत ही नहीं मिली कि कुछ वक़्त खुद के साथ बिताऊ।खुद से बाते करू,खुद को समझू,खुद के अंदर झांक के देखु कि मैं कौन हूँ,मैं क्या हूँ, मैं कैसी हूँ ,मेरा खुद का कोई वज़ूद है भी या नहीं। अपने जीवन की कहानी और उसकी उलझनों को बता कर मैं आप को बोर नहीं करुँगी क्योकि मेरी पीढ़ी की हर औरत का मेरे जैसा ही हाल रहा। खुद के लिए कम जीना और दुसरो के लिए ज्यादा। हां,ये जरूर बताऊँगी कि मेरी लाइफ में बदलाव कैसे आया। भगवान ने मुझे एक बड़ी प्यारी सी बेटी दी है अभी वो 20 साल की है उसका जॉब मुंबई में हुआ है और उसी के साथ मैं भी मुंबई मायानगरी में आई हूँ। यहां सिर्फ मैं और मेरी बेटी ही है। मैंने अपने समय के सारे रूढ़िवादिता को तोड़ कर अपनी बेटी की माँ कम और दोस्त ज्यादा बनने की कोशिश की है। उसमे बहुत हद तक कामयाब भी रही हूँ। हमारे समय में दो पीढ़ियों के बीच काफी परहेज़ रखा जाता था जो कभी कभी बच्चो और माँ बाप से खुलके बात करने की इज़ाज़त नहीं देता था अगर आज के दौड में हम ऐसे रहेंगे तो बच्चे हम से काफी दूर हो जायेगे इसलिए हमे अपने बच्चो के अभिभावक के साथ साथ उनका दोस्त भी बन के रहना चाहिए .ऐसा मेरा मानना है मैं अपनी बेटी की ही नहीं उनके दोस्तों की भी दोस्त हूँ। वो अपनी सारी बाते मुझसे बेझिझक शेयर करते है। उन्हें मेरे साथ घूमने या मूवी देखने जाने में भी कोई परहेज़ नहीं होता। संझेप में कहु तो मेरे साथ भी वो फुल एन्जॉय करते है। इसका मतलब ये नहीं कि वो मेरी respect नहीं करते हैं। मैं भी अपनी सीमाओं का ध्यान रखती हूँ और जितना space उनसे रखना चाहिए रखती भी हूँ। जवानी में जो वक़्त मैं कभी जी नहीं पाई थी और सोचा भी नहीं था कि कभी ऐसा पल जी पाऊंगी वो मिला है मुझे इन बच्चो के साथ।

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जीवन में आये इस परिवर्तन में कुछ अलग ही तरह से वक़्त गुजरने का मौका मिला मुझे। शाम के वक़्त समुन्द्र किनारे पे घूमना,घंटो बैठे -बैठे समुन्दर की आती जाती लहरों को निरखना,वहाँ बच्चो और युवाओ को मस्ती करते देखना बुजुर्गो को टहलते या रिलेक्स करते देखना,कभी कभी पार्क में बैठ कर झूला झूलना।हर जिमेदारियो से दूर हूँ मैं। हां कभी कभी फ़िक्र होती है घर की,पति की ,भाई बहनों की,माँ की याद भी बहुत आती है। लेकिन इन जगहो पर आकर सारी फ़िक्र सारी यादे पता नहीं कहाँ चली जाती है। दिल बिलकुल सुकून में डूब जाता है। फुर्सत के इस पल में बहुत सारे ख़्यालात उमड़ने लगे। मैं उन ख्यालातों को शब्दो में पिरौने लगी और मेरी लेखनी चल पड़ी। मैंने सोचा क्यों न मैं नये दोस्त बनाऊँ और उनसे अपनी बाते share करू। हर मनुष्य का जीवन जीने का अपना ही अंदाज़ होता है। उसी तरह से जीवन को,रिश्तो को और समाज को देखने का सबका अपना अपना नज़रिया होता है मैं भी जीवन के 40-45 बसंत देख चुकी हूँ मैंने यही देखा है कि ये जीवन आप को हर पल कुछ न कुछ सिखाती रहती है बशर्ते आप सीखना चाहे तो। मैंने अपने जीवन के उतार चढ़ाव से बहुत कुछ सीखा है वैसे तो जीवन की सबसे बड़ी पाठशाला तो आप के खुद का ही जीवन होता है लेकिन इंसान देख कर और पढ़कर भी बहुत कुछ सीखता हैं। कभी कभी एक छोटा बच्चा भी आप को बहुत कुछ सीखा जाता हैजीवन में कुछ भी शास्वत नहीं है।हर पल जीवन बदलता रहता है अगर आज बहुत सुख है तो जरुरी नहीं की कल आप को दुःख ना देखना पड़े और आज अगर दुःख है तो एक ना एक दिन तो ख़ुशियाँ वापस जरूर आएगी और आप को कुछ ना कुछ जरूर सीखा जाएगी महत्वपूर्ण ये है कि आप उनमे से कितनी बातो को ग्रहण करते है और उससे आगे अपने जीवन में कैसे अपनाते है आपने देखा होगा चिड़िया तिनका तिनका जोड़ कर अपना घोसला बनती है और आंधी आकर उनके घोसले को उड़ा जाती हैचिड़िया बैठ कर उस घोसले का मातम नहीं मानती बल्कि आंधी के थमते ही वो फिर तिनका इकठा करने में जुट जाती है आज के युवा पीढ़ी से हमने यही सीखा है कि " जो गुजर गया वो कल की बात थी ।"

रेणु

रेणु

सुस्वागतम !!!!!!!!!!!

17 अगस्त 2018

कामिनी सिन्हा

कामिनी सिन्हा

रेणु जी,आप का बहुत बहुत धन्यबाद,मैं शब्दनगरी की तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ जिससे जुड़ कर मुझे आप जैसे दोस्तों का साथ मिला.मैं तो बस अभी दो महीने पहले ही जुडी हूँ .लेकिन सच मानिये आप सब का साथ पा कर इतनी ख़ुशी महसूस कर रही हूँ जिसे शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है.जीवन को एक नयी दिशा मिल गई है .

17 अगस्त 2018

रेणु

रेणु

प्रिय कामिनी जी -- आपके लेख में मेरी ही कहानी छिपी है | फर्क ये है कि मैं सास ,ससुर , पति दो बच्चो के साथ रहती हूँ पर मेरे जीवन में भी पिछले साल जनवरी में शब्द नगरी से जुड़ने से खुद में एक बहुत सुखद एहसास हुआ | अपने आपको अभिव्यक्त करने का बहुत ही रोमांचक अनुभव मिला | इस अंतराल में अस्सी से ऊपर रचनाएँ जमा हो गयी पता ही नहीं चला | गृहणी से यहाँ तक का सफर बेहद खुशनुमा है क्योकि बेटा जब बाहर पढने गया मैं बहुत विचलित हो गयी थी है आपकी तरह मेरी बेटी भी भाई से छोटी है और अभी हाल ही में 19 साल की हुई है, पर अभी पढ़ रही है | आपकी लेखनी में पारदर्शिता है यही बात हमे दूसरों से अनायास जोडती है | लिखते रहिये मेरी शुभकामनायें स्वीकार हों |

15 अगस्त 2018

मंजु   तंवर

मंजु तंवर

आपके विचारो से पूर्णत:सहमत हुँ

25 जुलाई 2018

मयंक बाजपेई

मयंक बाजपेई

अति उत्तम लेख है अनुभवों में पिरोयी हुई सीख जो जीवन में खुशियां भर दे | आशा है इस लेख से पढ़ने वाले प्रेरणा लेंगे |

22 जुलाई 2018

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टूटते - बिखरते रिश्ते

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आज कल के दौड के टूटते बिखरते रिश्तो को देख दिल बहुत वय्थित हो जाता है और सोचने पे मज़बूर हो जाता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?आखिर क्या थी पहले के रिश्तो की खुबिया और क्या है आज के टूटते बिखरते रिश्तो की वज़ह ? आज के इस व्यवसायिकता के दौड में रिश्ते

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परिवर्तन या पीढ़ियों में अन्तर

23 जून 2018
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उम्र के तीसरे पड़ाव में हूँ मैं .बचपन और जवानी के सारे खुबसुरत लम्हो को गुजर कर प्रौढ़ता के सीढ़ी पर कदम रख चुकी हूँ .तीन पीढ़ियों को देख लिया है या यूँ कहे की उनके साथ जी लिया है. बदलाव तो प्रक्रति का नियम है इसलिए घर परिवार, संस्कार और समाज में भी निरंतर बदलाव होत

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समंदर - " मेरी नज़र में "

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क्या कभी आपने समंदर किनारे बैठ कर उसकी आती जाती लहरों को ध्यान से देखा हैं .सागर दिन में तो बिलकुल शांत और गंभीर होता है. ऐसा लगता है जैसे अपने अंदर अनको राज छुपाये ,अपना विशाल आँचल फैलाये एक खामोश लड़की हो जिसने सारे जहान के दर्द और सारी दुनिया की गन्दगियो को अपने दामन मे समेट रखा है. ले

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प्रकृति और इंसान

18 जुलाई 2018
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नदी,सागर ,झील या झरने ये सारे जल के स्त्रोत है. यही हमारे जीवन के आधार भी है. ये सब जानते और मानते भी है कि " जल ही जीवन है." जीवन से हमारा तातपर्य सिर्फ मानव जीवन से नहीं है. जीवन अर्थात " प्रकृति " अगर प्रकृति है तो हम है .लेकिन सोचने वाली बात है कि क्या हम है

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हर पल सिखाती ज़िंदगी

22 जुलाई 2018
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आत्ममंथन

27 जुलाई 2018
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आराधना का मन आज बहुत व्यथित हो रहा था। वो फुट फुट कर रो रही थी और खुद को कोसे भी जा रही थी। अपने आप में ही बड़बड़ाये जा रही थी "क्या मिला मुझे सबको इतना प्यार करके,सब पर अपना आप लुटा के ,बचपन के सुख ,जवानी की खुशियाँ तक लुटा दी तुमने ,सबको बाटा ही कभी

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स्वतंत्रता दिवस -" एक त्यौहार "

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15 ऑगस्त " स्वतंत्रता दिवस " यानि हमारी आज़ादी का दिन .हां ,सालो गुलामी का दंस झेलने के बाद ,लाखो लोगो के कुर्बानियो के फ़लस्वरुप हमे ये दिन देखने नसीब हुए .हम हिन्दुस्तानियो के लिए हर त्यौहार से बड़ा सबसे पवन त्यौहार है ये . यकीनन होली, दिवाली

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फुर्सत के चंद लम्हे -"एक मुलाकात खुद से "

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फुर्सत के चंद लम्हे जो मैं खुद के साथ बिता रही हूँ। घर से दूर,काम -धंधे,दोस्त - रिस्तेदार से दूर,अकेली सिर्फ और सिर्फ मैं। हां,आस बहरी दुनिया है कुछ लड़के - लड़किया जो मस्ती में डूबे है,कुछ बुजुर्ग जो अपने पोते - पोतियो के साथ खेल रहे है,कुछ और लोग है जो शायद मेरी तरह ब

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रक्षाबंधन -" कमजोर धागे का मजबूत बंधन "

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सावन का रिमझिम महीना हिन्दुओ के लिए पवन महीना होता है। आखिर हो भी क्यों न ये देवो के देव महादेव का महीना जो होता है। और इसी महीने के आखिरी दिन यानि पूर्णिमा को रक्षा बंधन का त्यौहार मनाया जाता है। रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम को अभिवयक्त करने का एक जश्न है। जिसे आम बोल चाल में राखी कहते है। सुबह सुबह

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"बहुत खूबसूरत होती है ये यादों की दुनियाँ , हमारे बीते हुये कल के छोटे छोटे टुकड़े हमारी यादों में हमेशा महफूज रहते हैं,

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हजारो तरह के ये होते हैं आँसुअगर दिल में गम हैं तो रोते हैं आँसुख़ुशी में भी आँखे भिगोते हैं आँसुइन्हे जान सकता नहीं ये जमानामैं खुश हूँ मेरे आँसुओं पे न जानामैं तो दीवाना ,दीवाना ,दीवाना "मिलन " फिल्म का ये गाना वाकई लाजबाब हैं। आनं

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23 सितम्बर 2019
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जाने चले जाते हैं कहाँ ,दुनिया से जाने वाले, जाने चले जाते हैं कहाँ कैसे ढूढ़े कोई उनको ,नहीं क़दमों के निशां अक्सर मैं भी यही सोचती हूँ आखिर दुनिया

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आस्था और विश्वास का पर्व -" छठ पूजा "

31 अक्टूबर 2019
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" छठ पूजा " हिन्दूओं का एक मात्र ऐसा पौराणिक पर्व हैं जो ऊर्जा के देवता सूर्य और प्रकृति की देवी षष्ठी माता को समर्पित हैं। मान्यता है कि -षष्ठी माता ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं,प्रकृति का छठा अंश होने के कारण उन्हें षष्ठी माता कहा गया जो लोकभाषा में छठी माता के नाम

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धरती की करुण पुकार

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हे! मानस के दीप कलशतुम आज धरा पर फिर आओ।नवयुग की रामायण रचकर मानवता के प्राण बचाओं ।आज कहाँ वो राम जगत में जिसने तप को गले लगाया ।राजसुख से वंचित रह जिसने मात - पिता का वचन निभाया । सुख कहाँ है वो राम राज्य का ?वह सपना तो अब टूट गया ।कहाँ

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सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ"

30 अगस्त 2021
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<p>कहते हैं, सब मुझको "सैनिक"</p> <p>पर, सच्ची प्रहरी तो तुम हो "माँ" </p> <p>मैं सपूत इस

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दे दो ऐसा वरदान...

31 अगस्त 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d425242f7ed561c89

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आईं झुम के बसंत....

10 फरवरी 2022
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बसंत अर्थात "फुलों का गुच्छा", बसंत, अर्थात  "शिव के पांचवें मुख से निकला एक राग" बसंत जिसके "अधिष्ठाता देवता ही कामदेव" हो, ऐसे ऋतु के क्या कहने।"बसंत" इस शब्द के स्मरण मात्र से ही दिलों में  फुल

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