हजारो तरह के ये होते हैं आँसु
अगर दिल में गम हैं तो रोते हैं आँसु
ख़ुशी में भी आँखे भिगोते हैं आँसु
इन्हे जान सकता नहीं ये जमाना
मैं खुश हूँ मेरे आँसुओं पे न जाना
मैं तो दीवाना ,दीवाना ,दीवाना
"मिलन " फिल्म का ये गाना वाकई लाजबाब हैं। आनंद बक्शी के लिखे बोल रूह तक में समां जाते हैं। सच ,जब अंतर्मन में भावनाये मचलती हैं तो दिल की सतह पर दर्द की तपिस से जो बादल उमड़ते हैं वो आँखों से पानी की बून्द बन बरस जाते हैं। आँसु ,महज आँखों से बहती पानी की बून्द भर नहीं हैं , ये आँसु प्रियतम के वियोग में बहे तो आँखों से लहू के कतरे बन बरसते हैं तो वही प्रिये मिलन के इंतज़ार में बहे आँसु फूल बन राहो में बिखर जाते है और प्रियतम से गले मिलते ही ये आँसु मोती बन जाते हैं। और जब कभी कोई अपना छल करता हैं तो यही आँसु आँखों से अंगारे बन बरसने लगते हैं। सच ,आँसु के भी कितने रूप है ?
जब एक औरत प्रसव पीड़ा से गुजर रही होती हैं उसकी आँखों से उसका दर्द आँसु बन बरस रहा होता हैं उस वक़्त उसे उस
असहाय पीड़ा से भली मौत लग रही होती हैं लेकिन ज्यों ही प्रसव होता हैं और वो अपने नन्ही सी जान को ,अपने ही जिस्म के हिस्से को ,अपने दिल के ही टुकड़े को अपनी बाँहों में लेती है तो वही आँसु प्यार और ममता बन बरस पड़ती हैं। वैसे ही बेटी की विदाई का दृश्य होता हैं, उस वक़्त जो बेटी ,उसके माता पिता और प्रियजनों के आँखों से बुँदे बरसती हैं वो ना जाने आँसु के कौन से रूप होते हैं उन्हें तो शब्दों में वया करना मेरे लिए तो बहुत मुश्किल हैं।
मुझे अपने जीवन का एक ऐसा ही दिन याद आ रहा हैं जब मैं खुद अपने ही आँखों से बहे हुए आँसु के रूप को नहीं समझ पाई थी। मेरी शादी को लगभग एक महीने हुए थे। मैं अपने पति के साथ काठमांडू घूम कर वापस अपने ससुराल आ रही थी। उस वक़्त तो फ़ोन की कोई खास सुविधा थी नहीं कि हम अपने वापस आने की सुचना या अपने तय प्रोग्राम को पहले से किसी को बता पाते। ट्रेन से हमारे ससुराल तक पहुंचने का जो रास्ता था वो मेरे मायके के शहर से होकर गुजरता था।मेरे मायके के शहर से एक स्टेशन आगे ही मेरा ससुराल था ,महज 5 -6 किलोमीटर की दुरी थी। मेरे अंतर्मन में अपने माँ पापा से मिलने की बेचैनी उमड़ रही थी। शाम का समय था ,मेरा दिल कर रहा था कि हम अपने मायके ही उत्तर जाते और कल सुबह ससुराल चले जाते। ट्रेन जहाँ से गुजरती थी वहां से मेरा घर ,मेरा बगीचा सब स्पष्ट दिखाई पड़ता था ,मायके की दहलीज़ को लांघते हुए आगे बढ़ने के ख्याल से ही मेरा मन रो रहा था। उस ज़माने की लड़कियों में तो इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि वो अपने दिल की बात पति तक के सामने रख पाती सो मुझसे भी नहीं
कहा गया।
मेरे मायके के स्टेशन से चार स्टेशन पहले जो स्टेशन आता था वहाँ अक्सर मेरे पापा ऑफिस के काम से आते रहते थे। जैसे ही ट्रेन उस स्टेशन पर रुकी मेरे मन ने कहा -"काश ,पापा आज यहां मिल जाते" भगवान ने मेरी दुआ सुन ली और तभी मुझे पापा के एक दोस्त नजर आ गए ,उन्होंने जैसे मुझे देखा ख़ुशी से बोल पड़े -" अरे, सिन्हा जी देखे तो कौन हैं ट्रेन में ",मैं झट से उठी, अंकल जी को नमस्ते किया और पूछा -"पापा कहाँ हैं ?वो कुछ बोले उससे पहले मुझे पापा ट्रेन में चढ़ते दिख गए। मैंने आगे -पीछे कुछ नहीं सोचा ना देखा और लगभग दौड़ती हुई पापा की तरफ भागी ,मैंने साडी पहन रखी थी जो एक जगह फंस कर फट भी गई लेकिन मुझे उसका होश कहाँ था ,मैं भाग के पापा से लिपट गई और मेरे आँसु निकल पड़े ,मैं पापा से लिपटी रही सिसकियां लेती रही ,पापा भी मेरा माथा चूमते हुये आँसु बरसाते रहे। आस -पास जो खड़े थे सबकी आँखे नम हो रही थी ,उनमे से बहुत तो पापा के दोस्त ही थे। अंकल जी ने अपने आँसु पोछे और मुझे छेड़ते हुये बोले -" अरे ,मैं तो सोच रहा था कि ये पापा से मिलकर खुश होगी लेकिन ये तो दुखी हो गई हैं तभी तो इसके आँसु नहीं रूक रहे हैं "
उनकी बाते सुन सभी हंस पड़े और मैं भी। फिर तो मैं पापा से लिपटी बैठी रही और अब तो मेरा दिल पापा को छोड़ने को बिलकुल राजी ना था। मैं पतिदेव के हाथ -पैर जोड़ने लगी कि -" प्लीज़ आज रात पापा के घर चलते हैं सुबह घर के लिए निकल जायेगे प्लीज़ ,प्लीज़ ,प्लीज़ " पापा मुझे समझा रहे हैं- बेटा ,ज़िद ना करो दामाद जी जैसा कह रहे हैं वही करो। लेकिन मुझे तो ऐसा लग रहा था जैसे पतिदेव के एक " ना "से मेरी धड़कन रूक जायेगी ,साँस जैसे गले में अटकी थी। पतिदेव मेरी हालत समझ चुके थे और शायद वो ये भी समझ रहे थे कि -एक महीने के शादी के दरम्यान मैंने उनसे कभी कोई फरमाईस नहीं की थी ,बस आज ही जिद कर रही थी सो वो राजी हो गये।
जब हम घर तक पहुंचे तो पापा ने मुझे घर से थोड़ी दुर पर रूकने को कहा -बोले तुम थोड़ी देर बाद आना। पापा जब घर पहुंचे तो बहन ने दरवाज़ा खोला ,पापा के अंदर जाने के बाद जब वो दरवाज़ा बंद करने लगी तो पापा बोले -खुला रहने दो कोई आने वाला हैं। बहन ने कोई सवाल नहीं किया वो पापा के लिए पानी लेन चली गई। पापा माँ के पास जाकर बैठ गये ,माँ थोड़ी उदास थी ,पापा ने पूछा- क्या हुआ इतनी उदास क्यूँ हो ? माँ के आँखों में आँसू आ गये वो बोली -आज रानी की बड़ी याद आ रही हैं ,उसका कोई खत भी नहीं आ रहा हैं। पापा शरारत से बोले -" खत की क्या जरूरत बोलो तो अभी तुरंत रानी को ही बुला देता हूँ। "माँ गुस्से में बोली -हां ,आप तो सबकुछ कर सकते हैं जादूगर जो ठहरे। पापा बोले "-यकीन नहीं हैं तुम्हे ,तुम्हे तो पता हैं मेरी बेटी एक आवाज़ पर मेरे पास होती हैं ,लो अभी मैं बुलाता हूँ " रानी ,बेटा जल्दी से आ जाओ तुम्हारी माँ तुम्हे याद कर रही हैं "मैं तो दरवाज़े के बाहर खड़ी सारी बाते सुन ही रही थी जैसे ही पापा ने आवाज़ लगाई मैं घर के अंदर आ गई।
मुझे देखते ही माँ को तो जैसे शॉक लग गया हो वो बैठी बैठी पथराई आँखों से मुझे बस देख रही थी ,तभी बहन पापा के लिए पानी लेकर आई ,मुझे देखते ही उसके हाथो से पानी का ग्लास छूट गया ,वो दो सेकेंड़ मुझे देखती रही ,फिर दीदीइइ कहकर चीखती हुई दौड़ कर आई और मुझ से लिपट गई ,माँ तो जैसे नींद से जागी हो "अरे ये कहाँ से आ गयी ,कही मैं सपना तो नहीं देख रही न" -वो पापा के तरफ देखते हुए बोली।पापा ने कहा -उठो ,सचमुच तुम्हारी बेटी आयी हैं। माँ मुझे से लिपट कर रोने लगी। हम तीनो माँ बेटी एक दूसरे से लिपटे रोये जा रहे थे ,पापा ने कहा -रूको ,मैं भी आता हूँ और वो भी हमसे आकर लिपट गये। हम कभी एक दूसरे से अलग हो एक दूसरे का चेहरा देखते और कभी एक दूसरे को चूमने लगते ,कभी हँस पड़ते और फिर तुरंत ही एक दूसरे को पकड़ रोने लगते। ये सिलसिल आधा घंटा चला। मेरे पतिदेव चुपचाप बैठे ये नजारा देखते रहे। फिर पापा को ही ख्याल आया तो वो बहन को बोले -अब जीजाजी पर भी ध्यान दे लो वरना अभी नाराज़ होकर दीदी को लेके चले जायेगे कि सब बेटी में ही लगे हैं मुझे तो कोई नहीं पूछता। मेरे पतिदेव हँसते हुए बोले- कोई नहीं पापा ,पहले उन्हें जी भर के रो लेने दीजिये ,मुझे तो समझ ही नहीं आ रहा हैं कि आप सब ख़ुशी में रो रहे हैं या इतने दिनों से एक दूसरे को नहीं देख पाये थे उस गम में रो रहे हैं।
उनकी बाते सुन स्वतः ही मुझे भी ख्याल आया -सच ,हम रो क्युँ रहे है ? हमे तो खुश होना चाहिए न ,फिर ये आँसु क्युँ नहीं रूक रहे हैं ? ये कौन सा रूप हैं आँसुओ का ? सच ,अप्रत्यासित मिलन की ख़ुशी और इतने दिनों के जुदाई के गम में घुल मिल गए आँसुओं के उस रूप को मैं आज तक समझ नहीं पाई।
dosti shayari