सफ़ाई मज़बूरी नहीं ज़रूरी है।
पड़ा हुआ है कूड़ा, उसे हम नहीं उठाते है,
उठाना चाहते भी है तो उठाने में शरमाते हैं।
स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर
बस नारे लगाते हैं
और अगर ज्यादा देश भक्ति जगी तो,
झाड़ू के साथ पोज़ भी बनाते हैं।
ना जाने ऐसे ही कितने देश भक्तों का दिल जीत जाते है।
और कूड़ा फिर भी हम सड़क पर ही फैलाते हैं,
क्योंकि ना तो हम समझते है और ना ही समझना चाहते है,
की सफ़ाई मज़बूरी नहीं ज़रूरी है।
120 ग्राम का Biscuit हमारा पेट आराम से पचता है,
लेकिन 2 ग्राम का पैकेट हमें भारी नज़र आता है।
साफ़ सफ़ाई को कह दो तो सब लड़ने लग जाते है,
देश - राज्य तो कुछ नहीं जन्मस्थान तक याद दिलाते है।
साफ़ सफ़ाई करने में हम अत्यंत आलस्य दिखाते है,
और दूसरों को “स्वच्छता ही धर्म है” का पाठ हम पढ़ाते है।
और कूड़ा फिर भी हम सड़क पर ही फैलाते हैं
क्योंकि ना तो हम समझते हैं और न ही समझना चाहते है की सफ़ाई मज़बूरी नहीं ज़रूरी है।