नई दिल्ली : जब कीर्ति को पता चला कि उसे ब्रेस्ट कैंसर है, तो मानो उनकी दुनिया ही खतम हो गई। हालाँकि कीर्ति के प्रशिक्षित डॉक्टर हैं लकिन वह आईएएस बनना चाहती थी। 14 मई 2007 को डॉक्टरी जांच के बाद जब उन्हें पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर है। टेस्ट पॉज़िटिव आने के बाद डॉ. कीर्ति की पहली प्रतिक्रिया पूर्ण रूप से डरावनी थी। वो कहती हैं, 'मुझे लगा, कि मेरा मरना तय हैं।' और उसके बाद वो आत्म दया के भाव से भर गई। उन्होंने खुद से सवाल किया, 'मैं ही क्यों? आखिर मैंने ऐसा क्या किया?' उन्हें उम्मीद थी, कि वो पॉज़िटिव रिपोर्ट उनकी नहीं किसी और की थी, जो गलती से उनके पास आ गई थी, लेकिन उम्मीदें नाकाम रहीं और वो कैंसर पॉज़िटिव रिपोर्ट डॉ. कीर्ति तिवारी की थी।
कीत्रि का कहना है कि 'मुझे डर था, कि मैं अपनी बेटी असवरी को बड़ा होते हुए नहीं देख सकूंगी। वह उस समय केवल 9 साल की थी। वह मेरी बगल में बैठी थी जब मैंने उसे अपनी जांच रिपोर्ट के बारे में बताया। मैंने उसे गले लगाया और रोने लगी। मुझे रोता हुआ देखकर, उसने भी रोना शुरू कर दिया।उसने मुझसे पूछा, कि मैं क्यों रो रही थी? मैंने कहा, मुझे एक गंभीर बीमारी है और मुझे नहीं पता कि मैं बच भी पाऊँगी या नहीं।'
9 साल की असवरी ने अपनी मां से कहां, 'लेकिन मैंने सोचा था कि तुम्हारे ब्रैस्ट (स्तन) में एक गांठ भर है।' डॉक्टर कीर्ति कहती हैं, 'जब मैंने उसे बताया कि ये ब्रैस्ट कैंसर हैं। उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया और मुझे रोना बंद करने के लिए कहा। उसने मुझे बताया कि ऑस्ट्रेलियाई पॉपस्टार काइली मिनोग को सालों पहले से स्तन कैंसर हैं और उसने हाल ही में एक संगीत कार्यक्रम में काइली मिनोग को प्रदर्शन करते देखा है।
उसने कहा कि अगर काइली ठीक हो सकती है, तो आप क्यों नहीं। उसके बाद मुझे कभी भी रोने नहीं दिया। अगर वो मुझे रोते देखती तो कहती, ‘रोना कैंसर का इलाज नहीं करता है’ वो मेरी सबसे बड़ी हिम्मत थी।' कीर्ति ने फैसला किया कि अब वो एक पल के लिए भी इलाज में देरी नहीं करेंगी। जैसे ही उन्हें रिपोर्ट मिली, कि उनके स्तन की ये गांठ घातक है, उन्होंने कई अस्पतालों के चक्कर लगाये और फिर अपने डॉक्टर से मिलीं।
उनकी कीमोथेरेपी का पहला चक्र 21 मई 2007 को शुरू हुआ। चिकित्सक ने उन्हें नोएडजुवेंट कीमोथेरेपी देना निर्धारित किया, जिसके तहत उन्हें पहले कीमोथेरेपी के दो चक्रों से गुजरना पड़ा और उसके बाद सर्जरी, और कीमोथेरेपी के चार और चक्र। ये उपचार चिकित्सक को ये समझने में मदद देता कि ट्यूमर पर कीमोथेरेपी का क्या प्रभाव पड़ रहा है। कीमोथेरेपी का दुष्प्रभाव बहुत कमजोरी लाने वाला था और अक्सर, कीर्ति कीमोथेरेपी को छोड़ देने का सोचने लगती। वो कहती हैं, 'मैं सोचती, कि इन सब से कोई फायदा नहीं था और मैं इन सब शारीरिक और मानसिक यातनाओं से और अधिक नहीं गुजर सकती।
लेकिन फिर मैं स्वयं को तसल्ली देती और सोचती कि इस अँधेरी सुरंग के अंत में प्रकाश अवश्य होगा। मुझे लगा कि मैं हार नहीं सकती और मुझे अपने बच्चे, मेरे परिवार और खुद के लिए जीना पड़ेगा। बहुत सारी चीजें थीं, जो मैं अपने जीवन में करना चाहती थी और मुझे लगा कि मैंने अब तक कुछ भी हासिल नहीं किया है। इस प्रकार के संकल्प ने मेरी निराशा दूर करने में बहुत मदद की।'
अपनी बेटी की परिपक्व संवेदना के अलावा, कीर्ति अपने परिवार में पति राकेश टिक्कू, माता-पिता और ससुराल वालों को इस मुश्किल समय में उनकी मदद करने के और उनके अविरत सहयोग के लिए धन्यवाद कहती हैं। विशेष रूप से असवरी (जो उस समय इतनी काम आयु की होने के बावजूद) उन्हें हमेशा ये विश्वास दिलाती रहती, कि ब्रैस्ट कैंसर का इलाज संभव हैं और वह एकदम ठीक हो जायेंगी। वो इस बात के लिए खुद को भाग्यशाली मानती हैं, कि उन्हें बहुत अच्छे डॉक्टर मिले, जिन्होंने हमेशा उनकी आशंकाओं को खारिज किया और उन्हें आश्वस्त किया कि अब कैंसर का इलाज करने के लिए बहुत सारे तरीके और माध्यम उपलब्ध हैं।
उस दौरान उन्होंने अपना ध्यान हटाने के लिए पेंटिंग में अपनी रुचि को पुनर्जीवित किया। वो कहती हैं, 'जब मैं स्कूल और कॉलेज में थी तब पेंटिंग किया करती थी। लेकिन समय बदला मैं अपनी नौकरी और पारिवारिक जीवन में व्यस्त होती गयी। पेंटिंग करनी बंद कर दी। लेकिन कैंसर के इलाज के दौरान मैंने इसे फिर से शुरू किया और बस ब्रश के प्रवाह ने मेरी चिंता, मेरे दर्द को कम करने में मेरी मदद की।' अपने इलाज के दौरान उन्होंने बहुत कुछ पढ़ा भी।
डॉ. कीर्ति कहती हैं, 'ये 2009 की बात हैं, जब हमने 'Pink Hope Cancer Support Group' की शुरुआत की। ये समूह अभी और मजबूत हो रहा है और तेजी से आगे बढ़ रहा है। इस समूह के माध्यम से हम लोगों की बहुत अच्छे से काउन्सलिंग करते है। अब जब मैं दिल्ली में हूं तो मैं फोन पर ही लोगों को परामर्श देती हूं। हालांकि ये ब्रैस्ट कैंसर से पीड़ित लोगों के लिए एक समर्थन समूह के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन आज समूह का विस्तार हो रहा है और हम अन्य प्रकार के कैंसर से पीड़ित लोगों की भी मदद कर रहे हैं।'
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए और परामर्श के महत्व को रेखांकित करते हुए वो कहती हैं, 'जब कोई चिकित्सक कहता है कि आप ठीक हो जायेंगें तो आप इसे दtसरे रूप में लेते हैं, लेकिन जब आप किसी ऐसे व्यक्ति से बात करते हैं जो आपकी स्थिति से गुजर चुका हो, तब यs वास्तव में मदद करता है। डॉक्टरों के पास छोटे-छोटे महत्वहीन सवालों का जवाब देने का समय नहीं होता है और मरीज़ भी ऐसे सवाल पूछने में संकोच करते हैं।'
कीमोथेरेपी के दौरान नाखूनों के काले पड़ जाने के एक उदाहरण के बारे में बात करते हुए वो कहती हैं, 'अब एक डॉक्टर को अगर अन्य लक्षण जो सुधार दिखा रहे हों, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन एक औरत के लिए जब वह अपने नाखूनों को काला होते देखती है, तो वह नहीं समझ पाती कि यs सामान्य है या नहीं। वह पूछने में संकोच करती है, जबकि अगर मैं (एक उत्तरजीवी के रूप में) उसे बताती हूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है और ये कीमो के बाद बेहतर हो जायेगा तो वह मुझ पर विश्वास करेगी।' वो हमेशा लोगों को बताती हैं, कि छोटी चीजें आपको कठिन समय से मदद करती हैं। मौत को इतने करीब से देखने के बाद उनके लिए ज़िंदगी का हर पल बहुत महत्व रखता है।
डॉ. कीर्ति समय रहते पहचान और उपचार के महत्व पर बल देती हैं। उनके हिसाब से हर बीमारी हर दिक्कत हर तकलीफ का इलाज है। इंसान यदि एक बार ठान ले कि वो कर सकता है, वो सचमुच कर सकता है। वो कहती हैं, 'कैंसर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि 'कर सकते हैं,' हमें ये याद रखना पड़ेगा। मुझे सबसे महत्वपूर्ण बात ये महसूस हुई कि, कम से कम मेरे उपचार के दौरान, मेरा दृष्टिकोण सबसे महत्वपूर्ण था। जब तक मैं रो रही थी और सोच रही थी कि मैं कभी ठीक नहीं हो पाउंगी, मेरे शरीर ने भी ऐसा ही महसूस किया। जिस दिन मैंने ये सोच लिया कि मैं इस पर विजय हासिल करुंगी, मेरा रवैया बदल गया और मुझे बहुत अच्छा लगने लगा। मुझे लगता है कि आरोग्य प्राप्ति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू आपका रवैया है।' (यह स्टोरी : मूल रूप से योर स्टोरी पोर्टल पर छपी है।