नारीवाद और सेक्शुअलिटी एक-दूसरे से गुँथे हुए हैं। एक की दूसरे के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। अगर भारतीय समाज में रिश्तों के धरातल पर होने वाले परिवर्तनों को समझना है तो हमें नारीवाद द्वारा भिन्नता के ज़रिये संसाधित होने वाली समानता और सेक्शुअलिटी
तसलीमा नसरीन की यह पुस्तक जिसका अनुवाद सुशील गुप्ता ने किया है विभिन्न अखबारों में लिखे हुए कॉलमों का संग्रह है! यह किताब उन औरतों को समर्पित है,जो अपने कदम,’लोग क्या कहेंगे’ के दर से पीछे नहीं हटातीं। उन लोगों की जो इच्छा होती है,वही करती हैं। वर्तम
गहरी से गहरी बात को आसानी से कह देने का जटिल हुनर जाननेवाले राहत भाई से मेरा बड़ा लम्बा परिचय है। मुशायरे या कवि-सम्मेलन में वे कमल के पत्ते पर बूँद की तरह रहते हैं। पत्ता हिलता है, झंझावात आते हैं, बूँद पत्ते से नहीं गिरती। कई बार कवि और शायर कार्यक
स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कथा जगत में अपनी धारदार कहानियों के जरिये विशिष्ट पहचान बनाने वाली कथाकार चित्रा मुद्गल ने एक जमीन अपनी सरीखे उपन्यास से जो जमीन बनाई उसे आवां जैसे वृहद उपन्यास से और पुख्ता ही किया । सामाजिक चेतना से लैस उनके पात्र समकालीन जट
महुआ माजी का उपन्यास ‘मरंग गोड़ा नीलकंठ हुआ’ अपने नए विषय एवं लेखकीय सरोकारों के चलते इधर के उपन्यासों में एक उल्लेखनीय पहलक़दमी है। जब हिन्दी की मुख्यधारा के लेखक हाशिए के समाज को लेकर लगभग उदासीन हों, तब आदिवासियों की दशा, दुर्दशा और जीवन संघर्ष पर
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राहत अपनी शायरी में दो तरह से मिलते हैं - एक दर्शन में और एक प्रदर्शन में। जब आप उन्हें हल्के से पढ़ते हैं तो केवल आनन्द आता है, लेकिन जब आप राहत के दर्शन में, विचारों में डूबकर पढ़ते हैं तो एक दर्शन का अहसास हो जाता है। और जब आप दिल से पढ़ते हैं तो वह
आप कह सकते हैं कि 'शर्तें लागू' नई वाली हिंदी की पहली किताब है। इस किताब में आपके स्कूल में पढ़ने वाली वह लड़की है जिसके बारे में सब बातें बनाते थे। मोहल्ले के वह भइया हैं जो कुछ भी हो जाता था तो कहते थे टेंशन मत लो यार सब सही हो जाएगा। वे अंकल हैं ज
इस संग्रह की प्रत्येक सत्य कथा में मानव-प्रकृति के सुंदर एवं वीभत्स, दोनों रूपों को अनावृत्त किया गया है। ये कथाएँ सम्मानपूर्वक जिए गए जीवन को प्रतिबिंबित करती हैं। कई बार ये दिल को छू लेनेवाले किसी साधारण साहसिक कार्य का वर्णन करती हैं। अनेक कहानियो
जब इंसान अंदर से टूटता है तो वो अपनी बात समझाने के तरीके ढूँढने लगता है । और जब अंदर भावनाओं का ज्वार उठ रहा हो और सुनने वाला कोई न हो, तो वो खुद के लिए फैसलें लेता है । बेशक वो समाज की मान्यताओं में सही न हो लेकिन वो फिर भी अपने हक़ में फैसलें लेता ह
मैं क्या हूँ और क्या बन सकता हूँ? वे कौन लोग थे जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपना-अपना विशिष्ट योगदान देकर मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा की? कैसे मैं इस मायावी संसार में दिग्भ्रमित हुए बिना अग्रसर हो सकता हूँ? कैसे मैं दैनिक जीवन में होनेवाले तनाव पर
हम भारतीयों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी जरूरी संसाधन पर्याप्त मात्रा में देश में उपलब्ध हैं। हमारे यहाँ बहुत सी नीतियाँ और संस्थाएँ हैं। चुनौती है तो बस शिक्षकों, विद्यार्थियों और तकनीक-विज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर एक दिशा में चिंतन करने
"क्या हम सिर्फ़ मज़बूत लोगों की लड़ाई लड़ रहे हैं? कमज़ोरों के हक की लड़ाई में कमज़ोरों के लिए कोई जगह नहीं? (इस पुस्तक की एक कहानी, ‘और कितने यौवन चाहिए ययाति?’ में से) ये पंक्तियाँ सिर्फ़ इस कहानी की पंक्तियाँ नहीं हैं। ये अशोक कुमार पाण्डेय की कहानियों
मुझे लगता है के मुझे हमें देश के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता है ठीक वैसा ही जैसा अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतन्त्रता संग्राम के समय हमारा था। उस समय राष्ट्रवाद की भावना बहुत प्रबल थी। भारत को एक विकसित राष्ट्र से बदलने के लिए आवश्यक यह दूसरा दृष्टि
यह पुस्तक प्रसिद्ध वैज्ञानिक और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम तथा उनके निकट सहयोगी सृजन पाल सिंह के प्रत्यक्ष अनुभवों पर आधारित है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में टिकाऊ विकास प्रणाली के विकास तथा क्रियान्वयन के ऐसे प्रमाण दिए गए हैं
मैं नास्तिक हूँ। कठिन वक़्त में यह मेरी कहानियाँ ही थी जिन्होंने मुझे सहारा दिया है। मैं बचा रह गया अपने लिखने के कारण। मैं हर बार तेज़ धूप में भागकर इस बरगद की छाँव में अपना आसरा पा लेता। इसे भगोड़ापन भी कह सकते हैं, पर यह एक अजीब दुनिया है जो मुझे बेह
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ जी का साहित्य में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। समय और समाज की विद्रूपता को रेखांकित करना, विसंगतियों को उकेरना और विषमताओं पर कलम चलाना, निशंकजी के साहित्य सृजन का एक ऐसा पक्ष है, जो साहित्य को आमजन का साहित्य बनाता है। निशंकजी की
''सोने का रंग पीला होता है और खून का रंग सुर्ख। पर तासीर दोनों की एक है। खून मनुष्य की रगों में बहता है, और सोना उसके ऊपर लदा हुआ है। खून मनुष्य को जीवन देता है, जबकि सोना उसके जीवन पर खतरा लाता है। पर आज के मनुष्य का खून पर उतना मोह नहीं है, जितना स
यह एक ऐसी कहानी है जो आपको हँसाते हुए रुला देने के मोड़ पर ले जाएगी। संजय-रफ़ीक़ की गंगा जमनी दोस्ती है। दोस्तों की छेड़ है। रफ़ीक़-उज़्मा का प्रेम है। शहर बलिया की अपनी राजनीति है। षड्यंत्र है। हत्या है। आत्महत्या है। और इन सबसे ऊपर एक ऐतिहासिक ट्विस्
‘यार जादूगर’ हिंदी साहित्य की मुख्य धारा के उपन्यासों में विषय-वस्तु के लिहाज से एकदम नया और चौंकाने वाली कहानी है। कल्पना की जमीन पर बोया गया ऐसा यथार्थ जो मानवीय संबंधों और उसके मनोविज्ञान पर दार्शनिकता की गाँठ खोलता रेशा-रेशा उघाड़ते हुए एक प्राकृ