कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय
जब तक आँखो मे आँसू है
तब तक समझो मे जिंदा हूँ||
धरती का सीना चीर यहाँ
निकाल रहे है सामानो को
मंदिर को ढाल बना अपनी
छिपा रहे है खजानो को|
इमारतें बना के उँची
छू बैठे है आकाश को
उड़ रहे हवा के वेग साथ
जो ठहरा देता सांस को|
जब तक भूख ग़रीबी चोराहो पर
तब तक मै शर्मिंदा हूँ||
जब तक आँखो मे आँसू है
तब तक समझो मे जिंदा हूँ||
जनता का जनता पर शासन
जनता से है छीन लिया
जनता को जनता से डराए
जनता ने जब उसे चुन लिया|
घोर अंधेरा गलियो मे
चोराहो पर सन्नाटा है
निर्दोष गवां दे जान यहाँ
आरोपी समझे वो टाटा है|
संसद के सिंघासन बैठा
धृतराष्ट्र कहे मै अंधा हूँ||
जब तक आँखो मे आँसू है
तब तक समझो मे जिंदा हूँ||