वो लड़का जो कभी किताबों से मोहब्बत करता था
सुना है, आजकल मोहब्बत में किताबें लिख रहा है ||
पहले रास्ते की किसी सड़क के किसी मोड़ पर
या शहर के पुराने बाज़ार की किसी दुकान के काँच की दीवारों में कैद
किसी किताब को दिल दे बैठता था ||
आजकल वो अपना दिल हथेली पर रख कर घूमता है
उसी सड़क के मोड़ पर किसी दूकान या शॉपिंग मॉल के
एस्केलेटर से उतरती हुई लड़की को दिल देना चाहता है ||
किताबो के कवर की तरह ही वो चहरे पढ़ना चाहता है
और शायद वही गलती जानबूझकर दोहराना चाहता है
जो कि किताबों के कवर देखकर किताब उठाकर उसके अंदर की
कहानियो में फस कर करता था |
अब सड़क किनारें किताबों की दुकानों के प्रति उसका मोह
भंग हो चूका है
उसकी सोच का स्तर अब गिर चुका है या फिर किताबो का,
जब से उसने सड़क के फुटपाथ पर किताबो को बिकते हुए देखा है
जहाँ से वो कभी जूते खरीदा करता था ||
वो आज भी पढ़ना चाहता है, मगर केवल चहरे ...
पर शायद उसने ये हुनर सीखा नहीं है, वो पागल अभी भी
हर सीने में दिल ढ़ूढ़ने निकल पड़ता है ||
हर बार उसे पत्थर मिले है सीने में , पर पागल
ठोकरों से सम्हलता कहाँ है ?
लगता है बहुत बेशर्म है या ज़िद्दी ।|