कवि:- शिवदत्त श्रोत्रिय
आज बैठकर सोचा मैने
क्या खोया क्या पाया हैएक चीज़ जो साथ रही
वो तो बस माँ का साया है||
आज मुझे हा याद नही
अपने बचपन की बाते
माँ ने क्या-२ कष्ट झेले
तब मिली मुझे ये काया है||
संसार मे जब मैने जन्म लिया
ना जाने कितना रोया था
पर सारी दुनिया को भूल
माँ के आचल मे निडर हो सोया था||
मुझे ठीक से याद नही
तब उम्र बड़ी मेरी छोटी थी
माँ ने जो मेरे बाद मे खाई
शायद वो सूखी रोटी थी||
जब भी मै बीमाँर पड़ा
दवाये दी मुझे सारे जहा की
मै रात को ठीक से सो पाया
क्योकि रात ही नही हुई उस दिन माँ की||
बच्चो की खुशियो की खातिर
जो सारी-२ रात जागी है
ऐसी माँ को दामन छोड़
ये दुनिया क्यो आज भागी है||
याद नही तुझको वो दिन
जब नीद तुझे ना आती थी
तब माँ तुझको पास बिठाकर
मीठी सी लोरी सुनाती थी||
तेरी खुशियो की खातिर वो
हर दिन मन्दिर जाती थी
दूर गया जब नौकरी पर तू
भूल गया वो पाती थी||
जिसने तुझको चलना सिखलाया
तू उसको चाल सिखाता है
जिसने तुझको गिनती सिखलाई
तू उसको काम गिनता है||
जिसका हाथ पकड़ कर चलना सीखा
तू आज उसे दोडाता है
जिसने तुझको संसार दिखाया
तू उसको आंख दिखता है||
जब भी तुझ पर कोई आँच आई
तब माँ का खून था खौल गया
दो पैसे क्या कमाँने लगा
तू माँ को अपनी भूल गया||