फूलो के इम्तिहान का
कवि: शिवदत्त श्रोत्रिय
मंदिर में काटों ने अपनी जगह बना ली
वक़्त आ गया है फूलो के इम्तिहान का ||
सावन में भीगना कहाँ जुल्फों से खेलना
बारिश में जलता घर किसी किसान का ||
हालात बदलने की कल बात करता था
लापता है पता आज उसके मकान का ||
निगाह उठी आज तो महसूस करता हूँ
लाल सा दिखने लगा रंग आसमान का ||
लुटेरों की हुक़ूमत जहाजों पर हो गयी
अंदाजा किसे है दरिया के नुकसान का ||
आइना कहाँ दुनियाँ की नजर में "शिव"
अपने ही सबूत मांगते तेरी पहचान का ||